चीन ने अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को अमली जामा पहनाने के लिए 2005 में मोतियों की माला ( Strings of pearls) नीति का शुभारंभ किया। इसका उद्देश्य विश्व में अपना दबदबा कायम करना और अपने उद्योगों के लिए अकूत संसाधनों का इंतजाम करना था।चूंकि चीन यह मानता है कि 21 वीं सदी उसकी है और संपूर्ण एशिया में भारत ही एकमात्र शक्ति है जो हर दृष्टि से उसे चुनौती दे सकता है। अतः उसने भारत के पड़ोसी देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर उनके यहां बंदरगाहों, हवाई पट्टियों तथा निगरानी तंत्र के निर्माण में विशेष रुचि दिखाई।उसने भारत को घेरने के लिए म्यांमार के कोको द्वीप,पाकिस्तान के ग्वादर, बांग्लादेश के चटगांव, श्रीलंका के हबनटोटा, उत्तरी अफ्रीका के जिबूती और मालदीव के दक्षिणी द्वीप पर बंदरगाह, हवाई पट्टी, व्यापारिक एवं आवासीय संकुल तथा निगरानी तंत्र का निर्माण आरंभ किया है।
वह कंबोडिया के रेएम पत्तन का भी विकास कर रहा है।इस तरह चीन ने भारतीय नौसेना की हर गतिविधि पर नज़र रखने की तैयारी शुरू कर दी है। भारत के कमजोर पड़ोसी उसके लिए वरदान सिद्ध हो रहे हैं। इसके लिए चीन ने अब तक 60 अरब डॉलर का निवेश किया है।चूंकि चीन का 80 फीसदी तेल आयात मलक्का जलसंधि से होकर गुजरता है अतः उसने श्री लंका के हबनटोटा एवं मालदीव के द्वीप पल जो निर्माण कार्य आरंभ किया है वह भारत के लिए सबसे कठिन चुनौती है।बावजूद इसके युद्ध की स्थिति में भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में उस पर बहुत भारी रहेगी।
हमारी वर्तमान सरकार ने पहली बार इस खतरे की गंभीरता को समझा है और उसने भारतीय नौसेना एवं रणनीतिकारों के सुझाव के आधार पर चीनी रणनीति को नाकाम करने के लिए ‘हीरों का हार’ (Necklace of Diamonds) का श्रीगणेश किया।इसके अंतर्गत पहले चरण में जापान, वियतनाम और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी का समझौता किया गया जिससे हमारी नौसेनाएं एक दूसरे के सैन्य सुविधाओं का परस्पर उपयोग कर सकतीं हैं।दूसरे चरण में हमने सिंगापुर के चांगी नौसैनिक अड्डे को भारतीय नौसेना के लिए उपलब्ध करवाया तथा ओमान के दुक्म बंदरगाह और ईरान के चाबहार बंदरगाह के विका स के लिए निवेश किया।
ऐसा करने से इन बंदरगाहों की सुविधाएं भारतीय नौसेना के लिए सुलभ हो गयीं।इस दौरान भारत ने रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण इंडोनेशिया के सबांग पत्तन का भारतीय नौसेना के अड्डे के रूप में विकास आरंभ किया है।यह बंदरगाह मलक्का जलसंधि के बेहद निकट है। यहां का बंदरगाह अत्यंत सुरक्षित एवं प्राकृतिक है।इसकी गहराई 40 मीटर है अतः यह भारतीय युद्धपोतों और पनडुब्बियों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है।चूंकि इसके दूसरे छोर पर दक्षिण निकोबार और इंदिरा प्वाइंट है अतः युद्ध के समय दोनों तरफ भारतीय नौसेना की मौजूदगी से मलक्का जलसंधि को ब्लाॅक करके चीन की व्यापारिक गतिविधि पर पूर्ण विराम लगा सकता है।
भारत ने तीसरे चरण के अंतर्गत सेशल्स के अजम्प्सन और अगलेका द्वीप पर नौसैनिक अड्डे का निर्माण आरंभ किया और मैडागास्कर में रेडियो स्टेशन स्थापित किया है। इसी क्रम में फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण कोरिया के साथ सामरिक साझेदारी का अनुबंध किया गया।यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत, अमेरिका के बाद फ्रांस एक बड़ी ताकत है और उसके इस क्षेत्र में अनेक नौसैनिक अड्डे हैं।इससे हमें उसके जिबूती स्थित नौसैनिक अड्डे की सुविधाएं भी मिल गयी हैं जहां पर चीन पहले से ही कुंडली मारकर बैठा है।
