निकिता हत्या कांड: क्या उम्र कैद से एक परिवार को उसकी बेटी मिल जायेगी?


एक बेटी की मौत का दर्द क्या सज़ा से खत्म की जा सकती है? शायद नहीं, लेकिन देश की अदालतों के पास इसके अलावा कोई और रास्ता भी नहीं है। एक मां-बाप ने अपनी फूल सी बेटी को खो दिया, एक मां की आंखों के सामने ही उसकी बेटी को गोली मार दी गयी। कुछ रसूखदार लोगों ने एक मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा लेकिन जब वह नाकाम रहे तो उन्होने उस फूल सी बेटी को गोली मार दी। सड़कों पर हंगामा हुआ, मीडिया चैनलों पर डिबेट हुई और अंत में अदालत ने आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुना दी। अदालत ने बहुत ही कम समय में सजा सुनाई, लोगों ने सरकार और अदालत की तारीफ की लेकिन निकिता तोमर का परिवार के दिल में अभी भी कहीं ना कहीं कुछ कसर बाकी रह गयी है।

हरियाणा की निकिता तोमर को इंसाफ तो मिल गया लेकिन उसका परिवार अभी भी इस फैसले से खुश नहीं है। पीड़ित का परिवार अभी भी आरोपियों को फांसी के फंदे पर लटकता देखना चाहता है क्योंकि पीड़ित परिवार आज भी अपनी बेटी को याद कर गुस्से से लाल हो जाता है। कोर्ट के लिए तो यह एक केस था जिसे कोर्ट ने अपने कानूनी चश्में से खत्म भी कर दिया लेकिन जिसने अपनी बेटी खोई है वह इस केस को कैसे खत्म करेगा। उसे तो हर पल अपनी बेटी याद आयेगी और उसकी भरपाई तो इस जन्म में परिवार के लिए नामुमकिन ही है।

फरीदाबाद के निकिता हत्याकांड पर नजर डालें तो यह कोई ऐसा पहला केस नहीं है जहां एक अमीर और बदमाश लड़के की बद्तमीजी की वजह से एक लड़की, एक बेटी को अपनी जान गंवानी पड़ी, एक हंसता खेलता परिवार तबाह हो गया। ऐसे तमाम केस पूरे देश में इससे पहले भी हुए है और शायद आगे भी होते रहेंगे क्योंकि हमारी सरकार और प्रशासन ने पुराने केसों से कुछ सीखा नही है। जब भी किसी किसी लड़के का दिल किसी लड़की पर आ जाता है तो वह उससे शादी करने या दोस्ती करने का दबाव डालता है और अगल लड़की इंकार करती है तो उसके ऊपर तेजाब फेंक दिया जाता है, उसे रास्ते से उठाने की कोशिश की जाती है या फिर उसे गोली मार दी जाती है। मतलब वह लड़की समाज में जीने का अधिकार खो देती है जिस पर किसी अमीर और बिगलैड़ लड़के का दिल आ जाता है। ऐसे केस में या तो लड़की को उस लड़के का होना होगा या फिर दुनिया से विदा होना होगा।

निकिता हत्याकांड में भी तौसीफ और रेहान ने यही किया। तौसीफ ने लगातार निकिता पर शादी और दोस्ती का दबाव डाला लेकिन जब वह तैयार नहीं हुई तो उसे गोली मार दी गयी। क्या तौसीफ को पुलिस या प्रशासन का डर नहीं था? जो उसने खुलेआम सड़क पर एक लड़की को गोली मार दी। तौसीफ जैसे ना जाने कितने लोग समाज में खुले तौर पर घूम रहे है जिन्हे ना पुलिस का डर है और ना ही प्रशासन का डर, क्योंकि इन्हे परिवार से ऐसे संस्कार ही मिलते है जहां इन्हे किसी की इज्जत करना नहीं सिखाया जाता है। कहते है कि परिवार ही बच्चों की पहली पाठशाला होती है और यहां से ही इन्हे संस्कार दिया जाता है कि उन्हें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? अपने घर की महिलाओं के साथ साथ दूसरी महिलाओं और लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। जिस परिवार के बच्चों को ऐसी तामील नहीं मिलती वह आगे चलकर हैवानियत पर उतर जाते है क्योंकि उनकी नजरों में यह गलत नहीं होता।

निकिता जैसी हजारों लड़किया अब तक ऐसे बद्तमीजों का शिकार हो चुकी है और ना जाने अभी और कितनों के होना होगा। हम प्रशासन से यही मांग करते है कि ऐसे लोगों पर पहले से ही नजर रखी जाए और सरकार को संविधान में संशोधन कर ऐसे लोगों के लिए कड़ी से कड़ी सजा तैयार की जाए जिससे ऐसा कर्म करने से पहले यह बार बार सोंचे। इस संसार में सभी को एक ही जीवन मिलता है। मां-बाप को एक ही औलाद मिलती है और अगर वह किसी की गलती से चली जाए तो उसका दर्द पूरी उम्र खत्म नहीं होगा।

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