एच. जे. दोशी हॉस्पिटल का कोरोना काल में योगदान

मेडिकल डायरेक्टर डॉ. वैभव देवगिरकर के संग अधिकतर ऐसे कर्मचारी थे जो घड़ी की ओर देखते ही नहीं थे ताकि आपदा की यह घड़ी टल जाये। अपने निर्धारित कार्य को करते हुए भी स्टाफ को जो भी कार्य दिया गया या कहा गया उन्होंने उसे पुरे मनोयोग से पूरा किया।

जब चीन से निकला चायनीज वायरस कोरोना मुंबई सहित पुरे भारत में हाहाकार मचा रहा था और पूरी दुनिया में फैलकर लोगों को काल के गाल में समा रहा था तब मुबई के एच.जे.दोशी घाटकोपर हिन्दू महासभा हॉस्पिटल ने देवदूत बनकर कोरोना जैसे अदृश्य यमदूत से मुकाबला किया और हजारो- हजारों कोरोना संक्रमित मरीजों को जीवन दान दिया। वैसे कोरोना काल में अनगिनत सामाजिक संगठनों एवं लोगों ने सेवाकार्य किये। इसी कड़ी में मुंबई के एच.जे.दोशी घाटकोपर हिन्दू महासभा हॉस्पिटल ने भी अग्रणी भूमिका निभाई। जिसकी सराहना महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने भी की और हिन्दू महासभा हॉस्पिटल के ट्रस्टी अध्यक्ष मगनलाल दोशी जी को सम्मानपत्र प्रदान किया, जिसे उनकी ओर से मेडिकल डायरेक्टर डॉ. वैभव देवगिरकर ने राजभवन में आयोजित गरिमापूर्ण समारोह में विशिष्ट जनों की उपस्थिति में ग्रहण किया। ट्रस्टी उपाध्यक्ष श्रीमती हेमल बेन उदानी भी इस समारोह में उपस्थित थी। इसके 10 दिन बाद ही डॉ, रजनीकांत मिश्र को भी राज्यपाल जी ने विशेष स्वास्थ्य सेवा हेतु सम्मान पत्र से समान्नित किया।

एच. जे.दोशी हिन्दू महासभा हॉस्पिटल का परिचय एवं विशेषता

1968 में स्थापित एच.जे.दोशी घाटकोपर हिन्दू महासभा हॉस्पिटल, मुंबई महानगर के घाटकोपर पश्चिम में स्थित है। ट्रस्टी अध्यक्ष मगनलाल दोशी जी के मार्गदर्शन में युवा व कर्मठ मेडिकल डायरेक्टर डॉ.वैभव देवगिरकर के नेतृत्व में यह हॉस्पिटल नित नए कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा है। जिन्होंने समस्त कर्मचारियों में उर्जा और उत्साह का गजब संचार कर रखा है। आम जनमानस के लिए श्रेष्ठ चिक्तित्सा सुविधा देने के लिए हॉस्पिटल संकल्पित एवं प्रतिबद्ध है। इस हॉस्पिटल की यह विशेषता है कि यहां पर आकर प्रत्येक मरीज एवं उनके परिजनों को पारिवारिक वातावरण का एहसास होता है। साफ सफाई का इतना खयल रखा जाता है कि कहीं भी दवाइयों की गंध भी नहीं आती। पीड़ादायक और तनाव के क्षणों में पहुंचे लोग हॉस्पिटल कर्मचारियों के स्नेहिल आत्मीय व्यवहार से प्रसन्न हो जाते है तथा थोड़े ही समय में स्वयं को सहज व सुरक्षित महसूस करने लगते है।

कोरोना से संघर्ष की कहानी, डॉक्टरों की जुबानी

एच.जे. देवगिरकर दोशी घाटकोपर हिन्दू महासभा हॉस्पिटल के चिकित्सा निदेशक डॉ. वैभव देवगिरकर ने कहा कि सबसे अधिक घनी बस्तियों वाला शहर होने के कारण मुंबई सर्वाधिक कोरोना के चपेट में आया। तेजी से यहां कोरोना के संक्रमित मरीज पाए जाने लगे। हम सभी के लिए यह एक नई चुनौती थी। सरकारी गाइडलाइंस में लगातार फेरबदल हो रहा था। प्रशासनिक निवेदन स्वरूप हमने 18 अप्रैल 2020 को कोरोना के प्रथम संक्रमित मरीज को भर्ती किया। वह हमारा शुरुवाती दौर था, मौत की आशंका को लेकर माहौल बेहद डरावना था। हॉस्पिटल के कर्मचारी भी इस डर से अछूते नहीं थे इसलिए बहुत कम लोग कोविड वार्ड में काम करने को तैयार हुए।

