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हिंदू धर्म नहीं, जीवन प्रणाली

हिंदू धर्म नहीं, जीवन प्रणाली

by प्रा. अरुण साठे
in अगस्त-२०१३, सामाजिक
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सर्वोच्च न्यायालय के अनेक फैसलों में हिंदू को धर्म नहीं, अपितु जीवन प्रणाली माना गया है। हिंदू यदि धर्म न हो और हिंदू एक जीवन प्रणाली हो तो हिंदू कानून को समान नागरी कानून मानकर भारत में रहने वाले, स्वयं को भारतीय कहलाने वाले हरेक को वह लागू होना चाहिए। सभी धार्मिक समूहों को भी वह लागू होना चाहिए।

एक मराठी चैनल पर खबरें देख रहा था कि एक खबर की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि, ‘‘कांग्रेस को यदि पुनः सत्ता नहीं मिली तो देश का फिर एक बार विभाजन होगा।’’ एक राज्य के मुख्यमंत्री जैसा जिम्मेदार व्यक्ति इस तरह का बयान दे यह देखकर मुझे आघात ही लगा। बाद में परिवार न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले मेरे एक वकील मित्र मुझे इससे अधिक आघात पहुंचाने वाली जानकारी दी। वह यह थी कि शरीयत के अनुसार फैसले सुनाने के लिए महाराष्ट्र में विशेष अदालत का गठन किया गया है। इस अदालत पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नियंत्रण होगा। मुस्लिम शरीयत कानून के अंतर्गत जो मामले प्रलंबित हैं वे सभी इस न्यायालय को सौंपे जाएंगे।

यह सुनकर मैं अधिक बेचैन हुआ। इस बारे में चर्चा के दौरान पता चला कि कई अन्य राज्यों में भी शरीयत कानून अदालतें मौजूद हैं। उस समय मुझे मुख्यमंत्री का विभाजन वाला बयान याद आया। देश का विभाजन किस कारण होगा? मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस तरह की कार्रवाई से वास्तव में विभाजन के बीज बोये जा रहे हैं।

देश में समान नागरिक कानून लागू करने के लिए संविधान में स्पष्ट निर्देश हैं। लेकिन प्रत्यक्ष में जो कुछ हो रहा है, वह संविधान के प्रावधान के बिल्कुल विरुद्ध ही है। शरीयत के लिए विशेष अदालत के गठन के क्या परिणाम होंगे इसकी अनदेखी और मात्र ‘वोट बैंक’ की राजनीति को ध्यान में रख कर सत्तारूढ़ कांग्रेस इस तरह का देश‡घातकी काम कर रही है। यह देश एक है। इस देश के नागरिक एक हैं। इसलिए देश के अधिसंख्य नागरिक मानते हैं कि इस देश में रहने वाले हर नागरिक के लिए समान कानून होना चाहिए।

हाल में आय कर अपीली प्राधिकरण का एक फैसला आया है। प्राधिकरण ने एक मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए इस फैसले का आधार लिया है कि हिंदू धर्म नहीं, एक जीवन प्रणाली है। इसलिए प्राधिकरण ने कहा कि पूजा आदि कार्यों के लिए खर्च की गई राशि धार्मिक कार्यों में खर्च की राशि नहीं मानी जा सकती। वह धर्मादा उद्देश्य के लिए खर्च राशि ही मानी जानी चाहिए। यह फैसला 79 डीटीआर पृष्ठ क्र. 276 पर छपा है।

शिव मंदिर देवस्थान पंच कमेटी संस्थान विरुद्ध आयकर आयुक्त, आईटीएटी, नागपुर खंडपीठ इस मामले में आय कर कानून धारा 80‡जी के अंतर्गत सम्माननीय प्राधिकरण को हिंदू शब्द की परिभाषा चाहिए थी। सुनवाई के दौरान प्राधिकरण इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि हिंदू धर्म नहीं, अपितु जीवन प्रणाली है। सम्माननीय प्राधिकरण ने कहा कि हिंदू शब्द को कहीं परिभाषित नहीं किया गया है। टी. टी. कृष्णमाचारी विरुद्ध तमिलनाडु राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला सुनाया उसके आधार पर प्राधिकरण ने फैसला दिया। यह बात लॉ वीकली 100‡ 1031 में कही गई है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि, हिंदू शब्द की परिभाषा किसी भी पुस्तक में या कानून अंतर्गत दिए गए किसी फैसले में नहीं की गई है। ब्रिटिश प्रशासन ने भारत के निवासियों के लिए इस शब्द का प्रयोग किया है। हिंदू वे हैं जो ईसाई, मुस्लिम, पारसी या यहूदी नहीं हैं। इस कथित हिंदू धर्म में ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र इस तरह के चार वर्ण हैं तथा मितकशरा और दयाभागा इन दो कानूनी विचारधाराओं से उसका सम्बंध है। हिंदू नामक कोई धर्म नहीं है। ऐसा लगता है कि सुविधा के लिए हिंदू धर्म नाम दिया गया है।

एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू शब्द की परिभाषा करने का प्रयास किया। 104 आईटीआर पृष्ठ क्र. 436 पर उल्लेखित इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू शब्द की परिभाषा करते समय इन्सायक्लोपीडिया ब्रिटानिका और हिंदू कानूनों पर मुल्ला की राय को आधार बनाया। वह इस प्रकार है‡ इन्सायक्लोपीडिया ब्रिटानिका (15वां संस्करण) के अनुसार हिंदुइज्म (हिंदुत्व) का अर्थ है हिंदू संस्कृति। (इण्डस नदी के तटों पर रहने वाले) भारतीय संस्कृति लगभग दो हजार वर्ष पुरानी होने का उसमें उल्लेख है। वेद पर आधारित धर्म से वह उत्पन्न हुई। ईसा के जन्म के पूर्व दो सहस्र वर्षों के अंतिम शतक में भारत में स्थिर हुए इंडो‡ यूरोपीयन लोगों का धर्म वेदों पर आधारित था।
विजातीय लोगों के समामेलन से उत्पन्न हिंदुइज्म में अनेक जटिलताएं होने के बावजूद सम्पूर्ण जीवन का सार होने से वह एक ही है। उसमें धर्म है। सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और कलात्मक पहलू भी हैं। हिंदुइज्म विभिन्न सिद्धांतों, पंथों का समामेलन है और जीवन प्रणाली है। सैद्धांतिक दृष्टि से हिंदुइज्म में सभी तरह की श्रद्धाओं और पूजा पद्धतियों का समावेश है और किसी एक ही श्रद्धा या पूजा पद्धति का कोई आग्रह नहीं है।

हिंदू किसी भी प्रत्यक्षीकरण का सम्मान करता है। वह सहिष्णु है। हिंदू हो या अहिंदू‡ उसके साथ सहजीवन पर उसे आपत्ति नहीं है। जिसे जो अच्छी लगे वह पूजा पद्धति वह स्वीकार करता है। हिंदुओं को चोट न पहुंचाते हुए हिंदू गैरहिंदू धर्म का आदर करता है। हिंदू मानता है कि सर्वोच्च दैवी शक्ति विश्व के, मानव जाति के कल्याण के लिए है। धर्म का मूल इस बात पर निर्भर नहीं है कि ईश्वर है या नहीं, वह एक है या अनेक। ऐसा कहते हैं कि धार्मिक सत्य सभी मौखिक व्याख्याओं से श्रेष्ठ होता है। कट्टरता के आधार पर हिंदुइज्म की कल्पना नहीं की जा सकती। हिंदू संस्कृति व धर्म का प्रारंभ नहीं है। उसका कोई संस्थापक नहीं है। उसका प्रमुख नहीं है। वर्गीकरण नहीं है, न संगठन है। हिंदुइज्म की सही सही व्याख्या करने के कई प्रयास एक या अनेक पहलुओं से असंतोषजनक साबित हुए हैं। स्वयं हिंदू रहे हिंदुइज्म के श्रेष्ठ भारतीय विचारकों ने भी हिंदू धर्म के विभिन्न पहलुओं की ओर ही इंगित किया है।

इस स्तर पर मुल्ला की पुस्तक ‘हिंदू कानून के सिद्धांत’ (चतुर्थ संस्करण) के पृष्ठ क्रमांक 571 उल्लेखों को देखना साहसपूर्ण काम होगा। इसमें कहा गया है कि हिंदू शब्द से विशिष्ट समाज या समुदाय पहचान नहीं होती। विभिन्न स्तरों के लोगों के लिए व्यक्तिगत कानून के उद्देश्य से पारिभाषिक शब्दावली में उसका अर्थ खोजना पिछले 100 वर्षों से अधिक समय में भी संभव नहीं हो सका है। भिन्न राय रखने वाले, अनुगामी न होने वाले, ब्राह्मणवाद अस्वीकार करने वाले व्यक्ति भी हिंदू हो सकते हैं। विभिन्न धर्म, जाति और संस्थाएं पिछले समय में स्थापित हुईं अथवा हिंदू प्रणाली से अलग हुईं। वे भी हिंदू कानून के अंतर्गत ही जी रही हैं। न्यायालयों ने भी हिंदुओं को लागू कानूनों के बारे में उदारता बरती है।

फि र, हिंदू यदि धर्म न हो और हिंदू एक जीवन प्रणाली हो तो हिंदू कानून को समान नागरी कानून मानकर भारत में रहने वाले, स्वयं को भारतीय कहलाने वाले हरेक को वह लागू होना चाहिए। सभी धार्मिक समूहों को भी वह लागू होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के अनेक फैसलों में हिंदू को धर्म नहीं, अपितु जीवन प्रणाली माना गया है।

इसे ध्यान में रखें तो समान नागरी कानून अर्थात भारतीय दण्ड विधान आदि जो हिंदू समाज को लागू है वह सब देश में रहने वाले हर नागरिक को लागू होना चाहिए। द्विभार्या भारतीय दण्ड विधान की धारा 494 के अनुसार अपराध है। यह देश के हर नागरिक को लागू होना चाहिए।

क्या हम इसके अनुसार चलने वाले हैं? मुस्लिमों ने अपने को अलग कौम मानकर देश का विभाजन करवाया। इस तरह की साजिश में हम फिर से न फंसे। इसलिए हम अपनी भूमिका पहले ही स्पष्ट कर दें।

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