फिर वो ही ‘खासियत’ लायीं है…
भारतीय फिल्में फिर एक बार भारतीयता का चोला ओढ़ कर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही हैं। भारतीय इतिहास को बिना तोेड़े-मरोड़े दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने की चुनौती अब भारतीय सिनेमा बनाने वालों को स्वीकार करना होगा।
भारतीय फिल्में फिर एक बार भारतीयता का चोला ओढ़ कर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही हैं। भारतीय इतिहास को बिना तोेड़े-मरोड़े दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने की चुनौती अब भारतीय सिनेमा बनाने वालों को स्वीकार करना होगा।
ऐतिहासिक फिल्म का निर्माण एक तरह फिल्मी ही रहा। इतिहास के पन्नों में झांकने से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह रहीं कि ऐसी फिल्म का कला निर्देशन या सेटस बहुत सुन्दर और बड़े होने चाहिए। फिल्म का प्रस्तुतिकरण वास्तविक जीवन से दूर रहे और उसमें नाट्यपूर्णता रहे। गीत संगीत और नृत्य की काफी भीड़ रहे। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि उसके डायलाग पब्लिक को पसंद आये।
सुख और दुख, प्रेम और विरह, उल्लास और त्योहार, तत्वज्ञान और रहस्य- इस तरह सभी मूड के सदाबहार गानों को लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल की जोड़ी ने संगीतबद्ध किया। फिल्मी संगीत का एक युग उनके नाम है। जब तक फिल्में बनती रहेंगी तब तक यह युगल याद आता रहेगा।
फिल्में, यद्यपि आती जाती रहती हैं फिर भी समाज से फैशन का रिश्ता कायम रहता है। समाज उसमें भी कुछ नया ढूंढ़ने की कोशिश करता है। फैशन को बढ़ाने में फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान है।
या द है आपको हम खेलों पर आधारित फिल्मों को गंभीरता से कब से लेने लगे? ठीक से विचार करें तो २००१ में आई ‘लगान’ के बाद से| इस बार खेल आधारित फिल्मों के विषय में बात करने का विशेष अवसर है|
अधिकांश फिल्मों ने देश के ग्रामीण इलाके की विविधता को परदे पर दिखाया है| इन फिल्मों में लोक संगीत नृत्य, महाराष्ट्र की ‘लावणी’ से लेकर पंजाब के ‘भांगड़ा’ तक को अनुभव किया जा सकता है| सच तो यह है कि, ग्रामीण फ़िल्में बहु-सांस्कृतिक होती हैं|
पर्दे पर होने वाली झमाझम बारिश दर्शकों को खूब सुहाती है और दर्शकों को जो पसंद है वही दिखाकर उनका मनोरंजन करना फिल्मवालों को सुहाता है। चाहे जो भी हो दर्शकों के मनोरंजन के लिए ही सही फिल्मों में झूठी बारिश हमेशा होती रहे।
पीसी अर्थात प्रियंका चोपड़ा की उड़ान रोल मॉडल है। एक वातविकता की जानकारी कराने वाली यात्रा का प्रारंभ है। किसी फिल्मी कलाकार को इतनी कम आयु में प्राप्त होना अपने आप में अनोखा एवं अपने क्षेत्र में पूरी लगन एवं समर्पण का द्योतक है। कुछ कर गुजरने का माद्दा रखने वाले युवाओं को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए।
क्या आपको कोई ऐसी हिंदी फिल्म याद है जिसमें चारों ओर उद्योगपति किरदार दिखाई देते हों? हृिएकेश मुखर्जी की नमक हराम याद है? उसमें एक कारखाने का मालिक (ओम शिवपुरी) बीमार पडने कारण उसका बेटा विकी(अमिताभ बच्चन) कुछ दिन कारखाने का कामकाज संभालने का निश्चय करता है।
फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सबसे मुश्किल अगर कुछ है तो वो है, सत्य घटना पर आधारित फिल्मों का निर्माण करना। क्योंकि उसमें सिर्फ सत्य घटना ही दिखानी नहीं होती वरन उस सद सत्य घटना पर आधारित फिल्म बन सकती है यह विश्वास निर्माण होने के बाद अन्य कई बातें होती हैं। जैसे उस सत्य घटना का कितना हिस्सा फिल्म के लिए उपयोगी होगा, उसमें गाने और कॉमेडी सीन इत्यादि फिल्मी मसाले कितने मिलाए जाएं आदि-आदि।
गीतकार आदेश श्रीवास्तव के निधन की खबर आ सकती है ऐसी आशंका मन में उठ रही थी कि अचानक ४ सितंबर को उनके जन्म दिन के अवसर पर ही यह समाचार मिला। यह शायद विधि लिखित ही था।
लगभग पच्चीस साल पूर्व मनमोहन देसाई से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था कि श्रेष्ठ तकनीकी फिल्में हमारी फिल्म इंडस्ट्री या दर्शकों की आवश्यकता नहीं हैं। इसके दो कारण हैं- पहला कैमरे का उत्तम तरीके से उपयोग करके चित्रित की गई फिल्मों