हरियाणा के श्रद्धा स्थल

आदि काल से हरियााणा अत्यन्त समृद्ध एवं सुद़ृढ़ धार्मिक सांस्कृति का पोषण करता रहा है। इसके प्रत्येक गांव में मन्दिर मिलेगा जहां पर किसी साधु सन्यासी, वैरागी अथवा महन्त का वास है। इन मन्दिरों के नाम आदि काल से कृषि भूमि की व्यवस्था है। गांव में इसे आश्रम-आसन(गद्दी) या आवाड़े के नाम से जाना जाता है। प्रात: काल एवं सांयकाल शंख व घड़ियाल की ध्वनि जन साधारण को धर्माचरण की ओर प्रेरित करती है। नाथ, घुरी, औघड़, वैरागी आदि साधु जो गांव या आबादी कं निकट वास न करके एकान्त वासी रहना चाहते हैं वे किसी निर्जन स्थान पर किसी बिहड़, उंचे टिले, किसी पहाड़ी की चोटी पर अथवा किसी सरोवर या नदी के किनारे अथवा आश्रम बनाकर एकान्तवास करते हैं। गांव के अखाड़े (मन्दिर के) साधुओं का समाज में पुरा सम्मान व स्थान है। परिवार में होने वाले शुभ अवसर पर यथा विवाह पुत्र जन्म, सम्पत्ति क्रय आदि अवसरों पर महन्त जी की पत्तल(भोजन) व चढ़ावा (दक्षिणा) अनिवार्य है। नित्य प्रति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाबाजी स्वयं या उनके शिष्य गांव में फेरी लगाते हैं तथा गृहनियां इनको आटा, घी, दूध, दाल आदि देने के लिए प्रतिक्षा में रहती हैं। दुधार गायं या भैंस का पहला दूध तथा पहले बिलौने (दही मथ कर घी निकालना) का घी समाध, अखाड़े या मन्दिर में चढत्रावे के लिए जाता है। ये संत, महन्त, महात्मा पूरे गांव की मंगल कामनाएं करते हैं।

हरियाणा की भूमि ………… वैदिक काल से ही तपोभूमि रही है। पं. छाजूराम शास्त्री रिटोली ने नारद पुराण में बाबा साधुराम अत्रिगिरी अखाड़ा -(पाई पं. श्विदत्त-चुडा़ली-जींद, ए.ए. मैकडानल ने हिस्ट्री आफॅ संस्कृत लिटरेचर आदि अनेक विद्वानों ने हरियाणा की संस्कृति, सभ्यता, लोक परम्पराओं, ॠषयों उनके आश्रमों व सन्तों का वर्णन किया है। अनेक पुराणों कें अतिरिक्त हरियाणा की भूमि पर वेदों की रचना हुई है। नारद पुराण व वामन पुराण में हरियाणा के अनेक ॠषियों यथा कपिल, वेद व्यास,कण्न गरूड़, पाराशर, नारनौंद में देव ॠष नारद की तप स्थली, मार्कण्डेय, पाणिनि, नन्दी ग्राम, (नारनौल) के च्वन ॠषि तथा अंगिरा आदि का उल्लेख मिलता है। इसी भूमि पर भगवान श्री कृष्ण ने प्राणी मात्र के कल्याण के लिए धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान दिया।

हरियाणा की भूमि न केवल सनातन धर्म के सन्तों महात्माओं की भूमि है। अपितु यहां पर बौद्ध एवं जैन धर्म के अनेक सन्त हुए हैं। महात्मा बुद्ध कश्मीर से वापस आते समय इस क्षेत्र के बहुत से स्थानों पर रूके तथा अपने उपदेश दिए।
हिसार नगर में जहाज पुल के पास दिगम्बर जैन साधुओं का एक अभ्यास मठ आज भी विद्यमान है। रोहतक के जैन साधु पुष्पदत्त काफी प्रसिद्ध हुए हैं। हिसार का बिहड़ व ब्रुवाहन देवी शक्ति पीठ के रुप में जाना जाता है। पृथ्वीराज रासों के लेखक व सम्राट पृथ्वीराज चौहान के मित्र चन्द्र बरदाई भी हिसार में जन्में थे तथा अपने ग्रन्थों की रचना यहीं की थी।
मध्यकाल के सन्त :-

