सीए बन गए जैन मुनि

24 साल के उच्च शिक्षित मोक्षेस ने जैन मुनि की दीक्षा ली है। वे ‘समस्त महाजन’ के गिरीश भाई शाह के परिवार से हैं। उनके परिवार के 2200 साल के इतिहास में पहली बार किसी ने यह कठोर व्रत स्वीकार किया है। यह दीक्षा प्रेरणा देती है युवकों को- एक अच्छा संयमी इंसान बनने की!

जैन समाज में दीक्षा लेना अत्यंत ही कठिन कार्य माना जाता है। दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति संन्यास की तरह ही अपने सभी सांसारिक सुखों का त्याग करके अपना सारा जीवन परमात्मा की भक्ति करते हुए व्यतीत कर देता है। परंतु यह पूरी प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती। इसलिए जैन समाज का कोई व्यक्ति जब अपनी इच्छा सेे दीक्षा के मार्ग पर अग्रसर होता है तो उसके परिवार के साथ ही उसके पूरे कुल के लोग उसे आशीर्वाद तथा शुभकामनाएं देने एक कार्यक्रम में शामिल होते हैं। इस कार्यक्रम को ‘भागवती प्रवज्या ग्रहण’ कहा जाता है। मुंबई निवासी संदीपकुमार जयंतिलाल शेठ के सुपुत्र तथा समस्त महाजन संस्था के अध्यक्ष गिरीशभाई शाह के भतीजे ‘मोक्षेस’ ने भी दीक्षा का मार्ग अपनाया है। 24 वर्षीय मोक्षेस के दीक्षा ग्रहण के संदर्भ में गिरीशभाई शाह ने इस पूरी विधि, मोक्षेस के व्यक्तित्व तथा उनके परिवार के संदर्भ में जानकारी प्रदान की।
गिरीश भाई कहते हैं, “हमारा परिवार मोरवाडिया सेठ कहलाता है। हम मूलत: प्रत्याखान गोत्रीय, राठौड वंशीय तथा भीनमाल निवासी हैं। 2200 साल पहले हमारे पूर्वज महाराजा थे। वहां से हम लोग थराद आए। थराद में हमारी कुलदेवी माता नाणदेवी की स्थापना हुई। थराद से हम आगे मोरवाडा आए। मोरवाडा से हम नेसडा आए। मात्र नेसडा, भीलडीयाजी तीर्थ जिसके मूल नायक भगवान भीलडीयाजी पार्श्वनाथ हैं तथा जिसकी स्थापना खुद गौतम स्वामी भगवान ने की है, केसामने एक छोटा सा गांव है। वहां से फिर जुनाडिसा, नवाडिसा, सांगली, कोल्हापुर, मुंबई, बेलगांव, नवसारी ऐसे करते करते अभी हमारी शाखा, हमारा परिवार मुंबई में बस गया है।“

