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बदल्यो म्हारा देस

बदल्यो म्हारा देस

by गंगाधर ढोबले
in पर्यटन, मई २०१३, सामाजिक
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राजस्थान रजवाड़ों, उनके आलीशान महलों, ऐतिहासिक किलों, समृद्ध परम्पराओं और लजीज व्यंजनों के लिए तो प्रसिद्ध है ही; उसकी चित्रकारी, रंग कला, वास्तु कला, संगीत और नृत्य कला भी लाजवाब है । आतिथ्य में तो राजस्थान का कोई सानी नहीं है; क्योंकि ‘पधारो म्हारे देस…’ का अपनापन आपको जगह-जगह दिखायी देगा। राजस्थान का जिक्र आते ही हमारे जेहन में रेगिस्तान सबसे पहले उभरता है। रेत का यह समुंदर पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर तक फैला हुआ है। हवा जब रेत से खिलवाड़ करती है तब तब उसका अहसास पूरे राजस्थान में महसूस होता है। कभी वह खुशनुमा, कभी मनभावन, कभी शर्मीला और कभी कष्टदायक! शायद इसी कारण पूरे देश के पर्यटन का 25 फीसदी हिस्सा राजस्थान को मिलता है।

अजमेर शरीफ, पुष्कर, श्रीनाथजी, रामदेव बाबा (घोड़े पर सवार दिखायी देने वाले राजस्थान के एक प्राचीन संत पुरुष, वर्तमान में योग वाले रामदेव बाबा नहीं) जैसे पवित्र तीर्थ राजस्थान की धार्मिक संस्कृति की धरोहर है। बीकानेर के निकट करणी माता का मन्दिर देखकर लोगों का भौचक होना स्वाभाविक है। चूहों को यहां मुक्त रूप से पाला गया है। एक तरह से यह चूहों का ही मन्दिर है। चारों ओर हजारों चूहे कूदते-फांदते रहते हैं। कोंकण में जिस तरह जीवित सांपों का मन्दिर है, कुछ इसी तरह का यह है। राणी सती मां या सती परम्परा में बने अन्य मन्दिर जगह-जगह दिखायी देंगे। आधुनिक समय की बात कहें तो पोखरण का परमाण्ाु विस्फोट स्थल इस देश का आधुनिक तीर्थ स्थल है।

चारों ओर निर्जन बस्तियां, दूर-दूर बसी ढाणियां (देहात), चटख रंगों के परिधान पहने लोग आज भी आकर्षण का केन्द्र हैं। आधुनिकता अब उनके जीवन में प्रवेश कर गयी है। बुनियादी ढांचे में बदलाव आ रहा है। सड़कें बन गयी हैं और बन रही हैं। उद्योग पनप रहे हैं, खेती सुधर रही है, शिक्षा के केन्द्र स्थापित हो रहे हैं। पूरे राजस्थान में निजी विश्वविद्यालयों, स्कूलों की बा़ढ सी आ गयी है। किसी छोटे से देहात में किसी अंतरराष्ट्रीय स्कूल का बोर्ड दिखायी देना अब नयी बात नहीं है। देश-विदेश में फैले राजस्थान के उद्यमियों ने अपने प्रदेश में स्कूलों, विश्वविद्यालयों में धन लगाया है। देश-विदेश के छात्र भी यहां आने लगे हैं। जैसलमेर जैसे रेगिस्तानी जिले में गेहूं की खेती देखकर अब आश्चर्य होता है। रेत के टीलों के लिए प्रसिद्ध साम के आगे इंदिरा नहर आयी है। इस पानी से यह जिला अब रेगिस्तान में भी खेती करने लगा है। आज से कुछ वर्ष पहले केवल मीलों तक बंजर भूमि ही वहां दिखायी देती थी, अब बीच-बीच में लहलहाते खेत दिखायी देते हैं।

