राजनाथ का सारथ्य और मोदी का करिश्मा

 इफेक्टिव लीडरशिप इज नॉट अबाउट मेकिंग स्पीचेज ऑर बीइंग लाइक्ड, लीडरशिप इज डिफाइंड बाय रिजल्ट्स नॉट एट्रिब्यूट्स‡ पीटर डकर

सन 2014 में लोक सभा के चुनाव होने वाले हैं, जिसकी हवाएं अभी से देश में बह रही हैं। लोक सभा चुनावों का सीधा मतलब है सत्ता प्राप्त करने के लिए संग्रम, जो कि मुख्यत: भाजपा और कांग्रेस के बीच होगा।

युद्ध भूमि का विचार आते ही भगवद्गीता का पहला श्लोक याद आता है। इस पहले श्लोक में दो शब्द हैं- ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे।’ युद्ध भूमि को धर्मक्षेत्र भी कहा गया है और कुरुक्षेत्र भी। जब भी कभी सांस्कृतिक मूल्यों और धर्म के शाश्वत सिद्धान्तों के लिए युद्ध लड़ा जाता है तो वह धर्म युद्ध बन जाता है।

धर्म युद्ध-

सन 2014 के आम चुनाव धीरे‡धीरे धर्म युद्ध की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यहां फिर एक बार धर्म युद्ध का अर्थ स्पष्ट करना आवश्यक है। अल्लाह को मानते हो या नहीं, यीशू को मानते हो या नहीं, इत्यादि साम्प्रदायिक विषयों के लिए यह युद्ध नहीं हो रहा है, यह युद्ध तो मूल्यों की प्रस्थापनाओं का है।

इस युद्ध में यह परिणाम सामने आएगा कि लोकतंत्र की नींव में परिवारवाद रहेगा या आम लोगों के बीच से उदित हुआ नेता देश का नेतृत्व करेगा। दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह होगा कि भारत अपने ही जीवन-मूल्यों पर चलेगा या इटेलियन जीवन-मूल्यों पर। तीसरा मुद्दा है कि भारतीय जनता को आतंकवाद मुक्त जीवन जीने की स्वतंत्रता मिलेगी या उन्हें अपने ही घर में डर के साये में जीना पड़ेगा। चौथा मुद्दा है कि जनता को रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने के लिए स्वच्छ जल, रहने के लिए आवास इत्यादि उपलब्ध होगा या फिर जनता सरकारी भीख के भरोसे ही रहेगी। लोगों के पुरुषार्थ को जगाया जाएगा या उनमें सरकार पर निर्भर रहने की आदत डाली जाएगी।

उत्तम सारथ्य-

युद्ध के लिए उत्तम नेता और उत्तम सारथी आवश्यक है। भारतीय महायुद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन का सारथ्य किया था। सारथ्य करते समय उन्होंने अर्जुन के मन का भ्रम दूर किया, उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित किया और उनके मन में विजय का विश्वास जगाया। लोक सभा चुनावों के युद्ध में भी प्रत्येक मतदान क्षेत्र में एक अर्जुन होता ही है। उसके मन में लड़ने की स्फूर्ति पैदा करने और विजयश्री पाने के विश्वास को जागृत करने का काम सारथी को करना पड़ेगा।

इसी तरह के सारथी का काम करने का दायित्व भाजपा के राजनाथ सिंह को निभाना होगा। हाल ही मेंउन्होंने भाजपा के अध्यक्ष पद की कमान सम्भाली है। वे सन 2005 में भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। सन 1951 में जन्में राजनाथ सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्रियाशील कार्यकर्ता थे। 1972 में वे मिर्जापुर जिले के कार्यवाह थे। उन्होंने अ.भा.वि. परिषद का कार्य भी किया। भौतिक शास्त्र में स्नातकोत्तर की पदवी हासिल करने के बाद वे मिर्जापुर के महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप मेंकार्यरत रहे। सन 1977 से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई। वे उत्तर प्रदेश भाजपा के महासचिव रहे। सन 1988 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विधायक रहे। 1994 में राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए। सन 1999 में अटल जी के मन्त्रिमण्डल में मन्त्री रहे। सन 2000 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने। सन 2003 में फिर एक बार अटल जी की सरकार में कृषि मन्त्री रहे और सन 2005 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
इन सभी का अर्थ यह है कि जिसे सारथ्य करना है उसके पास संघ कार्य का, पार्टी संगठन का और प्रशासन का बहुत अनुभव है। उन्होंने राहुल गांधी की तरह अपनी मां की गोद से पार्टी के उपाध्यक्ष पद पर छलांग नहीं लगायी है। उनकी यह यात्रा उनके कर्तृत्व और क्षमता को सलाम करने वाली रही और अध्यक्ष पद पर चुना जाना उनकी उपलब्धि है। राजनाथ सिंह ने यह स्वीकार किया कि अध्यक्ष पद के पहले कार्यकाल में उनसे कुछ गलतियां हुईं और अब वे इस बात का ध्यान रखेंगे कि वे गलतियां दुहरायी न जाएं। गलतियों को स्वीकार करने के लिए बड़ा दिल होना चाहिए, जो कि एक उत्तम नेता की खासियत है।

