न्याय और समरसता आचरण की बातें

6 अप्रैल 2015 को हिंदी विवेक के ‘राष्ट्रपुरुष: डॉ. बाबासाहब आंबेडकर विशेषांक’ का लोकर्पण सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मा. देवेन्द्र फडणवीस ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए। प्रस्तुत लेख उन विचारों का शब्दांकन है।

सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता ये आचरण की बातें हैं। हमारे देश में कई लोगों को ये लगता है कि सामाजिक न्याय पर बड़े लम्बे चौड़े भाषण देने से न्यायपूर्ण बन जाते हैं। वे मानते हैं कि सामाजिक न्याय उनकी बपौती हैं। मैं ऐसा मानता हूं कि सामाजिक न्याय रिएक्शन की नहीं, एक्शन की बात है और जब तक हमारे आचरण में यह नहीं आएगा तब तक हमारे देश को हम कतई आगे नहीं ले जा सकते।

मैं सौभाग्यशाली हूं कि रा. स्व. संघ के स्वयंसेवक के रूप में सामाजिक समरसता का पाठ न केवल भाषणों में बल्कि आचरण में मुझे मिला हैं। यही वह पद्धति है जिससे हमारे समाज को हम विकास की ओर ले जा सकते हैं। आज भी जब हम पीछे मुडकर देखते हैं तो पाते हैं कि तो गरीबी सबसे ज्यादा कहां है? सबसे ज्यादा गरीब आज भी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में हैं। सबसे ज्यादा बेघर कौन हैं? सबसे ज्यादा बेघर आज भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोग हैं। शिक्षा का प्रमाण सबसे कम कहां हैं? तो वह आज भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों में है। इसलिए समाज के इस वर्ग को जब तक हम मुख्य धारा के साथ नहीं जोडेंगे तब तक हम समाज के विकास का जो सपना देखते हैं, वह पूरा नहीं होगा। समाज का एक अंग विकसित हो जाए और दूसरा अंग अविकसित रहे, या विकलांग रहे तो समाज कभी भी विकसित नहीं कहलाएगा। इस देश के अंदर आज इस बात की ज्यादा आवश्यकता है कि हम सामाजिक न्याय के इस सपने को पूरा करने का प्रयास करें।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने हमें संविधान दिया। इस संविधान ने हमें समानता का अवसर दिया। एक प्रकार से ‘इक्विलिटी ऑफ अपॉरच्युनिटीज’ दी। समाज के सशक्त लोगों को अगर हम लोग ऐसे लोगों के साथ स्पर्धा मेेंं उतारेंगे जो पिछडे हैं, जिन्हें अवसर नहीं प्राप्त हुआ, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक तौर पर जिन लोगों को उचित अवसर नहीं मिला, तो निश्चित रूप से सशक्त लोग आगे निकल जाएंगे। इसलिए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजी ने जिस समय आरक्षण की संकल्पना रखी उस आरक्षण की संकल्पना का मूलाधार यह था कि जो लोग सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हैं, सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़े हैं, शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हैं और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं ऐसे चारों दृष्टि से जो पिछड़े है, उनका पहला अधिकार यह है कि हम उनको आरक्षण दें, ताकि उस आरक्षण के चलते समय के अगड़े वर्ग के साथ वे लोग स्पर्धा में उतरे और उस स्पर्धा में आगे जाने की वे कोशिश करें।

यह जो आधार जिस प्रकार से डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी ने आरक्षण का चुना, इससे ज्यादा वैज्ञानिक आधार दूसरा हो ही नहीं सकता। आज भी समाज के अंदर इस आरक्षण की नीति के कारण हम समता और समरसता की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन केवल इस एक उपक्रम के भरोसे अगर हम लोग सामाजिक समता प्राप्त कर लेंगे ऐसा कोई समझता होगा तो यह बात भी सही नहीं है। उसके लिए और कई प्रयासों की आवश्यकता है। ये सारे के सारे प्रयास हम एक शासक के रूप में करने का दृष्टिकोण भी रखते हैं और प्रयास भी कर रहे हैं।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी बहुत महान थे। देश और दुनिया में किसी भी व्यक्ति की जयंती या पुण्यतिथि के इतने कार्यक्रम नहीं होते जितने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी के होते हैं। मैं केवल देश की नहीं देश और दुनिया कि बात कह रहा हूं और इसलिए एक कोई स्मारक बनने से उनकी महानता साबित नहीं हो जाएगी। लेकिन जो समाज पिछड़ा है, जिस समाज को दबाया गया है, उस समाज में ऊर्जा समाहित करने के लिए, उस समाज को तेजोमय बनाने के लिए इस प्रकार के स्मारकों की आवश्यकता है; क्योंकि वह स्मारक लगातार संघर्ष की प्रेरणा देता है। संघर्ष के इतिहास को याद दिलाता है। और इस संघर्ष में से समाज खड़ा हुआ है। और इसलिए संघर्ष की राह पर हर व्यक्ति चलने कि कोशिश करें यह पथ दर्शन इस प्रकार के स्मारक के माध्यम से होता है। इंदु मिल के इस स्मारक से संबंधित समस्या को लेकर मैं स्वयं मा. प्रधानमंत्री जी से मिला और मैंने कहा कि ये केवल एक स्मारक नहीं है, यह एक अस्मिता का प्रतीक है।

