वैक्सीनेशन की सुस्त रफ़्तार

इस परिस्थिति से कैसे निपटा जाये और इसका सबसे सटीक जवाब है सभी का जल्द से जल्द वैक्सीनेशन लेकिन वर्तमान हालत को देखते हुए देश में टीकाकरण की प्रगति संतोषजनक नहीं है, कई राज्यों में वैक्सीन की कमी हैं। कोरोना को रोकने के लिए वैक्सीनेशन है सबसे बड़ा हथियार, लेकिन वैक्सीन की किल्लत चुनौती बन गई है।

देश में कोरोना की दूसरी लहर से कोहराम मचा हुआ है, हर दिन हजारों लोग असमय काल कलवित हो रहें हैं। देश के कई राज्यों में आक्सीजन की कमी बनी हुई है। बड़ा सवाल यह है कि इस परिस्थिति से कैसे निपटा जाये और इसका सबसे सटीक जवाब है सभी का जल्द से जल्द वैक्सीनेशन। लेकिन वर्तमान हालत को देखते हुए देश में टीकाकरण की प्रगति संतोषजनक नहीं है, कई राज्यों में वैक्सीन की कमी है। कोरोना को रोकने के लिए वैक्सीनेशन है सबसे बड़ा हथियार, लेकिन वैक्सीन की किल्लत चुनौती बन गई है।

ऐसे वक्त में जब देश में कोरोना की दूसरी लहर गंभीर स्थिति पैदा कर रही है, वैक्सीन ही अंतिम कारगर उपाय नजर आता है। ऐसे में बचाव के परंपरागत उपायों के साथ टीकाकरण अभियान को गति देने की जरूरत है ताकि देश संपूर्ण लॉकडाउन जैसे उपायों से परहेज कर सके। पिछली बार देशव्यापी लॉकडाउन से जहां देश की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा था, वहीं एक बड़ी आबादी को शहरों से गांवों की ओर लौटना पड़ा था। बड़े पैमाने पर रोजगार का संकट भी पैदा हुआ था। दरअसल, टीकाकरण अभियान की विसंगतियों को दूर करके इस अभियान में तेजी लाने की जरूरत है। वैक्सीन आपूर्ति को लेकर गैर भाजपा शासित राज्यों की शिकायतों के बाद आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला भी जारी है। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी को अनुचित बताते हैं और कहते हैं कि पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन की आपूर्ति की जा रही है। उनका मानना है कि ऐसी बयानबाजी से जहां लोगों का मनोबल प्रभावित होता है, वहीं देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों के चलते सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को वैक्सीन की सप्लाई में तेजी लाने में दिक्कत आ रही है। उसका कहना है कि अमेरिका व यूरोपीय देशों द्वारा वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगाने से उत्पादन प्रभावित हुआ है। फ़िलहाल अमेरिका ने वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने का भरोसा दिलाया है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय कोवैक्स कार्यक्रम के तहत वैक्सीन देने के लिये सीरम इंस्टीट्यूट कानूनी रूप से बाध्यकारी है। उसे ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्युनाइजेशन के तहत विकासशील मुल्कों को वैक्सीन देनी ही होगी। वहीं मांग की जा रही है कि देश में कोरोना संक्रमितों के आंकड़ों में तेजी के बाद वैक्सीन डिप्लोमैसी बंद की जानी चाहिए और पहले घरेलू जरूरतों को पूरा किया जाना चाहिए। वैसे पिछले माह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री आश्वासन दे चुके हैं कि भारतीयों की कीमत पर वैक्सीन का निर्यात नहीं किया जायेगा।

