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विकास के लिए वोट

विकास के लिए वोट

by गंगाधर ढोबले
in अप्रैल -२०१४, राजनीति
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पहली बार किसी चुनाव में ‘वोट फॉर इंडिया’ (भारत के लिए वोट) का नारा सामने आया है। लोकसभा के लिए अब तक हुए 15 चुनावों में कभी किसी ने ‘देश के लिए वोट’ देने का आह्वान नहीं किया। हर चुनावों में हर बार पार्टी के लिए वोट मांगे गए। इसका तात्पर्य क्या है? तात्पर्य यह है कि उसे वोट दिया जाए जो भारत में विकास की बुनियाद कायम कर सके। विकास का यहां अर्थ केवल दो-चार कारखानें लगाने, दो-चार सड़कें बनाने या एकाध दो उड़ान पुल बनाने तक सीमित नहीं है। विकास की बुनियाद का अर्थ है शक्तिशाली व सम्पन्न भारत का निर्माण। एक ऐसा भारत जो सुरक्षित हो, हरेक को समय पर और उचित न्याय मिले, हरेक को आगे बढ़ने के अवसर मिले, उचित शिक्षा मिले, स्वाथ्य सुविधाएं उपलब्ध हो, जो भ्रष्टाचार और शोषण से मुक्त हो, जहां अपनी संस्कृति और विरासत की रक्षा हो इत्यादि। यह सूची और लम्बी हो सकती है। इस सूची को खोजने में उलझने की आवश्यकता नहीं है। शक्तिशाली और सम्पन्न भारत का संक्षेप में तात्पर्य यह है कि सब से पहले देश में सुशासन आए। सुशासन हो तो जनता की समस्याओं के समाधान के रास्ते अपने-आप खुल जाएंगे। यह सुशासन कैसे आएगा? इसकी चावी हम मतदाताओं के पास है। इसका हम विवेक से इस्तेमाल करें तो परिवर्तन अवश्य आ सकता है। चुनाव हमें ऐसा ऐतिहासिक अवसर प्रदान करते हैं। आगामी लोकसभा चुनाव को इसी दृष्टि से देखने की जरूरत है।

‘देश के लिए वोट’ का अंतिम अर्थ किसी न किसी दल को या किसी न किसी उम्मीदवार को वोट देना है। यह तय करना जरूरी है कि किसे वोट देने से वह ‘भारत के लिए सच्चा वोट’ साबित होगा। यह निर्णय करने के लिए सम्बंधित दल, उसके इतिहास व कार्य, उसके नेता या उम्मीदवार की पार्श्वभूमि, उनके कार्यक्रमों पर गौर करना जरूरी है। देश में इस समय तीन गठबंधन और इन गठबंधनों से बाहर रहने वाले कुछ दल वोटों की याचना करते दिखाई दे रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों से देश में गठबंधनों की राजनीति चल रही है। किसी एक दल के हाथ में सत्ता जाने का जमाना लद चुका है। कांग्रेस का गठबंधन यूपीए अपने ही अंतर्विरोधों में उलझा है, वहीं भाजपा का गठबंधन एनडीए भी कश्मकश में है। तीसरा मोर्चा वामपंथियों को पुनः जोड़ने की कसरत है और जयललिता, मुलायम सिंह या बीजू पटनायक के भरोसे सीटें पाने को उत्सुक है। मायावती की बसपा, केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, ममता तृणमूल कांग्रेस, करुणानिधि की द्रमुक इनमें से किसी खेमे में नहीं है। इसलिए मतदाताओं के सामने बिखराव का दृश्य है।

कांग्रेस के साथ इस बार राकांपा (महाराष्ट्र तक सीमित), लालू की आरजेडी (बिहार में ही उलझी), यूडीएफ (असम में कुछ हिस्सों तक ही), मुस्लिम लीग (मात्र केरल में), झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (केवल झारखण्ड में), अजित सिंह (उत्तर प्रदेश के जाट इलाकों तक सीमित) कांग्रेस का साथ निभा रहे हैं। स्पष्ट है कि उनका केवल अपने-अपने क्षेत्रों में ही थोड़ा-बहुत प्रभाव है, पूरे देश में नहीं। ये सारे उनकी राजनीतिक मजबूरी के कारण ही कांग्रेस के साथ है। तेलंगाना पृथक करने के बाद भी टीआरएस उनके साथ जाने के लिए राजी नहीं है, उधर सीमांध्र वाले नाराज ही हैं। कुल मिलाकर एक निष्प्रभावी गठबंधन जनता के सामने है।

