आपदा में अवसर खोजते मुनाफाखोर

नकारात्मकता को प्रसारित करने से भी कोविड संकट में लोगों की जान जा रही है। बेहतर होगा कि सरकार की आलोचनाओं से अपना ध्यान हटाकर हमारे मीडिया समूह कालाबाजारी और जमाखोरी करने वाले चेहरों को लक्षित करके बेनकाब करें। एक माहौल इन तत्वों के विरुद्ध खड़ा किया जाए।

अप्रैल के मध्य से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक देश में कोरोना महामारी का कहर एक अंतहीन सिलसिले की तरह जारी है। सांसे थम रहीं हैं और लोग अपने प्रियजनों को अपनी आंखों के सामने त्वरित एवं पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ते हुए देखने पर विवश हैं। मौजूदा पीढ़ी के लगभग हर शख्स के लिए यह संकट किसी भी कल्पना से परे है। भारत का कोई कोना शेष नही जहां दारुण दृश्य खड़े न हुए हों। ऑक्सीजन के लिए तरसते मरीज, रेमडिसिवीर इंजेक्शन के लिए मारामारी करते परिजन, आईसीयू में एक बेड के लिए मिन्नतें करते लोग। जीवन पर ऐसा संकट शायद ही मानव सभ्यता ने कभी देखा और भोगा हो, वह भी तब जब मानवीय विकास को चरमता पर कहा जाता है। इन भीषणतम परिस्थितियों में भी क्या एक तबका ऐसा भी हो सकता है जो इस आपदा को अवसर मानने की हिम्मत जुटा सकता है? जी हां! इसी धरती पर ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस संकट में अपना निकृष्टम आचरण प्रमाणित किया है। जबलपुर में दो डॉक्टर रेमडिसिवीर की कालाबाजारी करते पकड़े गए। उन पर म.प्र. शासन ने रासुका लगाया। झांसी में दो नर्सें ऐसा ही करते धरी गईं। दिल्ली, बेंगलुरु, अहमदाबाद, इंदौर, चेन्नई से लेकर देश के हर हिस्से में ऐसी घटनायें प्रकाश में आ रही है। न केवल मेडीकल उपकरणों एवं दवाओं बल्कि रोजमर्रा की वस्तुओं की कालाबाजारी, जमाखोरी करने वाले लोगों की कमी भी इसी देश में आपको नजर नहीं आएगी। सवाल यह है कि क्या समाज में आज भी विधर्मियों की कमी नहीं है? इस संकट में जिस निकृष्टतम तरीके से लोगों ने खुद की आत्मा को बेचकर मुनाफे की राह पकड़ी है वह इस बात को प्रमाणित करता है कि समाज में राष्ट्र जागरण का आज भी अत्यधिक अभाव है, वरन दवाओं की कालाबाजारी के मामलों में रासुका लगाने की आवश्यकता सभ्य समाज में नहीं पड़नी चाहिए थी। प्रश्न यह भी है कि क्या संकट के दौर में विधर्मियों एवं राष्ट्रविरोधी तत्वों का एक पूरा नेटवर्क फिर से सक्रिय है?

आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने महामारी के आरम्भ में ही कहा कि ‘यह भी संभव है समाज विघातक एवं भारत विरोधी शक्तियां इस गंभीर परिस्थिति का लाभ उठाकर देश में नकारात्मकता एवं अविश्वास का वातावरण खड़ा कर सकती हैं। देशवासियों को अपने सकारात्मक प्रयासों के साथ इन शक्तियों के षड्यंत्रों के प्रति भी सजग रहना होगा।’

होसबोले जी की यह आशंका निर्मूल साबित नहीं हुई। आए दिन जिस तरह से कालाबाजारी औऱ नकारात्मकता का सुगठित माहौल निर्मित किया गया है, वह बताने के लिए पर्याप्त है कि भारत में एक बड़ा तबका इस मानव संकट के दौर में भी अपनी राष्ट्रविरोधी करतूतों से पीछे नहीं हैं। एक तरफ संघ के लाखों स्वयंसेवक इस संकट में समाज की सज्जन शक्ति के साथ मिलकर आमजन के दर्द को कम करने में लगे है दूसरी तरफ देश में नकारात्मकता औऱ अविश्वास के माहौल को बनाने में एक बड़े वर्ग ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। मीडिया में एक बड़ा वर्ग इस आपदा को मोदी सरकार से अपनी खुन्नस निकालने के अवसर के रूप में उपयोग कर रहा है। वह विदेशी मीडिया के इशारों पर कठपुतली की तरह देश को बदनाम करने की साजिश में संलग्न है। यह सही है कि भारतीय स्वास्थ्य ढांचा इस दूसरी लहर के सामने समावेशी साबित नहीं हो सका है और हमारी लापरवाही भी इस संकट के मूल में एक अहम कारक है लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि भारत एक विशाल आबादी औऱ बहुसामाजिकी वाला देश भी है। यहां खानपान, रीतिरिवाज से लेकर शासन की संस्कृति भी अलग है। जिन विकसित देशों में कोरोना ने लाखों नागरिकों को मौत के मुंह में धकेला है, वहां की आबादी हमसे बहुत ही कम है और वहां स्वास्थ्य ढांचा बहुत ही विकसित है।

