क्या आप जानते है कुतुबमीनार की असली कहानी?

दुनिया में कई ऐसे इस्लामी देश है जो पहले कभी हिंदू देश हुआ करते थे और कई ऐसे स्थल भी है जो कभी हिन्दुओं के धार्मिक स्थल थे लेकिन मुसलमान शासकों ने अपने समय में इसे ज़बरदस्ती अपना बना लिया और उस पर राज करने लगे। देश की कई ऐसी मस्जिदें है जो कभी हिन्दू मंदिर हुआ करती थी और मंदिर के निशान आज भी उन मस्जिदों में पाये जाते है। मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण करवाया गया है अयोध्या की राम जन्मभूमि उसी में से एक उदाहरण है।   
 
इस्लामी लुटेरों ने बाकी देशों के साथ साथ भारत में भी यही काम किया है अभी भी भारत की सैकड़ों ऐसी मस्जिदें हैं जिनकी दीवारों पर हिंदू देवी देवताओं के चित्र या सनातन धर्म के निशान दिखाई देते हैं। इन दिनों ऐसी ही एक मस्जिद की चर्चा भी जोरों पर है। यह मस्जिद है ‘कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद’ जो नई दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में है। ‘कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद’ का अर्थ है इस्लाम की ताकत यानी इस मस्जिद को बनाने का मकसद था हिंदुओं को इस्लाम की ताकत का एहसास कराना। 
कई देशी और विदेशी इतिहास कारों ने लिखा है कि इस मस्जिद का निर्माण 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर किया गया है। यही नहीं भारतीय पुरातत्व विभाग ने भी इस मस्जिद पर जो सूचना पट लगाया है उस पर भी लिखा है कि यह मस्जिद 27 मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थी फिलहाल ये मस्जिद पुरातत्व की देखरेख में है और इसमें किसी को भी नमाज पढ़ने की इजाज़त नहीं है। पुरातत्व के पट को देखकर यह तो साफ होता है कि यहां पहले मंदिर था जिसे मुगल शासक ने अपने समय में तोड़ कर उसके मलबे से मस्जिद का निर्माण करवाया है।  
 
कई पुस्तकों में मिले साक्ष्य को आधार बनाकर नई दिल्ली के साकेत स्थित सत्र न्यायालय में एक याचिका दाखिल की गई है और उसमें मांग की गई है कि इस मस्जिद जो पहले एक मंदिर था इसमें हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार दिया जाए। यह याचिका 3 लोगों ने दाखिल की है। हरिशंकर जैन और अंजना अग्निहोत्री अधिवक्ता है जबकि जितेंद्र सिंह बिसेन एक सामाजिक कार्यकर्ता है। याचिका में कहा गया है कि इस मंदिर में फिर से हिन्दूओं को पूजा अर्चना करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। हालांकि याचिका में इसे तोड़ने का जिक्र नहीं किया गया है। 
कोर्ट में दायर याचिका में अदालत से मुख्य रूप से यह प्रार्थना की गई है कि कोर्ट पुरातत्व विभाग द्वारा दर्शाई गई जगह पर तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और भगवान विष्णु को भगवान गणेश, शिव, मां गौरी, सूर्य देवता और हनुमान जी के साथ 27 मंदिरों को पुनः प्रतिस्थापित करने का अधिकार दिया जाए।इसके साथ यह भी मांग की गई है कि भारत सरकार को एक न्यास स्थापित करने के लिए कहा जाए और उस न्यास को कुतुब मीनार परिसर में स्थित मंदिर परिसर के रखरखाव का अधिकार दिया जाए, यह भी कहा गया है कि जो भी न्यास बने उसे 27 हिंदू और जैन मंदिर और ध्रुव स्तंभ की देखरेख और प्रशासन का अधिकार भी दिया जाए। 
 
याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री ने दावा किया है कि कुतुब मीनार परिसर में स्थित लौह स्तंभ गरुड़ध्वज है जो हिंदू आस्था का प्रतीक और पूजनीय होता है।लौह स्तंभ पर आज भी विष्णु ध्वज अंकित है। यह लौह स्तंभ राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय के समय में बनाया गया था। वही याचिकाकर्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि 1192 तक दिल्ली हिंदू राजाओं के द्वारा शासित होती थी लेकिन तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली की सत्ता हासिल कर ली थी उन्हीं दिनों कुतुबुद्दीन ऐबक जो मोहम्मद गौरी की सेना का सेनापति था उसने श्री विष्णु हरि मंदिर और अन्य 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर उन्हीं के मलबे से एक ढांचा खड़ा किया जिसे ‘कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद’ का नाम दिया गया है। 
इस याचिका में किसी भी तरह की तोड़क कार्यवाही की बात नहीं की गई है बल्कि यह अपील की गई है कि वर्तमान में जो ढांचा खड़ा है जहां पहले पूजा पाठ होता था वहां पुरातत्व के अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत धार्मिक अधिकार को बहाल किया जाए, इस अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि पुरातत्व विभाग द्वारा कब्ज़े में ली गई संपत्ति में धार्मिक कार्य हो सकते हैं तथा आवश्यक निर्माण कार्य भी भवन को बिना क्षति पहुँचाए किया जा सकता है। 
 
72.5 मीटर यानी 238 फीट ऊंचे ध्रुव स्तंभ (क़तुब मीनार) और उसके परिसर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर रखा है। ध्रुव स्तंभ में 27 झरोखे बने हुए हैं जहां से वराह मिहिर 27 नक्षत्रों का अवलोकन किया करते थे। स्तंभ के शीर्ष पर जाने के लिए लगभग 379 सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है और स्तंभ के प्रत्येक तल पर बालकनी बनी हुई है। हालांकि एक दुर्घटना के बाद शीर्ष पर जाने वाले मार्ग को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। अब विशेष अनुमति पर केवल पुरातत्व के लोग ही इसके अंदर जा सकते हैं। कुछ इतिहासकार इस स्तंभ को मस्जिद मीनार बताने का प्रयास करते हैं जो किसी भी तरह से तार्किक नहीं लगता। इतने ऊंचे स्तंभ पर नमाज के लिए दिन में 5 बार चढ़ना ही अत्यंत कठिन है और ऊपर से चिल्लाने पर नीचे खड़े बैठे लोगों तक अजान की आवाज़ नहीं पहुंच सकती। इस परिसर में सैकड़ों स्तंभ स्पष्ट तौर पर प्राचीन हिंदू मंदिरों के हैं जिन पर कमल, कलश, घंटियां आदि चित्र नजर आते हैं जिससे यह साफ होता है कि क़तुब मीनार एक हिंदू कालीन ध्रुव स्तंभ था। अब सभी को इस बात का इंतजार होगा कि कोर्ट इस पर क्या फैसला सुनाती है।

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