कर्नाटक में कोरोना से बचाव के उपाय तेज

कोरोना संक्रमित रोगियों को समय से समुचित उपचार मुहैया कराने के लिए सभी जिला एवं तालुका अस्पतालों में उच्च प्रवाह ऑक्सीजन सुविधा मुहैया कराई गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा की सरकार के प्रयास का ही असर रहा है कि यह राज्य देश के अन्य राज्यों के बीच आदर्श राज्य बनने में सफल रहा है। वास्तव में सरकार ने मेडिकल से जुड़े चिकित्सकों, विशेषज्ञों की एक समिति का गठन कर उसकी बताई गई सलाह को अक्षरशः लागू करना शुरू किया, जिससे सरकार को पहली लहर की महामारी में जनधन की हानि को कम करने में सफलता हासिल हुई।

कोरोना और कर्नाटक के रिश्ते पर चर्चा करनी हो, तो हमें यह ध्यान रखना होगा कि इस महामारी का असर आम जन के जीवन पर किस स्तर तक पड़ा है और इस महामारी के बचाव में किस प्रकार की व्यवस्था करनी चाहिए थी, जिसमें सरकारी मशीनरी कहां तक सफल हुई।

कोरोना एक ऐसी महामारी बनी, जिसने आम जन के जीवन को मृत्यु में बदलने का काम किया। इस महामारी का असर लोगों की मानसिकता पर इतना गहरा पड़ा कि आज भी इस महामारी के कहर से पीड़ित परिवार अपने पारिवारिक सदस्यों और इष्ट मित्रों को खोने की घटना से उबर नहीं पाया है। पहले लहर की महामारी ने इतना आतंक नहीं फैलाया था, जितना दूसरे लहर ने फैलाया। कर्नाटक भी इस महामारी के प्रकोप से अपनी जनता की रक्षा करने में असफल ही रहा है। एक समय ऐसा लगता था कि इस महामारी की रोकथाम में लगी कर्नाटक की सरकार का आंकड़ा अन्य राज्यों की तुलना में निचली स्तर पर पहुंच गया है।

पहले लहर के दौरान जिस तरह से जांच कार्यवाही को सफलतापूर्वक लागू करने में कर्नाटक सरकार का नाम आदर्श राज्य के रूप में गणना की जाने लगी थी। पहले चरण की कोरोना महामारी का हमला तो अचानक ही हुआ था। राज्य में स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था भी इतनी समृद्ध नहीं थी कि उसका सामना आसानी से किया जा सके। यह स्थिति तो पूरे देश में ही बनी हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी का जनता से सीधे संवाद का असर इतना तो हो ही गया था कि कोरोना के पहले हमले में नागरिकों ने अनुशासन के साथ अपने घरों में ही रहना उचित समझा। यही कारण है कि स्वास्थ्य सेवाओं की प्रचुरता न होने के बाद भी कोरोना के पहले लहर के हमले के कारण मौत का तांडव नहीं हो सका और राज्यों को अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने की चुनौती को पूरा करने का अवसर मिला।

लॉकडाउन बना एकमात्र हथियार

कर्नाटक राज्य में कोरोना की पहली लहर का पता मार्च 2020 के पहले सप्ताह में चला। इसी वर्ष मार्च में ही आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिनिधि मंडल का आयोजन भी निरस्त करना पड़ा, बल्कि कहा जाए तो सीमित करना पड़ा। कर्नाटक सरकार के सामने यह अहम चुनौती थी कि किस तरह से कोरोना महामारी से नागरिकों की अपूरणीय क्षति को कम या बचाया जाए।

यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि कर्नाटक राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी चरमराई हुई नहीं थी कि लोगों के लिए जांच की कार्यवाही न की जा सके। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार के बताए गए बिंदुओं को पालन करने का गंभीरता से प्रयास किया। राष्ट्रव्यापी पूर्ण लॉकडाउन कर्नाटक में भी सफलतापूर्वक लागू किया गया। आवश्यक सेवाओं को छोड़कर बाकी सबकुछ बंद रहा। पहले बाढ़ की तबाही और उसके बाद कोरोना की वजह से राज्य की औद्योगिक एवं व्यापारिक गतिविधियां ठप पड़ गई। राज्य में विशेष रूप से पर्यटन एवं होटल उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। कोरोना महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन लगाया गया।

