पूर्वोत्तर क्षेत्र में राष्ट्रसेविका समिति कार्य

१९८७ में नागपूर में पूर्वांचल की बालिकाओं के लिए छात्रावास प्रारंभ हुआ। इन बालिकाओं के ग्राम हम सभी के लिए संपर्क के माध्यम बने। जिसके कारण अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में समिति कार्य का प्रवेश हुआ।

उत्तरपूर्व क्षेत्र में १९७८ के बाद राष्ट्र               सेविका समिति का कार्य प्रारंभ हुआ।१९८० से १९९० तक यहां की अस्थिर और अशांत परिस्थिति के कारण कार्य के लिये अत्यंत प्रतिकूल परिस्थिति थी। इसलिए कार्य करते समय अनेक कठिनाइयोंं का सामना करना पडा। प्रारंभ में मणिपुर तथा असम के धुबडी, नलबाडी, गुवाहाटी, नगाव और सिल्चर जिले में कार्य की नींव रखी गयी। अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे शिबिरों के माध्यम से संपर्क बढता गया। १९८७ में नागपूर में पूर्वांचल की बालिकाओं के लिए छात्रावास प्रारंभ हुआ। इन बालिकाओं के ग्राम हम सभी के लिए संपर्क के माध्यम बने। जिसके कारण अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में समिति कार्य का प्रवेश हुआ।

नागपूर के केन्द्रीय कार्यालय स्थित देवी अहल्याबाई कन्या छात्रावास में आज सातों राज्यों से १९ जनजाति की ४५ बालिकाएं पढाई कर रही हैं। इस माध्यम से ‘हम भारत के हैं’ यह संस्कार शेष भारत को पूर्वांचल से जोडने का एक महत प्रयास है। असम के उत्तर काछार क्षेत्र में हाफलांग में रानी मां गाईदिनल्यु छात्रावास प्रारंभ हुआ। हाफलांग की बहनें नागपूर के छात्रावास से पढाई पूर्ण कर वहां वापस जाने के बाद उनके प्रयास से यह प्रकल्प खडा हुआ। आज इस छात्रावास में ३५ बहनें हैं। अलगाववाद की भावनाओं को दूर करने के दृष्टि से यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रकल्प है।

नागालैंड की तस्सीले जिलियांग छोटी आयु में नागपूर में अपनी रानी मां जैसा बनने का स्वप्न लेकर  नागपुर आई। पदव्युत्तर की पढाई नागपूर विश्वविद्यालय से मेरिट में उत्तीर्ण कर उन्होंने केन्द्रीय विद्यालय की नौकरी को ठुकराकर दिया। अब वे विद्याभारती द्वारा संचालित रानी मां विद्यालय जालुकी में प्रधान शिक्षिका की भूमिका निभा रही है और रानी मां, जातक कथाएं, जादोनांग जैसे चरित्र का लेखन नागा भाषा में करती हैं। वह नागालैण्ड में लेखन कार्य करनेवाली पहली लेखिका है।

कार्बीमांगलांग की एक बालिका नागपूर में पढाई करके घर वापस जाने के पश्चात् विवाह के बाद समिति कार्य की सक्रीय कार्यकर्ता बनकर, साहस के साथ, तीवा समाज के जो लोग परधर्म में गये थे उनके घरवापसी के कार्य में जुटी है। मंदिरा ने, जो सिल्चर विभाग में प्रचारिका के नाते कार्यरत है गत वर्ष ४०० परिवारों को फिर से अपनी संस्कृति में वापस लाया। सुदूर मिजोरम की पुष्पा चकमा नागपूर से घर वापस जाने के बाद, विवाह के बाद, ससुराल में राष्ट्रीयता के भाव जगाती है। उनके प्रयास से संघमित्रा कन्या छात्रावास- प्रारंभ हुआ जहां १४ बालिकाएं है।  मिजोरम जैसे कठिन राज्य में संघमित्रा वेलफेअर ट्रस्ट- के द्वारा सेवा कार्य खडा करना एक चुनौति है।