पूर्व तैयारी, जो आगे काम आई

डॉ. वैभव देवगिरकर ने आगे कहा कि सबसे पहले मैंने मरीजों के भर्ती होने से लेकर डिस्चार्ज होने तक की एक प्रक्रिया तय की और सभी को एहतियातन सावधानियां बरतने की सलाह दी। जिसका पालन सभी ने कड़ाई से किया। अच्छी बात यह रही कि मैंने पहले ही कोरोना संक्रमण के खतरे को भांप कर जुलाई 2019 में ही इन्फेक्शन कंट्रोल विभाग प्रारंभ कर, ऑफिसर के रूप में डॉ. ध्रुव ममतोरा की नियुक्ति कर दी थी। जिन्होंने हॉस्पिटल स्टाफ को पीपीई किट सहित तमाम आवश्यक जानकारी के साथ प्रेक्टिकल ट्रेनिंग भी दी। इसके अलावा अन्य ट्रेनिंग प्रोग्राम भी जारी रखे, जिससे स्टाफ के ज्ञान एवं आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती रही, जो आगे चलकर कोरोना से युद्ध में सहायक सिद्ध हुआ।

बीएमसी ने भी की डॉ. वैभव देवगिरकर के उल्लेखनीय कार्यों की सराहना

मेडिकल डायरेक्टर डॉ. वैभव देवगिरकर ने कोरोना काल में अपने अद्भुत कौशल क्षमता का परिचय दिया। उन्होंने आगे बढ़कर एडमिशन अर्थात बेड अलोटमेंट का सबसे दुष्कर कार्य स्वयं करने का निर्णय लिया। बेड की कमी के कारण चारों ओर अफरातफरी का माहौल था। लोग फोन पर बेड पाने की याचना करते हुए अक्षरशः रो दिया करते थे। उनकी भावनाओं की कद्र करते हुए उन्होंने अधिकतर लोगों को किसी तरह बेड की व्यवस्था कर राहत प्रदान किया।  करीब 3000 आई.पी.डी. एवं 15000 ओ.पी.डी. मरीजों का इलाज किया गया। जिन्हें अस्पताल का बिल भरने में परेशानी हुई उनके हालात को देखते हुए मैनेजमेंट द्वारा पर्याप्त कन्सेशन भी दिया गया। जिससे हॉस्पिटल का नाम चारों तरफ रोशन होने लगा। धीरे-धीरे हॉस्पिटल की प्रसिद्धी न केवल जनता में अपितु प्रशासनिक स्तर पर भी छा गई। ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा कि प्रशंसक शिकायत प्रेषित करने वाली ईमेल आईडी पर हॉस्पिटल के तारीफ में मेल करने लगे। जिससे प्रभावित होकर बीएमसी के वरिष्ठ आला अधिकारीयों ने डॉ. वैभव देवगिरकर जी को बधाई दी और उनके सराहनीय कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा भी की।