पार्टी का चेहरा‡

आने वाले महासंग्रम में नरेन्द्र मोदी पार्टी का चेहरा होंगे। पिछले साल से ही मीडिया के द्वारा उनको भावी प्रधानमन्त्री के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर उनके विषय में रोज ही उल्टी-सीधी चर्चाएं चलती रहती हैं। इसके लिए इन माध्यमों में आपसी प्रतियोगिता भी है। आप चाहें मोदी की प्रशंसा करें या निन्दा करें, चर्चा का विषय मोदी ही रहेंगे। इसे ही ‘कैरिस्मेटिक लीडरशिप’ कहते हैं। नरेन्द्र मोदी आज देश के कैरिस्मेस्टिक अर्थात करिश्माई नेता बन चुके हैं। कोई राजनेता करिश्माई कब बनता है? नेतृत्व के सम्बन्ध में कहा गया है कि व्यक्ति को नेता के रूप में ही जन्म लेना पड़ता है। अच्छा नेता बनाने का कोई विद्यालय नहीं है। नेतृत्व के बारे में प्रबन्धन शास्त्र में बहुत कुछ सिखाया जाता है। हर साल लाखों विद्यार्थी एम. बी. ए. बनते हैं परन्तु उनमें से कितने करिश्माई नेता बन पाते हैं? करिश्माई नेता बनने के लिए एक अलग तरह की तपस्या करनी पड़ती है। नरेन्द्र मोदी ने वैसी तपस्या की है।

ऐसे नेताओं के सामने एक स्पष्ट चित्र होता है कि उन्हें क्या करना है। यह उनका पहला गुण है, न तो किसी भी प्रकार की संदिग्धता अपेक्षित होती है और न ही मन में कोई संशय होना चाहिए। स्पष्ट चित्र अगर आंखों के सामने है तो दूसरा गुण अपने आप निर्माण हो जाता है और वह है आत्मविश्वास। तीन वाक्यों- ‘मैं यह कर सकता हूं, मैं ही यह करूंगा और मैं ही करवाऊंगा’ से कृतिशील आत्मविश्वास प्रकट होता है।

परिणाम-

इस आलेख की शुरुआत में पीटर डकर का उद्धरण लिया गया है। इसमें डकर कहते हैं- ‘आपको लोग पसन्द करते हैं या आप अच्छा भाषण करते हैं, केवल इतने गुणों से ही आप उत्तम नेता नहीं बन सकते। नेतृत्व की कसौटी उसके परिणाम पर निर्भर होती है, उसके गुणों पर नहीं।’

करिश्माई नेता का दूसरा गुण है कि कोई कुछ भी कहे, कितनी ही निन्दा करे, कितना ही दुष्प्रचार करे, वह नेता एक बार विचार पूर्वक स्वीकार किया गया मार्ग कभीनहीं छोड़ता। वह सभी आघातों को सहन करता जाता है। महात्मा गांधी के व्रतों का, ब्रह्मचर्य का, असहयोग का उनके जीवित रहते भी खूब मजाक उड़ाया गया, परन्तु महात्मा गांधी अपने मार्ग पर कायम रहे। अमेरिका में डॉ. मार्टिन लूथर किंग पर भी बहुत टीका‡ टिप्पणी की गयी, परन्तु उन्होंने नीग्रे को सभी प्रकार के नागरिक और राजनैतिक अधिकार दिलवाने की अपनी लड़ाई जारी रखी। इसके कारण वे तीस बार कारावास मेंभी गये। करिश्माई नेता बनने के लिए नेता को सभी आघात सहन करने पड़ते हैं। दुखों को झेलकर भी सीधे खड़ा रहना पड़ता है।

आरोपों की बरसात-

नरेन्द्र मोदी पर 2002 से आरोपों की जैसे वर्षा ही हो रही है। उन्हें राजनीति से हटाने के लिए एनजीओ की जैसे ‘कॉटेज इंडस्ट्री’ खोली गयी है। कई राजनेताओं और पत्रकारों ने नरेन्द्र मोदी को खत्म करने का बीड़ा उठा रखा है। ऐसे लोगों को दूरदर्शन पर हम सभी देखते रहते हैं। कोई दूसरा कमजोर सा राजनेता होता तो वह इन आघातों से कब का खत्म हो जाता, परन्तु नरेन्द्र मोदी इन सब से बढ़कर निकले। उन्होंने इन सभी आघातों को न सिर्फ सहन किया, बल्कि प्रत्येक आघात का रूपान्तरण गुजरात में भाजपा और स्वयं को लोकप्रिय बनाने में किया। हालांकि बदनामी करने के इस उद्यम को अब तक तो घाटे में चला जाना चाहिए था, परन्तु विदेशी पैसों का टॉनिक उसे अभी भी जीवित रखे हुए है।

