लॉलीपॉप का नशा

लॉलीपॉप मानवाधिकारों का एकाधिकार हो चली है, लालीपॉप की मिठास को विषाक्त रसायन में बदल देने वाला अधिकार। जी हां रसायन, केमिकल। ये केमिकल ऐसा रिएक्शन हैं कि देश द्रोहियों के शवों पर मानवता के लहू में उबाल आ जाता है और शहीदों के लहू में न जाने कौन सा वायरस है कि सारे परजीवियों, सहजीवियों, बुद्धिजीवियों की जुबाने क्वारनटाईन पर चली जाती हैं।

यह किसने कहा कि चरस गांजा हेरोईन, शराब का नशा खतरनाक होता है। अनेक अनुसंधानों व अनुभवों से ज्ञात हुआ है कि सबसे अधिक खतरनाक नशा लॉलीपॉप का होता है। अन्य नशीले पदार्थों की इसके सामने, फोड़ी गई बोतल में ठहरी हुई बूंदों जितनी भी औकात नहीं। अन्य नशों का असर दो-चार छः या चौबीस घंटों का होता है, किंतु इसका नशा जीवन भर का होता है। ये भांग की हरी गोली नहीं जो सिर्फ खाने वाले को गाफिल बनाती है, यह तो वह रसीला पदार्थ है जिसमें चूसने वाले से अधिक देने वाला गाफिल होता है। लॉलीपॉप वह स्वर्ण है जिसके बारे में कहा जा सकता है कि ‘इहै खाए बौरात नर उहे पाए बौराई।’ इसकी एक विशेषता और भी इसे नशाधिपति के खिताब से नवाजती है। नशेड़ियो, गंजेड़ियो के लिए नशा मजबूरी होता है, पर यह लॉलीपॉप का महान गुण है कि वह चूसने वाले को ही नहीं चुसाने वाले को भी लाचार बना देती है। अन्य नशे को धारण करने वाले आपको कहीं भी घिघियाते, मिमियाते नजर आ जाएंगे किंतु लालीपॉप का नशा करने वाले आपको सदा ही गरियाते, धमकाते ही मिलेंंगे।

लॉलीपॉप  शुरू से ही लालीपॉप नहीं थी। पहले यह शहद की छोटी चूसनी याने की निप्पल थी। भारत माता की छाती में इनके लिए जब दूध उतरा तो सौतेले दिमागों को सगी छाती स्वीकार नहीं हुई । ऊंवा वां वां….ऊंवा वां वां…..के प्रलापों ने आकाओं को मजबूर कर दिया कि इन के मुंह में शहद की निप्पल ठूंस दी जाए। धीरे-धीरे निप्पल चूसने वालों के दांत निकल आए, उन्होंने निप्पले काटना शुरू कर दीं, अब ऊंवा ऊंवा के स्वरों में हुआं हुआं के मानवतावादी स्वर भी मिल गए जो बुक्का फाड़कर कान फोड़ने की कला जानते थे। आकाओं ने फिर अपने कानों को फूटने से बचाया और इनके मुंह में लॉलीपॉप थमा दी।

तज्ञों ने अल्पज्ञों को अल्प के मायनों और फायदों का ज्ञान दिया, उन्होंने बताया कि कब कब और कैसे अल्पज्ञ में से ज्ञ को खूंटी पर टांग देना चाहिए और अल्प का इस्तेमाल करना चाहिए।

मैंने कहा था ना ये नशा करने वालों का नहीं कराने वालों को लाचार बना देता है। लॉलीपॉप का नशा भी दुर्योधन के बाप की जागीर है और जागीरों में मर्यादाओं के चीरहरणों को धृतराष्ट्री लाइसेंस प्राप्त है। चाहे सारी दुनिया मरघटों के मरकज (केंद्र) में तब्दील हो जाए, चाहे समाज का दर्पण स्पिटिंग कोब्राओं की थूक से आच्छादित हो धुंधला जाए, लॉलीपॉप की सप्लाई में कमी नहीं होनी चाहिए। लालीपॉप का नशा देने वालों के सर चढ़कर बोलता है, लॉलीपॉप ऐसा नशा है जिसके छीनते ही अन्याय अत्याचार के भूकंप आने लगते हैं, मानवता पर संकट गहराने लगता है, समूची सृष्टि असहिष्णु, अमानवीय हो उठती है। लॉलीपॉप की सुरक्षा में तैनात हुआं हुआं करने वालों की स्वराएं फुफकारने लगती हैं। लालीपॉप का नशा मजबूरी नहीं अय्याशी हो चला है। लॉलीपॉप मानवाधिकारों का एकाधिकार हो चली है, लालीपॉप की मिठास को विषाक्त रसायन में बदल देने वाला अधिकार। जी हां रसायन, केमिकल। ये केमिकल ऐसा रिएक्शन हैं कि देश द्रोहियों के शवों पर मानवता के लहू में उबाल आ जाता है और शहीदों के लहू में न जाने कौन सा वायरस है कि सारे परजीवियों, सहजीवियों, बुद्धिजीवियों की जुबाने क्वांरनटाईन पर चली जाती हैं, सदा सुहागन सोशलिस्ट सोशल डिस्टेंसिंग का वैधव्य पालने लगते हैं। दाद देनी होगी इनके आइसोलेशन की जो शुतुरमुर्ग को भी मात दे रहा है। पुरस्कारों के शूल आखिर इस समय क्यों नहीं चूभते। ये लालीपॉप के नशे का कमाल है भाई। अब तो मानेंगे ना सबसे अधिक खतरनाक कौनसा नशा होता है!

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