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हर मोर्चे पर विफल कथित किसान आंदोलन

हर मोर्चे पर विफल कथित किसान आंदोलन

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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तीन कृषि कानूनों के खिलाफ मोर्चा तैयार कर किसान आंदोलन के नाम पर सरकार को घेरने के कयास में आज 4 महीने गुजर गए परंतु किसान आंदोलन से अभी तक कोई हल नहीं निकला और लगातार यह आंदोलन सिकुड़ता जा रहा है जिसका सुदृढ आधार धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है यदि इस आंदोलन के बुनियादी ढांचे का हम विचार करें तो देखते हैं कि इस आंदोलन में किसान यूनियन के प्रमुख नरेश टिकैत और उनके छोटे भाई राकेश टिकैत जो किसान यूनियन के प्रवक्ता भी हैं, कुल मिलाकर किसान यूनियन के सर्वेसर्वा दोनों भाई हैं, राकेश टिकैत 2007 में मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा से निर्दलीय एवं 2014 में अमरोहा संसदीय क्षेत्र से राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी रह चुके हैं, अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे जनसमर्थन प्राप्त कर सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं, वो भी यूँ कि उनके साथ स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव भी इस आंदोलन के एक बड़े नेता हैं और अन्ना हजारे के लोकपाल बिल विधेयक के समर्थन में खट्टा खा चुके हैं केजरीवाल की तरह उनके हाथ कुछ नहीं लगा तो अब किसानों के कंधों का ही सहारा है। जबकि किसानों के सबसे वृहद संगठन भारतीय किसान संघ का मुट्ठी भर भी सहयोग इस आंदोलन को नहीं मिल रहा है इसका वाजिब कारण पूरे आंदोलन को सत्ता विरोधी तरीके से संचालित करने का है जिसके लिए देश का बहुसंख्यक किसान इस आंदोलन के साथ नहीं है।

आरंभिक दौर में सभी किसान और सामाजिक संगठनों ने इस आंदोलन में सहयोग की सहमति जताई और सहयोग भी किया परंतु केंद्रीय कृषि मंत्री के कानूनों में संशोधन एवं वार्ता के आश्वासन के बाद भी 8 दिसंबर को भारत बंद का अभियान चलाया जो निष्प्रभावी रहा इसी दौरान बड़ी खापों का साथ इस आंदोलन को मिला किंतु राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज का अनादर और लाल किले की प्राचीर से देश विरोधी कोलाहल का तांडव उपद्रवियों ने मचाया जिससे किसानों की छवि धूमिल होकर लोगों का विश्वास इस आंदोलन से हटा है परिणामस्वरूप पश्चिमी उत्तरप्रदेश और राजस्थान की खापों का इस आंदोलन से मोहभंग हुआ है।

सप्ताह पूर्व 26 मार्च का भारत बंद भी बेअसर रहा 4 माह से चल रहे इस आंदोलन का मैं साक्षी रहा हूं, जहां प्रतिदिन टनों दूध, दावत फल एवं सूखे मेवे जो प्रत्येक व्यक्ति के खानपान में सहज सम्मिलित नहीं है उनका अनियंत्रित वितरण, पानी गर्म करने की टंकियां, वाशिंग मशीन, फ्रिज, कुर्सियां इत्यादि की सुलभता यहां पर्याप्त धन खर्च को इंगित करते हैं, जिसका शायद ही कोई आय-व्यय का हिसाब आंदोलन के नेतृत्व के पास हो इसकी फंडिंग भी जांच का विषय है। अनिश्चितकालीन इस आंदोलन के आंदोलनकारियों ने आवागमन को ठप करने मुख्य सड़क मार्गों को पूरी तरह से घेरकर मार्गों को तो बाधित किया ही है साथ ही डिवाइडर पर लगे पौधों को काटकर अपने आवास तैयार किये है, थर्मोकोल एवं प्लास्टिक से जगह-जगह फैली गंदगी प्रकृति को भी दूषित कर रही है।

शास्त्री जी के जय जवान जय किसान के उद्घोष का आज पूरे देश में सम्मान है, किसान हर भारतीय के ह्रदय में बसता है और यह दावा किया जा सकता है कि शायद ही कोई अपवाद होगा जो अन्नदाता किसान का हित नहीं चाहेगा। अपितु भारत एक कृषिप्रधान देश है जो कृषि पर आधारित है और देश की एक बड़ी आबादी कृषक के रूप कृषि पर निर्भर है जिनकी उन्नति देश के विकास का सुद्रण आधार है। अतः सरकार को किसानों के बिल पर पुनर्विचार एवं संसोधन की आवश्यकता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, और देश के भोले-भाले किसानों को भी ये समझने की आवश्यकता है कि कहीं उनका अनुचित लाभ लेकर राजनैतिक दल अपने सत्ता विरोधी अभियान में सफल न हों। अतः किसान भाइयों का अपने कंधों का सहारा देकर सरकार को घेरने की अराजक पूर्ण रवैया से बाहर आना चाहिए ताकि सरकार एवं न्यायालय न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीदी व कृषि सुधार कार्यक्रम को भलीभांति प्रारंभ कर सके।

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