मोक्षेस की दीक्षा के संदर्भ में भावुक होकर गिरीशभाई शाह कहते हैं, “हमारे पास परिवार का 2200 साल का इतिहास अर्थात कुलवृत्तांत लिखा हुआ है। यह इतिहास लिखनेवाले को कलघर या लेखागार भी कहते हैं। हमारे परिवार का सौभाग्य रहा है कि परिवार ने हमारे सब से महान तीर्थ ‘शत्रुंजय महातीर्थ’ पर जीन मंदिर का निर्माण किया है। हमारे परिवार ने 2200 साल में कई सत्कार्य किए हैं, जिसका उल्लेख कुलवृत्तांत में है। लेकिन परिवार में किसी पुरूष ने दीक्षा ली हो ऐसा कोई उल्लेख हमें नहीं मिला। शायद कोई हो भी सकता है लेकिन हमारे संज्ञान में नहीं है। अत: हमारे परिवार के लिए यह अत्यंत सौभाग्य का विषय है कि 2200 साल के इतिहास में मोक्षेस पहला लड़का है जो दीक्षा ले रहा है। मोक्षेस की आयु केवल 24 साल है। पेशे से वह चार्टड अकाउंटेंट (सीए) है। वह एक अच्छा व्यापारी है। उसने सांगली की हमारी अल्यूमीनियम की फैक्टरी बहुत अच्छे से संभाली है। उसने काम को आगे बढ़ाया। इसका अर्थ यह है कि वह पढ़ा-लिखा समझदार व्यक्ति है तथा किसी भावावेश में आकर दीक्षा नहीं ले रहा है। उसके मन में एक बार आया कि शिक्षा और व्यवसाय के साथ ही मुझे एक बार गुरू महाराज के पास भी रहकर देखना चाहिए। निश्चित ही उनसे मुझे कुछ सिखने को मिलेगा। फिर आठ साल की कालावधि में वह बीच-बीच में गुरू महाराज के पास जाता रहता था। कभी अठारह दिन, जिसे हम अढारिया कहते हैं, रहा; फिर 28 दिन रहा। ऐसे कुल मिलाकर 46 दिन की उसने आराधना की, जिसको उपधान की माला कहते हैं। उसमेें उसे साधु जीवन का आस्वाद मिला। साधु जीवन के आस्वाद से उसे ऐसा लगा की यह बहुत अच्छा जीवन है। जबकि हमारी जैन परंपरा में यह सब से कठिन मार्ग माना जाता है। इस साधु जीवन में चप्पल-जूते नहीं पहनने हैं, नंगे पैर चलना है, बाल खींच कर निकालने हैं, घर-घर से भिक्षा लेकर दिन में एक ही बार भोजन करना है और दिन में अठारह घंटे हमारे जैन ग्रंथों का अध्ययन करना है। एक तरह से यह बहुत कठिन साधना है लेकिन उसको यह साधना अच्छी लगने लगी। पिछले छह महीने से वह लगातार मुनिराज श्री जीनप्रेमविजयजी महाराज के पास रहा और उसने पूरा अभ्यास किया। मुनिराज जी के गुरु कल्याण बोधा सुरोधर जी हैं, उनके गुरू आचार्य हेमचंद्रसुरीजी हैं। इन सभी ने हमारे परिवार को बुलाकर कहा कि यह लड़का बहुत ही ज्ञानी और अभ्यासी है। हो सकता है इसके द्वारा समाज के बडे-बडे काम होने हों। अत: आप इसे दीक्षा लेने की अनुमति दें। सामान्यत: 24 साल का पढ़ा-लिखा और बिजनेस करनेवाला लड़का अगर घर से जाता है तो परिवार का वातावरण गंभीर हो जाता है। लेकिन हमारे परिवार में एकदम आनंद- उल्हास छा गया कि वह स्वयं दीक्षा लेना चाहता है, गुरु महाराज भी उसे स्वीकार कर रहे हैं यह अत्यंत आनंद का विषय है। जिस गुरू के चरणों में मोक्षेश अपना जीवन अर्पण करेगा उन मुनिराज जीनप्रेमविजयजी की उम्र भी मात्र 38 साल है। उनको दीक्षा लेकर भी 18 साल हो गए हैं। वे भी बहुत ज्ञानी हैं। उनके पास यह दीक्षा लेगा यह सुनकर परिवार में आनंद छा गया। 2200 साल के इतिहास में जो हुआ नहीं है वह होना चाहिए और उसकी स्वयं की यह इच्छा है तो और भी अच्छी बात है।“

