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मधुमेह ने बढ़ाया काले कवक का खतरा

मधुमेह ने बढ़ाया काले कवक का खतरा

by पंकज चतुर्वेदी
in जुलाई-२०२१, सामाजिक, स्वास्थ्य
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आज जिसे म्यूकोसिस कहा जा रहा है वह वास्तव में बहुत पुराना रोग जाइगोमाइकोसिस ही है जो एक दुर्लभ कवक संक्रमण है। यह कवक हमारे परिवेश में मिट्टी, पत्तियों, सड़ी लकड़ी और सड़ी हुई खाद, किसी भी सीलन वाली जगह पर बड़े पैमाने पर होता है। म्यूकोंर्मासेट मोल्ड के कारण यह इंसान के जीवन पर घातक मार करता है। इसके चलते त्वचा का काला पड़ना, सूजन, लाली, अल्सर, बुखार के अलावा, यह ख़तरनाक बीमारी फेफड़ों, आंखों और यहां तक कि मस्तिष्क पर भी आक्रमण कर सकती है।

कोविड की दूसरी लहर को देश ने बहुत ही मुश्किल हाल में झेला, असहाय तंत्र के सामने दवा, ऑक्सीजन, बिस्तरों की कमी के बीच अपनों को लगातार खोते हुए और फिर अकेले पड़ते हुए। निश्चित ही कोरोना वायरस के इस नए रूप की पहेली अभी भी अबूझ है और हमारा चिकित्सा तंत्र देश-दुनिया के अनुभवों के आधार पर ईलाज की नीति बना रहा है और बीते दो महीनो में देखें तो पूर्व में तय किए गए ईलाज के सभी मानकों को खुद ही नकार चुका है। इस हड़बड़ी और संसाधन के अकाल के बीच भारत को नई दिक्कत ने घेर लिया है और इस भयावह बीमारी का भी ना तो माकूल ईलाज है और ना ही जो भी ईलाज उपलब्ध है उसके लिए अनिवार्य दवा-इंजेक्शन। काला कवक या ब्लैक फंगस के कारण मौत, आंख निकालने या जबड़ा काटने के जो मामले सामने आ रहे हैं, उसने कोविड के आतंक को और घना कर दिया है। असल में हमारा तंत्र दूरगामी सोच रखता नहीं है और समस्या के बनने और उसके महंगे ईलाज के लिए सारी शक्ति लगा देता है। यह किसी से छुपा नहीं है कि कवक की मार तभी होती है जब किसी के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर हो, वरना कवक तो हमारे परिवेश में धरती के अस्तित्व में आने के साथ ही रहे हैं। इस बात पर किसी का आखिर ध्यान क्यों नहीं गया कि भारत को डायबीटिज या मधुमेह की विश्व राजधानी कहा जाता है। दो साल पहले के सरकारी आंकड़ों को सही मानें तो उस समय देश में कोई सात करोड़ तीस लाख लोग ऐसे थे जो मधुमेह या डायबीटिज की चपेट में आ चुके थे। अनुमान है कि सन् 2045 तक यह संख्या 13 करोड़ को पार कर जाएगी।

मधुमेह वैसे तो खुद में एक बीमारी है लेकिन इसके कारण शरीर को खोखला होने की जो प्रक्रिया शुरू होती है उससे मरीज किसी भी बाहरी जीवाणु, कीटाणु आदि से जूझने में शिथिल हो जाता है। कोविड के कारण एक तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हुई फिर यदि किसी मरीज़ के खून में शक्कर का स्तर अधिक है या उसके पेनक्रियाज़ में पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनता तो वह किसी भी तरह के संक्रमण को झेल नहीं पाता। लगातार कई दिनों तक आईसीयू के कृत्रिम वातावरण में रहने और फिर अचानक नैसर्गिक वातावरण में आने से कोविड ग्रस्त मरीजों का श्वसन तंत्र प्रभावित हुआ। लगातार कई दिनों तक आक्सीजन देना और उसके लिए इस्तेमाल पानी को या तो न बदलना या फिर पानी के दूषित होने से कवक विकसित होने की संभावना बढ़ती है। यही नहीं आक्सीजन देने का प्लास्टिक का उपकरण लगातार मुंह-नाक पर लगे होने व इस दौरान नाक-मुंह की सफाई ना होने व वहां कफ जमा होने के चलते उस स्थान पर कवक विकसित होना कुछ ऐसे सामान्य कारण हैं जो भारतीय चिकित्सा तंत्र की लापरवाही से फंगल रोग फैलने के कारक रहे हैं।

