हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
बच्चों को हम दे क्या रहे हैं?

बच्चों को हम दे क्या रहे हैं?

by रचना प्रियदर्शिनी
in अप्रैल -२०२१, सामाजिक
0

हम अपने बच्चों को जीवन में केवल दो महत्वपूर्ण चीजें ही दे सकते हैं- मजबूत जड़ (संस्कार) और शक्तिशाली पंख (आत्मविश्वास)। उसके बाद वे जहां चाहें, वहां उड़ सकते हैं और स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं।

आजकल के सारे अभिभावकों की एक सबसे बड़ी चिंता यह है कि उनके बच्चे दिन भर मोबाइल फोन में आंख गड़ाए रहते हैं, उनकी सुनते ही नहीं। उनसे फोन छीन लें, तो रोने लग जाते हैं। अगर टोक दो, तो गुस्सा हो जाते हैं। कई मामले तो ऐसे भी पढ़ने-सुनने में आए, जहां माता-पिता ने अपने किशोर बच्चों को मोबाइल फोन यूज करने से मना किया या इसके लिए उन्हें डांटा, तो आवेश में आकर बच्चों ने आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा लिया।

दूसरी ओर, लगातार ऐसे अध्ययन सामने आ रहे हैं, जहां मोबाइल फोन का लगातार उपयोग करने या फिर मोबाइल फोन पर वीडियो गेम्स खेलने की वजह से बच्चों एवं किशोरों में कई तरह की मानसिक, शारीरिक एवं सामाजिक समस्याएं पैदा हो रही हैं। अब ऐसी स्थिति में माता-पिता या अभिभावकों को समझ नहीं आ रहा कि वे अपने बच्चों के मोबाइल फोन की लत को कैसे छुड़ाएं? मामला वाकई गंभीर है, फिर भी मैं कुछ प्रमुख बातों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूंगी-

विकल्पों की तलाश करनी होगी : आजकल बच्चों के मोबाइल उपयोग को लेकर जिस अनुपात में अभिभावकों की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं, उसे देखते हुए एक सवाल बेहद जरूरी हो जाता है कि ’टीवी या मोबाइल फोन नहीं तो और क्या?’ कभी आपने इस बारे में गौर किया है? अपार्टमेंट कल्चर के वर्तमान युग में चारदीवारी से घिरे दड़बेनुमा फ्लैटों में बच्चों के पास मनोरंजन के विकल्प बहुत सीमित हैं। मां-पापा दोनों या तो जॉब में हैं या फिर अपनी व्यस्तताओं में व्यस्त। ऐसे में बच्चेां के पास टीवी, मोबाइल फोन और कुछ निर्जीव खिलौनों के अलावा बचता ही क्या है अपना मन बहलाने के लिए? ऐसी स्थिति में वे उन्हीं की ओर आकर्षित होंगे न।

जड़ों से कट कर नहीं खिलते फूल : कहते हैं बच्चे फूलों के समान होते हैं और फूलों के सही समय और सही तरीके से खिलने के लिए अपनी जड़ों से उनका जुड़ाव बेहद जरूरी हैं और किसी भी परिवार के ये मजबूत जड़ होते हैं उस परिवार के बड़े-बुजुर्ग। पुराने जमाने में संयुक्त परिवार की परंपरा हुआ करती थी, जहां बच्चों को टीवी या अन्य किसी खिलौनों की शायद ही जरूरत थी। दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ, मौसी, मामा-चाचा आदि तमाम रिश्ते-नातों सहित मुहल्ले के दोस्तों से घिरे बच्चों के मनोरंजन के लिए मां-बाप को शायद ही कभी सोचना पड़ता था। उस दौर में न तो बच्चों के पास खेलने वालों की कमी थी और न ही खेलों की। आज अकेले चारदीवारी के घेरे में बैठे ज्यादातर बच्चों के पास न तो नाते-रिश्तेदार हैं और न ही दोस्तों की टोली। ऐसे में वे बेचारे करे भी तो क्या करें?

खुद पर भी डालें एक नजर : प्रसिद्ध लेखिका, समाज सेविका एवं इंफोसिस कंपनी की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति कहती हैं- अगर आप किताबें पढ़िएगा, तो आपके बच्चे भी पढेंगे। अगर आप मोबाइल फोन पर आंखें गड़ाए रहेंगे, तो आपके लिए अपने बच्चों को भी इस आदत से छुटकारा दिलाना मुश्किल हो जाएगा। बच्चे अपने बड़ों को ही देख कर सीखते हैं, तो पहले आप अपनी आदत सुधारिए (अगर आप खुद भी पूरे दिन में चार घंटों से अधिक फोन का उपयोग करते हों), फिर बच्चों को सुधारने की कोशिश कीजिए।

खामियों के बजाय खूबियां तलाशें और तराशें : हर इंसान में कोई-न-कोई खूबी होती है, बस उसे पहचानने की जौहरी नजर होनी चाहिए। उदाहरण के लिए- कोई बच्चा पढ़ाई-लिखाई में तेज होता है, तो कोई खेल-कूद  में। किसी को ड्राइंग करना अच्छा लगता है, तो किसी को नृत्य-संगीत आदि। जिस बच्चे की जिस क्षेत्र या कार्य में रुचि हो, यदि उसमें ही उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, तो वह उसमें काफी अच्छा कर सकता है।

बच्चों के साथ गुजारें वक्त : अपने बच्चों के साथ आप कितना वक्त गुजारते हैं, यह बात भी आपके बच्चे के व्यक्तित्व और आदतों को प्रभावित करती है। बच्चों के खाली समय में अगर आप उसके साथ हों, तो वह कभी गैजेट्स या फोन आदि को हाथ भी नहीं लगाएगा। बच्चों को सबसे पहले उनके अभिभावक चाहिए होते हैं। अगर किसी कारण से वे बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं, तभी बच्चे विकल्पों की तलाश करते हैं। एक बात और वक्त गुजारने का मतलब, एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में अजनबियों की तरह रहना नहीं है, बल्कि उनके साथ हंसने-बोलने, गाने-बजाने, बतियाने यानी अच्छा समय गुजारने से है।

समय का निर्धारण जरूरी : वर्तमान कोरोना काल में ही नहीं, बल्कि पिछले एक दशक में बच्चों को अपने स्कूल नोट्स, प्रोजेक्टस आदि के लिए मोबाइल फोन के उपयोग की जरूरत पड़ती ही पड़ती है। ऐसे में आपको करना केवल ये है कि बच्चों के साथ-साथ अपने लिए भी मोबाइल फोन के उपयोग की समय सीमा तय कर लें। इससे आप लोगों का काम भी आसान हो जाएगा और आपकी समस्या भी काफी हद तक दूर हो जाएगी।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinesubject

रचना प्रियदर्शिनी

Next Post
लॉलीपॉप का नशा

लॉलीपॉप का नशा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0