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कभी हम्बा-हम्बा… कभी छी-छी… ममता

कभी हम्बा-हम्बा… कभी छी-छी… ममता

by मनोज वर्मा
in मार्च २०२१, राजनीति
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एक दौर था जब ममता बनर्जी बोलती थीं तो पश्चिम बंगाल के लोग गंभीरता से उनकी बातों को सुनते थे पर अब ममता के संबोधन पर हंसी – मजाक करते हैं। …तो क्या ममता के व्यंग्य भरे सुर राज्य में भाजपा की बढ़ती ताकत का परिणाम है या हार का भय? कारण अपनी रैलियों में ममता बनर्जी कभी ‘हम्बा-हम्बा’ करती नजर आती हैं तो कभी ‘छी-छी..’ करतीं।

पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने बयानों और हरकतों के चलते इन दिनों अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जहां भी अपनी तृणमूल कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक रैली या कार्यक्रम करती हैं तो लोग उनसे यह सुनना चाहते हैं, जानना चाहते हैं कि उनकी सरकार ने राज्य के विकास के लिए क्या काम किया। किसानों की बात हो या बात मजदूरों की; बात बेरोजगारी की हो या रोजी रोटी की। सवाल राज्य में राजनीतिक हिंसा का हो या तृणमूल कांग्रेस में मची भगदड़ का। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ऐसे मुदृों पर या तो बोलती नहीं और बोलती हैं तो उनके मुख से हम्बा-हम्बा, रम्बा-रम्बा, कम्बा-कम्बा, डुम्बा -डुम्बा, बम्बा-बम्बा जैसी अजीब-अजीब किस्म की आवाजें निकालने लगती हैं।

बीते दिनों पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर जा रहे तृणमूल नेताओं और कार्यकर्ताओं को लेकर कहा कि ‘अब वे लोग काफी हल्ला मचा रहे हैं- हम्बा-हम्बा, रम्बा-रम्बा, कम्बा-कम्बा, डुम्बा-डुम्बा, बम्बा-बम्बा करते हैं। वे लोग जितनी जल्दी पार्टी छोड़ देंगे, उतना ही बेहतर है।’असल में हम्बा-हम्बा से मतलब उन आवाजों से है जो गाय निकालती हैं। इस रैली के सात सेकेंड की इस वीडियो क्लिप जिसमें ममता ‘हम्बा-हम्बा, रम्बा-रम्बा, कम्बा-कम्बा, डुम्बा-डुम्बा, बुम्बा-बुम्बा, बम्बा-बम्बा’ कहती नजर आती हैं उसे लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह के मीम्स शेयर किए जाने लगे। साथ ही यह सवाल भी उठने लगा कि एक के बाद एक कई मंत्रियों, तृणमूल विधायकों, सांसदों और प्रमुख नेताओं के तृणमूल कांग्रेस छोड़ने के ऐलान से क्या ममता बनर्जी राजनीतिक संतुलन खो रही हैं, जिसके चलते भांति-भांति की आवाज निकाल रही हैं?

यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है; क्योंकि वामदलों को सत्ता से हटाकर राज्य में अपनी सरकार बनाने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ‘हम्बा-हम्बा, रम्बा-रम्बा, कम्बा-कम्बा, डुम्बा-डुम्बा, बुम्बा-बुम्बा, बम्बा-बम्बा’ करते किसी ने नहीं सुना। एक दौर था जब ममता बनर्जी बोलती थीं तो पश्चिम बंगाल के लोग गंभीरता से उनकी बातों को सुनते थे पर अब ममता के संबोधन पर हंसी – मजाक करते हैं। तो क्या ममता के व्यंग्य भरे सुर राज्य में भाजपा की बढ़ती ताकत का परिणाम है या हार का भय? जैसा कि पश्चिम बंगाल से भाजपा सांसद और अभिनेत्री रूपा गांगुली कहती हैं कि ‘यह हम्बा- हम्बा, रम्बा-रम्बा क्या है? ऐसी बातों के कारण ही ममता बनर्जी की बातों का पश्चिचम बंगाल पर अब कोई खास असर नहीं रहा। दुख की बात है कि मुख्यमंत्री होते हुए भी उनकी बात करने के ढंग पर हंसी-मज़ाक होता है। उनके आखिरी कुछ दिन बचे हैं ऐसे में वो खुद को हंसी का पात्र न बनाएं तो बेहतर है।’ लेकिन हद तो तब हो गई जब एक मीडिया संस्थान के कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने अपनी फिटनेस का राज खोला तो पता चला कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बार राज्य का बजट ट्रेडमिल पर चलते-चलते ही बना डाला। इस पूरे संवाद ने ममता बनर्जी को हंसी का पात्र बना डाला।