पूरे देश पर नरेन्द्र मोदी का जादू चलने का एक कारण और भी है। वह कारण है कि नरेन्द्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जिन पर भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप लगाने की किसी में हिम्मत नहीं है। जो वह कहते हैं, उसे कर दिखाते हैं। सर्वमान्य होने के लिए नेता में दो गुण होने चाहिए। पहला गुण है विश्वसनीयता और दूसरा है सत्यनिष्ठा। महात्मा गांधी के सन्दर्भ में विनोबा भावे लिखते है कि ‘गांधी जी की विश्वसनीयता अत्यधिक थी। लोगों को ऐसा लगता था कि यही एक ऐसे व्यक्ति हैं जो वही करेंगे जो उन्होंने कहा है। कहना कुछ और करना कुछ, ऐसा नहीं होगा। इस विश्वसनीयता के कारण ही लोगों में गांधी जी के प्रति भक्ति और श्रद्धा निर्माण हुई।’

विश्वसनीयता-

नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में अन्य नेताओं के मुकाबले कई गुना अधिक विश्वसनीयता प्राप्त की है। उन्होंने गुजरात में 24 घण्टे बिजली उपलब्ध करवायी। वहां के रास्तों को उत्तम बनवाया। युवकों को रोजगार दिलवाये। उद्योगों के लिए अवसर प्रदान किये। महिलाओं को हर तरह की सुरक्षा दी। आज गुजरात में कोई भी युवती रात को दस‡ग्यारह बजे के बाद भी निडर होकर अपने घर जा सकती है। उसे अपनी सुरक्षा का डर नहीं सताता। मोदी ने विकास किया, मोदी ने सुराज्य निर्माण किया, मोदी ने सुरक्षा मुहैया करवायी। नरेन्द्र मोदी की कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं होता। उनके जैसे नेता का जादू अपने‡आप ही लोगों पर छा जाता है।

जॉन डी रॉकफेलर कहते हैं-‘गुड लीडरशिप कन्सिस्ट ऑफ शोइंग एवरेज पीपल, हाउ टु डू द वर्क ऑफ सुपीरियर पीपल’। जॉन डी रॉकफेलर 19 वीं सदी के तेल उद्योग समूह के विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति थे। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में इस वाक्य को शब्दश: सच कर दिखाया। उन्होंने गुजराती जनता से आह्वान किया कि आप मुझे एक घण्टा दीजिये। छ: करोड़ गुजराती जनता के छ: करोड़ घण्टे होते हैं। इस पूरे समय का उपयोग मोदी ने उत्पादक कार्यों के लिए किया। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो उन्होंने सामान्य लोगों की शक्ति पर भरोसा करके असामान्य कार्य करवाये।

देशभर में क्रेज-

नरेन्द्र मोदी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, बंगाल आदि राज्यों में भाजपा की सभाओं के लिए नहीं गये, परन्तु विभिन्न वजहों से इन राज्यों में जिन्होंने भी यात्रा की वे बताते हैं कि राजनीति का विषय आते ही नरेन्द्र मोदी की चर्चा अपने आप शुरू हो जाती है। कार्यकर्ताओं का पहला प्रश्न होता है कि क्या नरेन्द्र मोदी भाजपा के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार होंगे? प्रश्न पूछने वाला कार्यकर्ता उस राज्य के युवकों के मतों को प्रकट करता है। प्रत्येक राज्य में मोदी लोकप्रिय हैं। राजनीति की भाषा में कहा जाये तो मोदी की हवा बह रही है। इसकी वजह है गुजरात में मोदी के कार्य, टाटा, अंबानी जैसे उद्योगपतियों के गौरवोद्गार और मोदी की बदनामी की ‘कॉटेज इंडस्ट्री’ चलाने वाले लोग। इसीलिए हमारे साधु-सन्तों ने निंदकों की कभी निन्दा नहीं की। उन्हे ंहमेशा अपना मित्र ही माना। सही मायनों में वे ही मोदी की सच्ची सेवाएं कर रहे हैं।

