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बलात्कार व कानूनी प्रावधान

१६ साल और १४ सेकेण्ड का कानून

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल -२०१३, सामाजिक
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अपनी सरकार ने नए एंटी रेप कानून ड्राफ्ट तैयार किया है। उस ड्राफ्ट में जो बातें मौजूद हैैं, वे इस प्रकार हैं। लड़की को 14 सेंकेंड तक घूरने पर गैर जमानती अपराध दर्ज होगा। लड़की का पीछा करने पर जेल होगी। लड़की की फोटो खींचना अपराध है। लड़की को स्पर्श किया तो जेल जाना तय है। जी हां, सरकार ने इस प्रकार से नए एंटी रेप कानून का ड्राफ्ट तैयार किया है, जिसमें लड़की को 14 सेकेंड तक घूरने पर तीन साल तक की सजा हो सकती है। यह कौन तय करेगा कि लड़के ने लड़की को 14 सेकेंड तक घूरा है। किसी को शहर की भीड़ में अंजाने में धक्का लगता है, यह भी नए कानून के तहत अपराध के दायरे में आ जाएगा।

आज देश में जिस तरह से बलात्कार या उससे जुड़े अपराध हो रहे हैं, ऐसे समय कानून में सख्ती करने वाले बदलाव जरूरी हैं। लेकिन कानून का गैर- जिम्मेदाराना इस्तेमाल कभी मंजूर नहीं होगा। देश कहता है कि कानून बनाओ पर उस कानून का मजाक मत बनाओ।
कोई किसी को फर्जी मुकदमे में भी फंसा सकता है। इन जैसे बदलाव से फर्जी मुकदमे का सबसे बड़े अंदेशे का खतरा नजर आ रहा है। बहुत जल्दबाजी में सरकार इस प्रकार का कानून लाने की चेष्टा कर रही है। इससे समाज में बड़ी अनियमितता आएगी।

आखिर किसी लड़के की नियत साफ है, या नहीं, यह कैसे तय किया जाएगा। 14 सेंकेंड तक देखने से क्या कोई सजा का हकदार बन सकता है। हम ऐसे समाज में रहते हैं, जहां पुरुष और महिला साथ में रहते हैं। सरकार को ऐसा कुछ नहीं करना है, जिससे एकतरफा आक्रोश की भावना पैदा हो। कानून पुरुषों के खिलाफ नहीं बनता है तो उन लोगों के खिलाफ बनाना है, जो औरतों के खिलाफ हिंसा करते हैं। सरकार गलत कर रही है। इस कानून को गैर-जिम्मेदाराना उपयोग ज्यादा किया जाएगा।

एंटी रेप विधेयक अब तक नहीं बना है। यह कानून बनने से पहले संसद में भी इसे अग्निपरीक्षा में खरा उतरना होगा। इस कानून का सभी पार्टियां विरोध कर रही हैं। कहीं ऐसा न हो कि संसद में ही यह कानून धराशाही हो जाए। एंटी रेप विधेयक पर हो-हंगामा मचा है। बलात्कार या महिला उत्पीड़न रोकने के लिए सख्त कानून की मांग हो रही है। लेकिन सरकार ने जो विधेयक बनाया है,या जिसे कानून का अमलीजामा पहनाया है, वह गलत है। इस विधेयक को लेकर जितने मुंह उतनी बातें सामने आ रही हैं, पर फैसला तब होगा, जब संसद में यह विधेयक पास होगा। इस विधेयक का भविष्य वही तय होगा।

दिल्ली गैग रेप के बाद देशभर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए उठी आवाज के परिणामस्वरूप जिस विधेयक को मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी, उसमें सहमति से सेक्स की उम्र 18 से 16 कर दी गई है। इसमें सामाजिक, नैतिक और चिकित्सकीय आधार पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। इस विधेयक के चलते देश के सभी परिवारों में जैसे हलचल सी मची है। सभी की राय है कि बरसों से चले आ रहे सामाजिक,पारिवारिक ढ़ाचे पर प्रहार करने वाली बात है। इस विधेयक से पश्चिमी संस्कृति को जोर-शोर से बढ़ावा मिलेगा। इस कानून से बच्चे को गलत राह पर चलने की छूट मिलेगी और अभिभावक का बच्चों पर से अधिकार छूट जाएगा। इस विधेयक की अगुवाई करने वाले कुछ लोगों की राय है कि यह कदम आजकल बच्चों के समय से पहले युवा होने को ध्यान में रखकर उठाया गया है। तो क्या 16 साल के बच्चों को यौन संबंध का कानूनी अधिकार देना सही है।

परसों तक इस विषय पर एक बहस चल रही थी तो एक लड़की ने तुरंत कह दिया कि यह उम्र ऐसी है, इस उम्र में भूख लगती है, खाना भी नहीं देते और साथ में पाबंधियां भी कठिन करते हो, यह नाइंसाफी है। उस लड़की की यह बात सुनकर यह महसूस होता था कि आज के बच्चों का शरीर संबंध में उत्सुकता बढ़ी है। इसका मतलब उचित ज्ञान बढ़ा है, ऐसा कदापि नहीं होगा।

इस प्रकार के कानून को लाना यह सरकारी अविवेक है। बलात्कारी के दृष्टिकोण से लड़की की उम्र बेमतलब है,डेढ़ साल की बच्ची से लेकर 75 साल की बुर्जुग महिला के साथ बलात्कार की खबरें हम आए दिन सुनते हैं।

एंटी रेप कानून की बहस जिन महत्वपूर्ण और परिवर्तनशील विषयों पर होनी चाहिए, वह छूट रही है और समाज में और ज्यादा अनियमितता लाने की ओर हम बढ़ रहे हैं।

कानून बनाने के पीछे सुरक्षा की भावना है, तो पहले सुरक्षा की परिभाषा तय कीजिए। उम्र की चर्चा को छोड़ कानून सख्त करने की पहल होनी चाहिए। महिलाओं को आत्मिक और दामनिक तौर पर सुरक्षा प्राप्त हो, ऐसे उपायो की ओर हमें ध्यान देना होगा।
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Tags: anti rape lawcourthindi vivekhindi vivek magazinelawlaw and ordersexismsocial education

अमोल पेडणेकर

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