असम के प्रवेशद्वार कोकडाझार जिले के गोसाईगांव में १९०७ में विर्गश्री कन्या छात्रावास प्रारंभ हुआ। जहां आज ४० बालिकायें अध्ययनरत हैं। गत दो दशकों से भी अधिक समय से इस क्षेत्र में स्वतंत्र बोडोलॅण्ड की मांग लेकर संघर्ष खडे किये जाते है। हिंदू समाज को कमजोर करने का यह षडयंत्र है। प्रतिवर्ष हजारों घर जलाये जाते है, अनेक हत्याएं होती है। परिणाम स्वरूप शरणार्थी शिबीरों का आश्रय लेना पडता है। इस समय वहां की आवश्यकता को पूर्ण करने हेतु सेवा कार्य किया गया है। उतना ही नहीं, उदालगुडी, गवालपाडा, कार्बीयांगलांग के संघर्ष के समय स्वावलंबन के दृष्टि से प्रशिक्षण दिया  गया है। शिवमंदिर, जगन्नाथ मंदिर की प्रतिष्ठापना के माध्यम से धर्म जागरण का कार्य, जिससे सभी को एक सूत्र में बांधा गया है। प्रतिवर्ष असम में, लाखों की तादात में, रक्षा बंधन में रक्षासूत्र बांधे जाते है।

२००३ में हमार और डिमासा के बीच संघर्ष हुआ था उस समय कछार जिले के मिजोरम के सीमा के निकटवर्ती ग्राम मेथनातल और चेकरचाम ग्राम के ४७ परिवार के पुरुषों की हत्या कर महिलाओं को विधवा बनाकर उन्हें असहाय बनाया गया। इस ग्राम के पुनर्वसन की योजना को हाथ लेकर सुरक्षा, संस्कार, स्वावलंबन, शिक्षा आदि विषयों के आधार पर हातकरघा, सिलाई मशिन प्रशिक्षण दिया और आत्मविश्वास तथा स्वाभिमान के साथ महिलाओं को फिर से खडा किया गया। वहां की वास्तविक स्थिति केन्द्र सरकार तक पहुंचाने का प्रयास हुआ। उस समय पूर्णिमा आडवाणी और निर्मला जी सीतारामन् जी को इस क्षेत्र में बुलाया गया था। २००६ के डिमासा – नागा संघर्ष के समय भी परिस्थिति ने भयावह रूप लिया था। अनेक दिनों तक उत्तर कछार का यह क्षेत्र पूर्वांचल तथा शेष के संपर्क से कट गया था। उस समय वहां की अलग अलग जनजाति की बहनों का प्रतिनिधि मंडल लेकर महामहीम राष्ट्रपति से लेकर गृहमंत्री चिदंबरम जी तक पहुंचाया गया, फलस्वरूप वहां की परिस्थिति को बदलने में यह महत्त्वपूर्ण प्रयत्न साबित हुआ।

२००४ में राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वंदनीय मौसीजी के जन्मशताब्दि वर्ष के निमित्त पूरे देश में प्रदर्शनी यात्रायें हुई।  पूर्वांचल के ६ राज्यों में १३ स्थानों पर प्रभावी कार्यक्रम सम्पन्न हुये। इस शुभ अवसर पर २००५ में नागपूर में आयोजित अखिल भारतीय सम्मेलन में सातों राज्यों से ३०९ स्थानों से ४५ भाषाओं की १००० सेविकाएं सहभागी हुई थीं। २००३ से वहां प्रतिवर्ष दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सा शिबीरों का आयोजन किया जाता है। प्रतिवर्ष हजारों रोगियों के स्वास्थ्य के विषय में चिंता की जाती है। जहां प्रथमोपचार की सुविधाएं नहीं है ऐसे स्थानों की बहनों को संघमित्रा प्रतिष्ठान तथा नागपुर के स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन द्वारा आरोग्य सेविका का प्रशिक्षण दिया गया। यहां से प्रशिक्षित होकर यह बहनें अपनें ग्रामवासीयों के लिये प्राणरक्षिका के रूप में खडी हुई। आज असम क्षेत्र में समिति की ३७५ शाखायें है। १६ प्रचारिकायें और १० विस्तारिकायें है।

 १.    वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर स्मारक समिति – गुवाहाटी

 २.   सरस्वती स्मारक समिति – सिल्चर

 ३.   इमा लक्ष्मी स्मारक समिति – इम्फाल

 ४.   संघमित्रा वेलफेयर ट्रस्ट – मिजोरम

इन पंजीकृत संस्थाओं द्वारा अन्य सेवाकार्यों की योजना भी बन रही है।

आज समिति के कार्यकर्ताओं पर विश्वास होने के कारण नागपूर, अहमदाबाद, पंजाब तथा असम के चार छात्रावासों के माध्यम से ३०० बहनें शिक्षा ग्रहण कर रहीं हैं।

आज इस क्षेत्र में अनुकूलता है। मातृशक्ति जागरण का कार्य पूर्वांचल के लिये आशा की किरण है।

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