नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू और पीवी सिंधु। ये ऐसे कई नाम हैं, जो टोक्यो की धरती पर चमके। ये वे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत की झोली में 7 मेडल डाले। इसके साथ भारत ने ओलंपिक इतिहास में टोक्यो में सबसे ज्यादा पदक जीतने का रिकॉर्ड बनाया। जो उपलब्धियां हासिल हुई हैं, वे इसकी पुष्टि करती हैं कि भारत के खिलाड़ी अब सिर्फ भागीदारी के लिए नहीं बल्कि जीतने की भावना के साथ खेलते हैं और यही भावना बदलते हुए भारत की नई तस्वीर है।
टोक्यो ओलंपिक कई अर्थों में भारत के लिए अद्भुत रहा इसलिए नहीं है कि टोक्यो ओलंपिक में भारत ने अब तक के सबसे अधिक पदक जीते बल्कि पहली बार ट्रैक एवं फील्ड प्रतियोगिताओं में न केवल स्वर्ण पदक जीता बल्कि हॉकी में पदक जीतने का करीब 41 सालों का इंतजार समाप्त हुआ, लेकिन बहुत से दूसरे कारण भी हैं, जिसके चलते इस बार का ओलंपिक भारत के लिए खासा महत्वपूर्ण रहा है।
130 करोड़ की आबादी वाले देश में एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य पदक बहुत कम लग सकते हैं। पदक तालिका में तमाम छोटे और गरीब देशों के नीचे खुद को देखकर खुश नहीं हुआ जा सकता, पर जो उपलब्धियां हासिल हुई हैं, वे इसकी पुष्टि करती हैं कि भारत के खिलाड़ी अब भागीदारी के लिए नहीं बल्कि जीतने की भावना के साथ खेलते हैं और दुनिया में नंबर वन बनने की यही भावना बदलते हुए भारत की नई तस्वीर है।
झुठी साबित हो रही कहावत
ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि भारतीय समाज उस पुरानी कहावत से बाहर निकल रहा है कि पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब। इस खराब होने का मतलब था, कोई अच्छी सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। यदि हम अब इस खराब कहावत को दरकिनार कर दें, तो हमें मानने में कोई हर्ज नहीं होगा कि हमारे यहां शिक्षा हासिल करने का मुख्य मकसद एक अच्छी नौकरी हासिल करना है।
अब तो किसी बड़ी खेल प्रतियोगिता में सफलता हासिल होते ही ग्लैमर और सात-आठ अंकों वाले इनाम-इकराम की बौछार अतिरिक्त आकर्षण बन गए हैं। सरकार ने भी खेलो इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिये खिलाड़ियों को संसाधन मुहैया कराए हैं।
भारत की झोली में आया स्वर्ण
नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू और पीवी सिंधु। ऐसे कई नाम हैं, जो टोक्यो की धरती पर चमके। ये वो खिलाड़ी हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत की झोली में 7 मेडल डाले और इसके साथ भारत ने ओलंपिक इतिहास में टोक्यो में सबसे ज्यादा पदक जीतने का रिकॉर्ड बनाया। भारत ने इस बार कुल सात मेडल जीते, जिसमें 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य रहे। इससे पहले देश के 2012 लंदन ओलंपिक में देश के हिस्से में 6 पदक आए, जिसमें 2 रजत और 4 कांस्य थे। टोक्यो में भारत ने एथलेटिक्स में स्वर्ण, वेटलिफ्टिंग में रजत, कुश्ती में एक रजत और एक कांस्य, हॉकी में कांस्य, बैडमिंटन में कांस्य और बॉक्सिंग में भी कांस्य पदक हासिल किया। खेलों के महाकुंभ ओलंपिक में इस बार भारत का सबसे बड़ा दल टोक्यो गया था। इस बार के ओलंपिक में हरियाणा, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, ओडिशा, राजस्थान, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम, असम और मिजोरम के खिलाड़ियों ने भाग लिया। इन सभी ने किसी ना किसी खेल में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर टोक्यो का टिकट हासिल किया था।
टूटी लैंगिक असमानता की दीवार
वैसे ओलंपिक के सवा सौ साल के इतिहास में यह पहला मौका था, जब खिलाड़ियों ने लैंगिक असमानता की हदें काफी हद तक तोड़ दीं। पदक तालिका में ऊपरी पायदान पर खड़े कई मुल्कों के दलों में पुरुष खिलाड़ियों से अधिक महिलाएं थीं। कुछ वर्ष पूर्व यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां भारतीय दल में होंगी। वह भी हरियाणा से, जो हमारी पारंपरिक समझ के मुताबिक स्त्री-विरोधी समाज है।
हॉकी से है भावनात्मक जुड़ाव
चूंकि आजादी के बाद दशकों तक ओलंपिक आयोजनों में राष्ट्रीय धुन बजाए जाने का गौरव हॉकी ने सर्वाधिक उपलब्ध कराया है इसलिए इससे देशवासियों का एक भावनात्मक जुड़ाव रहा है लेकिन बाद के वर्षों में इसकी जगह क्रिकेट ने ले ली, क्योंकि क्रिकेट में टीम इंडिया का प्रदर्शन निखरता गया और हॉकी खेल संघों की राजनीति का शिकार होती गई। इस बार टोक्यो में जर्मनी के खिलाफ 3-1 से पिछड़ने के बाद भारतीय टीम 5-4 से यह मुकाबला जीती तो पूरा भारत झूम उठा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न केवल मैच देख रहे थे, बल्कि उन्होंने मैच जीतने के बाद फोन करके पूरी हॉकी टीम को बधाई भी दी है।
प्रधानमंत्री ने दिया है नया भारत
इस जीत के महत्व को प्रधानमंत्री के शब्दों से भी समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘टोक्यो में हॉकी टीम की शानदार जीत पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है। यह नया भारत है, आत्मविश्वास से भरा भारत है।’ वाकई इस जीत से देश में खेल जगत में आत्मविश्वास बढ़ेगा। युवाओं में देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना का संचार होगा। भारतीय हॉकी एक लंबे संघर्ष से निकलकर आई है। इस टीम से दो-तीन साल पहले किसी को कोई उम्मीद नहीं थी, तभी तो कोई प्रायोजक साथ आने को तैयार नहीं था। ओडिशा सरकार और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बधाई के वास्तविक पात्र हैं कि साल 2018 में उन्होंने भारतीय हॉकी का हाथ थामा। नतीजा आज सामने है, यहां से भारतीय हॉकी में नए युग का आगाज हो सकता है।
नरेन्द्र नोदी ने की तारीफ
प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में कहा,“ओलंपिक में भारत का नाम रोशन करने वाली युवा पीढ़ी, ऐसे हमारे एथलीट हमारे खिलाड़ी इस आयोजन में हमारे बीच में हैं। भारत के खेलों का सम्मान, भारत की युवा पीढ़ी का सम्मान, भारत को गौरव दिलाने वाले युवाओं का सम्मान। देश, करोड़ों देशवासी तालियों की गड़गड़ाहट के साथ हमारे इन जवानों का देश की युवा पीढ़ी का गौरव कर रहे हैं और सम्मान कर रहे हैं। एथलीटों पर विशेष तौर पर हम ये गर्व कर सकते हैं कि उन्होंने हमारा दिल ही नहीं जीता है। उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को, भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरित करने का बहुत बड़ा काम किया है।” जाहिर है खिलाड़ियों का यह सम्मान और खेलों भारत की भावना एवं योजना नए भारत का संकल्प है।