आदर्श राज्य बनने में हुआ सफल

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए पर्याप्त भोजन एवं खाद्य सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित की गई। कोरोना संक्रमित रोगियों को समय से समुचित उपचार मुहैया कराने के लिए सभी जिला एवं तालुका अस्पतालों में उच्च प्रवाह ऑक्सीजन सुविधा मुहैया कराई गई। कोरोना की पहली लहर से पीड़ितों की संख्या में कमी हो, इसका प्रयास प्रदेश के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा की सरकार के प्रयास का ही असर रहा है कि यह राज्य देश के अन्य राज्यों के बीच आदर्श राज्य बनने में सफल रहा है। वास्तव में सरकार ने मेडिकल से जुड़े चिकित्सकों, विशेषज्ञों के एक समिति का गठन कर उसकी बताई गई सलाह को अक्षरशः लागू करना शुरू किया, जिससे सरकार को पहले लहर की महामारी में जनधन की हानि को कम करने में सफलता हासिल हुई।

लोगों ने शुरु की लापरवाही

अगस्त 2020 के बाद से ही जब कोरोना की पहली लहर के असर को विशेषज्ञों की सलाह से सरकार के प्रयास से नियंत्रित करना आसान हो गया तो फिर दूसरे लहर के दौरान राज्य की स्वास्थ्य सेवा असंतुलित क्यों हो गई, क्यों सरकार ने विशेषज्ञों की दूरगामी सलाह पर ध्यान नहीं दिया कि दूसरी लहर में कोरोना का असर महा घातक होगा और इससे मौतों की संख्या बढ़ने की आशंका है। वास्तव में राज्य में लॉकडाउन से ठप होते व्यापार को पुनर्स्थापित करने के लिए जिस तरह से छूट दी गई, लोगों ने साधारण रोकथाम की प्रक्रिया के पालन में लापरवाही बरतनी आरंभ कर दी, न तो मास्क और न ही दूरी का ध्यान रखा गया।

सरकार पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर के असर का आकलन क्यों नहीं कर सकी? उसकी वजह से यह देखा गया है कि जिसे भी कोरोना का असर हुआ, उसमें से अधिकतर पीड़ितों को अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए ही भर्ती होना पड़ा। कर्नाटक सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों तथा निजी अस्पतालों में मरीजों के लिए जिस प्रकार से व्यवस्था की गई थी, वह भी बिचौलियों और भ्रष्ट कर्मचारियों के कारण अधोगति को पहुंच गई। कर्नाटक के शहरों की अस्पतालों में पीड़ितों को बिस्तरों का मिलना कठिन समस्या बन गई थी।

हुई ऑक्सीजन की कमी

गौरतलब है कि लोकसभा और राज्यसभा के सत्रों के दौरान जब केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने यह बयान दिया था कि देश में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मृत्यु नहीं हुई है तो विपक्षी दलों ने सदन में हंगामा खड़ा कर दिया था, जबकि ऑक्सीजन से मरने वालों की संख्या के बारे में राज्य सरकारों ने किसी तरह की जानकारी केन्द्र सरकार को नहीं दी थी। यहां तक कि कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों की पार्टियों की सरकारों ने भी इस तरह की कोई रिपोर्ट केन्द्र सरकार को नहीं भेजी थी।

तीसरी लहर के खिलाफ व्यवस्था

कर्नाटक में दूसरे लहर के शुरुआती दौर में ही टीकाकरण का काम तेजी से चलाया जा रहा था और आज भी टीकाकरण में ढिलाई नहीं बरती जा रही है। जिस गति से दूसरी लहर को कम करने में कर्नाटक सरकार ने कार्यवाही की है, उससे राज्य में मरीजों की संख्या में कमी तो आई है परन्तु तीसरे लहर का असर महामारी की तरह ने फैले इसके लिए सरकार ने तैयारी कर ली है। यदपि कर्नाटक राज्य में राजनीतिक परिवर्तन की लहर भी तेजी से चली। मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा परन्तु उनके चहेते और सिपहसालार बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाकर उन्होंने राज्य में भाजपा की राजनीति और सरकार पर अपना कब्जा बनाकर रखा है लेकिन कोरोना की तीसरी लहर के आक्रामकता से राज्य की जनता को बचाने के लिए सरकार ने व्यवस्था कर ली है।

 

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