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मैं हमेशा उजालों की ओर देखता हूँ – सुनील यादव

मैं हमेशा उजालों की ओर देखता हूँ – सुनील यादव

by अमोल पेडणेकर
in साक्षात्कार, सामाजिक, सितम्बर २०१३
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पिछले अनेक वर्षों से आप अंधेरी विभाग की सक्रिय राजनीति में हैं, क्या आपको अपने काम से सन्तुष्टि मिली है?

बिलकुल नहींं, राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश करते समय मैं अपने मन में समाजहित की अनेक कल्पनाएं लेकर आया था, आज प्रत्यक्ष कार्य करते समय ऐसा महसूस हो रहा है कि उन कल्पनाओं को पूरी तरह साकार नहींं कर पाया हूं। आम आदमी को पूर्णत: न्याय और सेवा देने में कमी महसूस कर रहा हूंं। सम्पूर्ण प्रशासकीय व्यवस्था में गैर कानूनी बातें महसूस कर रहा हूं, जो अधिकतर आर्थिक मामलों से जुड़ा हुआ है। इसके कारण बहुत सी रुकावटें हैं फिर भी प्रयास जारी है। सन्तोष सिर्फ इस बात का है कि समाज के पीड़ित, जरूरतमंद लोगों के थोड़ा बहुत काम आ रहा हूंं।

 राजनीति में कार्य करते समय आप किन विषयों को प्रधानता देते हैं?

समाज का पिछड़ा वर्ग है जिनकी समस्याएं बहुत हैं पर उनकी ओर समाज का सजग वर्ग ध्यान नहींं दे रहा है, ऐसे वर्ग के लोगों के लिए मैं कार्य करता हूंं। इनकी समस्याओं को हल करने पर मानसिक सन्तुष्टि से ज्यादा कुछ नहीं मिलता है। मैं समाजाकि कार्य करते समय पण्डित दीनदयालजी के विचार मन में रखता हूंं जो समाज की अन्तिम पंक्ति में जी रहे अन्तिम व्यक्ति के विकास का भी ध्यान रखते हैं।

प्रश्न‡ आपके सामाजिक कार्य का प्रारम्भ कब हुआ?

1979 से मैं रा. स्व. संघ से जुड़ा हूंं। एक स्वयंसेवक, गण शिक्षक, शाखा मुख्य शिक्षक, मण्डल कार्यवाह, नगर विद्यार्थी प्रमुख इस नाते संघ में मैंने कई जिम्मेदारियां निभायी हैं। समाज से जुड़ने का प्रशिक्षण मैंने संघ की जिम्मेदारियों से ही लिया है। समाज की स्थिति को समझने के साथ ही उसकी समस्याओं का समाधान निकालने का प्रशिक्षण संघ कार्य से ही मिलता रहा। संघ कार्य के कारण मुझमें नेतृत्व के गुण आ गये।

संघ में अनेक जिम्मेदारियां निभाते हुए युवा अवस्था मैंने राम जन्मभूमि आन्दोलन के समय बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद की भी जिम्मेदारी निभायी। अयोध्या के दोनों कारसेवा में मैं सम्मिलित हुआ। 1991 के अयोध्या आन्दोलन के समय जीवन में बहुत संघर्ष झेलना पड़ा। जब राम जन्मभूमि आन्दोलन चला तब अंधेरी में सभी लोगों ने आन्दोलन में हिस्सा लिया। हम कारसेवा में गये। वहां से लौटकर आने के बाद मुझे तुरन्त अंधेरी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार होने के बाद मुझे पता चला कि ‘सुनील यादव नामक कोई हिंदू आतंकवादी यहा रहता है’ इस बात पर मुझे गिरफ्तार किया गया था। वहां के ए.सी.पी. ने मुझे बताया कि अंधेरी के पानीपत मैदान में जब कल्याण सिंह आये थे, तब मैंने वन्दे मातरम गाया था, वही समस्या बन गयी।उसकी बात सुनकर मैं अचम्भित रह गया। इस भारत देश में वन्दे मातरम गीत गाना कोई समस्या है? इस बात पर उस ए.सी.पी. से मेरी बहुत बहस हुई और उन्होंने मुझे केस में और अधिक उलझाए रखा। एक महीने तक कारावास में रहना पड़ा। मुझे बहुत परेशान किया गया, अपमानित किया गया। तब मैंने सोचा कि मेरी यहां यह स्थिति है तो समाज के अन्य लोगों के साथ यह पुलिस कितना दर्दनाक बर्ताव करती होगी। तब मैंने तय किया कि भारतीय जनता पार्टी में कार्य करना है। जिस पुलिस स्टेशन में मुझे अपमानित किया गया है, वहीं नेता बनकर जाऊंगा और समाज की समस्या का हल करूंगा। मैंने अपने मकसद को पूरा भी किया। मैं आज लोगों की पुलिस स्टेशन से जुड़ी अनेक समस्याएं हल कर रहा हूंं। भाजपा में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए मैने स्थानीय समिति अध्यक्ष, वार्ड समिति अध्यक्ष, वार्ड अध्यक्ष, युवा मोर्चा जिला महामंत्री, युवामोर्चा जिला अध्यक्ष, भाजपा अंधेरी विधानसभा अध्यक्ष आदि पदों पर कार्य किया है और वर्तमान में जिला महामंत्री का दायित्व निभा रहा हूं।

 आपका उपनाम ‘यादव’ होने के कारण समाज में कार्य करते समय कोई कठिनाई आयी है?

