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दान से बनी विद्या की राजधानी  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

दान से बनी विद्या की राजधानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

by प्रो. ओम प्रकाश सिंह
in उत्तराखंड दीपावली विशेषांक नवम्बर २०२१, संस्था परिचय
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‘नवाब साहब क्षमा करें। मैं काशी से चलकर आपके पास आया हूूं। आपकी रियासत का पूरी दुनिया में नाम है। मैं अगर यहां से खाली हाथ गया तो आप की तौहीन होगी। इसीलिए सोचा की आप के जूतों को नीलाम करके कुछ धन एकत्र करलूं और उसके बाद काशी जाऊं, जिससे मैं काशी की प्रजा को बता सकूं कि हैदराबाद से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए दान मिला है।’- महामना मालवीय

काशी एक परन्तु नाम अनेक हैं। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के कई नाम हैं। सृष्टि के आरम्भ से लेकर अबतक के करोड़ो वर्ष के कालक्रम में नामों का बदलना स्वाभाविक है। कहा जाता है कि काशी नगरी का निर्माण स्वयं बाबा विश्वनाथ ने किया। यह उनकी प्रिय नगरी है। यह उनका निवास स्थान है।  इसका प्रारम्भिक नाम ‘आनन्दवन’ है। इसके पश्चात् काशी, वाराणसी अन्य नाम प्रचलन में आये।

काशी की चर्चा  इसलिए कर रहें हैं क्योंकि इसका काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सम्बन्ध है। करोड़ों वर्ष के क्रम में काशी में यदि कोई बड़ा एवं प्रासंगिक बदलाव हुआ है तो वह है काशी में, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना। काशी शब्द का अर्थ होता है ज्ञान प्रकाशित ‘काशी’ नाम के इस अर्थ को साकार रूप दिया ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ ने।

काशी में ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ नाम के पीछे एक दर्शन तथा एक लम्बी परम्परा खड़ी है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वप्न द्रष्टा एवं संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय ने इस विश्वविद्यालय का नामकरण एक लम्बे चिन्तन के पश्चात् किया। महामना मालवीय ब्रिटिश भारत की कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष रहे।  वे कांग्रेस के अलावा गंगा महासभा, हिन्दू महासभा जैसे संगठनों की स्थापना के केन्द्र में भी रहे। ब्रिटिश कालीन गुलामी के दिनों में ‘हिन्दू’ नाम वाले विश्वविद्यालयों की स्थापना का साहस महामना मालवीय सद़ृश्य महापुरूष  ही कर सकता था। इतना ही नहीं उन्हीं के प्रयासों से ‘काशी’  में 1916 में बसंत पंचमी के दिन काशी  हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ और इस विश्वविद्यालय का प्रथम ऐक्ट (अधिनियम) भी बना।  ब्रिटिश काल में  काशी में ‘हिन्दू’ नामयुक्त ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ की स्थापना हो सकी और यह नाम सर्वग्राह्य रहा।

‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ एक विश्वविद्यालय  नहीं वरन महामना मालवीय के स्वप्न का साकार रूप है।  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना से पूर्व महामना ने जो सपना देखा था, उसकी चर्चा भी उन्होंने उस समय के महापुरूषों से की थी। उन्होंने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की चर्चा करते हुए स्वतन्त्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले से कहा था कि उनकी इच्छा काशी में विश्व का श्रेष्ठ विश्वविद्यालय बनाने की है। उस विश्वविद्यालय में एक ही परिसर में प्राचीन भारतीय ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ चिकित्सा, इंजीनियरिंग कृषि, विशाल भाषा एवं कलाओं आदि का अध्ययन हो सके। महामना की इस बात पर गोखले ने व्यंग्य की किया कि इतने बड़े स्वप्न के लिए धन कहां से आयेगा?  पर महामना तो महामना थे। उन्हों ने  ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ की स्थापना के स्वप्न को साकार करने के लिए भारतीय परम्परा का अनुकरण किया। उस पद्वति का  नाम था दान। उन्होंने काशी  हिन्दू विश्वविद्यालय  के लिए सब कुछ दान से जुटाया। काशी में इस विशाल विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भूमि का प्रबन्ध काशी नरेश के दान एवं सहयोग से प्राप्त किया।

