वोट फॉर इंडिया

आगामी लोकसभा चुनाव में महंगाई व भ्रष्टाचार के अलावा स्थिर सरकार का मुद्दा महत्वपूर्ण होगा। इस चुनाव में पहली बार ‘वोट फॉर इंडिया’ का नारा है। इस नारे का अर्थ है, शक्तिशाली व सम्पन्न भारत के लिए मतदान। ऐसा भारत बनाने का जो दल माद्दा रखेगा उसे ही सत्ता का अवसर मिलेगा यह स्पष्ट होता जा रहा है।

‘लोकमंच’, कोल्हापुर ने आगामी सोलहवीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव के बारे में मतदाताओं का रुझान जानने के लिए देश भर में हाल में सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में देश के 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के 1 लाख 74 हजार से अधिक मतदाताओं से सम्पर्क किया गया। समाज जीवन के विविध विषयों पर आठ प्रश्नावलियां तैयार की गईं। हर प्रश्नावली में दस प्रश्न थे। इसमें महंगाई, भ्रष्टाचार, सुरक्षितता, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, वनवासी, पिछड़े वर्ग, पर्यावरण, महिला अत्याचार, कानून, कृषि, पानी, सड़कें, निवास, विज्ञान आदि विषय थे। जनता की राय के आधार पर किन दस प्रश्नों को आगामी लोकसभा चुनाव में प्राथमिकता होगी यह तय किया गया। साथ में दी गई तालिका क्र. 1 से कुल मतदाता व मतदाताओं के विभिन्न वर्ग किन प्रश्नों को कितना महत्व देते हैं यह स्पष्ट होता है। लगभग सभी मतदाताओं ने महंगाई (20%) व भ्रष्टाचार (18%) को सर्वाधिक महत्व दिया है। इसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा (9%), जनसंख्या (7%), कृषि व ग्रामीण विकास (प्रत्येक 6%), शहरी विकास, युवक व महिला (प्रत्येक 5%), सांस्कृतिक प्रश्न (4%) का क्रम आता है। लगभग 8% मतदाता ऐसे भी थे जिन्होंने कोई प्राथमिकता प्रकट नहीं की। यह एक तरह से जनता का घोषणा-पत्र है। इस घोषणा-पत्र में प्रमुख मुद्दों पर देश के मतदाताओं में अमुमन एकमत दिखाई देता है। लेकिन इन प्रश्नों को हल करने का सामर्थ्य किस व्यक्ति और दल में है इस बारे में अनेक राज्यों के मतदाताओं में मतभेद दिखाई दिए।

इस चुनाव में मतदाता प्रधान मंत्री के रूप में किसे सर्वाधिक चाहते हैं इसका भी अनुमान निकला है। इस अनुमान के अनुसार 49% वोटों के साथ नरेंद्र मोदी सब से आगे है। राहुल गांधी 14% पर है, जबकि सोनिया गांधी मात्र 5%, प्रियंका गांधी मात्र 4% व डॉ. मनमोहन सिंह केवल 3% पर है। अरविंद केजरीवाल मात्र 2% पर थम गए हैं। अन्य नेताओं में ममता बैनर्जी, जयललिता, मुलायम सिंह यादव प्रत्येकी 3% पर है। (देखें तालिका क्र. 2)। इससे स्पष्ट होता है कि नरेंद्र मोदी भारी समर्थन के साथ सब से आगे है और उनके मुकाबले कोई नहीं है।

घरानों की सीटें

1952 से लेकर अब तक लोकसभा के 15 चुनाव हो चुके हैं। उनके इतिहास और वर्तमान स्थिति का अवलोकन कर तथा मतदाताओं से मिली जानकारी के आधार पर जो निष्कर्ष निकले वे चमत्कारिक हैं-

1. 1952 से 2009 तक हुए 15 लोकसभा चुनावों में देश के कुल 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 58 निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस की एक भी बार पराजय नहीं हुई है।

2. उपर्युक्त 58 निर्वाचन क्षेत्रों को छोड़कर कम से कम 22 निर्वाचन क्षेत्रों में पिछले 6 चुनावों में कांग्रेस एक भी बार हारी नहीं है।

3. कुल 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 47 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा पिछले 6 चुनावों में एक भी बार परास्त नहीं हुई है।

4. कुल 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से वामपंथी मोर्चा 9, अन्य क्षेत्रीय दल 12 इस तरह कुल 21 निर्वाचन क्षेत्रों में पिछले 6 चुनावों में सम्बंधित दल एक भी बार हारे नहीं हैं।

ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों की कुल संख्या 148 है। देश में कोई भी माहौल हो परंतु इन 148 निर्वाचन क्षेत्रों में कोई बहुत बड़ा फर्क आएगा ऐसा नहीं लगता। क्योंकि, इन निर्वाचन क्षेत्रों में उन दलों की संगठनात्मक मजबूती रही है तथा अन्य सत्ता स्थान सम्बंधित दलों के पास रहे हैं। उपर्युक्त 148 निर्वाचन क्षेत्रों में देश के विभिन्न दलों के 45 से अधिक ऐसे नेता हैं जिन्होंने या उनके परिवार के लोगों ने ये निर्वाचन आज तक अपने पास सुरक्षित रखने में सफलता पाई है। इनमें शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, राहुल गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, गुरुदास गुप्ता, शरद यादव, एच.डी.देवेगौड़ा, मीरा कुमार, सुमित्रा महाजन, माणिकराव गावित, अकबरुद्दीन ओवेसी, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे राजनीतिक घरानों के लोगों के नाम हैं।

अधिक मतदान की संभावना

अब तक हुए लोकसभा चुनावों पर गौर करें तो दिखाई देगा कि जिस चुनाव में कुल मतदान अधिक होता है उस चुनाव में सत्तारूढ़ दल की हमेशा पराजय होती है। इस बार ऐतिहासिक मतदान होने की संभावना है। देश में कुल 64% से अधिक मतदान होने की संभावना है। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल इन राज्यों में तो 68% तक मतदान होने की संभावना है। अधिक हुए मतदान में युवकों की हिस्सेदारी 80% से अधिक होगी और यही मतदान हर निर्वाचन क्षेत्र में निर्णायक होगा। इसीके साथ मध्यम वर्गियों का मतदान हमेशा की तरह अधिक होगा, लेकिन उच्च शिक्षितों व अमीर वर्ग में मतदान के बारे में निरुत्साह आज भी अनुभव होता है। कुल मिलाकर इस चुनाव में मतदान के आंकड़ें महत्वपूर्ण साबित होंगे।

क्षत्रपों का बोलबाला

आगामी चुनाव विभिन्न मुद्दों पर होने वाला है। ये मुद्दे पूरे देश में एक ही हैं या पृथक हैं इसका हमने अंदाजा लिया तब मतभिन्नता दिखाई दी। दक्षिण के राज्यों का विचार करें तो क्षेत्रीय नेताओं पर अधिक भरोसा दिखाई देता है। क्षेत्रीय नेताओं के मुकाबले महंगाई व भ्रष्टाचार के मुद्दे को तुलनात्मक दृष्टि से कम महत्व मिलता दिखाई दे रहा है। वहां हिंदी का अभी भी दोयम स्थान होने से भाजपा उन राज्यों में प्रमुख दल नहीं हो सकता। कर्नाटक में भाजपा को जो स्थान मिला है वह जातीय समीकरण के आधार पर मिला है। पूर्व के राज्यों में क्षेत्रीय अस्मिता को अधिक महत्व दिया जाता है। पूर्व के राज्यों में केंद्र की ओर से ध्यान न दिए जाने की भावना पैदा हुई दिखाई देती है। उत्तर व पश्चिम के राज्यों में राष्ट्रीय दल- कांग्रेस व भाजपा- को समर्थन होने का कारण यह है कि राष्ट्रीय स्तर के जो नेता हैं वे ही देश चलाते हैं यह भावना है। उत्तर के क्षेत्रीय दल जातीय आधार पर बने हैं और ऐसी जातियों के लोगों को वे अपने दल लगते हैं। इसलिए ऐसे क्षेत्रीय दलों को समर्थन मिलता है।

मुस्लिमों की भूमिका

देश के मुस्लिमों मतदाताओं की भूमिका इस चुनाव में महत्वपूर्ण होगी। देश के 167 निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 10% से अधिक है। इनमें से कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक रहे हैं। देश के सभी मुस्लिम 1961 तक पूरी तरह कांग्रेस के साथ थे। 1967 से ये मतदाता समय के अनुसार हर राज्य में अलग-अलग भूमिका लेकर विभिन्न दलों के साथ जाते रहे। पिछले 10 वर्षों में ये मतदाता विभिन्न दलों में बंट गए हैं। लेकिन आज युवा मुस्लिम मतदाता अलग विचार करता दिखाई देता है। यह भावना पैदा हुई है कि केवल वोट बैंक के रूप में कांग्रेस समेत अनेक दल उनका उपयोग करते रहे हैं। मुस्लिम मतदाता भाजपा के साथ कभी खड़ा नहीं रहा है। लेकिन दिखाई देता है कि उसकी भूमिका में बदलाव आ रहा है। क्योंकि, गुजरात विधान सभा के चुनाव में 35% से अधिक मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को मतदान किया। इसी तरह, मध्य प्रदेश व राजस्थान विधान सभा के चुनावों में मुस्लिमों के मतदान की मात्रा 30 से 40 प्रतिशत तक है। इस पार्श्वभूमि में मुस्लिम मतदाताओं के एकगट्ठा वोट किसी एक दल को मिलेंगे ऐसा माहौल नहीं है।

चुनाव-पूर्व गठबंधन

आगामी चुनाव में चुनाव-पूर्व बने गठबंधनों का महत्व अधिक है। क्योंकि सत्ता के समीकरण में केवल राष्ट्रीय दल- कांग्रेस या भाजपा- अपने बलबूते सत्ता पर नहीं आ सकेंगे। इस चुनाव में तीन गठबंधन दिखाई देते हैं। इन गठबंधनों के अलावा कुछ प्रभावशाली क्षेत्रीय दल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

