हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
पाकिस्तान की  ‘रेफरेंडम 2020’ योजना  और पंजाब

पाकिस्तान की ‘रेफरेंडम 2020’ योजना और पंजाब

by अमोल पेडणेकर
in जनवरी- २०२१, विशेष, सामाजिक
3

पंजाब और दिल्ली में किसानों के भड़कते आंदोलन में ‘इमरान हमारा भाई है’, ‘हमारा दुश्मन दिल्ली में बैठा है’, ‘इंदिरा गांधी को ठोक दिया, मोदी को भी ठोक देंगे’, ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ सरीखे नारे यदि लगाए जा रहे हैं, तो क्या यह वास्तव में किसान आंदोलन है? क्या यह रेफरेंडम 2020 का एक भाग नहीं है?

देश की विभाजन प्रक्रिया में पंजाब के दो टुकड़े हुए और वह भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया। विभाजन की यातनाएं पंजाब ने सहन की थी। उसके बाद आतंकवाद के कालखंड में हजारों लोग मारे गए। पिछले कुछ समय में हजारों किसानों ने आत्महत्या की। क्या पंजाब जंगलराज की ओर बढ़ रहा है या प्रतीकात्मक कर्मकांड की बलि चढ़ रहा है? कल-परसों तक वहां की युवा पीढ़ी आतंकवाद की ओर आकृष्ट हो रही थी, आज वह नशीले पदार्थों के जाल में उलझती जा रही है? क्या यह खालिस्तान को पुनः जागृत करने का प्रयत्न हो रहा है? पंजाब से सम्बंधित ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर खोजना अत्यंत आवश्यक है।

1960 के दशक में हरित क्रांति में पंजाब अग्रणी था। और 1960 के बाद अब तक उदारीकरण के समय में पंजाब के किसानों एवं खेतों में काम करने वाले मजदूरों को सतत कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

1984 में की गई ऑपरेशन ब्लू स्टार की कार्रवाई भिंडरावाले का आतंकवाद समाप्त करने हेतु अत्यंत आवश्यक थी। यद्यपि अधिकांश भारतीय इस कार्यवाही से सहमत थे, फिर भी सर्व सामान्य सिख के मन को इससे ठेस पहुंची, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। दिन में पुलिस और रात में आतंकवादियों के राज वाले कालखंड में हजारों आतंकवादी, पुलिस कर्मचारी एवं निरपराध नागरिक मारे गए। परंतु गत कुछ वर्षों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या भी उतनी ही हो गई है। स्थानीय लोगों का मत है कि सितंबर 2016 में उरी के आतंकवादी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान पर किए गए आक्रामक हमले के समय एक अलग तरह का वातावरण अनुभव किया गया था। धान की फसल कटने हेतु खेतों में तैयार थी। उसी समय कई किसानों पर अपना घर तथा खेती छोड़कर विस्थापित होने की नौबत आ गई। उनका कहना था कि देश में जब सर्वत्र देशाभिमान की लहर चल रही थी, उसी समय पंजाब के किसानों में भयंकर रोष निर्माण हो रहा था, परंतु यह आक्रोश देश के लोगों के कानों तक पहुंचा ही नहीं।

केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए कृषि सुधार कानून के विरोध में वर्तमान में जो किसानों का आंदोलन चल रहा है उसका स्वरूप पंजाब और हरियाणा में विकराल है। नए कानून क्या हैं? उसमें क्या-क्या उपाय किए गए हैं? उससे क्या फायदा- नुकसान है? इस बाबत विस्तार से चर्चा संसद के अंदर और बाहर हो चुकी है। ऐसा होते हुए भी इस नए सुधारित कानून का पंजाब में भारी विरोध होता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसा यदि किसानों को लग रहा है कि देश में ‘किसान’ विषय संवेदनशील हो गया है, तो उसके लिए आंदोलन करने का संवैधानिक अधिकार उन्हें है। परंतु इस आंदोलन में ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे सुनाई दे रहे हैं। देश विघातक शक्तियों का समर्थन किया जा रहा है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या का समर्थन करते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री को भी सबक सिखाने की भाषा बोली जा रही है। इससे ऐसा लगता है कि कहीं इस आंदोलन के माध्यम से पंजाब में अलग किस्म का राष्ट्र विरोधी षड्यंत्र तो नहीं रचा जा रहा है? इसका पता लगाना अत्यंत आवश्यक है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद क्या खालिस्तान की मांग पंजाब से पूर्णत: समाप्त हो गई है? अगर नहीं तो फिलहाल वह किस स्थिति में है? इस मांग को पंजाब एवं केनडा से किस प्रकार खाद-पानी दिया जा रहा है? वर्तमान में इस विषय में भारतीय गुप्तचर संस्थाओं को क्या जानकारी मिल रही है? इसका निश्चित अर्थ क्या लगाया जा सकता है?

2015 के बाद केनेडा की सरकार में परिवर्तन हुआ। केनेडा के भारतीयों विशेषत: सिखों ने नई सरकार के प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने में विशेष साथ दिया। इसके बदले में उन्होंने 5 सिखों को अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया। रक्षा एवं व्यापार सरीखे महत्वपूर्ण विभाग उन्हें सौंपे। मंत्रिमंडल के ये पांचों मंत्री खालिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने वाले हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2 वर्ष पूर्व ही इस प्रकार का आरोप लगाया था। जिसके कारण खालिस्तान की जो मांग भारत में लगभग समाप्त हो गई थी, उसे कनाडा के धनी सिखों का समर्थन प्राप्त होता दिख रहा है। इन शक्तियों का सतत प्रयत्न रहता है कि भारत में समाप्त हो रही खालिस्तान की मांग पुन: जोर पकड़े। केनडा में 13 लाख से अधिक भारतीय वंश के लोग रहते हैं। इसमें मुख्यतः सिख एवं पंजाबी भाषी लोग अधिक हैं।

भिंडरावाले और उसकी कार्रवाइयों के अनेक समर्थक केनडा में थे और ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद अनेक सिख युवक आतंकवादी कार्रवाईयों में शामिल हो गए थे। परंतु खालिस्तान आंदोलन का जोर कम हुआ और अनेक सिख युवक वह मार्ग छोड़कर मुख्य धारा में शामिल हो गए। परंतु आज भी विश्व में रह रहे सिखों में ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के कांग्रेस प्रायोजित दंगों का गुस्सा है। इसकी शिकार भावनाओं को राजनीतिक दलों ने अपना मंच दिया। इसमें सभी राजनीतिक दलों का स्वार्थ था। यह खेल आज भी कम अधिक परिमाण में सभी राजनीतिक दलों द्वारा खेला जा रहा है। इसका शायद शेष भारत में फायदा हो परंतु जानकार लोगों के मन में यह डर भी है कि कहीं इस राजनीतिक खेल से खालिस्तान आंदोलन पुनः जीवित न हो जाए?

करतारपुर कॉरिडोर का भव्य उद्घाटन हुआ। अब भारत के सिख श्रद्धालु आसानी से करतारपुर गुरुद्वारा जा रहे हैं। इस समारोह के निमित्त पाकिस्तान के प्रसारण मंत्रालय द्वारा जो सीडी एवं कैसेट जारी किए गए थे, उसमें मुसलमान एवं सिखों की मित्रता की महत्ता बताने वाले गाने गाए गए थे। उस में दिखाए गए छायाचित्रों में ऑपरेशन ब्लू स्टार कार्यवाही के दौरान मारे गए जरनैल सिंह भिंडरावाले सरीखें आतंकवादियों के छायाचित्र शामिल थे और उसमें रेफरेंडम 2020 जैसे पोस्टर दिखाए गए थे।