अरावली पर्वत की श्रंखलाएं केवल निर्जन, बंजर पहाड़ या पथरीली जगह ही पेश नहीं करते, घने वनों और झीलों, वन्य प्राणियों और पंछियों, वनोपज और औषधियों से भी वह समृद्ध है। रणथंभौर का बाघ अभयारण्य या भरतपुर का पक्षी अभयारण्य इसकी मिसालें हैं। गांवों में आज भी आयुर्वेद का बोलबाला है। एलोपैथी की दवाएं लगभग शहरों तक ही सीमित हैं। कई स्थानों पर प्राकृतिक चिकित्सालय बन गये हैं और देश-विदेश के लोग चिकित्सा के लिए वहां पहुुंच रहे हैं। आधुनिकता की दौड़ में राजस्थान ने अपनी विरासत भी कायम रखी है।

हस्त कलाओं की परम्परा आज भी कायम है। हथछपे कपड़े, कलात्मक फर्नीचर, पंखों से बनी कला कृतियां, रजवाड़ी किस्म के आभूषण, कलात्मक बर्तन, पॉटरी, मूर्तियां, खिलौने लुभाते हैं। ब्लॉक छपाई बंगरू, सांगानेरी, बटिक, चुनरी, बांधनी, लहरिया, मोथरा, कशीदाकारी कपड़े या कांच जड़े परिधान सहज ही ध्यान आकर्षित करते हैं। फर्नीचर में लकड़ े का कलात्मक सामान उपलब्ध है। लकड़ी के कलात्मक दरवाजे, खिड़कियां, झरोखे, मेज-कुर्सियां, जालियां, बैंच, झूले और न जाने क्या-क्या आपको दिखायी देगा। लकड़े पर चित्रकारी में जयपुर और रामग़ढ का नाम लिया जाता है; लेकिन जोधपुर और किशनग़ढ का वे मुकाबला नहीं कर सकते। देवी-देवताओं, पश्ाु-पक्षियों की महीन चित्रकारी वाली प्रतिमाएं सहज ही दिखायी देती है। रजवाड़ों से लेकर गांवों तक ऊं ट और हाथी प्रसिद्ध हैं। इनकी कलात्मक मूर्तियों से बाजार सने हैं। चाहे कपड़ा हो, चाहे लकड़ा या पत्थर या कि धातु- ऊं ट, हाथी, मोर, हिरण अवश्य दिखायी देगा। पॉटरी में चमकीली वस्तुएं जयपुर की खासियत है तो उदयपुर के पास मोलेला में मिट्टी से बनी पतली चमकीली कलात्मक पॉटरी, अलवर या बीकानेर में चित्र उकेरी पॉटरी आपको अवश्य मोह लेगी।

पेंटिंग में राजस्थान पीछे नहीं है। मिनिएचर, पोर्टल, मूरल्स, कपड़े पर छपाई में महारत हासिल है। मेंहदी सजाना तो कोई राजस्थानी महिलाओं से ही जाने। तरह-तरह के बारीक डिजाइन से हाथ इतने रंग जाते हैं कि मेंहदी भी खुद लजा जाये। घरों की दीवारों पर चित्र बनाना गांवों में आज भी जारी है। अक्सर महिलाएं इस तरह की चित्रकारी करती हैं। इसे मांडना कहते हैं। इसमें प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल होता है। जयपुर, जोधपुर, नाथद्वारा, किशनग़ढ आदि इसके मुख्य केन्द्र है। देश के अन्य हिस्सों में, खास कर आदिवासी इलाकों में घर के बाहरी दीवारों पर इसी तरह की मांडना रचना हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

