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Petrol & Diesel: तेल के खेल में फंसी जनता

Petrol & Diesel: तेल के खेल में फंसी जनता

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष
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पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर राजनीतिक स्तर पर हमेशा से विरोध देखने को मिला है। मुझे याद है सन 2010 में पेट्रोल का दाम करीब 48 रुपये था जो सन 2021 में 100 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच चुका है। पिछले 10 सालों में अगर किसी भी चीज का दाम दोगुना हुआ है तो इसमें बहुत आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पेट्रोल और डीजल के अलावा भी तमाम चीजें है जिनके दाम बढ़े है लेकिन उन पर किसी का भी ध्यान नहीं है या फिर लोग उस पर ध्यान नहीं देना चाहते है। खाने पीने, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान और मोबाइल फोन सब कुछ महंगा हुआ है। साथ ही समझने वाली एक बात और है कि जब भी किसी चीज की मांग बढ़ेगी तो उसके दाम बढ़ने स्वाभाविक है उसके लिए किसी को भी दोष नहीं दिया जा सकता है।   
 
दरअसल पेट्रोल का राजनीतिकरण किया गया है और समय समय पर विपक्षी दलों ने पेट्रोल के बढ़ते दामों का विरोध किया है और जनता के बीच इसे मुद्दा बनाया है इसलिए पेट्रोल और डीजल के दामों के बढ़ाने का दुख सभी को होता है। पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों ने लोगों की चिंता तो बढ़ा दी है साथ ही डीजल के बढ़ते दाम ने महंगाई पर भी असर डाला है जिससे आम जनता प्रभावित होती है। सड़क परिवहन का काम ट्रकों से किया जाता है जिससे डीजल के दाम बढ़ने से इसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ता है। 
 
भारत अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए करीब 37 लाख बैरल तेल हर दिन खरीदता है जिससे पूरे देश को तेल की सप्लाई की जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक हम अपनी खपत का करीब 80 फीसदी तेल खरीदते है। डॉलर के मुकाबले रुपया भी कमजोर होता जा रहा है जिससे क्रूड ऑयल की खरीद महंगी हो रही है और देश में तेल भी महंगा होता जा रहा है। इसके बाद रिफाइनरी, कमीशन और टैक्स मिलाकर तेल की कीमत 100 के आंकड़े को पार कर जाती है। अब अगर तेल के दाम को कम करना है तो सरकार को अपना टैक्स कम करना चाहिए। अगर केंद्र और राज्य सरकार के टैक्स को कम करें तो तेल की कीमतों में बड़ी राहत मिल सकती है लेकिन सवाल यह है कि अगर सरकार अपनी इनकम को कम करेगी तो फिर देश के विकास का काम कैसे होगा। सरकार महंगाई कम करने की बात को करती है लेकिन वह अपनी आय से समझौता नहीं करना चाहती है इसलिए तेल का यह खेल लगातार जारी है। 
कोरोना काल में तेल की मांग बिल्कुल ही निम्न स्तर पर चली गयी थी जिससे क्रूड सस्ता हो गया था लेकिन जैसे ही लोग बाहर निकलने लगे तेल की मांग फिर से बढ़ी है जिससे क्रूड ऑयल के दाम फिर से बढ़ गये और आम जनता तक पहुंचने वाला तेल भी महंगा हो गया। क्रूड ऑयल जब सस्ता होता है तो इसका फायदा तुरंत से जनता तक नहीं पहुंचता जबकि क्रूड ऑयल जैसे ही महंगा होता है वह तुरंत से जनता पर लागू कर दिया जाता है। उधर पेट्रोल के दाम बढ़ने से राजनीतिक हलचल भी तेज हो गयी है विपक्षी दल ने सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया है लेकिन यह उनका राजनीतिक एजेंडा है जिसमें जनता पिछले कई दशकों से फंसी हुई है। जो भी पार्टी सरकार में नहीं रहती है वह बढ़ते दामों का विरोध करती है जबकि वही पार्टी जब सरकार में आती है तो आंख बंद कर लेती है और सब कुछ सरकार के हिसाब होता है। बेचारी जनता ही है जो दोनों ही पार्टियों के साथ विरोध करती है और फिर उसी महंगे तेल से अपने जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाती है।    

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