इसके बाबजूद भारत बहुत ही प्रामाणिक तरीके से इस संकट का सामना समाज की भागीदारी के बल पर कर रहा है। लाखों लोग इस संकट में अपना यथायोग्य योगदान दे रहे हैं। मठ, मंदिर, गुरुद्वारे से लेकर समाज की विपुल सज्जन शक्ति हर मोर्चे पर डटी है। ऊंच-नीच के भेद भुलाकर लोग अपनी सीमाओं में रहकर संकट का सामना कर रहे हैं। लेकिन उन तत्वों को क्या कहा जाए जो कालाबाजारी में संलग्न है। दवाओं को दस बीस गुने दामों पर बेचकर सांसों की खरीद बिक्री में लगे हैं। ऑक्सीजन के सिलिंडर सौ से दो सौ गुना दामों पर ब्लैक कर रहे हैं। पल्स ऑक्सिमिटर तीन-तीन हजार में खरीदने के लिए लोग विवश हैं। न केवल मेडीकल गुड्स बल्कि फल, सब्जी, राशन जैसी जरूरत की चीजों की देश में कोई कमी नहीं है। सरकार ने इनके परिवहन को भी प्रतिबंधित नहीं किया है इसके बाबजूद जमाखोरों द्वारा कृत्रिम अभाव खड़ा कर मोटा मुनाफा कमाया जा रहा है। सरकार हर मोर्चे पर नहीं लड़ सकती है। यह तो समाज की सामूहिक नैतिकता का सवाल भी है। हमें अपने इर्दगिर्द ऐसे तत्वों को चिन्हित करने की आवश्यकता भी है जो राष्ट्र के समक्ष खड़े इस संकट में भी अपनी आत्मा का सौदा कर मुनाफाखोरी में संलग्न हैं। यह ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों के बहिष्कार का वक्त भी है और हमें सामूहिक स्तर पर एक नए दृष्टिकोण को विकसित करने का अवसर भी प्रदान करता है। क्योंकि पिछले कुछ दशकों में हम सिर्फ धनवान लोगों को स्वप्रतिष्ठित करने की अधिमान्यता के माहौल में जी रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे घिनौने साधनों से धनवान बने चेहरों को हम राष्ट्र विरोधी तत्वों के तौर पर चिन्हित कर उन्हें समाज जीवन से बहिष्कृत करें। सच्चाई यही है कि जब तक समाज से बहिष्कार नहीं होगा तब तक ऐसे तत्व हर संकट की घड़ी में राष्ट्र की चेतना पर आघात करते रहेंगे। न केवल कालाबाजारी, जमाखोरी करने वाले बल्कि राष्ट्र जीवन में नकारात्मकता औऱ अविश्वास का जहर घोलने वाले तत्वों से भी हमें सावधान होने की महती आवश्यकता है। इन तत्वों द्वारा भी लगातार भारत की छवि को प्रायोजित तरीके से खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। टाइम मैगजीन हो, लासेन्ट का कोई रिसर्च अथवा न्यूयार्क टाइम्स औऱ गार्डियन जैसे अखबार; एक प्रायोजित दुष्प्रचार भारत में बैठे कथित बुद्धिजीवियों के बल पर इन माध्यमों से हो रहा है। भारत को श्मशान भूमि बताने वाले पोस्टर बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जाना एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है जबकि अमेरिका, यूरोप में भारत से बुरे हालात दूसरी औऱ पहली लहर में निर्मित हुए हैं। इस सच्चाई को कम महत्व दिया जा रहा है कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य राष्ट्रीय सोच वाले समाज संगठन से जुड़े लाखों लोग भारत मे पीड़ितों के साथ खड़े हैं। भारतीय उद्योगपतियों द्वारा भी आगे आकर अपने संसाधन राष्ट्र को समर्पित किये गए हैं। लेकिन एक बड़ा सुगठित गिरोह जिसका प्रचार माध्यमों पर कब्जा है, इन सब कार्यों को तरजीह नहीं देना चाहता है। यह भी एक तरह का राष्ट्रद्रोह ही है; क्योंकि केवल नकारात्मकता को प्रसारित करने से भी कोविड संकट में लोगों की जान जा रही है। बेहतर होगा कि सरकार की आलोचनाओं से अपना ध्यान हटाकर हमारे मीडिया समूह कालाबाजारी और जमाखोरी करने वाले चेहरों को लक्षित करके बेनकाब करें। एक माहौल इन तत्वों के विरुद्ध खड़ा किया जाए।

संघ के सरकार्यवाह होसबले जी ने आरम्भ में ही जिस आशंका को रेखांकित किया था, उसे बहुत ही गंभीरतापूर्वक लिए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत विरोधी अपने एजेंडे के लिए किसी भी स्तर तक जाने के लिए बेनकाब हो चुके हैं। कुंभ के आयोजन पर सवाल उठाकर मोदी सरकार को घेरने वाले किसान आंदोलन की समाप्ति की पहल नहीं करना चाहते। हाल ही में चौधरी देवीलाल कोविड केयर सेंटर के उद्घाटन में जिस तरह से वहां के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के विरुद्ध किसानों के नाम पर जमावड़ा कर उपद्रव किया गया वह इस बात को प्रमाणित करता है कि राष्ट्र विरोधियों की मंशा कितनी खतरनाक है।

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