1.अलखदास जी – नारनौल निवासी समभाव व सद्भाव के प्रवर्तक हुए हैं। आप अहिंसा व सत्य के उपदेशक व नशामुक्ति के प्रचारक थे।
1. सन्त वीरभान :- नारनौल के विजेसर गांव में जन्में वर्ष 1600 ई0 उधोदास के शिष्य थे। “वाणी” की रचनों पोथी” के रुप में है।
2. सन्त जगजीवनदास :- कुछ लोग आपको जोगी दास के नाम से भी पुकारते थे। इनकी वाणी भी पोथी में है। पोथी 12 हुक्म प्रधान है।
3. सन्त दुलनदास :- ये भी उधोदास जी के शिष्य थे। इन सन्तों ने औरगंजेब की कट्टरपंथी नीति के विरोध में सशस्त्र टक्कर ली। इनको सतनामी व मुंडिया भी कहते हैं। सतनामी पंथ के केन्द्र हरियाणा में नारनौल तथा रोहतक जिले में है। ये ऊंच नीच, जाति पाति के भेद से ऊपर के सन्त थे।
4. सन्त निश्चलदास :- इनका जन्म हिसार जिले के कुंगड़ नामक गांव में हुआ था। आप जाट कुल से थे तथा कांसी में जाकर संस्कृत अध्ययन के बाद वेद वेदान्त व दर्शन शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। आपने सांख्य न्सास में स्वयं के विषय में लिखा है

……………………., पढ़ि व्याकरण अशेष।
पढ़ै ग्रन्थ अदवैत के सहस्यों का शेष ॥
कठिन जो और निबन्ध हैं, जिनमें मत के भेद।
श्रमते अवगाहन कियो निश्चलदास सवेद॥

5.सन्त गरीबदास :- रोहतक जिले के घुड़ाजी गांव में जन्में वर्ष 1750 ई0 में जाट परिवार में आपका जन्म हुआ। आपके व्यिंतव व कृतित्व पर सन्त कबीर का बहुत प्रभाव था।

6.सन्त चतुर दास :- आपने अपने गुरु सन्तदास की आशा से गीता के ग्यारहवे अध्याय तथा भागवत के दसकें सकन्ध का भाषानुवाद किया। विद्वान सन्त थे।

7.कुरुक्षेत्र के निर्मला सन्त :- मानसिंह व गुलाब सिेह सन्त गुलाब सिंह की माता का नाम गौरी व पिता का नाम राईया था। इन्होने मोख पंथ प्रकाश, प्रबोध चंद्र, स्वप्न अध्यायी, रामगीता व रामहृदय आदि ग्रन्थ लिखें।

8.सन्त आत्मा सिंह :- सन्त आत्मा सिंह व सन्त राम सिंह भी म्हात्मा थे।

9.बाबा दानाशेर :- हिसार नगर के पूवोत्तर भाग में एक स्थान का नाम है। टिब्बा दानाशेर- अठाहरवाीं शताब्दी में इसके आस पास घना बीहड़ था। यहां पर एक परम योगी बाबा तप्स्या करते थे। जो गौरक्षक एवं गौपालक थे। एक बार उनकी गायों पर वयाघ्र ने आक्रमण कर दिया बाबा निहत्थे थे परन्तु अपने तप व ब्रह्मचर्य बल से शेर को मार गिराया इस घटना के बाद बाबा जी का नाम दानाशेर पड़ गया।

10.बाबा लकड़नाथ :- तहसील हांसी जिला हिसार के गांव चाकौत व उसके निकटवर्ती गांव मसूदपुर के बचि गांवों से लगभग 4 कि.मी. दूर एक सुन्दर तालाब के किनारे बिहड़ है जिसे स्थनीय निवासी “बण” कहते हैं में निवास करने वाले सिद्ध योगी हुए हैं। नाथ सम्प्रदाय के ये सन्त आर्युवेद के ज्ञाता थे तथा नि:शवार्थ भाव से पिड़ितों को रोग मुक्त करते थे। इनके शिष्य अभी भी आश्रम में रहते हैं तथा जन सेवा करते हैं।