भूमि मिलने के बाद इस की चहारदीवारी एवं भवनों के लिए धन जुटाने का कार्य उन्होेंने  प्रारम्भ किया। देश के प्रमुख राजों से उन्होंने चहारदीवारी एवं भवनों के निर्माण के लिए धन प्रचूर मात्रा में प्राप्त किया। दान देने वालों में सम्पूर्ण भारत की रियासतों के राजा एवं जमींदार सम्मितिल थे।  बड़े दानदाताओं  में महाराजा कश्मीर, महाराजा ग्वालियर, महाराजा बिकानेर, महाराजा सयाजी गायकवाड़, महाराजा दरभंगा, के अतिरिक्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय  के मुस्लिम रियासतों से भी सहयोग मिला। रामपुर के नवाब के अलावा कंजूस किस्म के हैदराबाद रियासत के नवाब ने भी विश्वविद्यालय के निर्माण में योगदान दिया। इस प्रकार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय देश का ही नहीं वरन विश्व का एकमात्र विश्वविद्यालय है जो दान के द्वारा निर्मित हुआ।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए महामना मालवीय ने मुस्लिम नवाबों एवं शासकों से भी दान लिया। यह अपने में भी महत्वपूर्ण है। इस सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार के किस्से अब भी प्रचलित है। प्राप्त सूचना के अनुसार महामना मालवीय  विश्वविद्यालय  के दान के लिए रामनगर के नवाब के पास गये। नवाब से उनकी भेंट हुई। नवाब ने कहा कि ‘मैं हिन्दू विश्वविद्यालय’ के लिए क्यों दान दूं?  इस पर महामना का उत्तर था कि वह विश्वविद्यालय केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं है उसमें सभी धर्मों के लोग शिक्षा पायेंगे। फिर उन्होंने कहा कि आप की प्रजा हिन्दू भी है। यदि आप मुझे हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए दान नहीं देगें तो आप की हिन्दू प्रजा में गलत संदेश जायेगा। और वह दु:खी भी होगी। महामना की इसबात के बाद रामपुर के नवाब ने विश्वविद्यालय के लिए धन देना स्वीकार किया।

रामपुर के नवाब के पास से विश्वविद्यालय के लिए महामना मालवीय जब दान मांग कर लौट रहे थे तो उसी समय महात्मा गांधी कांग्रेस के लिए चंदा मांगने पहुंचे थे। महामना के बाद नवाब से महात्मा गांधी मिले। लेकिन नवाब ने कांग्रेस के लिए चंदा देने से इन्कार किया। इसके पश्चात् गांधी जी ने कहा कि  ‘नवाब साहब आप ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए  महामना को तो दान देना स्वीकार किया लेकिन कांग्रेस के लिए चंदा देने को तैयार नहीं हैं?’ गांधी की बात पर नवाब रामपुर ने कहा कि ‘हम और वह परस्पर भाई हैं। हमारी प्रजा भी हिन्दू है। उन्होंने कुछ छिपाया नहीं। हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए सीधे दान मांगा। वे हमारे विरोधी नहीं हैं। आप और आपकी कांग्रेस का रूख रियासतों के प्रति स्पष्ट नहीं है। आजादी के बाद हमारा क्या होगा, अभी तय नहीं है। इससे भी स्पष्ट है कि महामना एक करिश्माई व्यक्तित्व वाले थे। उनके तर्कों के आगे बड़े-बड़े झुकते थे।

