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छात्रों में संस्कृति संवर्धन का अनोखा प्रयास

छात्रों में संस्कृति संवर्धन का अनोखा प्रयास

by संपदा वागले
in मार्च-२०१४, संस्कृति
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जीवन विद्या मिशन के शिल्पकार स्वर्गीय वामनराव पै कहते थे, ‘संस्कृति समाज की आत्मा है, केवल स्वार्थ का विचार विकृति को जन्म देता है, तो संस्कारों के सिंचन से संस्कृति समृद्ध बनती है।’ देश की भावी पीढ़ी संस्कारक्षम बने इस भावना से प्रेरित होकर मोहन सालेकर नामक एक व्यक्ति ने 10 साल पूर्व एक पौधा लगाया, जो देखते-देखते संस्कृति संवर्धन प्रतिष्ठान नाम का वटवृक्ष बन गया। यह प्रतिष्ठान आज अपने सैकडों कार्यकर्ताओं के माध्यम से 532 विद्यालयों में प्रतिवर्ष 1 लाख से भी अधिक छात्रों में संस्कारों का सिंचन कर रहा है।
आज के व्यस्त जीवन में मुंबई तथा मुंबई के बाहर पाठशालाओं के माध्यम से लाखों छात्रों तक पहुंचने के लिए सेवाभावी कार्यकर्ताओं की खोज आसान नहीं थी। लेकिन जहां हौसले बुलंद हो वहां कुछ भी सम्भव है। प्रतिष्ठान की पहली बैठक में यह जिम्मेदारी मोहन सालेकर को सौंपी गई। इस बैठक में छह लोग जनकभाई ठाकर, श्रीकांत मायदेव, सुहास बांदेकर, विठ्ठल प्रभू, ललिता त्रैलोक्य और मोहन सालेकर उपस्थित थे। बैठक में हुई चर्चा के आधार पर रामायण, महाभारत और क्रांतिकारियों की कथाओं पर आधारित पुस्तकें तैयार करने का फैसला लिया गया। सबसे पहले कक्षा पांचवीं और छठवीं के छात्रों के लिए कथारूप रामायण नामक पुस्तक तैयार की गई। लेकिन अब समस्या थी पाठशालाओं को इस योजना में कैसे सम्मिलित करें, पाठशालाएं इस अतिरिक्त बोझ को उठाने के लिए कितनी तैयार होगी? साथ ही साथ पहले ही वर्ष जो 100 पाठशालाओं को जोड़ने का लक्ष्य रखा था, उसकी पूर्ति के लिए कार्यकर्ता कहां से मिलेंगे?

लेकिन कहते हैं ना, ‘जहां होय कृपा श्रीराम की, वहां होय कृपा सबकी’। कार्यकर्ता इस कार्य से जुड़ते गये और कार्य की गति बढ़ती गई। विशेष रूप से डॉ. मनोहर मिंगले, सुरेश देशपांडे, नारायण सामंत, नर्मता पुंडे का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने जी-तोड़ मेहनत करके नैतिक शिक्षा योजना को आकार और स्थिरता दी। उपनगरों से योग्य व्यक्तियों का चयन करके उन पर शाला सम्पर्क की जिम्मेदारी सौंपी। आज इस योजना को सुचारू रूप से चलाने हेतु चार स्तरीय संगठनात्मक रचना है। विश्वस्त मंडल, केन्द्रीय समिति, 10 विभाग और 35 जिले इस प्रकार की रचना के अधार पर कार्य का नियोजन ठीक से हो रहा है।