संघ का कार्य करते समय ‘सकल हिंदू एक’ यही भाव मन में संस्कारित किया गया है। लेकिन मुंबई की राजनीतिमें राजनैतिक आन्दोलन के समय कुछ सालों में ‘अलगाववाद’, ‘प्रांतवाद’ का जहर फैलाया गया था। इस काल में ‘यादव’ नाम को गलत रूप में देखा जाने लगा। सन 2007 में मैंने म.न.पा. चुनाव लड़ा था, उस समय मैं समर्पित भाव से कार्य करके भी सिर्फ ‘यादव’ नाम के कारण हारा था। मैंने अपने प्रत्यक्ष जीवन में कभी भी मराठी, हिंदी, गुजराती इस प्रकार का भेद नहीं अपनाया, कारण संघ संस्कारों ने हमें समाजभेद की रीति कभी सिखायी ही नहीं थी। उस हार के बाद मैंने यह बात महसूस की कि समाज में और ज्यादा काम करने की आवश्यकता है। ‘हिंदी भाषियों की सुरक्षा समाज करे’ इस प्रकार का आह्वान संघ के सरसंघचालक जी के माध्यम से किया था। उसके पहले से ही हम अपने सभी भाषिक साथियों के साथ जहां‡जहां भाषिक संघर्ष की स्थिति निर्माण होने की आशंका थी, वहां शांतिपूर्वक, समझदारी से हल निकालते थे।

आपके कार्यक्षेत्र में आपकी प्रतिमा ‘काम का नेता’ के रूप में है, कि न प्रयासों से यह प्रतिमा निर्माण हुई है?

2012 में मेरी पत्नी को ‘शिवसेना’ की तरफ से चुनाव का टिकट मिला था जिसे देने में शिवसेना‡भाजपा के मान्यवर नेताओं का पूर्ण सहयोग एवं सहमति रही। मेरे अब तक के सामाजिक कार्यों के बल पर मेरी पत्नी श्रीमती संध्या यादव बहुमत से चुनाव में विजयी हुईं । मेरी पत्नी को राजनीति का अवसर अब तक प्राप्त नहीं हुआ था, फिर भी समाज के सभी वर्गों ने बहुमत से उन्हें जीत दिलायी। मेरे अब तक के कार्य को समाज महसूस कर रहा था। उन्हें विश्वास था कि कठिन समय, आपातकाल या अनपेक्षित समय में भी उपस्थित रहने वाला, साहायता करने वाला उनका अपना आदमी-सुनील यादव उनके साथ है।

हमारे कार्य क्षेत्र में ज्यादातर लोगों की समस्याएं रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़ी होती हैं । राशन कार्ड से लेकर पुलिस थाने तक हमें काम करना पड़ता है। पानी की समस्या हो, बिजली की समस्या हो, गली-मोहल्ले की सड़कें हों, मतभेदों के कारण निर्माण होने वाले विवाद हों या युवाओं के खेल के टूर्नामेंट हों सारे विषयों पर हमें ध्यान देना पड़ता है। समस्याओं का समाधान निकालना पड़ता है और आनन्द के क्षणों में भी सम्मिलित होना पड़ता है। अपने अब तक के कार्य में मैंने यह सब कुछ किया है। मेरा कार्य चुनावों की राजनीति पर कभी निर्धारित नहीं रहा। मेरे कार्यक्षेत्र में गुंदवली टेकड़ी एक मोहल्ला है, जहां लोगों को पानी भरने के लिए हाइवे के सर्विस रोड तक आना पड़ता था। मैंने मा. विनोद तावड़े जी के सहयोग से वहां जलकुम्भ का निर्माण किया जिसके कारण वहां के लोगों की पानी की समस्या हल हो गयी। अंधेरी के नागरदास रोड के पानीपत चौराहे पर बहुत अंधेरा होता था, जिस कारण वहां की महिलाओं को अनेक मुश्किलोंसे जूझना पड़ता था। छेड़छाड़, मंगलसूत्र खींचने जैसी वारदातें आये दिन हो रही थीं। किसी नेता ने इस बात पर गौर नहींं किया। हमने वहां ‘आयमैस’ लगाकर पूरा उजाला किया है। इस प्रकार समाज के अन्य कई रुके हुए कार्य करने के प्रयास हमने शुरू किये हैं।

हमारे कार्य क्षेत्र में 70 से 80 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ियां हैं। यहां अब तक विकास कार्य शून्य था। मैंने अपनी पत्नी श्रीमती संध्या यादव के नगरसेवक फण्ड, प्रभाग समिति का फण्ड इन सारे फण्ड्स को उपयोग में लाते हुए मूलभूत विकास कार्य किये हैं। आज हमारे वार्ड में एक भी बस्ती विकास कार्य से अछूती नहीं है। सभी जगह पर कुछ न कुछ कार्य का प्रारम्भ है।

