केंद्र में नरेंद्र, राज्य में देवेंद्र

महाराष्ट्र में भाजपानीत सरकार चार साल पूरे करने की ओर है और सहयोगी घटक शिवसेना द्वारा जब-तब छींटाकशी एवं आरक्षण के लिए मराठा समुदाय के अभियान सहित कई आंतरिक एवं बाहरी चुनौतियों के बावजूद मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की स्वच्छ छवि को सबसे अधिक सकारात्मक पहलू के तौर पर देखा जाता है।

मई 2014 में जब पूरा देश भगवा रंग में रंग चुका था और दुनिया के राजनीतिक फलक पर केवल एक ही नाम सुनाई पड़ रहा था और वह था आधुनिक निर्माण के शिल्पकार देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। कुछेक महीनों बाद महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले थे। पिछले पचीस सालों से छोटे भाई का दायित्व वहन करती आ रही भाजपा के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद थे। उसी समय मोदी के मंत्रिमंडल के तत्कालीन सदस्य और महाराष्ट्र भाजपा के दिग्गज स्व. गोपीनाथ मुंडे ने एक नारा दिया था, ‘केंद्र में नरेंद्र, राज्य में देवेंद्र‘। मुंडे की बात आगे चलकर सच साबित हुई और देवेंद्र फडणवीस राज्य के पहले भाजपाई मुख्यमंत्री बने। 260 सीटों पर लड़ी भाजपा 282 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को उतारने वाली शिवसेना से दुगुनी साबित हुई थी।

कुछ लोगों को लगता था कि भले ही अफवाहों में देवेंद्र फडणवीस का नाम सबसे आगे हो पर वे मुख्यमंत्री नहीं बनाए जा सकते क्योंकि वे कभी मंत्री नहीं रहे थे। अर्थात् प्रशासनिक अनुभवहीनता उनकी राह में आड़े आ रही थी। पर लोग भूल गए थे कि कुछ ही महीनों पूर्व नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे जबकि उसके पहले वे कभी सांसद भी नहीं थे। बस उनके पास एक मंझोले राज्य गुजरात का मुख्यमंत्री होने का अनुभव मात्र था पर देश की जनता ने उनके द्वारा गुजरात में किए गए विकास कार्यों को सिर माथे पर रखा और आगे देश को विकास के पथ पर लाने का मौका दिया। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के समय तक देश के लोगों को पूर्ण विश्वास हो चुका था कि देश वास्तव में सही हाथों में आ चुका है। एक विधायक की हैसियत से देवेंद्र फडणवीस का कामकाज काफी अच्छा रहा था। वो हमेशा चीज़ों को समझबूझ कर ही काम करते रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक परम्परा शुरू की जिसमें आम लोगों को सरकार के बजट के बारे में बताया जाए। अमूमन विधानसभा में ही इस तरह की चर्चा होती है, मगर देवेंद्र फडणवीस लोगों के बीच इस पर चर्चा करते रहे हैं। बेशक उनके पास प्रशासन चलाने का अनुभव न रहा हो मगर संगठन चलाने का अच्छा खासा अनुभव उनके पास था और उन्होंने यह साबित भी कर दिया।

महाराष्ट्र में भाजपानीत सरकार चार साल पूरे करने की ओर है और सहयोगी घटक शिवसेना द्वारा जब-तब छींटाकशी एवं आरक्षण के लिए मराठा समुदाय के अभियान सहित कई आंतरिक एवं बाहरी चुनौतियों के बावजूद मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की स्वच्छ छवि को सबसे अधिक सकारात्मक पहलू के तौर पर देखा जाता है। ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषकों ने पिछले चार साल में इस सरकार के कामकाज को ‘मिला-जुला’ पर संतोषजनक से ऊपर बताया। कुछ समय पूर्व हुए पालघर में हुए उपचुनाव के दौरान उन्होंने काफी दृढ़ता का परिचय दिया और शिवसेना की ओर से आ रहे तमाम आघातों का शालीनता से लेकिन पुरजोर जवाब दिया। उन्होंने पालघर चुनाव को कड़ा इम्तिहान करार देते हुए कहा, ‘चाहे जो भी हो, हम पालघर सीट जीतेंगे। यह बीजेपी की सीट थी। शिवसेना ने जो किया वह गलत था। इस सीट पर जीत हासिल करना दिवगंत चिंतामन वनगा के लिए एक सही श्रद्धांजलि होगी।’