कांग्रेस का पिछले साठ-पैंसठ साल का इतिहास गवाह है कि कांग्रेस हमेशा ‘गांधी’ घराने पर निर्भर रही है। ‘गांधी’ परिवार को हटा दिया जाए तो कांग्रेस कहां है इसका पता भी न चलेगा। पिछले दस साल में कांग्रेस का लेखा-जोखा शून्य में ही नहीं, उससे भी पीछे दिखाई देता है। देश को मनमोहन सिंह के रूप में एक दब्बू प्रधान मंत्री झेलना पड़ा। सोनिया और राहुल की ‘जी-हुजूरी’ में ही उन्होंने दस साल बिता दिए और इसका खामियाजा एक से बढ़कर एक घोटाले, भ्रष्टाचार, महंगाई, भाई-भतीजावाद के रूप में देश को भोगना पड़ा। स्वदेशी मोर्चे पर ही नहीं, विदेशी मोर्चे पर भी भारी विफलता हाथ लगी। आसपड़ोस के चीन, पाकिस्तान तो विरोध में खड़े थे ही, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे छोटे देश भी आंखें तरेरने लगे। अमेरिका जैसे बड़े देश भी अवहेलना करने लगे। देश में एक अंदरुनी असंतोष खौलने लगा है।

पिछले पांच वर्षों में एनडीए में भी बिखराव आ गया। बिहार में नीतिश कुमार ने साथ छोड़ दिया। बदले में रामविलास पासवान और कुशवाह के दल एनडीए में आ गए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना, रिपब्लिकन (आठवले) की महायुति बनी है। यहां मनसे एक प्रभावशाली घटक हैं, लेकिन वह युति में नहीं आया, अपने उम्मीदवार घोषित किए, लेकिन मोदी को समर्थन देने की सार्वजनिक घोषणा की है। इस तरह उन्होंने एक पत्थर से दो पंछी मारने की कोशिश की है- कांग्रेस भी खुश व भाजपा की नाराजगी कम! मेघालय में पी.ए. संगमा से गठजोड़ हो सकता है, लेकिन उनका प्रभाव केवल मेघालय के गारो पहाड़ी इलाके में ही है। इससे संगमा भले जीत जाए, पर अन्यत्र उनसे किसी विशेष लाभ की संभावना नहीं है। तमिलनाडु में फिल्म सितारे विजयकांत की एमडीएमके के साथ गठबंधन हो चुका है। पंजाब में अकाली दल के साथ गठजोड़ कायम है। असम में असम गण परिषद व आंध्र में चंद्राबाबू की तेलुगू देशम के साथ गठजोड़ हो सकता है। कुल मिलाकर भाजपा को भी लगभग अकेले ही चलना पड़ेगा और पर्याप्त सीटें मिलने पर ही ये छोटे-मोटे दल काम आ सकते हैं या अन्य नए क्षेत्रीय दल भी साथ निभा सकते हैं।

तीसरे मोर्चे का नेतृत्व फिलहाल जयललिता कर रही है। सभी वामपंथी दल हमेशा की तरह इस मोर्चे में शामिल है। समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह और ओडिशा के बिजू पटनायक शामिल हो गए हैं। बाकी छिटपुट दल हैं, जो किसी एकाध क्षेत्र में ही ताकतवर है।

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, करुणानिधि की द्रमुक किसी खेमे में नहीं हैं। केजरीवाल दिल्ली या हरियाणा के आसपास, मायावती उत्तर प्रदेश, करुणानिधि तमिलनाडु और ममता पश्चिम बंगाल में सीटें पा सकते हैं। इन दलों के पास कोई राष्ट्रीय एजेंडा नहीं है और वे केवल अपने नेताओं के करिश्मे पर निर्भर हैं।

इन दलों के नेताओं पर गौर करें। कांग्रेस गठबंधन का अघोषित नेतृत्व राहुल गांधी के पास है, जो देश और राजनीति के बारे में दिशाहीन, अधकचरे हैं यह कई बार स्पष्ट हो चुका है। उनके नेतृत्व पर कांग्रेस में भी प्रश्नचिह्न है। भाजपा गठबंधन के पास नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई, परिपक्व, अनुभवी नेतृत्व है, जो क्षेत्रीय अस्मिता की अपेक्षा राष्ट्र की अस्मिता की बात करते हैं। तीसरे मोर्चे के पास नेता ही नेता हैं- जयललिता, मुलायम, बीजू पटनायक और उनके साथ आने वाले दलों के न जाने कितने नेता हैं! आम आदमी पार्टी में केजरीवाल की ही चलती है, बसपा में केवल मायावती की तूती बोलती है तो तृणमूल कांग्रेस में दीदी के सिवा पत्ता नहीं हिलता, द्रमुक में करुणानिधि की चलती है लेकिन पार्टी में अंदरुनी असंतोष है। इस तरह कुल स्थिति पर सोचें तो ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी के अलावा कोई दूरदर्शी नेता दिखाई नहीं देता। इसलिए उनकी पार्टी को वोट ही ‘भारत के लिए वोट’ है। उनसे मतदाताओं की अपेक्षा केवल यही है कि वे सब को साथ लेकर चलें और व्यक्ति महत्ता की स्थिति न बने। जिस राष्ट्रीय विचारधारा में वे रचे-बसे हैं उससे विचलन की स्थिति पैदा न हो। उनके वक्तव्यों से जान पड़ता है कि वे इस स्थिति को बखूबी जानते हैं।