बचपन में संघ शाखा में एक गीत होता था, ‘संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वह काम सब किये चलो।’ मेरे पास देश के छोटे से कस्बे का विकास करने का उत्तरदायित्व है, मैं उसी में देश को देखता हूं। मैं अपना कार्य लगन से करता हूं और करता रहूंंगा। संघ के कार्य और राजनैतिक कार्य में बहुत अन्तर है। अच्छे-बुरे अनुभवों से मेरे मन में कई बार द्वंद्व की स्थिति निर्माण होती है। मुझे हमेशा उजालों की ओर देखने की आदत रही है। अत: मैं उत्साह के साथ आगे बढ़ रहा हूं।

राजनीति में गॉड फादर, पैसा और प्रसिद्धि अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है, आप इस बात को कितना मानते हैं?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज राजनीति में काम करते हुए पैसों की जरूरत होती ही है। जहां तक गॉड फादर की बात है राजनीति में एक गलत धारणा पनप रही है कि यहां बिना गॉड फादर के आगे नहीं बढ़ा जा सकता। यह भावना उन लोगों के मन में होती है, जो समाज से जुड़े नहीं हैं। जो राजनीति में रहकर समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाने से चूक रहे हैं, ऐसे लोगों को गॉड फादर की जरूरत महसूस होती है। समाज के साथ कोई नाता नहीं हो, कोई बुनियादी काम नहीं किया हो तो सुनील यादव को गॉड फादर की जरूरत होगी, पर मेरा बुनियादी काम समाज में होने के कारण मुझे कभी गॉड फादर की जरूरत महसूस नहीं होगी। अगर मैं गॉड फादर के चक्कर में होता तो शायद मैं बहुत आगे बढ़ गया होता, परन्तु समाज से जुड़ा नहीं होता।

 सुनील जी, आप बचपन में संघ शाखा में गीत-गायन में मशहूर थे, और आज राजनीति करते समय जब कभी मौका मिलता है तो ऑर्केस्ट्रा या वांद-वृंदों में बड़ी तन्मयता से गीत सुनाते हो, इसके पीछे कौन सी भावना होती है?

मेरे पिताजी संगीतकार थे, मेरे पिताजी ने दो गीत लिखे थे, जो मोहम्मद रफी ने गाये थे। टी.वी. के पहले सीरीयल ‘छोटे बाबू’ में शेखर सुमन और सुप्रिया पाठक कलाकार थे। इस सीरीयल के तीन गीत उन्होंने लिखे थे। लेकिन दुर्भाग्यवश उसी समय एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया और उनका सपना जहां का तहां रह गया। पर उनसे विरासत में मिली मधुर आवाज मेरे पास है। आज मैं समाज में जहां हूं, उन्हीं की बदौलत हूंं । उसी मधुर आवाज की वजह से संघ शाखा में मैं अग्रसर रहा। समाज के सम्मुख आने का और खुद का आत्मविश्वास बढ़ाने का सुनहरा मौका मुझे मिला। मैं संगीत के सभी उपकरणों को उपयोग में लाना जानता था। बांसुरी, ड्रम, तबला, गिटार सारे वाद्य मुझे बजाने आते हैं। अपनी आयु के 15 साल तक मैंने पिताजी के साथ संगीत से जुड़ी बातों का प्रशिक्षण लिया पर उनकी अचानक मृत्यु से सारा जीवन संघर्षमय हो गया। सभी बातें छूट गयीं, पर विरासत में मिली मधुर आवाज अभी भी है। इसी के कारण संघ और विद्यालय में मैं सदैव आगे ही रहा। आज भी कहीं संगीत समारोह हो रहा हो तो मेरे अन्दर के गायक को मैं रोक नहीं पाता। भाजपा नेता या बड़प्पन वाली अन्य बातों को भूलकर दिल से गाता हूंं। आनन्द लेता हूंं और साथ ही अपने पिताजी का स्मरण भी करता हूंं।

अपने राजनैतिक भविष्य को किस दृष्टि से देखते हैं?

उत्तर‡ मेरे लिए दो विषय महत्वपूर्ण हैं। 2014 में जो चुनाव होने वाले हैं उस चुनाव में भाजपा‡शिवसेना आगे रहे, इसके लिए पूर्ण परिश्रम से प्रयास करना है। इस विधान सभा सीट पर सफलता हासिल हो, इसलिए सम्पूर्ण ताकत से और संगठनात्मक तरीके से प्रयास करने होंगे, यह हमारी प्रतिबद्धता है। आज अपने स्वार्थ की कोई बात मेरे मन में नहीं है। आज नेताओं की तरफ देखने की समाज की जो दृष्टि है, उसे सकारात्मक रूप में बदलने में अपना योगदान दे रहा हूं और भविष्य में भी देता रहूंंगा।

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