दीक्षा लेने का कार्यक्रम जैन समाज में किसी विवाह समारोह से कम नहीं होता। परिवार के साथ ही आस-पास के लोग भी इसमें शामिल होते हैं। इसकी शुरुआत भी शुभ मुहूर्त देखकर की जाती है। ‘भागवती प्रवज्या ग्रहण’ के समारोह के बारे में गिरीशभाई आनंदित स्वर में कहते हैं, “4 फरवरी 2018 को अहमदाबाद में इसका मुहूर्त निकला और 20 अप्रैल 2018 को अहमदाबाद में तपोवन मुकाम में इसकी दीक्षा होगी। हमारे पास कुल मिलाकर सिर्फ 75 दिन ही शेष थे। उसी में सारी तैयारी करनी थी। हमारे सम्बंधियों के गांव में भी आनंद उल्लास का वातावरण था। सब की भावनाएं इससे जुड़ी थीं। उनका कहना था कि आपके परिवार में दीक्षा ग्रहण है तो हमें लग रहा है कि मानो हमारे परिवार में ही यह कार्य हो रहा है। दीक्षा लेने से पहले दान की परम्परा है। इसे वर्सीदान कहा जाता है। दान का यह कार्य विभिन्न जगहों पर होता है। इसे वर्सीदान का वरघोडा कहते हैं। पहला वरघोडा पास इरोड में निकला। इरोड में 700 लोगों ने उसको विजय तिलक किया कि तुम संयम पंथ जा रहे हो तो हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। मोक्षेस ने अपने हाथ से सब को वर्सीदान दिया। इरोड के साथ हमारा अधिक परिचय नहीं था। पर्युषण की आराधना होती है। जहां साधु भगवान नहीं होते वहां ऐसे पढ़े-लिखे बच्चे जाते हैं। चूंकि मोक्षेस धर्मज्योत पढ़ा हुआ था तो वह इरोड गया था इतना ही उनसे परिचय था। इतने ही परिचय में मोक्षेस की दीक्षा के समाचार से संघ में एकदम उल्हास सा छा गया। फिर दूसरा वरघोडा रत्नागिरी में हुआ। वहां भी आनंद का माहौल रहा। फिर तीसरा वरघोडा बेलगांव में हुआ। बेलगांव में करीब 1200 लोग थे। बेलगांव हम लोग बहुत साल रहेे हैं। मेरी पढ़ाई बेलगांव में हुई है। मेरे छोटे भाई की भी पढ़ाई बेलगांव में हुई। फिर कोल्हापुर और सांगली में भी वरघोडा हुआ।

समारोह की आमंत्रण पत्रिका का लेखन कार्यक्रम भी विशेष होता है। उसकी एक विधि होती है। पूरा परिवार आता है। गुरू महाराज आते हैं। एक सकल संघ मतलब पूरे विश्व को आमत्रंण देते हैं। मोक्षेस का पत्रिका लेखन कार्यक्रम भी अभूतपूर्व था। कार्यक्रम के विषय में गिरीशभाई बताते हैं, “25 फरवरी को पत्रिका लेखन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम हमने मुंबई में मथुरादास हाल में किया था। 3000 लोग उस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। मोक्षेस पूरे विश्व को अभय दान दे रहा है। दीक्षा का मतलब ही है अभय दान। अर्थात मैं कभी किसी की हत्या नहीं करूंगा इसकी प्रतिज्ञा लेना मतलब दीक्षा। गाड़ी में नहीं बैठेगा, कोई घंटी नहीं बजाएगा, इलेक्ट्रिक स्विच नहीं चलाएगा, किसी व्यक्ति या पशु को मारेगा नहीं, चीटी को भी हाथ नहीं लगाएगा। मतलब पूरे विश्व के कल्याण की भावना से पूरे विश्व को अभय दान देगा। 84 लाख जीव प्रकार हैं। उन सभी को अभय दान देगा।” दीक्षा लेने के लिए संयम के मार्ग पर चलने के लिए मानसिक तथा भावनिक संयम अत्यंत आवश्यक है। अपने भतीजे मोक्षेस के बारे में गिरीशभाई शाह बताते हैं, “मोक्षेस का आंतरिक संयम बहुत जबरदस्त है। 24 साल में हमने उसे कभी गुस्सा होते हुए नहीं देखा। हमारे घर में परिवार में पवित्र भाव पहले से ही है। उसके पिताजी के पास पांच लाख पुस्तकों का कम्प्युटराइज्ड पुस्तकालय है।”

गिरीशभाई आज की युवा पीढ़ी को यह संदेश देना चाहते हैं कि एक 24 साल का पढ़ा-लिखा लड़के को अपने जीवन का लक्ष्य समझ में आ गया है। हम सभी लोग तो दीक्षा नहीं ले सकते, संयम के मार्ग पर नहीं चल सकते; परंतु कम से कम एक अच्छे इंसान अवश्य बन सकते हैं और इसके लिए हमें सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए।

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