कोरोना की गंभीरता को समझें

हमें कोरोना के बाद की तक़ली़फें मंजूर है, लेकिन, सावधानी मंजूर नहीं है। 15 दिन क्वारेंटाईन में रहना….अस्पताल में अकेलेपन की घुटन…और कोरोना से ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ना…. कभी कोरोना हारता है, कभी इंसान। एक को तो हारना ही पड़ता है। हमें सरकार पर निर्भरता छोड़नी होगी।

कोरोना की बढ़ती हुई स्थिति काफ़ी गंभीर है, मगर इंसान इस गंभीरता को समझ नहीं रहा है। कहीं काम की मजबूरी…. तो कहीं घूमने फिरने मौज-मस्ती का सैलाब… यदि कुछ समय हम अपनी इच्छाओं को काबू में कर लें तो शायद यह कोरोना काबू में आ जाए। लेकिन, इंसान की अपनी सोच तो सरकार पर निर्भर है, यदि सरकार लॉकडाउन के पाबंदी लगा दे तो इंसान पाबंदी का आवरण ओढ़ लेता है। यदि, सरकार की तरफ़ से लॉकडाउन नहीं है, तो हमें यह क्यों लगने लगा है, कि कोरोना भी नहीं है। जब से हमने नियमों का पालन करना छोड़ दिया है, मास्क… सैनिटाइजिंग ….2 गज़ दूरी, आख़िर इतने भी मुश्किल नहीं थे, कि हमने दड़बे में घुसे कोरोना को फिर से आमंत्रित कर लिया है। हमें कोरोना के बाद की तक़ली़फें मंजूर है, लेकिन, सावधानी मंजूर नहीं है। 15 दिन क्वारेंटाईन में रहना….अस्पताल में अकेलेपन की घुटन…और कोरोना से ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ना…. कभी कोरोना हारता है, कभी इंसान। एक को तो हारना ही पड़ता है। हमें सरकार पर निर्भरता छोड़नी होगी।

पूरे देश को कोरोनावायरस से बचाने की जिम्मेदारी अकेले प्रधानमंत्री पर नहीं है, बल्कि, हर एक राज्य के मुख्यमंत्रियों की भी जिम्मेदारी है, कि वह अपने राज्य को कैसे करोना से मुक्त रखें, बल्कि, मुख्यमंत्री स्वयं कोरोना को बढ़ावा दे रहे हैं। जनता को अपनी गलतियों की सज़ा खुद ही भुगतनी होगी और भुगत भी रही है। अस्पतालों में जगह नहीं है। ऑक्सीजन और बिस्तर नहीं है, दवाईयों के लिए मारामारी चल रही है…… कालाबाज़ारी बढ़ गई है, ….40000 के इंजेक्शन के लिए लोग डेढ़ लाख तक देने को तैयार है… लेकिन मिल नहीं रहे हैं, अस्पतालों से इंजेक्शनों की चोरी हो रही है… बाज़ार में नकली इंजेक्शन आ रहे हैं… हर तरफ़ मौत का मंजर है, मगर जनता है कि समझती ही नहीं है। जनता ने अपने जीवन की डोर सरकार के हाथों में क्यों दे रखी है? लोगों को अपनी देखभाल का जिम्मा खुद ही उठाना होगा। उन्हें सोचना होगा कि उन्हें चुनावी रैलियों में जाना है या नहीं? इंसान ख़ुद ही अपने आप को आग में झोंक रहा है, फिर जल जाने का इल्ज़ाम सरकार पर लगाने से जनता के ज़ख्म भर तो नहीं जाएंगे। पीड़ा तो खुद ही सहनी होगी। अपने पैर का कांटा खुद ही निकालना होगा। चुनावी रैलियों ने लोगों की मानसिकता पर बहुत ग़लत असर डाला है…. लोग सोचने लगे जब चुनावी रैलियों ने सारे नियम कानूनों को ताक पर रख दिया है तो हम अपनी आज़ादी पर प्रतिबंध क्यों लगाएं? जनता ने यह दिखा दिया है कि यदि सरकार सख्त़ी नहीं बरतती तो हम अपने आप को अनुशासन में क्यों रखें? पैसा खिलाकर ग़लत काम करने में तो वैसे ही माहिर हैं हम। जहां नियमों की सख्त़ी हम पर लाद दी जाती है वहां हम ग़लत रास्ते ढूंढ ही लेते हैं। बॉर्डर क्रॉस करने, भीड़ में घुसने या कहीं भी जाने के लिए कोविड-19 की नेगेटिव रिपोर्ट जरूरी है, वहां लोगों ने पैसा देकर नकली रिपोर्ट बनवानी शुरू कर दीं। अब इन ग़लत कामों की सजा भी तो हम लोगों को भुगतनी पड़ रही है। वैसे, जनता को तो पता है सरकारें कितनी समझदार हैं … कोई नियम कानून बनाते समय इतना भी नहीं सोच पाती कि जनता के लिए क्या सही है… क्या ग़लत… ? अब महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने यह नियम निकाल दिया कि बसें सिर्फ उनके बॉर्डर तक जाएंगी। महाराष्ट्र से जाने वाली बसें महाराष्ट्र बॉर्डर पर सवारियों को छोड़ देती हैं और वहां से 20 किलोमीटर मध्य प्रदेश बॉर्डर तक सवारियों को कंट्री गाड़ियों से पहुंचाया जाता है। बेचारी सवारियां जो 4000 खर्च करके पुणे से भोपाल एसी स्लीपर में जा रही थी उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा, इससे राज्य सरकारों को कोई सरोकार नहीं है। उन्हें अपने गंतव्य तक पहुंचने में 12 से 15 घंटे लेट किया गया सोचिए हमारी राज्य सरकारें कितनी समझदार हैं… अरे भई! बस की बॉडी में कोरोनावायरस है या सवारियों में अतः समझदारी इसी में है कि महाराष्ट्र से निकलने वाली बसों को सीधा मध्यप्रदेश में अपने गंतव्य तक जाने दिया जाए, तो यह जनता की बहुत बड़ी मदद होगी और यदि संभव नहीं है तो तब तक बसें ही न चलाई जाएं। वह ज़्यादा बेहतर है आज हमारे सारे ही राज्य दिल्ली से लेकर यूपी, राजस्थान, बिहार इत्यादि कोरोना के आंकड़ों में एक दूसरे को मात दे रहे हैं। आज पूरा देश ही इस भारी मुसीबत की चपेट में है, गलतियां यदि सरकारों की हैं तो जनता की भी कम नहीं है। मोदी जी ने कोरोनावायरस से ज़रा सा ध्यान क्या हटाया, जनता को मनमानी की छूट मिल गई। लाशों के ढेर पर खड़े बंगाल के चुनाव की क्या क़ीमत चुकानी पड़ेगी यह तो समय ही बताएगा।