यूपीए गठबंधन

1. बिहार में कांग्रेस, आरजेडी व एनसीपी गठबंधन हुआ है।

2. महाराष्ट्र में कांग्रेस व एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस) की युति कायम रखने में सफलता मिली है।

3. तमिलनाडु में डीएडीके (द्रमुक) व कांग्रेस का गठबंधन होने की संभावना कम है।

4. आंध्र प्रदेश में टीआरएस के साथ कांग्रेस की युति होने की संभावना कम है।

5. असम में कांग्रेस व यूडीएफ के बीच गठबंधन होने के मार्ग पर है।

6. केरल में हमेशा की तरह मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस का गठबंधन कायम है।

7. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस व अजित सिंह की पार्टी के बीच गठबंधन कायम है।

8. झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ कांग्रेस का गठबंधन कायम है।

एनडीए गठबंधन

1. बिहार में रामविलास पासवान व कुशवाह के दलों के साथ गठबंधन हुआ है।

2. मेघालय में पी.ए.संगमा के साथ गठबंधन होने की आशा है।

3. महाराष्ट्र में शिवसेना व आरपीआई (आठवले) के साथ महायुति हो चुकी है। मनसे (राज ठाकरे) से गठबंधन में शामिल नहीं हुए, लेकिन उन्होंने केंद्र में मोदी को समर्थन देने की घोषणा की है।

4. तमिलनाडु में विजयकांत की एमडीएमके के साथ पहली बार गठबंधन हुआ है।

5. पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन कायम है।

6. असम में असम गण परिषद के साथ गठबंधन होने की संभावना है।

7. आंध्र में तेलुगू देशम के साथ गठबंधन हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

तीसरा मोर्चा

1. सभी वामपंथी दल इस गठबंधन के हमेशा की तरह घटक हैं।

2. मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी भी एक घटक दल है।

3. बिहार में जेडीयू तीसरे मोर्चे के साथ आया है।

4. जनता दल सेक्युलर तीसरे मोर्चे का स्थायी मित्र है।

5. अन्ना-द्रमुक की जयललिता तीसरे मोर्चे का नेतृत्व कर रही है।

6. आंध्र प्रदेश का वाईएसआर कांग्रेस तीसरे मोर्चे में जा सकता है।

7. बिजू जनता दल पिछली बार की तरह तीसरे मोर्चे का घटक दल है।

अन्य दल

1. केजरीवाल की आम आदमी पार्टी देश में 150 उम्मीदवार खड़े कर सकती है।

2. ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस देश में विभिन्न सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर सकती है।

3. मायावती की बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश समेत देश में 400 उम्मीदवार खड़े कर सकती है।

4.महाराष्ट्र में राज ठाकरे की मनसे स्वतंत्र रूप से 15 सीटें लड़ सकती है।

5. देश के विभिन्न राज्यों में एक-दो सीटें जीतने की क्षमता रखने वाले पंजीकृत दल इस चुनाव में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ सकते हैं।

अपेक्षित परिणाम

उपर्युक्त सभी जानकारी व कुछ मतदाताओं के रुझान का प्रत्यक्ष जायजा लेने के बाद निम्नानुसार राज्यवार अपेक्षित परिणाम आ सकते हैं। इन अपेक्षित परिणामों में जिन दलों को विजयी बताया गया है उनमें उनके व पराजित उम्मीदवारों में न्यूनतम एक प्रतिशत से अधिक वोटों का अंतर है। एक प्रतिशत से कम अंतर वाली सीटों को ‘अनिश्चितता’ की श्रेणी में डाला गया है। (देखें तालिका-3)

हमारे सर्वेक्षण के अनुसार अपेक्षित परिणामों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 210 सीटें निश्चित रूप से मिलेंगी। ‘अनिश्चितता’ स्तंभ में दिखाई गई 98 सीटों में से न्यूनतम 30 से अधिक सीटें एनडीए को मिलेंगी। नरेंद्र मोदी के करिश्मे के कारण ये अधिक सीटें भाजपा को मिलने का अनुमान है। कांग्रेस गठबंधन अर्थात यूपीए इस बार दो अंकों में ही सिमट जाएगा और उसे सर्वाधिक नुकसान पहुंचने संभावना दिखाई दे रही है। भ्रष्टाचार के विरोध में हवा बनाने वाली आम आदमी पार्टी को 6 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी। तीसरे मोर्चे को 88 सीटें तो मिलेंगी ही। देश में 98 ऐसी सीटें हैं जहां एक प्रतिशत से भी कम अंतर से फैसला होने वाला है और यह अंतर देश में चुनाव माहौल पर निर्भर है। आज नरेंद्र मोदी ऐसा माहौल बनाने में सब से आगे है। देश के 10% मुस्लिम व 35% दलितों का भाजपा को वोट मिलने और कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में हिंदू मतों का धु्रवीकरण होने पर भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त होना आश्चर्यजनक नहीं होगा।
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