हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
दवा कंपनियों की मनमानी पर कैसे लग सकती है लगाम!

दवा कंपनियों की मनमानी पर कैसे लग सकती है लगाम!

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष, सामाजिक
0

कोरोना महामारी ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया है और सरकार के दावे भी अब फेल होते नजर आ रहे है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम दावों के बाद असलियत यह है कि आम जनता अभी भी ऑक्सीजन और बेड से दूर है। शहरों से लेकर गांवों तक तमाम लोग अभी भी अस्पतालों के गेट पर दम तोड़ दे रहे है और जिन लोगों को अस्पताल का बेड नसीब हो जा रहा है वह महंगी दवाओं की कीमत ना चुका पाने के कारण दम तोड़ दे रहे है और जिन्होंने महंगी दवाएं खरीद कर जिंदगी बचा ली वह बिल देखकर हर दिन उसी चिंता में मरे जा रहे है।

दवा कंपनियों की कालाबाजारी और मनमानी से हर कोई वाकिफ है। सरकार से लेकर आम जनता तक सभी महंगी दवाओं से परेशान है आम जनता इन बड़ी कंपनियों के खिलाफ कोई कदम उठा नहीं सकती है और सरकार की तरफ से दवा कंपनियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। कोरोना महामारी में दवा कंपनियां लोगों की मजबूरी का बखूबी फायदा उठा रही है और दवाओं का स्टॉक रोक उसे दोगुनी कीमत में बेच रही है। दरअसल दवा माफियाओं की भी एक बड़ी गैंग है जिसमें हास्पिटल भी शामिल है। इन्हे डाकू कहना भी गलत नहीं होगा बस यह लोग बंदूक की जगह इंजेक्शन और दवाओं के दम पर लूटते है। दवा कंपनियां तमाम ऐसी दवाएं और इंजेक्शन बनाती है जो बाजार में उपलब्ध नहीं होता है इसे कंपनी सीधे हास्पिटल को मुहैया कराती है जिससे डाक्टर इसकी कीमत अपने मन मुताबिक निश्चित करते है और मरीज को उसे देना पड़ता है। मरीज कितना भी हाथ पैर मार ले लेकिन उसे यह दवा बाजार में कभी भी नहीं मिलेगी।

दवा कंपनियों के ही बड़े बड़े डॉक्टर पहले लोगों को डराते है और फिर इलाज के नाम पर उनसे मोटा पैसा ऐंठते है। उदाहरण के लिए आप कोरोना महामारी को देख लीजिए, इस बिमारी की कोई भी दवा नहीं थी लेकिन कोरोना की पहली लहर में जिसे भी हास्पिटल में एडमिट होना पड़ा उसका बिल लाखो में आया था, कुछ लोगों ने तो 10 लाख तक इसका बिल दिया था जबकि कोरोना में सिर्फ बुखार और फेफड़ों का संक्रमण होता है इसके इलाज में ना तो कोई ऑपरेशन होता है और ना ही कोई महंगा इंजेक्शन लगता है फिर ऐसे में लाखों का बिल कहां से आता है। हमने एक सामान्य हॉस्पिटल का बिल देखा था जहां मात्र 7 दिन एडमिट करने के लिए 2 लाख रुपया मांगा गया था। हॉस्पिटल की तरफ से जो बिल दिया गया था उसमें बेड चार्ज 8000 प्रतिदिन के हिसाब से लगाया गया था उसके बाद डॉक्टर के देखने का चार्ज, नर्स का चार्ज, पीपीई किट, और दवाओं का चार्ज अलग से दिया गया था।  उस बेड में ऐसा क्या था जिसके लिए 8 हजार का चार्ज प्रतिदिन लिया गया। करीब 300 तक आने वाली पीपीई किट का चार्ज 1200 तक वसूला गया आखिर यह लूट नहीं तो और क्या है।

जब तक आम जनता तक दवा और स्वास्थ्य संबंधी सामान पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंचेगे तक तक उसकी कालाबाजारी होती रहेगी। सरकार को उन कंपनियों पर भी पाबंदी लगानी चाहिए जो दवाओं को अधिक मूल्य में बेच रही है साथ ही दवा क्षेत्र में और लोगों को मौका दिया जाना चाहिए जिससे बाजार में अधिक दवाएं मौजूद हो और दाम में गिरावट हो सके। पेटेंट और अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार कानून के कारण कुछ कंपनियों को दवाओं और स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों में एकाधिकार प्राप्त है जिससे वह इसकी जमाखोरी कर इसका फायदा उठाते है। हाल ही में रेमडिसीवर इंजेक्शन की मांग बढ़ने पर उसकी जमाखोरी शुरु हो गयी जिससे 3000 से 5000 तक बिकने वाला यह इंजेक्शन ब्लैक मार्केट में 30 से 50 हजार तक बिका, हालांकि सरकार ने इस पर रोक लगायी लेकिन वह पूरी तरह से इस पर काबू नहीं पा सकी। दरअसल कुछ वैश्विक कंपनियों के पास दवाओं का पेटेंट है जो वह भारतीय कंपनियों के साथ साझा नहीं करना चाहती है और अपनी मनमानी से दाम वसूल करती है। भारत सरकार को इस पर आगे आकर ऐसी कंपनियों से पेटेंट भारतीय दवा कंपनियों को दिलाना चाहिए।

भारत में पहले दवा सस्ती थी बल्कि भारत दूसरे देशों को भी सस्ती दवाएं मुहैया कराता था लेकिन सन 1995 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बनने के बाद दवाएं लगातार महंगी होने लगी। विश्व व्यापार संगठन के बनने के साथ ही ट्रिप्स समझौता लागू हो गया। इस समझौते के तहत इसके सदस्य देश पेटेंट कंपनियों के हित में कानून बनाएंगे और उसे सख्ती से लागू करेंगे। इस कानून का जबरदस्त विरोध भी हुआ था लेकिन फिर भी मौजूदा सरकार ने इसे मान लिया जबकि इससे पहले भारत सरकार किसी भी दवा के लिए लाइसेंस जारी कर उसके उत्पादन को सुनिश्चित करती थी जिससे भारत में दवा सस्ती मिलती थी। महामारी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार इन दवाओं के उत्पादन को बढ़ा सकती है और लोगों को महंगी दवाओं से राहत दिला सकती है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: breaking newshindi vivekhindi vivek magazinelatest newstrending

हिंदी विवेक

Next Post
मुख्तार की रफ्तार पर योगी का ब्रेक

मुख्तार की रफ्तार पर योगी का ब्रेक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0