दरअसल कार्यक्रम में एंकर ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कहा, सुना है कि आप रोजाना 12 किलोमीटर की सैर करती हैं। हर रोज एक्सरसाइज करती हैं। इस पर ममता बनर्जी ने कहा कि ‘हम 7 से 9 बजे तक ट्रेडमिल पर चलते हैं। ट्रेडमिल पर ही हम काम भी करते हैं। वहीं पेपर भी पढ़ लेते हैं। उधर फोन पर भी बात हो जाती है, कोई मैसेज भी कर लेते हैं। कुछ सोचना है या पढ़ना है तो वो भी कर लेते हैं। हमने ट्रेडमिल में चलते-चलते बजट बनाया था वहां आइडिया आता है।’ जब एंकर ने ममता बनर्जी से पूछा कि आपने ट्रेडमिल पर बजट कैसे बनाया, तो ममता बनर्जी ने कहा, ‘हम आपको सब बता देंगे, तो कोई पूछेगा नहीं हमको। हमें आइडिया आता है, जब हम चलते हैं तो हमारा दिमाग भी चलता है।’ यह हर ऐक्शन का रिएक्शन की तरह है। सवाल उठता है कि ट्रेडमिल जिसका उपयोग तेज गति के साथ चलते हुए फिटनेस के लिए किया जाता है क्या उस ट्रेडमिल पर बजट भी बनाया जा सकता है? जो भी हो पर ममता की इस कार्यशैली और हरकतों से हर कोई हैरान है।

असल में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने नारे, भाषण गढ़ने के लिए जानी जाती हैं। फिर चाहे वो चुनाव हो या किसी दल-राजनेता और कानून की आलोचना करनी हो। कुछ समय पहले उनका एक ऐसा ही एक नारा’ सीएए सीएए छी-छी’ काफी वायरल हुआ था। इसी प्रकार चड्डा, फड्डा, भड्डा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाली ममता बनर्जी की, उनकी भाषा के लिए आलोचना भी हो रही है। आखिर अपनी बोली और शैली से ममता बनर्जी ने पश्चिच बंगाल की राजनीति का स्तर गिरा दिया है। अपनी सरकार के विकास के काम के बजाए ममता बनर्जी भांति-भांति की आवाजें निकाल कर लोगों को फुसलाने की कोशिश कर रही हैं।

इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ‘विफल प्रशासक’ बताते हुए कहा कि “राज्य में आगामी विधान सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के ‘विकास मॉडल’ और तृणमूल कांग्रेस के ‘विनाशकारी मॉडल’ के बीच मुकाबला होगा। भाजपा की ‘परिवर्तन यात्रा’ एक मुख्यमंत्री, विधायक या मंत्री बदलने के लिए नहीं, बल्कि घुसपैठ खत्म करने और पश्चिम बंगाल की स्थिति बदलने के लिए है। इस यात्रा का उद्देश्य ‘बुआ-भतीजा’ द्वारा संरक्षित भ्रष्टाचार को समाप्त करना भी है।” गौरतलब है कि भाजपा ममता बनर्जी और उनके भतीजे एवं डायमंड हार्बर से लोकसभा सदस्य अभिषेक पर ‘भ्रष्टाचार को संस्थागत करने’ का आरोप लगाती रही है। अमित शाह ने कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्या के लिए जिम्मेदारों को सलाखों के पीछे डाला जाएगा। भाजपा सत्तारूढ़ तृणमूल के गुंडों का मुकाबला करने के लिए तैयार है। ममता बनर्जी ‘जय श्री राम’ के नारे पर गुस्सा करती हैं, लेकिन विधान सभा चुनाव खत्म होने तक वह खुद ‘जय श्री राम’ कहना शुरू कर देंगी। अगर भारत में ‘जय श्री राम’ का नारा नहीं लगाया जाएगा, तो क्या पाकिस्तान में लगाया जाएगा? ममता बनर्जी इस पर नाराज इसलिए होती हैं, क्योंकि वो वोट बैंक की राजनीति के लिए एक खास वर्ग के लोगों को खुश करना चाहती हैं। ममता बनर्जी को केवल अपने भतीजे के कल्याण की चिंता है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह एक जिंदा लाश की तरह हैं। राजनीति में अपने संघर्ष की ओर इशारा करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि पांव से माथे तक ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां उन्होंने चोट नहीं खाई है। ममता ने यह भी कहा कि वह किसी राजनीतिक विरासत की वजह से यहां तक नहीं पहुंची हैं। मैं जिंदा लाश की तरह आज भी राजनीति करती हूं।

