सुंदरलाल बहुगुणा जिन्होने पर्यावरण बचाने को लेकर बहुत मेहनत किया और इसमें काफी हद तक सफल भी हुए थे उन्होने उत्तराखंड के जंगलों को बचाने के लिए कई बार अनशन किया था और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की और पेड़ों की कटाई पर 15 साल तक के लिए प्रतिबंध लगवा दिया था। आप सभी चिपको आंदोलन से भी रूबरू होंगे उस आंदोलन में भी सुंदरलाल जी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। मार्च 1973 में उत्तराखंड के जंगलों की कटाई शुरू हुई तब सुंदरलाल जी ने गांव गांव जाकर सभी को जागरूक किया और महिलाओं को भी इस आंदोलन में भागीदार बनाया। चिपको आंदोलन देखते ही देखते पूरे देश में फैल गया। पुरुष, महिला और बच्चे सभी पेड़ों से जाकर चिपक गए और ठेकेदारों को पेड़ काटने से मना कर दिया। चिपको आंदोलन बहुत चर्चा में रहा और इसे बाद में कुछ कक्षाओं में पढ़ाया भी जाने लगा। सुंदरलाल बहुगुणा ने पर्यावरण की रक्षा के लिए कई किताबें भी लिखी है जिसके द्वारा पर्यावरण के महत्व को समझाने का प्रयास किया गया है।
चिपको आंदोलन के प्रमुख लोगों में शुमार सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार दोपहर करीब 1 बजे निधन हो गया उन्होने ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह पिछले कुछ दिनों से कोरोना से संक्रमित थे जिसके बाद उन्हे 8 मई को एम्स में भर्ती कराया गया था जहां इलाज के दौरान ही शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के सिलयारा में हुआ था। इन्होने मात्र 13 वर्ष की आयु में राजनीति में कदम रख दिया था और महात्मा गांधी के अनुयायी हो गये थे लेकिन 1956 में विवाह के बाद इन्होने राजनीतिक जीवन से किनारा कर लिया और पूरी तरह से पर्यावरण के बचाव में उतर गये। बहुगुणा जी को वृक्ष मित्र भी कहा जाता है उन्होंने नारा दिया था। “क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार। मिट्टी पानी और बयान जिंदा रहने के आधार”
पर्यावरण के साथ साथ सुंदरलाल ने उत्तराखंड में डैम और शराब की बिक्री को लेकर भी विरोध प्रदर्शन किया था। 1971 में सुंदरलाल बढ़ते शराब के सेवन पर रोक लगाने को लेकर अनशन किया था और शराब की दुकानों को बंद करने का सरकार से निवेदन किया था। सुंदरलाल जी का मानना था कि कुछ लोग पूरे दिन काम कर पैसा कमाते है लेकिन उस पैसे से परिवार चलाने की जगह शाम को शराब पी जाते है।
पर्यावरण संरक्षण में बहुगुणा जी ने बहुत ही सराहनीय योगदान दिया था जिसके लिए उन्हे हमेशा याद किया जायेगा। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने की वजह से उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार किसी एक सरकार में नहीं दिया गया बल्कि उनके सामाजिक कार्यों की वजह से यह करीब 40 सालों में अलग अलग समय पर दिया गया।
सुंदरलाल बहुगुणा को मिले पुरस्कार
1981 पद्मश्री पुरस्कार
1986 जमनालाल बजाज पुरस्कार
1987 राइट लाइवलीहुड अवार्ड (चिपको आंदोलन)
1989 डॉक्टर की उपाधि इन सोशल साइंस (IIT Roorkee)
1999 गांधी सेवा सम्मान
2009 पद्म विभूषण
पर्यावरण के संरक्षक सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर पूरे देश में शोक की लहर है। बहुगुणा जी का निधन उस समय हुआ है जब सभी को पर्यावरण की महत्ता पता चल रही है कि यह पेड़ हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण है क्योंकि कोरोना महामारी में ऑक्सीजन ना मिलने की वजह से की लोगों की मौत हो चुकी है। बहुगुणा जी के निधन पर प्रधानमंत्री मोदी ने शोक व्यक्त किया और लिखा कि बहुगुणा जी का जाना एक बड़ी क्षति है जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता।
Passing away of Shri Sunderlal Bahuguna Ji is a monumental loss for our nation. He manifested our centuries old ethos of living in harmony with nature. His simplicity and spirit of compassion will never be forgotten. My thoughts are with his family and many admirers. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 21, 2021
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी दुख प्रकट करते हुए लिखा कि, पद्मश्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन के समाचार से दुखी हूं।
चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है। pic.twitter.com/j85HWCs80k
— Tirath Singh Rawat (@TIRATHSRAWAT) May 21, 2021