मैं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने इस संबंध में सकारात्मक रवैया अपनाया। हमने भारत के महाअधिवक्ता का उस पर अभिमत लिया तो उन्होंने कहा कि कोई नया कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है। जो कानून हैं उसी में प्रावधान है कि केंद्र सरकार की मान्यता से टेक्सटाइस कॉर्पोरेशन राज्य सरकार को इस जमीन को सौंप सकता है। इसके बाद तुरंत तीन दिनों में मा. मोदी जी के आदेश सेकार्रवाई हुई। और अब उसके एग्रीमेंट पर भी हम हस्ताक्षर कर चुके हैं। समरसता केवल भाषणों में नहीं होती, वह कृति में होती है।
लंदन में बाबासाहब जिस घर में रहते थे वह घर हमने खरीदा। वह घर नहीं भी खरीदते तो उससे बाबासाहब की महानता कम नहीं होने वाली थी। लेकिन समाज के अंदर यह भावना थी कि जिस घर में रहकर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में वहां कि डिग्री हासिल की। उस घर को नीलामी सेबचाया जाए। उसके लिए आवश्यकता थी चालीस बयालीस करोड़ रुपये की। मुझे कभी कभी यह सोचकर दुख होता है के डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम लेकर राजनीति करने वालों ने कैबिनेट में यह निर्णय लिया था कि चालीस-बयालीस करोड़ रुपये हम नहीं देंगे और घर को नीलामी में बेचने के लिए खुला छोड़ दिया गया। उस घर को हमारी सरकार ने खरीदने का फैसला किया है। आज मुझे यह बताते हुए भी हर्ष होता है कि जैसे ही हमने इसको खरीदने के लिए सारी कार्रवाई पूरी की केंद्र की सरकार ने भी कहा की अगर आप आवश्यक समझें तो केंद्र की सरकार भी इसमें सहायता करेगी। जो भी आप केंद्र से चाहते हैं वह केंद्र देने के लिए तैयार है। इस प्रकार से मोदी जी की सरकार ने और हमारे सामाजिक न्याय मंत्री ने मुझे एक पत्र लिखा। तात्पर्य इतना ही हैं कि ये सारी चीजें वोटो की राजनीति के लिए नहीं हैं। समाज के अंदर जो हमारे प्रेरणास्रोत होते हैं, उन प्रेरणास्रोतों को जिस समय उनकी स्मृतियों को हम जीवित रखने का काम करते हैं, उसके माध्यम से समाज की जो अस्मिता होती हे, समाज का जो तेज होता है वह भी प्रगल्भ होता है।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को केवल यहां तक सीमित नहीं किया जा सकता कि वे हमारे संविधान के रचयिता मात्र थे। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर विचारक थे। आपको आश्चर्य होगा कि जैसे ही लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स को यह पता चला कि महाराष्ट्र की सरकार डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी का वह मकान खरीदना चाहती है, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से दो लोग हमारे पास आए और उन्होंने कहा आप वह मकान अगर खरीद रहे हैं तो उस मकान को किस प्रकार से मेन्टेंन किया जाए इसके संदर्भ में सारी उसकी जो कन्सलटन्सी है या उस संदर्भ में सारी जो बाते हैं वह हम आपको बताएंगे और हम आपको यह कहना चाहते हैं कि इसके साथ साथ आप एक और निर्णय कीजिए। अगर आप चाहें तो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी के नाम से एक अध्यासन शुरू करना चाहता है। उन्होंने कहा कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर हमारे ऐसे एक विद्यार्थी थे जिन्होने आर्थिक जगत में जिन विचारों को प्रतिपादित किया है वे पथदर्शी विचार हैं। और आज भी उन विचारों को लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सराहा जाता है। और इसलिए हम ये चाहते हैं कि इन विचारों को रखने वाले डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी का एक अध्यासन शुरू हो। हमने कहा, बिलकुल यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं यह मानता हूं कि आने वाले दिनों में हमें यह अध्यासन देखने को मिलेगा।