पिछले दिनों फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल के राजनीतिक दलों के लिए भूचाल ला दिया था। खासकर ममता बनर्जी के दल मेंं अब्बास सिद्दीकी और ओवैसी की इस मुलाकात ने तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बड़ा झटका दिया था। इसकी वजह है, फुरफुरा शरीफ दरगाह का मुस्लिम वोटों पर अच्छा-खासा प्रभाव। ममता बनर्जी के करीबियों में शामिल रहे पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने पहले नई पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट बनाई। अब वह राज्य में कांग्रेस-वाम मोर्चा गठबंधन के पाले में जाकर खड़े हो गए हैं। भाजपा से सीधी टक्कर ले रही ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलों में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी नई मुसीबत बन रहे हैं।

टीएमसी का भ्रष्टाचार और हिंसा  का मॉडल- दिनेश त्रिवेदी

नाटकीय ढंग से राज्यसभा के पटल पर इस्तीफे की घोषणा करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने बुधवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी पर सीधा हमला बोला और कहा कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी का ‘भ्रष्टाचार और हिंसा मॉडल’ अब काम नहीं करेगा। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा शुरू की गई बाहरी-स्थानीय बहस को बंगाल के उदारवादी लोकाचार का विरोधी करार दिया। पूर्व रेल मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए उनकी सराहना की और कहा कि लोगों ने उनके नेतृत्व में विश्वास किया है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा और इस बारे में कुछ भी कर पाने में अपनी असमर्थता के कारण उन्हें घुटन महसूस हो रही थी।

दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि बंगाल में, हम नायकों और उनके आदर्शों के बारे में बात करते हैं लेकिन हम जो देखते हैं वह विपरीत है। हिंसा और भ्रष्टाचार का मॉडल (तृणमूल का) बंगाल के लिहाज से सही नहीं है। यह मॉडल बंगाल को अंधेरे दिनों में ले जाएगा। राज्य में इतनी क्षमता है हम इसे बेकार होते नहीं देख सकते।

उन्होंने कहा कि राज्य में जो कुछ हो रहा था, एक जनप्रतिनिधि के रूप में वह उसकी अनदेखी नहीं कर सकते थे। त्रिवेदी ने कहा कि उन्हें शर्म महसूस हुई जब लोगों ने उनसे राज्य में हिंसा की संस्कृति के बारे में सवाल किया और इसने उनकी अंतरात्मा को ‘झकझोर’ दिया और उन्होंने दृढ़ रुख अख्तियार कर लिया। उन्होंने कहा कि इसके बदले मुझे राज्य के लोगों के लिए अपने तरीके से काम करना चाहिए, मगर मेरी पार्टी मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं दे रही है। अब समय आ गया है कि हम तृणमूल के मॉडल और भ्रष्टाचार तथा हिंसा की संस्कृति को समाप्त करें।

पश्चिम बंगाल में करीब 31 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। इन मतदाताओं पर फुरफुरा शरीफ दरगाह का हमेशा से ही खासा प्रभाव माना जाता रहा है। फुरफुरा शरीफ दरगाह पश्चिम बंगाल की करीब सौ सीटों पर एक अहम भूमिका निभाती है। भाजपा पहले ही ममता बनर्जी के मतुआ समुदाय के वोटबैंक पर हाथ साफ कर चुकी है। इस स्थिति में अब्बास सिद्दीकी का कांग्रेस-वाम गठबंधन में जाना ममता बनर्जी के वोटबैंक में बड़ी सेंध माना जा सकता है। पीरजादा अब्बास सिद्दीकी दक्षिण बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकते हैं। भाजपा ने दक्षिण बंगाल में तेजी से अपने पांव पसारे हैं और शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद इस क्षेत्र के कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा उत्तर बंगाल, जंगलमहल और पहाड़ी इलाकों में टीएमसी को कड़ी टक्कर देने को तैयार है। इस स्थिति में अगर टीएमसी के मुस्लिम वोटबैंक में थोड़ा सा भी भटकाव होता है, तो ममता सरकार को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

यहां यह भी समझना जरूरी है कि 2016 के विधान सभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की 294 विधान सभा सीटों में टीएमसी को 211, लेफ्ट को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी; लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की। टीएमसी को 22 सीटें और कांग्रेस को 2 सीटें ही मिलीं। इस दौरान भाजपा का वोट शेयर 40 फीसदी के करीब पहुंच गया। इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर 43 फीसदी के करीब था। कांग्रेस और वाम दलों का वोट शेयर गिरा था। यह वोट शेयर इशारा करता है कि भाजपा ने खुद को पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर स्थापित कर लिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बढ़ते जनाधार से परेशान तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में अब विधान सभा चुनाव से ठीक पहले अपनी पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थामने की होड़ लगी है, इसलिए भी ममता बनर्जी के मुख से भांति-भांति की आवाजें निकल रही हैं। पर पश्चिम बंगाल की जनता ममता के संवाद संबोधन पर बस हंस रही है।

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