रेफरेंडम 2020 कोई सीधा-साधा मामला नहीं है। पंजाब में समाप्त हो रहे खालिस्तानी आंदोलन को पुनः भड़काने का वह एक भाग है। उसका सतत प्रचार करके खालिस्तान संदर्भ में जनमत को जागृत करने का वह एक प्रयास है। पिछले दो-तीन वर्षों से यह प्रयत्न जोरदार तरीके से किए जा रहे हैं। करतारपुर कॉरीडोर के उद्घाटन प्रसंग के माध्यम से जो दिखाया गया उससे इन प्रयत्नों का जोर बढ़ता दिखाई दे रहा है। ऐसी कार्रवाइयों की योजना एक दिन में नहीं बनती। उसके पीछे वर्षों के प्रयत्न होते हैं। रेफरेंडम 2020 के पीछे भी इसी प्रकार पांच-छह वर्षों की योजना है। सिख फार जस्टिस इस तथाकथित मानवाधिकार संस्था के माध्यम से यह आंदोलन चलाया जा रहा है। कैनेडा, अमेरिका और यूरोप में काम करने वाली यह आतंकवादी संस्था है। भारत में इस पर प्रतिबंध है। परंतु धनी सिख एनआरआई समुदाय में उनका एवं उनकी सरीखी अन्य संस्थाओं के बहुत से कट्टर समर्थक है। रेफरेंडम 2020 की यह समय आधारित योजना पाकिस्तान आई एस आई का षड्यंत्र है। यह पाकिस्तान की मुहिम का ही एक भाग है।

पूर्व तैयारी के रूप में उन्होंने कुछ संकेत स्थल तैयार किये हैं। एनआरआई सिखों के व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किए गए हैं। इसके माध्यम से खालिस्तान का प्रचार होता है। भारतीय सुरक्षा तंत्र ने पिछले दिनों भारत में खालिस्तान का प्रचार करने वाले 140 फेसबुक ग्रुप, सैकड़ों व्हाट्सएप ग्रुप खोज निकाले थे। इस प्रकार के प्रचार की बलि चढ़ने को तैयार पीढ़ी आज भी है। पंजाब में तो और अलग परिस्थिति है। आईएसआई ने अत्यंत चतुराई से वहां के युवकों को अपने जाल में फांस लिया है। बुरहान वानी और उसके जैसे आतंकवादियों का सम्मान करने वालों को हम देशद्रोही कहते हैं। वहीं हम 1984 में कांग्रेस प्रायोजित दंगों के विरोध में बात करते हैं। परंतु सिख युवाओं में भिंडरावाले को श्रद्धांजलि देने हेतु एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा नजर आती है। जम्मू में केवल भिंडरावाले के पोस्टर हटाने पर से पुलिस पर हमला किया गया एवं दंगे फैलाये गए थे। खालिस्तानियों को यह नैतिक बल कहां से मिलता है?

आज जिस तरह से देश में लगातार अंतर्गत आंदोलन हो रहे हैं। कही उन आंदोलनों का उपयोग कर उनमें देश विघातक शक्तियां तो प्रवेश नही कर रहीं हैं? उसके लिए कुछ राजनीतिक संगठन जिस प्रकार राष्ट्र विरोधी कार्रवाईयों का जोरदार समर्थन कर रहे हैं, इस सबसे राजनीतिक दल अपना राजनीतिक हित तो साध सकते हैं परंतु उससे देश खतरे में आ जाएगा। भारत विरोधी कार्रवाईयां करने वाले पाकिस्तान को और अधिक क्या चाहिए? खालिस्तान का बडवानल फैलाने की जो नीच राजनीति चल रही है, वह केवल कॅनडा, ब्रिटन और पंजाब में ही है, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है।

