लागू हुआ नया श्रम सुधार कानून

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने दावा किया है कि देश के 50 करोड़ असंगठित मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की कानूनी गारंटी देगा। नए श्रम क़ानूनों से देश के संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के श्रमिकों को कई प्रकार की नई सुविधाएं प्राप्त हो रही है। जैसे सभी मजदूरों को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा और वेतन भुगतान डिजिटल माध्यम से करना होगा। साल में एक बार सभी मजदूरों का हैल्थ चैकअप भी अनिवार्य रूप से कराना होगा।

मोदी सरकार द्वारा लागू नवीन श्रम कानून आर्थिक एवं सामाजिक न्याय के नजरिये से एक महत्वपूर्ण बुनियादी बदलाव है। यह देश के पुराने पड़ चुके श्रम कानूनों को समावेशी एवं सरल बनाने की बहुप्रतीक्षित मांग के अनुरूप भी है। संसद द्वारा गुजरे साल स्वीकृत किये गए इन बदलाव से औद्योगिक सबन्धों, व्यावसायिक सुरक्षा के साथ स्वास्थ्य और कार्य स्थिति को पुनर्परिभाषित किया गया है। नई सामाजिक सुरक्षा संहिता को प्रचलित 09 कानूनों के स्थान पर लाया गया है। इससे पहले ईपीएफओ एक्ट 1952, मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 आदि नियम प्रचलित थे।

इसी तरह औद्योगिक सबन्ध संहिता, औद्यौगिक विवाद अधिनियम, 1974 व्यापारसंघ अधिनियम 1926 औऱ औद्योगिक रोजगार (स्थाई आदेश) अधिनियम 1946 के स्थान पर निर्मित किया गया है। व्यावसायिक सुरक्षा स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 13 अलग अलग कानूनों को एक करके बनाई गई है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 में पहली मर्तबा कृषि कामगारों को शामिल किया गया है जो पूर्व के 09 कानूनों में कवर नही थे। सभी प्रकार के कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी भुगतान प्राप्त करने की समय सीमा को पांच वर्ष से एक वर्ष की निरन्तर सेवा तक कम करता है, जिससे निश्चित अवधि के कर्मचारी अनुबंध श्रमिक, दैनिक औऱ मासिक वेतनभोगी भी इसके दायरे में आ गए है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों जैसे प्रवासी मजदूर, प्लेटफार्म मजदूर भी अब नई सहिंता में सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आ गए है। व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति सहिंता 2020 नियोक्ताओं और श्रमिकों के कर्तव्यों को पूर्ण बनाता है। साथ ही समावेशी सुरक्षा मानकों को भी निर्धारित करता है, जिसके चलते मजदूरों के स्वास्थ्य और कार्य के घण्टो, अवकाश को न्यायसंगत बनाया गया गया है। पहली बार संविदा कर्मियों को वैधता के साथ परिभाषित किया जाना इस कानून का अहम पक्ष है। सबसे महत्वपूर्ण पहलू सामाजिक सुरक्षा जैसे विधिक लाभों के लिए अस्थाई कर्मचारियों को उनके स्थाई समकक्ष के समान वेतन का प्रावधान किया जाना है। ओवरटाइम के प्रकरण में किसी कर्मचारी को उसके दोगुना भुगतान का प्रावधान अब ऐसे संस्थानों पर भी लागू होगा जहां कर्मियों की संख्या 10 है। जेंडर इक्वलिटी सुनिश्चित करना भी इन नए श्रम सुधारो का प्रमुख तत्व है। अब महिलाएं सभी प्रकार के कार्यों के लिए सभी स्थापनाओं में नियुक्तियों की हकदार होगी। उनकी सहमति से सुरक्षा प्रावधान अपने आप में कानूनों के मानवीय पक्ष को प्रमाणित करता है।
औद्योगिक सबन्ध संहिता 2020 के महत्वपूर्ण प्रावधानों में कम्पनियों में काम करने वाले श्रमिकों को काम पर रखने औऱ उनकी छंटनी करने को आसान बनाया गया है। ऐसे संस्थाओं में काम करने वाले 300 से अधिक मजदूरों को नियुक्त करने के लिए आचरण सहिंता की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। पूर्व में यह संख्या 100 मजदूर थी। औद्योगिक संस्थान में हड़ताल पर जाने से पहले 14 दिवस पूर्व नोटिस का प्रावधान किया गया है, 20 से अधिक मजदूरों वाले संस्थानों में श्रमिक विवाद समाधान के लिए एक या एक से अधिक शिकायत निवारण समितियों के गठन की व्यवस्था भी की गई है। सेवानिवृत्त मजदूरों के लिए एक अलग से कौशल विकास निधि बनाने की व्यवस्था भी नवाचार जैसी ही है।

