हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
आवाज की दुनिया के दो दीवाने

आवाज की दुनिया के दो दीवाने

by शिलकुमार शर्मा
in दिसंबर -२०१३, सामाजिक
0

इस माह दो प्रसिद्ध पार्श्वगायकों का जन्म दिवस है। 24 दिसम्बर को मोहम्मद रफी और 25 दिसम्बर को नौशाद का जन्म दिवस है। इस अवसर पर दोनों की संगीत दुनिया को देन पर पेश है यह आलेख-

मो. रफीः कुछ अनकहे रोचक तथ्य

* रफी साहब ने सबसे ज्यादा गीत संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिये गाये। 186 फिल्मों के लिये रफी साहब ने 369 गीत रिकार्ड करवाये।

* सबसे ज्यादा संगीतकारों- (230) ने रफी साहब की बेसाख्ता आवाज़ का इस्तेमाल किया।

* लता मंगेशकर जैसी कालजयी गायिका को सर्वाधिक युगल गाने का सौभाग्य रफी साहब के साथ नसीब हुआ। इन दोनों महान गायकों ने 315 फिल्मों के लिये 440 युगल गीत गाये।

* मज़रुह सुलतानपुरी द्वारा कलमबद्ध सर्वाधिक गीतों को रफी साहब की आवाज़ नसीब हुई। रफी साहब ने उनके 206 गीतों को अपनी मखमली आवाज़ प्रदान की।

* रफी साहब ने अपने 36 वर्ष के कैरियर में कुल 4522 हिन्दी फिल्मी गीत गाये, जिसमें 2129 एकल गीत, 205 पुरुष युगल गीत, 1913 महिला युगल गीत व 275 त्रय गान व मिश्र गीत गाये।

* किसी सहगायिका के साथ गाये सर्वाधिक गीतों में मन्ना डे का नाम शीर्ष पर है। मन्ना डे के साथ रफी साहब द्वारा गाये हुए गीतों की संख्या 57 है।

* किसी सहयागिका के साथ सर्वाधिक गाने में आशा भोंसले का नाम शीर्ष पर है। आशा जी ने रफी साहब के साथ 770 गीत रिकॉर्ड करवाये।

* किसी एक फिल्म के लिये अधिकतम गाने रफी साहब ने फिल्म ‘बसंत’ (1960) के लिये गये। संगीतकार ओ. पी. नैयर ने फिल्म के 14 गीतों में से 11 गीत रफी साहब की आवाज़ में रिकॉर्ड किये थे।

* रफी साहब ने ‘बदनाम फरिश्ते’ (1971) के लिये 8 कलाकारों को एक ही गीत में अपनी आवाज़ दी थी। हालांकि सामान्यता ऐसी स्थिति में कई गायकों की आवाज़ का इस्तेमाल किया जाता है। एन. दत्ता के लिये असद भोपाली द्वारा कलमबद्ध गीत के बोल थे- बी.ए; एम.ए; पी.एचडी; ये डिप्लोमे ये डिग्री, नये व्यापारी तुम्हारी गली आये। यह गीत भरत कपूर, आत्म प्रकाश, अरविंद राठौड़, अमृत पटेल, चेतन, गुरनाम, यश टंडन और महेन्द्र जवेरी पर फिल्माया गया था।

* रफी साहब को 6 फिल्मों के लिये फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। ये फिल्में थीं।- चौंदहवीं का चांद (1960), ससुराल (1961), दोस्ती (1964), सूरज (1966), ब्रह्मचारी (1968) और हम किसी से कम नहीं (1977)।

नौशाद : अभी साजे-दिल में तराने बहुत हैं

पहली फिल्म प्रेमनगर (1940) से लेकर आखिरी फिल्म ताजमहल (2006) तक के 66 वर्षों के फिल्मी कैरियर में नौशाद जी ने कुल 65 हिन्दी फिल्मों के अलावा एक भोजपुरी फिल्म (पान खाये सैंया हमार), एक मलयालम फिल्म (ध्वनि), एक तमिल फिल्म (वाना रथम), 2 टी. वी. धारावाहिक (दी स्वोर्ड ऑफ टीपू सुलतान व अकबर दी ग्रेट) और एक टी. वी. कार्यक्रम आरोही को अपने बेमिसाल संगीत-सुरों से संवारा था। इसके अलावा हिन्दी फिल्म आन (1952) तथा मुगल-ए-आज़म (1960) के तमिल संस्करणों में भी उनके संगीत का जादू दक्षिण भारत की फिज़ाओं में लहराया।

औसतन 1 वर्ष में मात्र 1 फिल्म का संगीत तैयार करना उनकी कथनी- “क्वालिटी की बनिस्बत मैं क्वालिटी को तरज़ीह देता हूं” का परिचायक है। 1971 में पाकीजा को संगीत देने के बाद उनका मन फिल्म-जगत के रवैये से ऊब गया था। इसी वजह से उनके बाद के 35 वर्षों में उन्होंने मात्र 10 फिल्मों को स्वीकार किया। मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने वाली नई जनरेशन को संभवत: सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली व प्लेटिनम जुबली और डायमंड जुबली का अर्थ मालूम न हो। बता दें कि एक ही थियेटर में लगातार 25 हफ्ते तक हाउस फुल चलने वाली फिल्म की सिल्वर जुबली, 50 हफ्ते चलने वाली की गोल्डन जुबली, 75 हफ्ते चलने वाली फिल्म की प्लेटिनम जुबली और 100 हफ्ते चलने वाली की डायमंड जुबली मनाई जाती थी। जबकि आज के दौर में 5 या 6 हफ्ते तक दर्शकों को अपनी ओर खींचने वाली फिल्म पर ‘सुपर हिट’ का या ‘100 करोड़’ का ठप्पा लग जाता है।

दरअसल, हिन्दी फिल्मों में कर्णप्रिय व कालजयी संगीत देने का श्रेय नौशाद साहब को ही जाता है। प्रथम सवाक् फिल्म ‘आलम आरा’ (1931) से लेकर नौशाद साहब द्वारा संगीतबद्ध ‘रतन’ (1944) तक 1280 फिल्में प्रदर्शित हुई थीं। लेकिन ‘रतन’ के गीतों ने वो तहलका मचाया कि मुंबई के फारस रोड स्थित मोती सिनेमा में यह फिल्म लोगों ने बार बार देखी, और लगातार तीन वर्ष तक चली। अंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना (जोहराबाई अंबाले वाली), जब तुम ही चले परदेस लगाकर ठेस (करन दीवान), अंगड़ाई तेरी है बहाना (मंजू), ओ जाने वाले बालमवा लौट के आ (अमरीबाई व शाम कुमार) तथा मिल के बिछड़ गई अंखियां हाय रामा (अमीरबाई कर्नाटकी) सुनकर उस समय भी संगीत-प्रेमी झूम उठते थे। आज 69 साल बाद भी नौशाद जी की संगीत का जादू बरकरार है।

यह सही है कि नौशाद जी ने सदा शास्त्रीय संगीत व लोक-संगीत को तवज्जो देकर उसे लोकप्रिय बनाया, लेकिन 1951 में प्रदर्शित फिल्म ‘जादू’ के जादूभरे संगीत से बहुतेरे संगीत-प्रेमी अनभिज्ञ हों। अपने पूरे कैरियर में नौशाद जी ने सिर्फ एक बार ‘जादू’ के गीतों में वेस्टर्न म्यूजिक का सहारा लिया। 62 साल पूर्व प्रदर्शित इस फिल्म का संगीत ऐसा जान पड़ता है, मानों हाल ही में कंपोज़ किया गया हो। ए. आर. कारदार द्वारा निर्मित-निर्देशित इस कॉमेडी फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई थी नलिनी जयवंत, सुरेश और श्याम कुमार ने। शकील बदायूंनी द्वारा कलमबद्ध सभी 9 गीतों का संगीत नौशाद जी ने एक अनूठे और निराले ढंग से तैयार किया था। इनमें से ‘ले लो ले लो दो फूल जॉनी ले लो’ (शमशाद, जोहराबाई, मो. रफी), ए जी ठंडी सड़क है, अकड़ अकड़ के चलो न बाबू (शमशाद), जब नैन मिले नैनों से और दिल पे रहे ना काबू…लारा लू, लारा लू (शमशाद व साथी), रूप की दुश्मन पापी दुनिया मारे मोहे अंखियां (शमशाद व साथी), लो प्यार की हो गई जीत बलम हम तेरे हो गये (लता मंगेशकर) आदि गीतों को सुन कर कोई भी संगीत-प्रेमी इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर सकता कि ऐसे गीतों की कंपोजीशन नौशाद जी ने कभी की होगी। लेकिन, यह उस महान संगीतकार मास्टर नौशाद अली वाहिद अली की साफगोई व सज्जनता का एक उदाहरण ही है कि 27 अवार्डस व पद्म भूषण जैसे सर्वोच्च सरकारी खिताब से नवाजे जाने के बाद भी ता-उम्र वे यही कहते रहे कि ‘अभी तो अच्छा संगीत मेरी रगों से बाहर आने को बेकरार है।’ तभी तो 5 अप्रैल, 1997 को, विश्वास नेरूरकर द्वारा बिरला क्रीड़ा केन्द्र, चौपाटी, मुंबई में जब उनकी फिल्मोग्राफी का विमोचन हुआ था, तो नौशाद जी ने कहा था-

‘अभी साजे-दिल में तराने बहुत हैं,
अभी ज़िंदगी जीने के बहाने बहुत हैं।
दर-ए-गैर पर भीख मांगो न फन की,
जब अपने ही घर में खजाने बहुत हैं।’
————-

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: bollywoodcomposerhindi movieshindi vivekhindi vivek magazineindian filmsmohammed rafimusic composernaushadsinger

शिलकुमार शर्मा

Next Post
‘गीता’ जीवन के उच्च उद्देश्यों की प्रेरणा

सामाजिक समरसता के पुरोधा- स्वामी विवेकानन्द

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0