इस पूरे नियोजन के पीछे जिस व्यक्ति की कल्पकता और अथक परिश्रम है, उसका नाम है, प्रतिष्ठान के संस्थापक विश्वस्त और सचिव मोहन सालेकर। अपने आसपास के लोगों के गुणों को परख कर उनको इस कार्य के साथ जोड़ने की उनकी संगठन कुशलता बेमिसाल है। कैनरा बैंक की नौकरी सम्भालते हुए जिस कुशलता से उन्होंने संस्कृति संवर्धन प्रतिष्ठान के कार्य का विस्तार किया है, वह प्रशंसनीय है।
कक्षा पांचवीं से आठवीं तक के छात्रों के लिए इस नैतिक शिक्षा योजना का शुभारम्भ प्रति वर्ष गुरुपौर्णिमा के दिन ‘रामायण-महाभारत’ ग्रंथों के पूजन से किया जाता है। तत्पश्चात सम्मिलित पाठशालाओं से इच्छुक छात्रों की सूची मंगाई जाती है और उक्त सूचीनुसार छात्रों को पुस्तिकाओं का वितरण किया जाता है। पुस्तिका के लिए रु. 15/- नाममात्र शुल्क रखा गया है। प्रति वर्ष अगस्त महीने में सहभागी पाठशालाओं के अध्यापकों को कार्यशालाओं के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है। प्रत्येक पाठशाला से कमसे कम एक अध्यापक इसमें उपस्थित रहे इस दृष्टि से प्रयास किया जाता है। प्रधानाध्यापकों के लिए भी स्वतंत्र रुप से कार्यशालाओं का आयोजन होता है॥

अध्यापक कार्यशाला का अनुभव बताते हुए प्रतिष्ठान की विश्वस्त श्रीमती नम्रता पुंडे ने कहा, ‘पहली कार्यशाला में आये हुए अध्यापक इस मनस्थिति में थे कि हमारे ऊपर एक और बोझ डाला जा रहा है, लेकिन कार्यशाला में इसकी आवश्यकता को जब उन्होंने महसूस किया, तब उनमें से कई अध्यापक प्रतिष्ठान के कार्यकर्ता बन गये। प्रतिष्ठान इसके साथ साथ सालभर अनेक कार्यक्रम आयोजित करता है। गणेश उत्सव की कालावधि में सामूहिक अथर्वशीर्ष पठन, रामनवमी को सामूहिक रामरक्षा तथा रामनाम जप कार्यक्रमों का आयोजन होता है। प्रति वर्ष, नवम्बर, दिसम्बर में कथाकथन, प्रश्नमंजुषा, चित्रकला, वेशभूषा, निबंध, समूहगान, एकपात्री अभिनय आदि विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है। जनवरी के अंत में योजना में सम्मिलित छात्रों के लिए लिखित परीक्षा आयोजित की जाती है। एक ही दिन, एक ही समय सभी 532 विद्यालयों में यह परीक्षा ली जाती है। उस दिन 2000 स्वयंसेवक अपना समय इसके लिए देते हैं। संगठन कुशलता का अद्भुत नमूना इससे और क्या हो सकता है? परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करनेवाले छात्रों को फरवरी मास में हजारों नागरिकों की उपस्थिति में सम्मानित किया जाता है।

मान्यवरों की उपस्थिति में, मंत्रघोष की गूंज के साथ और पुष्पवृष्टि करते हुए मेधावी छात्रों को रौप्य पदकों से गौरवान्वित किया जाता है। गत वर्ष मुंबई में 1104 छात्रों को सम्मानित किया गया था। इसके साथ ही साथ आदर्श विद्यालय और आदर्श अध्यापक पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं।

छात्रों, अध्यापकों एवं पाठशालाओं से जुड़ा काम फरवरी अंत में खत्म होता है, लेकिन कार्यकर्ताओं की मेहनत सालभर चलती रहती है। नये-पुराने कार्यकर्ताओं का जिलावार प्रशिक्षण तथा निधि संकलन का कार्य उसके बाद चलता रहता है। इस उपक्रम का सालाना बजट 25 लाख का है। हितैषियों के द्वारा दी गयी धनराशि, गणेशोत्सव काल में संकलित किया मंगलनिधि आदि के द्वारा यह बजट पूरा होता है। अच्छे कार्य के लिए भगवान पैसा कम पड़ने नहीं देता इस उक्ति का अनुभव प्रतिष्ठान के कार्यकर्ता हर वर्ष करते हैं।