एक अर्थतज्ञ के रूप में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने ठोस कार्य किया है। उन्होंने बताया है कि हमारे रुपये की अवस्था पचास साल बाद क्या होगी। आज हम रुपेय की पूरी तरह परिवर्तनीयता की बात करते हैं। हमारा जो रुपया है ये परिवर्तनी (कन्वरटिबल) कब होगा, कैसे होगा और वैश्विक बाजार में रुपये का मूल्य किस प्रकार से ऊपर या नीचे जाएगा, इस पर पचास साल पहले डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने जो विचार लिखे। आज भी, कोई भी पन्ना पलटकर देख लीजिए आपको यह लगेगा कि आज की वर्तमान परिस्थिति में हमारे रुपये की जो अवस्था है, उसके ऊपर कल लिखा हुआ यह लेख है, इतनी उनके शब्दों में, उनके विचारों में, और उनकी बुद्धि में ताकत थी। और इसलिए वे अर्थतज्ञ थे।

वे जलतज्ञ भी थे। पानी का नियोजन किस प्रकार से किया जाना चाहिए इस संदर्भ में जो विचार उन्होंने व्यक्त किए हैं मैं ऐसा मानता हूं कि वे आज भी पथदर्शी हैं। एक व्यक्ति के कितने आयाम हो सकते हैं, यह इससे पता चलता है। इतना ओजस्वी और तेजस्वी कार्य डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है। और मैंने वकालत की पढ़ाई की है, अधिवक्ता हूं, इसलिए जब भी मै हमारे संविधान को पढ़ता हूं, तो हर समय मुझे वह संविधान अद्भुत लगता है, आकर्षित करता है। और लोकतंत्र में काम करते समय मैं कभी कभी आश्चर्यचकित हो जाता हूं कि उस समय लिखे हुए संविधान में यह विचार कैसे किया होगा कि देश के सामने आने वाली कौनसी समस्याएं हैं? और उन समस्याओं का समाधान क्या है? सदन में जब किसी मुद्दे पर बहस चलती थी और किसी विषय पर हम अटक जाते थे कि किसी विषय की किस तरह व्याख्या की जाए। लेकिन, संविधान के पन्ने पलटने के बाद उसका उत्तर हमें प्राप्त होता था।

देश की आर्थिक स्थिति के बारे मे पिछले सात-आठ सालो में हमने राजकोषीय उत्तरदायित्व की बात करना शुरू किया और उस पर कानून हमने तैयार किया। संविधान तैयार करते समय डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने उस समय एसेम्ब्ली में भाषण देते हुए कहा कि अगर हम लोग, राजकोषीय उत्तरदायित्व को निरंकुश रखेंगे, तो एक समय ऐसा आएगा कि हमारे केंद्र और राज्यों के पास पैसा नहीं होगा। और ये न विकास कर पाएंगे न प्रशासन चला पाएंगे और इसलिए उन्होंने कहा कि संविधान में राजकोषीय उत्तरदायित्व के बारे में राज्यों और केंद्र पर हमें जिम्मेदारी डालनी चाहिए और वही बात हमारे सामने आई और दस साल पहले हमें राजकोषीय उत्तरदायित्व विधेयक तैयार करना पड़ा। जिसके चलते राज्यों और देश के राजकोष की जो हालत हो रही थी उसे रोकने का काम हमने किया। और इसलिए मैं ऐसा मानता हूं कि ऐसे दूरदर्शी नेता ने समाज को सही मायने में दिशा दर्शन किया।

ऐसे एक द्रष्टा की एक सैे पच्चासवीं जयंती के अवसर पर हिंदी विवेक ने ने जो विशेषांक प्रकाशित किया उसका मैं स्वागत करता हूं और इस तरह के कार्य के लिए अभिनंदन भी करता हूं। हिंदी विवेक के इस तरह के हर अच्छे कार्य में हम आपके साथ रहेंगे।
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