वैक्सीनेशन की धीमी रफ़्तार

केंद्र सरकार के अनुसार कोरोना महामारी से बचाव के लिए अब तक भारत में 17 करोड़ से ज्यादा टीके दिए जा चुके हैं। दुनिया में किसी भी और देश ने 17 करोड़ लोगों को इतनी तेजी से वैक्सीन नहीं दिया है। लेकिन देश की बड़ी जनसंख्या को देखते हुए यह नाकाफी है। अचरज की बात यह है कि एक तरफ जहां देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में रिकार्ड बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं पिछले कुछ दिनों से वैक्सीन लेने वालों की संख्या घट रही है। कोरोना के हालात पर एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा रफ्तार से दिसंबर, 2021 तक ही 15 फीसद आबादी को दोनों डोज वैक्सीन लगाई जा सकेगी। दूसरी तरफ लगभग 21 करोड़ आबादी को दोनों डोज वैक्सीन देकर अमेरिका 25 फीसद का आंकड़ा पा चुका है तो लगभग चार करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन कर इंग्लैंड 15 फीसद के पास पहुंच चुका है।

भारत में वैक्सीन की इस सुस्त रफ्तार के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं। आम जनता के बीच वैक्सीन को लेकर ऊहापोह और बेवजह डर की स्थिति भी एक कारण रही है। लेकिन अभी वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने को भी एक अहम कारण माना जा रहा है। कारण जो भी है दुनिया के तमाम बड़े महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी संख्या में ढांचागत सुविधा लगाने के साथ आक्रामक तरीके से वैक्सीन कार्यक्रम को विस्तार देने से ही मौजूदा संकट से निकला जा सकेगा। अमेरिकी सरकार के प्रमुख मेडिकल एडवाइजर डा. एंथोनी फौसी ने शुक्रवार को कहा कि भारत बेहद खराब दौर से गुजर रहा है, लेकिन उसे टीकाकरण बढ़ाने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस आधनोम घेबरेसस ने भी भारत को वैक्सीन पर जोर देने को कहा है। एसबीआई रिपोर्ट का मानना है कि महाराष्ट्र अपने पीक पर पहुंच चुका है और अब वह उतार पर है, जबकि बाकी देश में पीक पहुंचने में 15-20 दिन का वक्त लगेगा और इसका बड़ा कारण भी टीकाकरण में सुस्ती है। रिपोर्ट ने 1918 के स्पेनिश फ्लू का भी उदाहरण दिया है और बताया है कि बाद के लहर में ज्यादा मौत होती है। इसीलिए टीकाकरण की गति तेज होनी ही चाहिए।

देश में अब 18 साल से ऊपर के सभी लोगों का टीकाकरण शुरू हो चुका है। केंद्र सरकार बार-बार कह भी रही है कि टीकाकरण अभियान पूरी तेजी से चल रहा है, टीकों की कहीं कोई कमी नहीं है। लेकिन सरकार के अपने ही आंकड़े इस बात से मेल नहीं खाते। 18 से 44 साल तक के सभी लोगों के लिए वैक्सीनेशन 1 मई से शुरू हुआ है। इस आयु वर्ग में अभी तक सिर्फ 25लाख लोगों का वैक्सीनेशन हो पाया है। 18 से 45 साल आयु वर्ग के लिए वैक्सीन का इंतजाम राज्य सरकारों को करना है और राज्य लगातार ये कह रहे हैं कि वैक्सीन की सप्लाई रुक गई है। इसलिए वैक्सीन की कमी के चलते 10 दिनों में करीब 10 हजार वैक्सीनेशन सेंटर घटाए गए हैं।

कोरोना की कई वैक्सीन को मिल सकती है मंजूरी

भारत के ड्रग रेगुलेटर-ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (ऊउॠख) ने वैक्सीन पर बनी एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिशों को मान लिया है। यानी अब मॉडर्ना, फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन (गग) की वैक्सीन को जल्द ही मंजूरी मिल जाएगी।

नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड-19 (छएॠत-उ) ने अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन, जापान, और विश्व स्वास्थ्य संगठन (थकज) से मंजूर वैक्सीन को इम्पोर्ट करने का सुझाव दिया था। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया वीजी सोमानी ने इन वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूरी देने की शर्तें और प्रक्रिया जारी की है। भारत में 16 जनवरी को वैक्सीनेशन शुरू हुआ था। तब भारत बायोटेक की कोवैक्सिन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवीशील्ड का इस्तेमाल शुरू हुआ। पिछले दिनों भारत के ड्रग रेगुलेटर ने रूसी वैक्सीन स्पुतनिक त को भी मंजूरी दे दी है। विदेशी वैक्सीन को मंजूरी की राह खुलते ही देश में वैक्सीन डोज की कमी और सबको वैक्सीन लगाने की राह में आ रही अड़चनें दूर करने में मदद मिलेगी।

कैसे मिलेगी विदेशी वैक्सीन को अनुमति?

