उत्तर प्रदेश की शौर्य गाथा

शौर्य, युद्ध शास्त्र, सुरक्षा व्यवस्था का उत्तर प्रदेश से घनिष्ठ सम्बंध रहा है। पौराणिक काल के युद्धों और राष्ट्र सुरक्षा पर गौर करें तो स्पष्ट होगा कि रामायण और महाभारत काल से ही उत्तर प्रदेश में वीरता, अन्याय पर न्याय की विजय, अराजकता पर सुराज्य की विजय की परिपाटी और मनोवृत्ति का संवर्धन हुआ है। महाभारत का आरंभ और अंत उत्तर प्रदेश में ही हुआ। रामायण का प्रारंभ भी उत्तर पद्रेश में ही हुआ है। लवकुश कांड तक सभी महत्वपूर्ण घटनाएं उत्तर प्रदेश में ही घटीं। भगवान राम और कृष्ण की जन्मस्थली उत्तर प्रदेश ही है। उनकी शिक्षा, संस्कार और कर्म की भी भूमि भी यही है।

आल्हा और उदल जैसे वीरों ने उत्तर प्रदेश में ही जन्म लिया। उत्तर प्रदेश के बुंदेलों की वीर गाथा से हम सभी परिचित हैं ही। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जन्म भूमि, संस्कार भूमि, कर्म भूमि यही वीर भूमि थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्रम का बिगुल भी यहीं से फूंका गया। 1857 का स्वातंत्र्य समर उत्तर प्रदेश में ही हुआ। इन्हीं वास्तविकताओं के कारण सुरक्षा व्यवस्था और युद्ध व्यवस्था में उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिशों को विश्व में जहां जहां विजय मिली वहां वहां भारतीय सैनिकों की बहुलता थी। इनमें उत्तर प्रदेश के सैनिक भारी संख्या में थे। 1947 में स्वाधीनता प्राप्ति के बाद जो जो भी युद्ध हुए उनमें उत्तर प्रदेश के सैनिकों का उल्लेखनीय योगदान रहा है। इसीलिए उत्तर प्रदेश वीरों की भूमि है और आज भी यह परिपाटी जारी है।

भारतीय सेना की पैराशूट रेजिमेंट का प्रशिक्षण केंद्र आगरा में है। पंजाब रेजिमेंट तथा सिख लाइट इंफैंट्री के प्रशिक्षण केंद्र (वर्तमान में बिहार के रामगढ़ में हैं) की शुरुआत मेरठ से हुई। डोगरा रेजिमेंट , गोरखा रेजिमेंट, जाट रेजिमेंट के प्रशिक्षण केंद्र उत्तर प्रदेश में ही स्थ्ति है। गढ़वाल रेजिमेंट तथा कुमाऊं रेजिमेंट के प्रशिक्षण केंद्र अभी उत्तराखंड में हैं, लेकिन वे पहले उत्तर प्रदेश में ही थे। विश्व प्रसिद्ध भारतीय सैन्य अकादमी (इंडियन मिलिट्री अकादमी) फिलहाल देहरादून में है, जो पहले उत्तर प्रदेश में ही थी। इसी अकादमी में प्रशिक्षित अधिकारियों ने पूरे विश्व में भारतीय सेना और भारत का नाम रोशन किया है। सम्पूर्ण विश्व में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भारत का स्थान अग्रणी है। इस सेना में उत्तर प्रदेश के सैनिकों की संख्या बहुत है।

प्रदेश के झांसी, आगरा, मथुरा, मेरठ, बरेली, लखनऊ, फैजाबाद, इलाहाबाद, वाराणसी आदि शहरों में छावनी क्षेत्र हैं। आगरा में विश्व प्रसिद्ध पैराशूट रेजिमेंट में वायु सैनिकों को प्रशिक्षित किया जाता है। इन तमाम शहरों का सामरिक महत्व है। युद्ध काल में इन्हीं छावनियों से सैन्य दस्ते सीमा क्षेत्र में जाकर दुश्मनों का मुकाबला करते हैं। झांसी, बीना में भारत की सामरिक शक्ति आमर्ड कोर के प्रशिक्षण क्षेत्र हैं।