केवल उत्तम सारथी होने से भी बात नहीं बनती और जनमान्य चेहरा होने से भी नहीं बनती। इसके लिए दोनों में समन्वय होना जरूरी है। कुरुक्षेत्र में सारथी और योद्धा के विसंवाद का भी उदाहरण है। अर्जुन के रथ का सारथ्य कृष्ण कर रहे थे और कर्ण के रथ का सारथ्य राजा शल्य कर रहे थे। कृष्ण अर्जुन का उत्साह बढ़ा रहे थे, परन्तु शल्य कर्ण का उत्साह नहीं बढ़ा रहे थे, बल्कि वे कर्ण को उसके पापों की याद दिला रहे थे। उसका उत्साह कम कर रहे थे। यह खराब सारथ्य का उदाहरण है। यहां इसका उदाहरण इसलिए दिया गया है क्योंकि 2014 के युद्ध में कृष्ण के जैसे सारथी की ही आवश्यकता है।

विचारधारा का नेतृत्व‡

राजनाथ सिंह एक पार्टी का नेतृत्व करते हैं। वे भले ही भाजपा के अध्यक्ष हैं और भाजपा एक स्वतन्त्र राजनैतिक पार्टी है, परन्तु इस धर्म युद्ध में वह अकेले नहीं हैं। उनके पीछे देश की सभी प्रकार की धर्मशक्तियां खड़ी हैं। संघ का हर स्वयंसेवक उनके पीछे खड़ा है। संघ परिवार की प्रत्येक संस्था भाजपा के पीछे खड़ी है। संघ के सभी माध्यम भाजपा के साथ हैं। यह लड़ाई सभी की है। इन सभी को देश में लोकाभिमुख लोकतंत्र चाहिए न कि परिवारवादी। विदेशी परिवार का राज तो बिलकुल नहीं चाहिए। आर्थिक महासत्ता बनना हर कोई चाहता है, परन्तु साथ ही यह भी चाहता है कि विकास भारतीय जीवन-मूल्यों पर ही हो। ये सभी लोग इस महायुद्ध में राजनाथ सिंह और नरेन्द्र मोदी के पीछे खड़े हैं। दूसरे शब्दों में राजनाथ सिंह केवल भाजपा नामक एक पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं, अपितु वे एक विचारधारा के राजनैतिक मत का नेतृत्व करने वाले नेता हैं। सारथी के रूप में यह जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण है।

चुनाव जीतने के लिए पार्टी का संगठन आवश्यक है। संगठन में हर स्तर पर उत्तम समन्वय रखना आवश्यक है। अन्तिम कार्यकर्ता को भी स्पष्ट होना आवश्यक है कि उसे क्या काम करना है। एक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सभी को एक ही दिशा में आगे बढ़ना पड़ता है। नेतृत्व के सम्बन्ध में एक बात और कही गयी है कि ‘नेतृत्व का अर्थ है दर्शन को वास्तव में उतारने की क्षमता।’ राजनाथ सिंह, उनके सहयोगी और नरेन्द्र मोदी में दर्शन को साकार करने की क्षमता है। दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में मोदी ने अपने भाषण में भाजपा शासित छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश राज्यों के उदाहरण देते हुए कहा था कि जिन‡जिन राज्यों में भाजपा की सरकार आयी वहां‡वहां जनता ने कुछ अलग महसूस किया। यही बात हमें दूसरों से अलग करती है।

लोगों को सम्मोहित करने वाला नेता अपने कर्तृत्व से कितना ही बड़ा हो जाये, फिर भी उसे अपने दर्शन को वास्तविकता में लाने के लिए सहयोगियों की आवश्यकता होती है, संगठन की आवश्यकता होती है। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में उत्तम सहयोगी बनाये और एक अच्छा संगठन खड़ा किया। अब राष्ट्रीय स्तर पर संगठन खड़ा करने का कार्य राजनाथ सिंह को करना है। यह संसार का अनुभव है कि जब किस करिश्माई नेता के पीछे कोई संगठन खड़ा होता है तो निश्चित रूप से परिवर्तन होता ही है। दक्षिण अफ्रिका में नेल्सन मंडेला अकेले लड़ने वाले परन्तु जनता को सम्मोहित करने वाले नेता थे। उन्होंने संगठन खड़ा किया और अपनी तथा संगठन की शक्ति के बलबूते पर विजयी हुए। म्यांमार में आंग सान सू की भी ऐसी ही सम्मोहित करने वाली नेता हैं। लम्बे अरसे तक सरकार ने उन्हें कारावास में रखा, परन्तु वे झुकी नहीं। उनके पीछे संगठन खड़ा हुआ और लोकतंत्र की विजय हुई। हमारे देश में भी भाजपा और भाजपा की सभी मित्र पार्टियों और संगठनों को एकजुट होकर काम करना होगा। जहां एकजुटता होती है, वहीं शक्ति होती है। जहां शक्ति होती है, वहींउसका रूपान्तरण मतों में होता है। आने वाले समय में यही सभी को करके दिखाना होगा।

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