जब पहली बार 1995 में शिवसेना-बीजेपी की सरकार बनी थी तो महाराष्ट्र पर 42 हजार 666 करोड़ रुपये का कर्ज था। वहीं वर्ष 2014 में जब फिर से बीजेपी-शिवसेना की सरकार बनी, तो  राज्य पर कर्ज का बोझ 4 लाख 44 हजार 71 करोड़ रुपये हो गया था। इसके बाद विपक्ष द्वारा राजनीति का एक घिनौना खेल खेलने की कोशिश की गई। दस सालों तक राज्य के तारणहार बने रहने का ढोंग करने वाले लोगों को नई सरकार के आने के एकाध साल बाद ख्याल आया कि इस राज्य में लगभग एक दशक से किसानों द्वारा लिए गए कर्जों पर माफी नहीं दी गई है जबकि उनके शासन के दौरान 2013 में महाराष्ट्र का बहुत बड़ा भूभाग सूखे की चपेट में था। बहुत ज्यादा संख्या में किसानों ने आत्महत्या की थी तथा राज्य के कई लाख अन्नदाता मुंबई समेत तमाम शहरों में फुटपाथों पर जीवन बसर करने को मजबूर हो गए थे। उस समय उन्हें ख्याल नहीं आया था कि इस राज्य में किसान भी बसते हैं। देश के अन्य हिस्सों की भांति यहां पर भी बड़े किसान आंदोलन हुए पर प्रशासन की ओर से उनके दमन की बजाय राह निकालने की कोशिश की। वर्तमान में देश के सर्वाधिक सफल मुख्यमंत्रियों में शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाले महाराष्ट्र के तेज तर्रार ऊर्जावान युवा मुख्यमंत्री ने अपनी प्राथमिेकता को चिंहित करते हुए कहा है कि उनका लक्ष्य महाराष्ट्र को अकालमुक्त प्रदेश बनाना है। एक ऐसा महाराष्ट्र बनाना है, जिसके 20 हजार गांवों को कभी अकाल का सामना नहीं करना पड़े। जलयुक्त शिवार योजना तथा नागपुर-मुंबई सुपर एक्सप्रेस के निर्माण के बाद  विदर्भ सहित पूरे महाराष्ट्र को विकास की अतुलनीय प्राप्त होगी।

इसी साल एक जनवरी को महाराष्ट्र के कई जिले जातीय हिंसा के शिकार हुए जब 1 जनवरी 2018 को मराठों और अंग्रेजों के बीच 1818 में हुई लड़ाई के 200 साल पूरे होने पुणे का भीमा कोरेगांव एक बार फिर जंग का मैदान बन गया। मराठों के खिलाफ अंग्रेजों की जीत का जश्न मनाने के चक्कर में कतिपय लोगों हिंसा और आगजनी की…. गाड़ियों को आग लगाया तथा एक युवक की हत्या भी हो गई। सारा राज्य गंधक के स्रोत पर बैठा किसी चिंगारी की प्रतीक्षा कर रहा था। ऐसे में वर्तमान सरकार के मंत्रियों ने सूझबूझ का परिचय देते हुए उस मामले को बखूबी सुलझाया और राज्य ही नहीं अपितु पूरे देश को जातीय हिंसा की आग से बचाया। ठीक ऐसी ही स्थिति मराठाओं के आंदोलन के समय आने की भी आशंका थी पर वर्तमान सरकार ने वहां पर भी सम्यक दृष्टिकोण अपनाया।

मेक इन इंडिया की तर्ज पर मेक इन महाराष्ट्र ने भी काफी प्रगति की। धीरे-धीरे राज्य के युवा नौकरी की बजाय आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग को एक नई दिशा मिली है। अभी तक मुम्बई के बिल्डरों का आम खरीदारों के बीच एक खौफ रहता था। कारण साफ है। बहुत सारे बिल्डर लोगों से पैसा लेकर घर नहीं देते थे तो बहुत सारे सुपर बिल्टअप के नाम पर कटौती करते थे पर महारेरा में ग्राहकों को होने वाली असुविधाओं का पूरा ख्याल रखते हुए बिल्डरों के सारे क्रिया कलापों को पारदर्शी बना दिया। अब उन्हें एक निश्चित समय पर अपने कार्यों में होने वाली प्रगति तथा अन्य सारी जानकारियां महारेरा की वेबसाइट पर अपडेट करती रहनी हैं।

यह सरकार पर्यावरण को लेकर भी काफी सजग है। प्लास्टिक से होने वाले नुकसानों को देखते हुए 23 जून से पूरे राज्य में प्लास्टिक की थैलियों को पूरी तरह बैन कर दिया गया है। सरकार ने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि इस बैन का व्यापक प्रभाव पड़े इसलिए इसकी रोकथाम के लिए पूरी टीम तैयार की गई है जो लोगों के प्लास्टिक प्रयोग को रोकने के साथ ही साथ उन्हें प्लास्टिक से होने वाले नुकसानों के प्रति सजग भी करेगी।

यह सरकार लोगों की अपेक्षाओं पर पूरा खरी उतर रही है। लोगों को पूरी तरह विश्वास है कि वर्तमान सरकार उनकी मूलभूत समस्याओं एवं उनके निराकरण के लिए पूरी तरह कटिबद्ध है। शिवसेना समेत बाकी सारी राजनीतिक पार्टियां समझ चुकी हैं कि यह दशक पूरी तरह भाजपा का है इसीलिए अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाएं जा रहे हैं पर उनका कोई व्यापक परिणाम निकलने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों शिवसेना की ओर से होने वाली छींटाकशी काफी तेज हो गई थी। पालघर उपचुनाव में हार के बाद इसमें काफी तेजी आ गई थी। इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मातोश्री पहुंचे और शिवसेना प्रमुख से मुलाकात की पर सबको पता है कि उक्त मुलाकात का कोई व्यापक अर्थ नहीं निकलने वाला। वैसे भी मुलाकात के तुरंत बाद उद्धव ठाकरे ने बयान दिया कि वे आगे से सारे चुनाव अकेले दम पर लड़ेंगे। यह भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए एक सार्थक संदेश है क्योंकि अब वे दबावमुक्त हो अगले विधानसभा चुनाव में शिरकत कर सकते हैं तथा एकमेव भाजपा सरकार बनाने का मार्ग सुगम बना सकते हैं।

 

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