हिंडन, बरेली, इलाहाबाद में वायु सेना के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। भारत के ज्यादातर आयुध कारखाने उत्तर प्रदेश में ही स्थित हैं। आयुध डिपो भी उत्तर प्रदेश में स्थित हैं। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स की परियोजना कानपुर में है। भारतीय सेना का सेना चिकित्सा प्रशिक्षण केंद्र उत्तर प्रदेश में ही है। सेना में व युद्ध इतिहास में अश्व शक्ति का महत्व है। अश्व शक्ति से सम्बंधित सब केंद्र उत्तर प्रदेश (सहारनपुर, मेरठ, बाबूगढ़) में ही स्थित हैं। प्रसिद्ध कुत्ता प्रशिक्षण केंद्र भी उत्तर प्रदेश में ही है।

भारतीय थल सेना, नौसेना, वायु सेना में कार्यरत सैनिक, सेना अधिकारी, महिला अधिकारी बहुत बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश से ही हैं। वीरता पुरस्कार, शौर्य पुरस्कार, युद्ध सम्मान से सम्मानित योद्धाओं में उत्तर प्रदेश का स्थान अग्रणी है। विश्वविद्यालयों में रक्षा विज्ञान का अध्ययन सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश से ही शुरू हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की इस अध्ययन क्षेत्र में अग्रणी भूमिका रही है। आज भी इलाहाबाद, फैजाबाद, मेरठ, गोरखपुर विश्वविद्यालयों में रक्षा और सामरिक विज्ञान विभाग महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों व अधिकारियों ने अभूतपूर्व साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया है। लद्दाख क्षेत्र तथा तत्कालीन नेफा अर्थात आज के अरुणाचल प्रदेश में चीनी सैनिकों का साहसपूर्वक सामना किया। अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में सैनिकों ने चीनी सेना पर कार्रवाई कर भारतीय क्षेत्र में उन्हें आगे बढ़ने से रोकने में कामयाबी हासिल की। इसके लिए कुमाऊं रेजिमेंट को अनेक वीरता पदकों से सम्मानित किया गया। रेजिमेंट को महावीर चक्र तथा वीर चक्र जैसे शौर्य पुरस्कारों व सम्मानों से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार गढ़वाल रेजिमेंट के सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में चीनी सेना को भयंकर क्षति पहुंचाई। तवांग घाटी में नायक जसवंत सिंह के सम्मान से निर्मित युद्ध स्मारक आज भी उनके अदम्य साहस व वीरता की याद दिलाता है।

1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में राजपूत रेजिमेंट, जाट रेजिमेंट, डोगरा रेजिमेंट, पंजाब रेजिमेंट व गोरखा रेजिमेंट के सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को अनेक क्षेत्रों में पराजित किया। उनकी वीरता के सम्मान में राष्ट्र ने इन रेजिमेंटों के अनेक सैनिकों व अधिकारियों को युद्ध सम्मानों से सम्मानित किया। ग्रिनेडियर रेजिमेंट के हवलदार अब्दुल हमीद ने तो पाकिस्तान के अनेक टैंकों को बरबाद किया। ग्रिनेडियर रेजिमेंट में उत्तर प्रदेश के सैनिक व अधिकारी कार्यरत हैं। कुमाऊं रेजिमेंट के जनरल टी.एन. रैना भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष पद पर सुशोभित हुए हैं।

1971 के युद्ध में भी उत्तर प्रदेश के सैनिकों ने अभूतपूर्व वीरता का प्रदर्शन किया। बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए पाकिस्तान को युद्ध में पराजित करने में उत्तर प्रदेश के सैनिकों का बहुत बड़ा योगदान था। अनेक सैनिकों ने युद्ध क्षेत्र में अपने प्राणों की आहुति देकर भारत को युद्ध में विजय दिलाई। इसके लिए राष्ट्र सदैव उनका आभारी रहेगा। पाकिस्तान के हजारों युद्ध बंदी सैनिकों तथा अधिकारियों को युद्ध के पश्चात उत्तर प्रदेश की अनेक सैनिक छावनियों में युद्ध बंदी के रूप में रखा गया था।