अब अलग-अलग गठबंधनों और दलों के राष्ट्रीय एजेंडे को देखें। कांग्रेस के पास कहने के लिए कुछ बचा नहीं है। यूपीए का कोई साझा एजेंडा भी अब तक सामने नहीं आया है और आए भी तो पिछले दस सालों के अनुभव कहते हैं कि वे इस पर चलते नहीं है। फिलहाल वे अन्न सुरक्षा कानून, लोकपाल कानून जैसे ऐन समय पर लाए गए कानूनों या मनरेगा जैसी योजनाओं की बात करते हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटालों की बात करना भी उनके लिए मुनासिब नहीं है। देश के विकास का कोई खास खाका उनके पास नहीं है।

यही स्थिति तीसरे मोर्चे की भी है। वामपंथी मजदूरों और सर्वहारा की बात करते थे, लेकिन पश्चिम बंगाल के 35 साल के शासन में उनकी कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट हो गया और अंत में ममता के हाथ लोगों ने सत्ता सौंप दी। उनके पास देश विकास का कोई माकूल कार्यक्रम दिखाई नहीं देता। उनके साथ गए मुलायम और जयललिता के अपने-अपने प्रादेशिक एजेंडे हैं, इसलिए वे कुछ सीटें पा लें फिर भी देश चलाने का माद्दा उनमें नहीं है।

केजरीवाल, मायावती, करुणानिधि या ममता की जड़ें उनके ही इलाकों तक सीमित हैं। तीनों के पास राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कोई कार्यक्रम नहीं है। केंद्र में जो दल सत्ता स्थापना के करीब होगा उसके साथ जाने में भी वे नहीं कतराएंगे। इसलिए राष्ट्रीय दृष्टि से उनका कोई औचित्य दिखाई नहीं देता।

भाजपा ने देश के विकास के लिए आठ सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की है। ये आठ सूत्र हैं- 1. युवकों को शिक्षा व रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए सभी राज्यों में आईआईटी, आईएमएस और एम्स जैसी संस्थाओं की स्थापना 2. बच्चों व महिला सक्षमीकरण और बेटी बचाओ अभियान 3. शहरी विकास और बुनियादी सुविधाओं का निर्माण- 100 आधुनिक शहरों का विकास, जुड़वा शहर बसाना, उपनगरों का विकास करना, नदियों को जोड़ना तथा बुलेट ट्रेनों के लिए सुविधाओं की स्थापना 4. महंगाई रोकने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना, कालाबाजार पर विशेष नियंत्रण 5. कृषि सुधारः उपज के लिए डेटा बैंक, राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना 6. सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं- रोग निवारक स्वास्थ्य व्यवस्था 7. संघीय ढांचाः क्षेत्रीय अस्मिताओं की रक्षा और 8. भ्रष्टाचार विरोधी कदम, विदेशों में जमा काला धन वापस लाना। मोदी के कार्यक्रम में पांच टी व इंद्रधनुषी उपायों का भी जिक्र है। पांच टी में हैं- टैलेंट, ट्रेड, ट्रेडिशन, टुरिजम और टेक्नालॉजी। इंद्रधनुषी उपायों में हैं- भारत की संस्कृति, युवा शक्ति, महिला सक्षमीकरण, कृषि, राष्ट्रीय संसाधन, लोकतंत्र और ज्ञान का विकास करना।
इस तरह भाजपा के कार्यक्रम में ‘वोट फॉर इंडिया’ का माने है भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट, महंगाई के खिलाफ वोट, सुशासन के लिए वोट, देश की रक्षा के लिए वोट, बच्चों की शिक्षा के लिए वोट, रोजगार के लिए वोट, महिला सम्मान के लिए वोट, किसान कल्याण के लिए वोट, सम्पन्न, सशक्त, एक और श्रेष्ठ भारत के लिए वोट।

अन्य दलों की तुलना में भाजपा के देश के विकास की यह रूपरेखा बहुत व्यापक है। इसलिए इस रूपरेखा को वोट ही ‘भारत के लिए वोट’ माना जाएगा।
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