संगमरमर और लाल, ग्ाुलाबी, पीले पत्थरों का तो कहना ही क्या! पूरे राजस्थान का वास्तु शिल्प इससे जुड़ा है। जैसलमेर आपको सुनहरे पत्थरों से सजा मिलेगा तो जयपुर ग्ाुलाबी पत्थरों से और जोधपुर नीली आभा लिए पत्थरों से। पत्थरों का यहां विशाल व्यवसाय है। कई जगह स्टोन पार्क बने हैं। पार्क यानी ये कोई उद्यान नहीं है। पत्थरों के कारखानों वाला इलाका है। महाराष्ट्र में जिस तरह एमआईडीसी होते हैं , उसी तरह के ये पार्क हैं। इन पार्कों में आपको पत्थर काटती विशाल मशीनें और उन्हें ऊं चे उठाते बड़े-बड़े क्रेन दूर से ही दिखाई देंगे। इन कारखानों में छोटे-बड़े पत्थरों को कटते देखना अपने-आपमें मनोरंजक है। इन पत्थरों के अलावा राजस्थान खनिज सम्पदा में भी अपनी जगह रखता है। तांबा, पीतल, जस्ता, अयस्क, लिग्नाइट आदि खनिजों के यहां विशाल भण्डार हैं और राजस्थान की अर्थव्यवस्था की ये री़ढ है।

राजस्थान केवल पर्यटन का ही इलाका नहीं है। पर्यटन के तो बेश्ाुमार अवसर यहां हैं; लेकिन इसके अलावा उद्योग और व्यापार का भी यह एक महत्वपूर्ण केंद्र है। राजस्थान ने देश को उद्यमी दिये हैं। राजपूत जिस तरह वीर और ल़ड़ाकू कौम रही है, वैसे यहां के व्यवसायी साहसी और हुनरी रहे हैं। राजस्थान के रेगिस्तान ने उन्हें हर संकट का मुकाबला करने का धैर्य दिया है। आज की बात तो छोड़िये, प्राचीन काल में भी ये श्रेष्ठी दूर-दूर तक व्यापार के लिए जाते थे और सालों बाद अपने इलाकों में लौटते थे। जैसलमेर, बाड़मेर या जोधपुर से पश्चिमी देशों के लिए मार्ग खुलते हैं। ये ही भारत के लिए उपलब्ध सड़क मार्ग थे, जो आज बन्द हैं। पाकिस्तान बनने के पूर्व ये मार्ग खुले थे और इतिहास कहता है कि यहां के व्यापारी मिस्र-ईरान तक माल ले जाते थे। साहस और व्यापारिक कौशल के इस ग्ाुण के कारण ही राजस्थान के व्यापारी देश के हर कोने में जाकर बसे हैं और जहां भी गये वहां की मिट्टी में घुलमिल गये हैं। फिर भी वे अपने इलाके को नहीं भूले हैं और अपने व्यवसाय से प्राप्त आय का कुछ हिस्सा यहां अवश्य लगाते हैं। राजस्थान की खुशहाली में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

राजस्थान का पूर्वी और पश्चिमी इलाका खेती और व्यवसाय-उद्योग से समृद्ध है। पश्चिमी भाग हरियाणा, पंजाब के करीब होने से वहां पहले से व्यापार और चहल-पहल है। दक्षिणी इलाका ग्ाुजरात के करीब होने से वहां भी ऐसी ही स्थिति है। लेकिन, राज्य के पश्चिमी रेगिस्तानी इलाकों और उत्तरी इलाकों में आने वाला बदलाव और विकास ध्यान आकर्षित करने वाला है। राज्य में भले ही अंतरराष्ट्नीय स्तर के विश्वविद्यालय और विद्यालय स्थापित हों, फिर भी शिक्षा को गांवों में गहरायी तक पहुंचाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। राज्य का साक्षरता प्रतिशत 30 फीसदी के आसपास है और इसका मूल कारण महिलाओं को शिक्षा उपलब्ध न होना है। इसी तरह लैंगिक अनुपात में सुधार एक चुनौती है। यहां हर एक हजार पुरुष पर 913 महिलाओं का अनुपात है। यह एक सामाजिक समस्या है। शिक्षा और लड़कियों को बचाकर या उन्हें बेहतर अवसर प्रदान कर इसमें बदलाव लाने की चुनौती राजस्थान के समक्ष है।
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