असल में ये तीनों नए कानून 25 केंद्रीय श्रम कानूनों को समेकित कर सरल बनाता है। यह उद्योग और रोजगार को समुन्नत करता है। इन सुधारों से निवेश में बढ़ोतरी होगी व्यापार करने में आसानी होगी और कार्य स्थितियां आधुनिकीकरण की ओर उन्मुख होंगी। खासबात यह है कि राज्यों को श्रम अधिकारों के उल्लंघन में कानूनी छूट देने के लिए एक स्वतंत्र अधिकार दिया गया है। चूंकि श्रम संविधान की समवर्ती सूची में है इसलिए राज्यों को उनकी इच्छनुसार बदलाव की भी पूरी छूट दी गई है।
यह नए कानून भारतीय श्रम क्षेत्र में एक नई सामाजिक सुरक्षा क्रांति के वाहक बन सकते है क्योंकि गैर कृषि क्षेत्र में 82 फीसदी मजदूर नियमित वेतन सबंधी लिखित अनुबंध नही रखते है और 50 फीसदी किसी भी तरह के सामाजिक सुरक्षा कवर में नही आते है। वस्तुतः भारतीय श्रम क्षेत्र में सुधार की मांग वर्षो से प्रतीक्षारत थी ये मांग न केवल औद्योगिक वरन मजदूर संगठनों की भी अनवरत थी। भारत में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भी इन सुधारों को अहम आवश्यकता माना जाता रहा है। श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने दावा किया है कि देश के 50 करोड असंगठित मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की कानूनी गारंटी देगा। नए श्रम कानूनों से देश के संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के श्रमिकों को कई प्रकार की नई सुविधाएं प्राप्त हो रही है। जैसे सभी मजदूरों को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा और वेतन भुगतान डिजिटल माध्यम से करना होगा। साल में एक बार सभी मजदूरों का हैल्थ चैकअप भी अनिवार्य रूप से कराना होगा। नए कानून में कम्पनियों को हक दिया गया है वे अधिकतर मजदूरों को अनुबंध पर रख सकते है और इस अनुबंध को कितने भी समय तक बढ़ा सकते है। साथ ही जिन लोगों को निर्धारित अवधि में सेवा पर रखा जायेगा उन्हें उतनी ही अवधि की ग्रेच्युटी पाने की पात्रता होगी। इसके लिए पांच साल की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। जाहिर है अनुबंध आधार पर काम करने वाले मजदूरों के वेतन के साथ साथ अब ग्रेच्युटी का लाभ भी मिलेगा। हालांकि न्यूनतम मजदूरी को लेकर तमाम श्रमिक संगठन सरकार के विरोध में है क्योंकि यह 178 रुपये रोज की गारंटी देता है जो मौजूदा दौर में न्यायोचित नही है। बावजुद नये कानून भारतीय औद्योगिक एवं श्रम जगत के लिए एक नई जमीन तो निर्मित करते ही है। समयानुसार इसमें बदलाव की संभावनाएं भी मौजूद रहेगी। जिस कानूनी मकड़जाल से निवेशक औऱ औद्योगिक घराने डरते रहे है कम से कम उस ईकोसिस्टम से तो भारतीय इकॉनमी को मुक्ति मिल रही है। उम्मीद की जाना चाहिये कि नए श्रम क़ानूनों से देश के आर्थिक विकास में मील के पत्थर साबित होंगे। भारत मे अब अधिक से अधिक श्रम प्रधान उद्योगों की स्थापना होगी, आधारिक सरंचना के निर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा एवं रोजगार के अधिक से अधिक अवसरों का निर्माण हो सकेगा। श्रम प्रधान उधोगों की स्थापना के बाद पूरे विश्व में हम औद्योगिक इकाइयों को आमंत्रित कर सकेंगे। निवेशक भारत आकर वस्तुओं का उत्पादन करेंगे एवं देश निर्यात के मामले में आगे बढ़ेगा। चीन ने भी इसी तर्ज पर अपनी आर्थिक संपन्नता का साम्राज्य खड़ा किया है। मप्र., महाराष्ट्र, यूपी, ओडिशा, गोवा सहित 7 राज्यों ने केंद्र सरकार द्वारा पारित नए क़ानूनों को अपने यहां लागू भी कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुख्यमंत्रियों से बातचीत में कहा था कि भारत के पास ये अच्छा अवसर है कि हम चीन से पलायन करने वाली मल्टीनेशनल कम्पनियों को अपनी तरफ आकर्षित करें। प्रधानमंत्री के इस आह्वान के बाद ही मप्र., गुजरात ने अपने लेबर कानून को सबसे पहले बदला। यूपी, एमपी व गुजरात ने 1000 दिन के लिए उद्योगों को न केवल लेबर लॉ से छूट दिया बल्कि उनके पंजीयन औऱ अनुज्ञप्ति प्रक्रिया को भी ऑनलाइन व सरल कर दिया है। मप्र, उप्र ने 7 मई को लेबर कानून में बदलाब की घोषणा की इसके बाद इन राज्यो में केवल बिल्डिंग एन्ड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996 लागू रहेगा। उद्योगों को वर्कमैन कम्पनसेन एक्ट 1923 औऱ बंधुआ मजदूर एक्ट 1976 का पालन करना होगा। श्रम कानून में बाल मजदूरी व महिला मजदूरों से सबंधित प्रावधान लागू होंगे। इनके अलावा शेष सभी कानून अगले 1000 दिन यानी 3 साल के लिए निष्प्रभावी रहेंगे। इन कानूनों के अमल के साथ राज्य सरकारें यदि चीन से पलायन करने वाली कम्पनियों को लाने में सफल होती है तो ये अर्थव्यवस्था और रोजगार दोनों के लिए लाभकारी होगा। प्रतिमाह 15 हजार या कम वेतन वाले कर्मचारियों की वेतन में अब कटौती न हो पाना भी एक अहम पक्ष है। विशेषज्ञ बताते है कि इतिहास की सबसे बड़ी बेरोजगारी व मंदी से बचने में यह सुधार निर्णायक साबित हो सकते है। मजदूरों के शोषण की दलीलें विशेषज्ञ यह कहकर खारिज कर रहे है कि जब विशाल पैमाने पर पलायन हो रहा है और लोग बेरोजगारी से जूझ रहे है तब उद्योगों को भी मजदूरों की आवश्यकता है। उद्योगों के लिए सरल माहौल से सरकार को परिचालन से राजस्व प्राप्त होगा।

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