समस्या, परेशानी और समाधान

एक ओर हॉस्पिटल के सारे डोक्टर और कर्मचारी कोविड मरीजों के इलाज में दिन रात जुटे हुए थे तो वही दूसरी ओर अनेक प्रकार की समस्याएं एवं परेशानियां भी सामने आ रही थी। जिसका सामना भी बेहतर तरीके से किया गया। जैसे कि बेड कम पड़ने लगे तो स्टाफ को रहने के लिए वार्ड-डिपार्टमेंट से हटा कर स्टेशन के सामने स्थित संदीप होटल व न्यू वेलकम होटल में शिफ्ट किया गया। इसके बाद भी जब हॉस्पिटल के सभी बेड भर गए तो प्रशासन से अतिरिक्त बेड की व्यवस्था हेतु सूचना दी गई। जिसका प्रतिसाद देते हुए विधायक पराग शाह ने जैन हॉस्पिटल, कामालेन, घाटकोपर (प.) में 18 मई 2020 को ‘सीसीसी टू’ शुरू किया गया। जिसके चौथे, पांचवे, छठवें मंजिल पर कोविड मरीजों को रहने और सातवें मंजिल पर लगभग 50 हॉस्पिटल स्टाफ को ठहरने की व्यवस्था की गई। जिनमें एडमिन, नर्स, सिक्योरिटी, आर.एम.ओ, फार्मेसी स्टाफ का समावेश था। गुरुकुल कोलेज में हॉउस कीपिंग स्टाफ को ठहराने का प्रबंध किया गया। सीसीसी टू की व्यवस्था की जिम्मेदारी डॉ. श्रुति हलदनकर, डॉ. वेद तिवारी, आनंद सावते ( वैद्यकीय समाजसेवक) को दी गई थी, जिन्होंने रात-दिन एक कर के अपने दायित्वों का निर्वहन किया। इसके अलावा मरीजों एवं उनके परिजनों के बढ़ती आवाजाही के चलते दोनों लिफ्ट अक्सर बंद पड़ने लगी और लिफ्ट कंपनियों में कार्यरत कर्मचारी कोविड हॉस्पिटल में आने के लिए बिलकुल ही तैयार नहीं हो रहे थे। बहुत अनुनय-विनय के बाद वे आने को राजी हुए। आगे भी लिफ्ट के गेट टूटे, कई बार उसकी मरम्मत करनी पड़ी। एक्सरे, आई.सी.यु. के उपकरणों के रिपेयर हेतु सर्विस इंजिनियर को बुलाने के लिए वहां की व्यवस्था भी करनी पड़ी।

दर्द होता रहा लेकिन काम करते रहे

कोविड मरीजों को ऑक्सीजन की अत्यधिक आवश्यकता पड़ रही थी इसलिए आक्सीजन की बढ़ती मांग के अनुरूप कंपनियों को ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में कठिनाई आ रही थी। कभी-कभी ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म होने तक की नौबत आ जाती थी। तब ऑक्सीजन सिलिंडर की गाड़ी आने तक सभी की सांसे थम सी जाती थी। खासकर डॉ. रजनीकांत मिश्र की क्योंकि उन्हें ही फैसिलिटी मैनेजमेंट सर्विसेस का सम्पूर्ण दारोमदार सौंपा गया था और उन्होंने मेडिकल डायरेक्टर के विश्वास पर खरा उतरकर अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी पालन किया। वे अक्सर फोन पर ऑक्सीजन वितरण कम्पनियों से बात करते रहते थे। उनकी संवाद और समन्वय शैली गजब की है। किसी भी तरह से समय पर वह व्यवस्था करवा ही देते थे। एक बार तो काम की जल्दबाजी में वह फिसलकर गिर पड़े और उन्हें चोट आ गई। जिससे उनके पैर में मोच आ गई और पसली में फ्रैक्चर हो गया। इसकी वेदना डेढ़ माह तक उन्हें सहनी पड़ी किन्तु उन्होंने मेडिकल डायरेक्ट को यह बात इसलिए नहीं बताई कि वह उन्हें आराम करने के लिए घर न भेज दे।

हॉस्पिटल कर्मचारियों की भूमिका

कोविड की चिकित्सा में रेडमिसिविर और टोसिलोजुमेब इंजेक्शन बेहद लाभदायक थे लेकिन यह आसानी से उपलब्ध नही हो पा रहे थे। ऐसे में हॉस्पिटल के जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स के मैनेजर दीपक पथाड़े ने अथक परिश्रम कर कोविड मरीजों के लिए आवश्यक इंजेक्शन का समुचित प्रबंध किया।  चूँकि कोविड संक्रमण के खतरे को देखते हुए परिवार का कोई सदस्य मिलने भी नहीं आता था अत: मरीजों का पूरा ध्यान स्टाफ द्वारा रखा गया। इस दौरान कई बार कर्मचारियों के आंखों में भी आत्मीयता से भरे आंसू आये तो कभी मुस्कुराहटों के खुबसूरत क्षण भी आते जाते रहे। उनके जन्मदिन धूमधामएवं हर्षोल्लास से मनाये गये। मरीजों के मनोरंजन के लिए हॉस्पिटल स्टाफ के लोगों ने खेल खेला, उनके साथ नृत्य किया और माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए अनेकों प्रयास किये। यहां तक की मरीजों के घर वालों एवं देश-विदेश में उनके रिश्तेदारों से वीडियों कॉल द्वारा बात भी करवाई। इसकी जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है। हालांकि मेडिकल स्टाफ से कुल 50 लोग कोरोना संक्रमण का शिकार हुए परन्तु अच्छी बात यह रही कि जल्द ही वे सभी स्वस्थ हो गये। करीब 30 स्टाफ ऐसे थे जो 7 माह के बाद यादों की मिठास लिए दीपावली पर होस्टल से अपने घर लौटने लगे तो बिछड़ते समय सभी के आंखों में आंसू आ गये। हॉस्पिटल की दीवारों में फीकापन सा आ गया था। उसमें रौनक लाने के लिए रंग रोगन किया गया, जिससे दीवारे फिर से बोल उठी।