यह बात अब सरकार भी मान रही है कि कोरोना के ईलाज में अंधाधुंध स्टेरॉयड के इस्तेमाल से मरीज़ का शुगर का लेवल बढ़ जाता है, साथ ही बिस्तर पर लेटे होने के कारण उनका कोई शारीरिक श्रम भी नहीं होता जो इस बढ़े रक्त शर्करा को खपा सके। ऐसे में ब्लैक फंगस के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि स्टेरॉयड के इस्तेमाल से शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कम होती है, जिससे ब्लैक फंगस के विरुद्ध शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पाता है। चेन्नई स्थित डायबिटीज़ स्पेशिलिटीज सेंटर के चीफ कंसल्टेंट व चेयरमैन डॉ. वी. मोहन के मुताबिक डायबिटीज़ के अलावा स्वच्छता और दूषित उपकरणों के चलते भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़ रहे हैं। डॉ. मोहन का कहना है कि कोरोना केसेज़ इतने अधिक आ रहे हैं कि अस्पतालों में सफ़ाई पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है, इसके चलते इक्विपमेंट पर फंगस जमा होने की आशंका बढ़ती है। जानना जरूरी है कि आज जिसे म्यूकोसिस कहा जा रहा है वह वास्तव में बहुत पुराना रोग जाइगोमाइकोसिस ही है जो एक दुर्लभ कवक संक्रमण है। यह कवक हमारे परिवेश में मिट्टी, पत्तियों, सड़ी लकड़ी और सड़ी हुई खाद, किसी भी सीलन वाली जगह पर बड़े पैमाने पर होता है। म्यूकोंर्मासेट मोल्ड के कारण यह इंसान के जीवन पर घातक मार करता है। इसके चलते त्वचा का काला पड़ना, सूजन, लाली, अल्सर, बुखार के अलावा, यह ख़तरनाक बीमारी फेफड़ों, आंखों और यहां तक कि मस्तिष्क पर भी आक्रमण कर सकती है। अमेरिका के नेशनल सेंटर आफ बायोटेक्नालाजी इनफार्मेशन (एनसीबीआई) की शोध पत्रिका में इस साल अप्रैल में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें चेतावनी दी गई थी कि किस तरह अनियंत्रित मधुमेह कोविड-19 की चुनौतियों को बढ़ा देगा और उसमें भी कवक आक्रमण का ईशारा था। बावजूद इसके हमारे चिकित्सा तंत्र ने कोविड से निबटने में न ही मधुमेह और न ही म्यूकोंर्मासेट मोल्ड पर ध्यान दिया। इसी का परिणाम है कि आज दुनिया भर में मिले ब्लैक फंगस के कुल मामलों का 72 फ़ीसदी भारत में है। जून, 2021 के पहले सप्ताह तक भारत में काले कवक के कुल 28,252 मामले सामने आए और सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार इनमें से 62.3 फ़ीसदी लोगों को मधुमेह रोग था। ज़ाहिर है कि मधुमेह के प्रति लापरवाही भारत के लिए बड़ी चेतावनी है।

यह सच है कि काला कवक गंभीर रोग है और अब सफेद और पीले रंग के कवक के मामले भी सामने आए हैं लेकिन, यह भी सच है कि यदि समय रहते इसके लक्षण दिखते ही उचित चिकित्सा ली जाए तो इसे हराया जा सकता है। कवक के रोग मूल रूप से तीन प्रकार के हैं – मायसेटोमा, यह सबसे ख़तरनाक है जबकि क्रोमो ब्लास्टो मायकोसिस और फाएहाईफोमायकोसिस आसानी से उपचारित हैं। इसके प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना सबसे महत्वपूर्ण होता है। खासकर कोविड से मुकाबला कर घर लौटे रोगियों को नाक बंद होना या नाक से खून या काला सा कुछ निकलना, गाल की हड्डियों में दर्द होना, एक तरफ चेहरे में दर्द, सुन्न या सूजन होना, नाक की ऊपरी सतह का काला होना आदि को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसके अलावा दांत ढीले होना, आंखों में दर्द होना, धुंधला दिखना या दोहरा दिखना, आंखों के आस-पास सूजन होना, थ्रांबोसिस, नेक्रोटिक घाव और सीने में दर्द या सांस लेने में दिक्कत होना भी इसके लक्षण हैं। ब्लैक फंगस का ईलाज तीन चरणों में किया जाता है।

पहले चरण में सिर्फ संक्रमण की वजह का पता लगाकर उसे दूर करना और शुगर लेवल व एसिडोसिस की निगरानी की जाती है। इसके बाद शल्य के माध्यम से त्वरित डेड टिश्यू हटाए जाते हैं ताकि फंगस को अधिक ़फैलने से रोका जा सके। ब्लैक फंगस के बहाने सरकार को अब यह जान लेना होगा कि मधुमेह के निदान के प्रति यदि गंभीरता नहीं रखी तो आने वाले दिन में हमारे अस्पताल नए-नए किस्म के संक्रमणों से भरे होंगें। दुर्भाग्य है कि देश का चिकित्सा तंत्र मधुमेह की महंगी दवाएं अधिक से अधिक बेचने के लिए कार्यरत है जबकि ज़रूरत है कि नियमित परीक्षण, खानपान पर नियंत्रण, स्टेम सेल जैसी प्रणालियों से मधुमेह के स्थाई निदान को प्राथमिकता देने की। फिलहाल तो मधुमेह रोगी ब्लैक फंगस के प्रति सचेत रहें, अपना शुगर लेवल नियंत्रित रखें, वैक्सीन जरूर लगवाएं।

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