इस वर्ष कोरोना संकट के दौरान भारत ने 4 जून को ऑस्ट्रेलिया के साथ सामरिक साझेदारी का जो समझौता किया है उसके तहत अब ऑस्ट्रेलिया की सेनाएं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में उपलब्ध सैन्य सुविधाओं का उपयोग कर सकेंगी और भारतीय सेनाएं सुंदा जलसंधि के सामने स्थित कोकोस द्वीप की सैन्य सुविधाओं का उपयोग करेंगी।भारत के लिए इस सुविधा का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि चीनी नौसेना के युद्धपोत और पनडुब्बियां सुंदा जलसंधि से होकर ही हिंद महासागर में प्रवेश करते हैं। अब वहां मौजूद भारतीय नौसेना के विमान, युद्धपोत और पनडुब्बियां युद्ध के समय चीनी नौसेना के हिंद महासागर क्षेत्र में आते ही उसे जल समाधि लेने के लिए विवश कर देंगे।
इसके अलावा भारत जापान के साथ मिलकर उक्त बंदरगाहों पर राडार एवं टोह लेने वाले उपकरणों की तैनाती भी कर रहा है जिससे चीनी नौसेना की हर गतिविधि की जानकारी समय पर मिलती रहे।इस बीच भारत ने अमेरिका और जापान के साथ होने वाले वार्षिक नौसैनिक युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने का साहसिक निर्णय लिया है जिससे अब अमेरिका-भारत-जापान और ऑस्ट्रेलिया का शक्तिशाली सामरिक चतुर्भुज साकार हो गया है।अभी पिछले साल
जापान के प्रधानमंत्री श्री शिंजो आबे ने भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ एक गुप्त सामरिक समझौते का प्रस्ताव दिया है जिसके तहत भारत-अमेरिका और जापान पूर्वी चीन सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक समुद्र के भीतर सेंसर और सोनार की ऐसी हाइटेक दीवार खड़ी करेंगे जिससे चीनी पनडुब्बियों की हर गतिविधि पर नज़र रखी जा सके।यदि वे हिंद महासागर क्षेत्र में घुसपैठ करती हैं तो सही जानकारी होने के कारण उन्हें समय रहते विनष्टकिया जा सकता है अर्थात , युद्ध के समय उसे सही जगह पर जल समाधि दी जा सकती है।
इस समझौते के साकार होने से चीनी पनडुब्बियों के लिए भयावह व्यूह रचना सिद्ध होगी ।इसी तरह भारत सरकार मारीशस में भी एक गुप्त नौसैनिक अड्डा विकसित कर रही है। इस तरह भारत ने उक्त बंदरगाहों के विकास पर चीन के 60 अरब डॉलर के मुकाबले मात्र 8 अरब डॉलर का निवेश किया है परन्तु उसकी तुलना में बेहतर गठजोड़ एवं सुविधाएं हासिल की है।अतः भारत द्वारा निर्मित हीरों का हार चीन के मो तियों की माला माला को तोड़ने के लिए पर्याप्त है।इसके लिए भारत सरकार को चाहिए कि वह भारतीय नौसेना के प्रकल्पों को शीघ्र पूरा करे।
भारतीय नौसेना ने पोर्ट ब्लेयर के विकल्प के तौर पर दक्षिण निकोबार स्थित आई.एन.एस.कार्दिप पर पनडुब्बी संकुल का निर्माण सम्पन्न कर लिया है जो मलक्का जलसंधि के मुहाने पर होने के कारण चीनी पनडुब्बियों और युद्धपोतों पर नजर रखने के लिए आदर्श जगह है । ध्यातव्य है कि इसके दक्षिण में आई.एन.एस.बाज नामक भारतीय वायुसेना और नौसेना का विमान तल भी है। ये दोनों सैनिक अड्डे रणनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण स्थान पर हैं और संघर्ष की स्थिति में चीन के व्यापारिक मार्ग को अवरुद्ध करके उसे घुटनों पर आने के लिए विवश कर सकते हैं।भारत सरकार इस क्षेत्र में बड़ा मिसाइल अड्डा भी बना रही है।इस तरह शह और मात के खेल में भारतीय नौसेना चीनी नौसेना पर भारी पड़ रही है।इस समय भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े के अनेक युद्धपोत इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलाशिया, वियतनाम, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ युद्धाभ्यास के लिए दक्षिण चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात हैं।यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय नौसेना अब वैश्विक शक्ति की ओर अग्रसर है जो नए भारत के महाशक्ति बनने के प्रति आश्वस्त करता है। डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग
मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई-400098
( लेखक विदेश व रक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं।