नियति के शिकंजे में अफगानिस्तान
अफगानिस्तान किसी जमाने में भारत का ही अंग था। भारतीय और अफगानी जनता में मैत्रीभाव था। अफगानिस्तान के सुदूर इलाकों तक हिंदुओं के व्यवहार थे। इसे ध्यान में रखकर अफगानिस्तान को फिर करीब लाने की चुनौती भारत के समक्ष है।
अफगानिस्तान किसी जमाने में भारत का ही अंग था। भारतीय और अफगानी जनता में मैत्रीभाव था। अफगानिस्तान के सुदूर इलाकों तक हिंदुओं के व्यवहार थे। इसे ध्यान में रखकर अफगानिस्तान को फिर करीब लाने की चुनौती भारत के समक्ष है।
विश्व स्तर पर काम करनेवाले जागतिक संगठनों में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करनेवाले स्वैच्छिक संस्थाओं के एक विश्व संगठन की जरूरत महसूस की जाने लगी।
देश में स्त्रियों और बच्चों के विकास के लिए अनेक अभिमान छिड़े, अनेक कानूनों को भारतीय संविधान की छत्रछाया में अमली जामा पहनाया गया, अनगिनत योजनाएं और स्कीमें उसके विकास की कहानी को आगे बढ़ाने के लिए रची गईं लेकिन आजादी के छह दशक बाद भी स्थिति में अपेक्षानुरूप परिवर्तन नहीं आया है।
महाभारत के भीष्म पर्व में महर्षि वेदव्यास ने श्रीमद्भगवत गीता के संबंध में वर्णन करते हुए लिखा है-
दासता के काल-खण्ड में हिन्दू-समाज के अन्तर्गत अनेक विकृतियां आ गयी थीं। इनमें अस्पृश्यता हिन्दू-समाज पर लगा सबसे बड़ा कलंक है।
इस माह दो प्रसिद्ध पार्श्वगायकों का जन्म दिवस है। 24 दिसम्बर को मोहम्मद रफी और 25 दिसम्बर को नौशाद का जन्म दिवस है। इस अवसर पर दोनों की संगीत दुनिया को देन पर पेश है यह आलेख-
भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’, वायु सेना का ‘विंग कमांडर’ राज्यसभा का सदस्य और क्रिकेट का महान खिलाड़ी इन सभी का पर्यायवाची नाम हैं सचिन रमेश तेंडुलकर।
मन्ना डे चले गए और मन भी पचास के दशक के अतीत में चला गया। उस समय हम भाई-बहन भी किशोर वयीन थे। फिल्म ‘सीमा’ देखी थी। दो गानों ने हमें दीवाना बना दिया था-
वह संगीतकारों के परिवार में पैदा हुईं। उनके पिता श्री कृष्णराव मजुमदार देवास दरबार के प्रसिद्ध गायक उस्ताद रजब अली साहब के शिष्य थे। घर में शास्त्रीय संगीत का वातावरण बचपन से ही मिला और विवाह भी अजय पोहनकर परिवार में हुआ जो आज भी शास्त्रीय गायन में प्रमुख स्थान रखता है।
आज तक हमने अनेक ‘इनोवेटर्स’ के बारे में जाना। वस्तुत: ‘इनोवेशन’ कहते किसे हैं यह भी जाना। अब हम ‘जुगाड़’ को एक अलग नजरिये से देखेंगे।
महाराजा हरि सिंह जम्मू-कश्मीर में डोगरा राजवंश के अंतिम राजा थे। भारत से अंग्रेजों के चले जाने के बाद भारत डोमिनियन के क्षेत्रफल में स्थित पांच सौ पचास से भी ज्यादा इंडियन स्टेट्स ने पन्द्रह अगस्त 1947 से पहले-पहले शासन की राजतांत्रिक व्यवस्था को त्याग कर देश की नई लोकतांत्रिक शासन पद्धति को स्वीकार करने का निर्णय कर लिया था।
‘क्या मैं अंदर आऊं मैडम?’ एक मीठासभरा स्वर कान में गूंजा। लेकिन उस समय अरुंधति को किसी से बात करने की इच्छा नहीं थी। उसने सिर गड़ाए ही कह दिया, ‘प्लीज, थोड़ी देर बाहर रुकिए। बुलाती हूं आपको बाद में।’