राजनीति की बिसात पर कौन सा मोहरा कहां फिट होगा, ऐसी चाणक्य नीति से भी चुनाव जीते जा सकते थे। जो राजनीतिक पार्टियां आज की नाज़ुक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जनता को यह अहसास कराती… कि जनता की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए हम रैलियां नहीं निकालेंगें, हमें जनता की परवाह है…. तो शायद वह पार्टी ज़्यादा कामयाब होती।

डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर ट्रेडोस अधोनम (ढशवीेी -वहरपेा) ने भारत में लगातार बढ़ रहे केसों पर चिंता जताई है, क्योंकि भारत के पास तैयारियां और सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं, आगे आने वाले समय में केस 5,00,000 प्रतिदिन भी हो सकते हैं। अमेरिका को दो लाख प्रतिदिन केस पहुंचने में 21 दिन लगे थे वहीं भारत में यह आंकड़ा महज 9 दिनों में छू लिया गया है। भारत की कोविड पॉजिटिविटी रेट पिछले 12 दिनों में 16.69% से दुगुनी हो गई है।

इस गंभीरता को समझते हुए देश को बचाने का एक ही रास्ता है पूरा लॉकडाउन, अब आंशिक लॉकडाउन से काम नहीं चलेगा। अब मोदी जी को पिछले साल जैसी रणनीति अपनानी होगी। आज 1 दिन का आंकड़ा ढाई लाख से ऊपर पहुंच गया है अगर सावधानी नहीं बरती गई तो करोड़ों तक पहुंचने में समय नहीं लगेगा, लोगों के पास समस्या आती है… आर्थिक मंदी की… रोजी-रोटी की… उससे तो लड़ा जा सकता है। मगर, जहां परिवारों में कमाने वाले ही कोरोनावायरस की भेंट चढ़ते जा रहे हैं, उस देश के पास पूरे लॉकडाउन के सिवाय और कोई चारा नहीं है। आज देश में 80,000 बच्चे संक्रमित हैं, प्रौढ़ावस्था के व्यक्तियों के लिए तो यह वायरस जानलेवा साबित हो रहा है।

जनता को ख़ुद ही संभलना होगा, उन्हें ही फैसला लेना होगा, क्या उचित है या अनुचित, कोविड-19 से गुज़रने का दर्द तो उन्हें ही सहना होगा।

मेरे प्यारे देशवासियों। आप की ज़िंदगी आपके परिवार और परिजनों की है। अपनी ज़िंदगी को बचाना आपकी जिम्मेदारी है, सरकार की नहीं। आज हम बहुत नाज़ुक स्थिति से गुजर रहे हैं। अपना ख्याल रखें… स्वस्थ रहें… सुरक्षित रहें… कोरोनावायरस, नए वेरिएंट्स… अपने बीवी-बच्चों के साथ हमारे जीवन में प्रवेश कर चुका है।

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