पंजाब और दिल्ली में किसानों के भड़कते आंदोलन में ‘इमरान हमारा भाई है’, ‘हमारा दुश्मन दिल्ली में बैठा है’, ‘इंदिरा गांधी को ठोक दिया, मोदी को भी ठोक देंगे’, ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ सरीखे नारे यदि लगाए जा रहे हैं, तो क्या यह वास्तव में किसान आंदोलन है? क्या यह रेफरेंडम 2020 का एक भाग नहीं है? इसका विचार भारतीय नागरिक, किसान और प्रशासन सभी को करना आवश्यक है। मानवाधिकार दिन के निमित्त किसानों को समर्थन देने के लिए आए हुए आंदोलनकारियों के हाथों में उमर खालिद, शरजील इमाम का समर्थन करने वाले फोटो दिखना, नक्सलवादियों को रिहा करने की मांग करने वाले पोस्टर, इन सब से एक अलग ही गंध फैल रही है। कहीं यह रेफरेंडम 2020 योजना का एक भाग तो नहीं? इसका विचार भारत के सुधि किसानों को करने की अत्यंत आवश्यकता है।

वर्तमान विश्व में आतंकवाद एवं पाकिस्तान एक सिक्के के दो पहलू के रूप में जाने जाते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत से युद्ध करने की हिम्मत पाकिस्तान नहीं करेगा। तीन युद्ध हारा हुआ पाकिस्तान, बांग्लादेश के अलग होने का बदला भारत से लेने का प्रयत्न कर रहा है। इसके लिए सीमा पार से भारत में आतंकवाद फैलाने और उसका पोषण करने का आर्थिक बल पाकिस्तान में नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं कि वर्तमान मोदी सरकार और सुरक्षा बलों की सतर्कता तथा आक्रामक राजनीति के कारण कश्मीर में पाकिस्तानी पिट्ठु शांत हो गए हैं। विश्व के नक्शे पर पाकिस्तान एक भूखे कंगाल देश के रूप में स्थापित है। ऐसे समय में पाकिस्तान ने रेफरेंडम 2020 योजना के माध्यम से पंजाब में आतंकवाद फैलाने का षड्यंत्र रचा है। वर्तमान में हमारे देश में निर्मित आंदोलन की स्थिति, उसे मिलने वाला राजनीतिक दलों का समर्थन, उसमें समाज के विभिन्न घटकों का होने वाला आंदोलन रुपी सहभाग, क्या यह उन्हीं प्रयत्नों का एक भाग तो नहीं है? यह संशोधन का विषय है कि यह जो सब घटित हो रहा है वह पंजाब और आसपास के क्षेत्र में आतंकवाद को पुन: फैलाने का एक योजनाबद्ध षडयंत्र तो नहीं है? ऐसे समय में भारतीय किसानों ने राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर अपने आंदोलन की दिशा तय करना अत्यंत आवश्यक है। देश के सामने आज जो समस्याएं हैं, उनका निराकरण निश्चित ही होना चाहिए, परंतु समस्याओं की आड़ में राष्ट्र विघातक शक्तियां अपना उल्लू तो सीधा नहीं कर रही हैं? इस ओर किसान और विविध आंदोलनकारियों को ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubective

अमोल पेडणेकर

Next Post
बालों की समस्याएं दूर करने के लिए करें शीर्षासन

बालों की समस्याएं दूर करने के लिए करें शीर्षासन

Comments 3

  1. संगीता जोशी पुणे says:
    4 years ago

    आपला लेख वाचला.फार चांगला आहे.
    राष्ट्रहिताच्या अग्रस्थानी हा आपला विचार सर्वांना पटेल असाच आहे.
    हा लेख मोठ्या प्रमाणावर वाचला गेला पाहिजे.
    दैनिक प्रसिद्ध होऊ शकेल का?

    Reply
  2. Deepak V Dhuri says:
    4 years ago

    Very Heart tuch massage

    Reply
  3. Anonymous says:
    4 years ago

    True. Where is solution. More stick ness, hard laws for anti nationals.

    Reply

Leave a Reply to Anonymous Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0