इस योजना की आज के वातावरण में उपयुक्तता है। सच कहे तो, ‘रामायण-महाभारत यह केवल धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि जीवनग्रंथ है।’ आज के छात्रों में से अगर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, शूर राजनीतिज्ञ शिवाजी महाराज, सत्य की विजय हो ऐसी कामना करने वाले श्रीकृष्ण, मातृभूमि के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाले स्वातंत्र्य सेनानी निर्माण करने के लिए उनको अपनी सांस्कृतिक धरोहर की जानकारी देना आवश्यक है। इसी उद्देश्य से प्रतिष्ठान ने रामायण-महाभारत की कथाओं को बड़े सरल और रोचक ढंग से छात्रों के सामने प्रस्तुत किया है जैसे रावण समान अतिबलशाली शत्रु को खत्म करने के लिए वानरसेना के सहयोग से समुद्र सेतु बांधने का कठिन कार्य करने के लिए जिस संघभावना और नेतृत्व गुणों की आवश्यकता लगती है, उसका यथार्थ चित्रण कथारूप रामायण पुस्तिका से होता है। इन पुस्तिकाओं की लेखन शैली इतनी सहज, सरल और रोमांचक है कि बच्चे तो क्या बड़े भी इसे पढ़ने में आनंद उठाते हैं। इस रोजना के अंतर्गत ली जानेवाली परीक्षा तो केवल निमित्त है। योजना का उद्देश्य है छात्र कथाएं पढ़ें, मनन करें और अपना जीवनपुष्प विकसित करें।

ये पुस्तिकाएं छात्रों को बेहद भाती हैं। उसका मुख्य कारण प्रत्येक कथा के अंत में दी गयी सीख। वह सीख आज के संदर्भ के साथ जोड़ी गई है। जैसे कि, ‘कैकयी के आदेश से श्रीराम वनवास में जाते हैं’ इस कथा के बाद है-वचन भी पूर्ण सम्मान के साथ निभाया जा सकता है अथवा सीता की अग्निपरीक्षा कथा के पश्वात ‘बेदाग व्यक्तित्व के लिए कोई भी परीक्षा मुश्कील नहीं’ यह सीख न केवल मन को भांति है, बल्कि मन में संस्कारों का सिंचन करती है। छात्रों को संस्कारित करने में इन कथाओं का आधार लेना सहज सम्भव है।

मराठी, हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती भाषाओं में यह योजना चल रही है। इस शैक्षणिक वर्ष से चिंचवड, लातूर की पाठशालाएं प्रतिष्ठान के नैतिक शिक्षा योजना से जुड़ गयी हैं। भिन्न धर्मीय छात्र भी इन कथाओं का पठन और मनन कर रहे हैं। इतना ही नहीं तो अमेरिका तथा इंग्लैंड में भी वहां के छात्र इस पाठ्यक्रम के आधार पर ‘ऑन लाइन’ परीक्षा दे रहे हैं।

गत दस वर्ष की कड़ी मेहनत के कारण नए नए क्षेत्र से पाठशालाओं का सहभाग बढ़ रहा है। लेकिन प्रतिष्ठान का उद्देश्य है अधिक से अधिक छात्रों को प्रतिष्ठान के कार्य के साथ जोड़ने का। इसलिए प्रतिष्ठान ने 6 से 12 आयु के बच्चों के लिए साप्ताहिक व्यक्तित्व विकास केंद्र भी शुरु किये हैं। अभिभावकों के लिए ‘प्रभावी पालकत्व’ इस विषय पर कार्यशालाओं का आयोजन भी प्रतिष्ठान की ओर से किया जा रहा है।
संस्कृति संवर्धन प्रतिष्ठान के कार्य को अनेक महानुभावों ने सराहा है और उन्होंने समाज के संवेदनशील व्यक्तियों से इस कार्य में अपना योगदान देने का आवाहन भी किया है।
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