11.महाराज तिगड़ाना वाले :- शांत स्वभाव व गोलमटोल शरीर वाले बाबाजी भिवानी के पास तिगड़ाना नामक गांव में निवास करते थे। मन्दिर में अभी भी उनकी समाधि है। आप दिन दुखीयों का दं:ख दर्द दूर करने के लिए उनके सिर को मोर पंखी से झाड़ा देते थे तथा कष्ट दूर हो जाता था। आज भी उनकी समाधि पर वन्दना करने से दुख दूर होता है।

12. सालहा डेहरी सतगर :- सालहा डेहरी एक अतयन्त एकान्त स्थान था। आज के आधुनिक युग में तो सड़क मार्ग से जुड़ गया है। यहां पर गौपालक व रक्षक सिंह बाबाजी का निवास था। हिन्द केसरी मास्टर चंदगीराम के आराध्य गुरु थे बाबाजी तथा उनके प्रतीद्वंदी पहलवानों यथा मेहरदीन व मारुती माने को यह कहते सुना है कि हमें चंदगीराम ने नहीं पटका अपितु एक लम्बी दाढ़ी व जटाओं वाले बाबा ने पटका है। बाबा के प्रताप से यहां एक बहुत बड़ी गऊशाला व आश्रम का संचालन होता है।

13.सन्त चौरंगी नाथ :- आप पागल पंथ के प्रवर्तक तथा “प्राण सांकली” के ग्रन्थकार हैं बोहर-अस्थल (बौद्ध बिहार स्थान का अपभ्रंश) में रहकर 12 वर्ष तक तप किया बाबा मस्तनाथ चरित में इसका उल्लेख है।

14. कृष्ण मुक्त रामदत्त :- आप नारनौल निवासी थे तथा आपमें कृष्ण भक्ति के पद रचे हैं। जन श्रुतियों के अनुसार आपको अनेक सिद्धियां प्राप्त थी।

15.श्रीधर जी शास्त्री :- आप नारनौल के रहने वाले थे तथा आपने वर्ष 1920 में “दया कुमार” की रचना की। सन्तोषी प्रवर्ती के सन्त थे।

इसके अतिरिक्त अनेक सन्त, महापुरुष, साधु, सन्यासी, तपी, योगी, हठी इस पावन भूमि पर हुए हैं। रामहृदय रामराय से ॠषि जमदग्नि एवं भगवान परशुराम का गहरा सम्बन्ध है। मनभौरी( मनभौरी) जिला हिसार में दुर्गामाता की पूजा करके आर्शीवाद प्राप्त करके पाण्डवों ने कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध किया तथा विजय प्राप्त की। आज भी देश विदेश से श्रद्धालु गठ-जोड़े की जात व झंडूला(सच्चे बाल) उतरवाने के लिए यहां आते हैं। गुड़गांव (गुरुगा्रम) का प्राचीन मन्दिर महाभारत काल का हैं। बेरी में महिषासुर मर्दनी की प्राचीन मूर्ति है।

सिद्ध योगी व सन्तों के आसन, पीठ व आश्रम श्रद्धा तथा आस्था का केन्द्र है। बाबा बालकनाथ, गुरु गोरक्ष नाथ, गुरु मच्छन्दर नाथ आदि अनेकों सिद्धों व योगियों तथा जिनके नाम यहां नहीं हैं उन सभी सन्तों महापुरुषों को श्रद्धापूर्वक नमन। वर्तमान सन्तों में स्वामी सत्यमित्राानन्द जी महाराज भारत माता मन्दिर सन्त सरोवर हरिद्वार, स्वामी ज्ञानानन्द जी गीता…………, योगा नाथा महामण्डलेश्वर, स्वामी भगवान देव परमहंस श्री काकरोली धाम भिवानी अन्य है।

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