विदेशी वैक्सीन को सबसे पहले 100 लोगों को लगाया जाएगा। फिर यह जानने की कोशिश की जाएगी कि वैक्सीन सुरक्षित है या नहीं। इन 100 लोगों की सात दिन तक निगरानी होगी। इसके बाद फैसला किया जाएगा कि वैक्सीन को इमरजेंसी मंजूरी दी जाए या नहीं।

वैक्सीन सुरक्षित साबित हुई तो उसे इमरजेंसी मंजूरी मिलेगी, पर एक शर्त के साथ। विदेश में जिन वैक्सीन का ट्रायल्स हुए हैं, उन्हें भारत में ब्रिज ट्रायल कराना होता है। इसमें फेज-3 के क्लीनिकल ट्रायल्स की तरह हजारों वॉलंटियर्स को डोज नहीं दिए जाते, बल्कि कुछ सौ लोगों पर ट्रायल्स के जरिए विदेशों में मिले नतीजों को साबित करना होता है। कोवीशील्ड और स्पुतनिक के ट्रायल्स भी इसी तरह हुए हैं।

नए नियम के तहत विदेशी वैक्सीन को सात में सुरक्षित पाए जाने पर ट्रायल्स मोड पर ही मंजूरी दी जाएगी। यानी जिसे वैक्सीन का डोज दिया जाएगा, उससे सहमति पत्र भरवाया जाएगा। जैसा, शुरुआत में कोवैक्सिन लगवाने वालों के साथ हुआ। जब उसके नतीजे आ गए तब यह क्लीनकल ट्रायल मोड हटाया गया। इसी तरह जब ब्रिज ट्रायल्स के नतीजे आ जाएंगे तो विदेशी वैक्सीन पर से भी ब्रिज ट्रायल्स मोड हटा लिया जाएगा।

किस-किस वैक्सीन को मिल सकती है मंजूरी?

नए फैसले के मुताबिक सिर्फ अमेरिकी रेगुलेटर णडऋऊअ, यूरोपीय संघ के रेगुलेटर एचअ के रेगुलेटर णघ चकठअ, जापान के रेगुलेटर झचऊअ और थकज की ओर से लिस्टेड इमरजेंसी यूज लिस्टिंग में शामिल वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी यूज अप्रूवल दिया जाएगा।

इस समय अमेरिका में मॉडर्ना, फाइजर के साथ सिर्फ जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन को अप्रूवल मिला हुआ है। इसी तरह यूरोपीय संघ में इन तीन के अलावा एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को अप्रूवल दिया गया है। णघ में फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगाई जा रही है। जापान में सिर्फ फाइजर की वैक्सीन। थकज ने अब तक सिर्फ दो ही वैक्सीन को मंजूरी दी है- फाइजर और एस्ट्राजेनेका।

ऐसे में फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन ही ऐसी है, जिनका इस्तेमाल इन देशों में हो रहा है और हमारे यहां नहीं। इन वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी अप्रूवल मिलना तय माना जा सकता है।

कुलमिलाकर देश में वैक्सीन की कमी दूर करने का सिर्फ एक ही उपाय है कि केवल दो कंपनी से पूरे देश को वैक्सीन देना संभव नही, वैक्सीन का फार्मूला अन्य कंपनियों से साझा किया जाए और भारत में अन्य कई कंपनियों को वैक्सीन बनाने की इजाज़त दी जाए।

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