खामोश! प्रिंस टूर पर हैं…

“देश उबल रहा है, किसान उबल रहे हैं, अदालत उबल रही हैं मगर राजकुमार कहीं ठण्ड में दुबके बैठे हैं। उनके टुटपुंजिये प्रवक्ता ही ऊटपटांग बयान देकर भाग निकलते हैं बस। खाामोश, चूंकि प्रिंंस टूर पर है।”

राजकुमार फिर निकल लिए हैं…वैसे वे निकले हुए ही हैं और जब तब निकल ही लेते हैं। चूंकि राजकुमार के पास फिलहाल कोई काम ही नहीं है तो यहां रहकर करें भी क्या? हालांकि जब उनकी सरकार 10 साल तक थी तब भी उनके पास कोई काम था ही नहीं जिंदाबादी नारों की धूमधाम और गूंज के बीच उनके काफिले चला करते, प्रिंस अपने लगुओं भगुओं और अपने प्रिय डॉगी ‘पिडी’ के साथ गलबहियां ही करते रहते। उन्हें न कभी अपनी ढलान पर लुढ़कती इतिहास में दर्ज होती एतिहासिक पार्टी की चिन्ता रही न मौनसेवक प्रधानमंत्री की सरकार की।

राजकुमार की अपनी ही दुनिया है जिसमें किसी बाहरी का कोई दखल ही नहीं है। वे अपनी ही धुन में रहते हैं। उन्हें दीन दुनिया की कभी कोई चिंता ही नहीं रहती। जब सरकार आधी रात में नोटबंदी करती है तब उन्हें जगाया जाता है कि देश की मुद्रा बंद कर दी गई है तो खरबों की नामी बेनामी संपत्ति के मालिक उनींदे से युवराज जागते हैं और जेब फाड़कर बैंक की लाइन में भी लगे, बगैर अपने झांकी मण्डप के साथ सिर्फ 4 हजार रुपयों के लिए।

राजकुमार को कपड़े फाड़ने की पुरानी आदत है। यह उनकी झक है। वे कपड़े फाड़ते-फाड़ते कागज भी फाड़ने लग जाते हैं। उन्हें यह भी पता नहीं होता कि जिस कागज को वे फाड़ रहे हैं वो उनके ही मनोनीत प्रधानमंत्री, उनकी ही सरकार के अध्यादेश के चिथड़े उड़ा रहे हैं। राजकुमार बड़े दिलचस्प इन्सान हैं। वे संसद में चलती बहस में ऊंघते पाए जाते हैं। जब जाग जाते हैं तो ‘आंख मारने’ लग जाते हैं। हड़बड़ाकर उठते हैं और अपनी सीट से उठकर सीधे प्रधानमंत्री को झपियाने पहुंच जाते हैं। राजकुमार अपनी अकेली मां के साथ नहीं रहते हुए अकेले मीलों लम्बी कोठी में अपने प्यारे ‘पिडी’ के साथ विचरण करते हैं। मन्दसौर में किसान आंदोलन के दौरान खेत-खेत में बाइक पर पीछे लटककर पहुंच जाते हैं फिर उन्हें अगले ही दिन भूल जाते हैं।

राजकुमार कभी नींद से जागते हैं और जेएनयू के आंदोलनकारी देशद्रोहियों के बीच जा खड़े होते हैं और देश के विरोध में खड़े हो जाते हैं। उन्हें देश में हो रही थू थू से भी कोई फर्क ही नहीं पड़ता। हालांकि उन्हें तो अपनी लोकसभा सीट पर एक महिला से मिली करारी हार से भी फर्क नहीं पड़ता। हार का गम मिटाने वे हमेशा की तरह किसी नामालूम देश की गुप्त यात्रा पर निकल लेते हैं।

जैसे हाल ही में पिछले 50 दिनों से देश की राजधानी को हाइजैक कर चल रहे किसान आंदोलन में पहुंचे, एक भाषण का शगूफा छोड़ा और चल दिए अज्ञातवास पर। जब देश में सुरसुरी चली तो सुरजेवाला सामने आए कि इटली गए हैं नानी से मिलने। देश के प्रधानमंत्री पर रोज प्रायोजित सवालों की झड़ी लगाने वाले राजकुमार चाहे जब देश छोड़कर चल देते हैं- हम तो चले परदेस.. हम परदेसी हो गए गाते हुए देश को अपने हाल पर छोड़कर, किसानों को सड़कों पर छोड़कर।

शायद सबसे ज्यादा विदेश यात्राओं का रिकॉर्ड राजकुमार जी के नाम ही होगा पिछले 16 सालों में वो भी बगैर किसी काम के। जाहिर है राजकुमार जी को पर्यटन का शौक है। ये और बात है कि तफरीह में उनके दीगर शौक भी पूरे हो जाते हों। देश उबल रहा है, किसान उबल रहे हैं, अदालत उबल रही हैं मगर राजकुमार कहीं ठण्ड में दुबके बैठे हैं। उनके टुटपुंजिये प्रवक्ता ही ऊटपटांग बयान देकर भाग निकलते हैं बस। हमारा मीडिया भी यह सवाल नहीं पूछता कि भाई आपके नेता कहां हैं इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर।

खामोश, राजकुमार हमेशा की तरह ठण्ड भगाने टूर पर गए हुए हैं।

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