श्रीलंका में भारतीय शांति सेना ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय शांति सेना में उत्तर प्रदेश के हजारों सैनिकों में अपने प्राणों को खतरे में डाल कर श्रीलंका की राष्ट्रीय अखंडता व सार्वभौमिकता की रक्षा की। यदि भारतीय शांति सेना ने श्रीलंका में बहुमूल्य योगदान न दिया होता तो संभव था कि श्रीलंका का भौगोलिक, आर्थिक, राजनैतिक विभाजन हो गया होता।

विश्व के अनेक भागों में अनेक राष्ट्रों में वहां की युद्धात्मक स्थिति के कारण होने वाली तबाही तथा जीवित हानि की रक्षा के लिए भारतीय शांति सेना ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के तहत महत्वपूर्ण योगदान दिया है तथा उन राष्ट्रों में शांति तथा सुरक्षा कायम की है। उत्तर प्रदेश के अनेक गांवों में जन्मे सैनिक सुबह दातुन का प्रयोग करते हैं। इटली तथा फ्रांस के सेना अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि, ‘जो सैनिक सुबह दांत साफ करने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं उनसे युद्ध में विजय प्राप्त करना असंभव है।’

भारत की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में भी उत्तर प्रदेश के सैनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नगालैण्ड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, असम आदि प्रांतों में राष्ट्र के विरुद्ध विद्रोहात्मक सैन्य कार्रवाई का दमन करने में तथा वहां शांति-व्यवस्था स्थापित करने में भारतीय सेना का अभूतपूर्व योगदान रहा है। इसमें उत्तर प्रदेश के सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैऔर आज भी भारत की सार्वभौमिकता, अखंडता, शांति व सुरक्षा कायम करने में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं।

पंजाब में फैले आतंकवाद पर काबू पाने में उत्तर प्रदेश के सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी है और पंजाब के नागरिकों की सम्पत्ति की सुरक्षा की है। जिस पंजाब में आतंकवाद चरम सीमा पर था आज वही पंजाब भारत का समृद्ध तथा शांतिपूर्ण राज्य है।

कश्मीर में व्यापक आतंकवाद पर काबू पाने में भारतीय सेना का अद्वितीय व महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज भी हमारी सेना वहां शांति स्थापित करने में लगी है। उत्तर प्रदेश के हजारों सैनिकों की इसमें उल्लेखनीय भूमिका है। पाकिस्तान में जन्मे, पाकिस्तान में प्रशिक्षित, पािाकस्तान समर्थित आतंकवादियों को मारने या जीवित पकड़ने में हमारे सैनिकों ने प्राणों की बाजी लगा दी है और भारत की सार्वभौमिकता व अखंडता को कायम रखा है। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से यह एक बहुत बड़ा योगदान है।

कारगिल युद्ध में भी उत्तर प्रदेश के सैनिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हमारे वीर जवानों ने अपने प्राणों की बलि देकर कारगिल की रक्षा की।

द्वितीय महायुद्ध से आज तक की घटनाओं का अध्ययन व विश्लेषण किया जाय तो हमें यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि भारतीय सामरिक व्यवस्था, युद्ध क्षेत्र, आंतरिक सुरक्षा, विश्व सुरक्षा में हमारे वीर सैनिकों ने सेना, वायु सेना व नौसेना ने अभूतपूर्व योगदान दिया है और आज भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसलिए भारत सुरक्षित है।

उत्तर प्रदेश में कार्यरत पुलिस, बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, असम राइफल्स, सीआईएसएफ जैसे अर्धसैनिक व पुलिस संगठनों में कार्यरत हमारे उत्तर प्रदेश के वीरन योद्धा अपना योगदान दे रहे हैं।

भारत की अखंडता, प्रभुता, सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमारे उत्तर प्रदेश के वीरों को, योद्धाओं को शत्…शत् नमन!
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