घड़ी की ओर देखते ही नहीं थे ताकि आपदा की यह घड़ी टल जाये

प्रशासन को सूचना, डेटा भेजने का कार्य, समस्त गाइडलाइन के बारे में अपडेट रहना, प्रशासनिक निरीक्षक के वक्त समुचित कागजात तैयार रखना और निरीक्षक से समन्वय का कार्य ए.एम.ओ. डॉ. रविंद्र काम्बले ने किया। मेडिकल डायरेक्टर के संग अधिकतर ऐसे कर्मचारी थे जो घड़ी की ओर देखते ही नहीं थे ताकि आपदा की यह घड़ी टल जाये। अपने निर्धारित कार्य को करते हुए भी स्टाफ को जो भी कार्य दिया गया या कहा गया उन्होंने उसे पुरे मनोयोग से पूरा किया।

कर्मचारियों के वतन में की गई 25 % बढ़ोत्तरी

कोरोना संक्रमण काल और लॉक डाउन में जहां कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को निकाला, कटनी-छटनी की, वेतन में मनमाने कटौती की गई। वहीं दूसरी ओर हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने कर्मचारियों के वेतन में 25 % बढ़ोत्तरी कर दी। जिससे सभी कर्मचारी बहुत खुश हुए और इसका सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि जो लोग हॉस्पिटल में नहीं आ रहे थे वह भी आने लगे। हॉस्पिटल का पूरा माहौल सकारात्मक उर्जा से भर गया। सुपरवाईजर के तौर पर जयगणेश ने बेहतरीन कार्य किया। इसके अलावा हॉस्पिटल से जुड़े सभी डॉक्टर, एवं अन्य पदाधिकारी एवं कर्मचारियों ने अपनी महती भूमिका निभाई।

वैक्सीनेशन में भी प्रथम क्रमांक पर है हॉस्पिटल

यह भी गौरव और सम्मान की बात है कि 55 प्राइवेट हॉस्पिटल में से उक्त हॉस्पिटल वैक्सीनेशन सेंटर के रूप में पुरे मुंबई में प्रथम क्रमांक पर चल रहा है। मेडिकल डायरेक्टर डॉ. वैभव देवगिरकर के नेतृत्व में वैक्सीनेशन टीम के सहयोग से डॉ. शबनम कारानी इस कार्य को देख रही है। स्वास्थ्य क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण मेडिकल डायरेक्टर डॉ.वैभव देवगिरकर एवं उनके सहयोगियों को अनेक संस्थाओं ने अपने प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया है। आये दिन अपने उल्लेखनीय कार्यों के चलते वह मीडिया के सुर्ख़ियों में भी छाए हुए है। एक बार फिर से मुंबई में कोरोना का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कोरोना संक्रमित मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए पूरा हॉस्पिटल स्टाफ पुन: सतर्क और सक्रिय हो गया है तथा वह अपने कर्तव्य बोध से पूरी तरह से वाकिफ है। ट्रस्टी महानुभावों की संकल्पना है कि भविष्य में पुरे हॉस्पिटल को नया स्वरूप प्रदान कर अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया जाये। जिसमें आधुनिक सभी सुविधाएं मौजूद हो ताकि स्वास्थ्य सेवा का व्रत निरंतर अविरत चलता रहे और लोगों को इसक लाभ मिलता रहे। मेडिकल स्टाफ ने भी विश्वास जताया है कि उनका यह स्वप्न जल्द ही साकार होगा और वे सभी डॉ. वैभव देवगिरकर के नेतृत्व में उस स्वर्णिम पल के साक्षी बनेंगे।

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