इसी प्रकार की घटना हैदराबाद में महामना के साथ घटी। हैदराबाद रियासत के प्रमुख नवाब हैदराबाद के पास महामना मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए दान मांगने पहुंचे। काफी कठिनाई के बाद हैदराबाद के नवाब से उनकी भेंट हुई। नवाब ने हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए दान देने से मना किया। इतना ही नहीं उसने महामना को अपमानित करते हुए अपने पैरों के जूते दे दिये। महामना नवाब हैदराबाद के जूते लेकर सहर्श वापस आ गये। अगले दिन महामना ने हैदराबाद की बाजार में जाकर निजाम हैदराबाद के जूते नीलाम करना शुरू किया। जब यह सूचना नवाब तक पहुंची तो उसने महामना को दरबार में बुलाया। नवाब ने कहा कि ‘आप मेरी ही रियासत में मेरा मजाक उड़ा रहें हैं। मैं आप को फांसी की सजा दे सकता हूं।’ नवाब की बात सुनकर महामना ने कहा कि ‘नवाब साहब क्षमा करें। मैं काशी से चलकर आपके पास आया हूूं। आपकी रियासत का पूरी दुनिया में नाम है। मैं अगर यहां से खाली हाथ गया तो आप की तौहीन होगी। इसीलिए सोचा की आप के जूतों को नीलाम करके कुछ धन एकत्र करलूं और उसके बाद काशी जाऊं, जिससे मैं काशी की प्रजा को बता सकूं कि हैदराबाद से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए दान मिला है।’ महामना की बात सुनकर नवाब हैदराबाद ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए दान देना स्वीकार किया। लेकिन नवाब ने यह शर्त रखी कि उनकी रियासत के धन से अलग कालोनी बने तो उसका निर्माण किसी और के साथ मिलकर निर्माण नहीं होगा। महामना ने शर्त स्वीकार की और आज भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हैदराबाद कालोनी एवं हैदराबाद गेट है। इस प्रकार महामना ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए दान लेने के लिए देश में कोने-कोने में गये। उन्होंने विशाल भावना रखी। इसीलिए उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए मुस्लिम नवाबों एवं रियासतों से दान मांगने में संकोच नहीं किया तथा सफलता भी मिली।

महामना मालवीय के सपनों के अनुरूप अर्ध-चन्द्राकार एवं 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मां गंगा के तट पर इस विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ। इस के केन्द्र में विशाल विश्वनाथ मंदिर है। इसी के ठीक सामने केन्द्रीय कार्यालय है। केन्द्रीय कार्यालय एवं विश्वनाथ मंदिर के द्वार परस्पर आपने सामने हैं। इस तरह की व्यवस्था भारत के अन्य विश्वविद्यालय में नहीं मिलती है। इसी के साथ-साथ पूरे परिसर को विभिन्न सड़कों के द्वारा कई भागों में विभक्त किया गया है। सभी शिक्षण विभाग एक सड़क पर सीध में है। उसके बाद खेल के मैदान है। खेल के मैदानों के बाद छात्रावास एक क्रम में हैै। छात्रावासों के बाद शिक्षक आवास है। महामना काल के विश्वविद्यालय परिसर की उक्त संरचना में अब धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है परन्तु अधिकतर कामों में अब भी पुरानी संरचना मौजूद है। पुरानी संरचना में विद्यमान खेल के मैदानों में अब विभागों के भवन एवं छात्रावास बनने लगे हैं।

महामना मालवीय के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में – कला, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, ललित कला, संस्कृत, फाइन आर्टस, संगीत, प्रबन्धन, विज्ञान, कृषि विज्ञान, शिक्षा, इंजीनियरिंग, मेडिकल, विधि, प्राचीन भारतीय ज्ञान सहित भारत के विश्वविद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले सभी प्रमुख विषयों का अध्ययन-अध्यापन एक परिसर में होता है। यदि आप विश्वविद्यालय में किसी एक तरफ से प्रवेश करें तो एक के बाद एक विभाग अथवा संकाय आपको क्रमश: दिखाई पड़ेगें। ऐसा सुयोग अन्यत्र नहीं है। इस विश्वविद्यालय में अपना एक विशाल संग्रहालय है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साथ-साथ आयुर्वेद का भी अध्ययन-अध्यापन यहां होता है। आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण की अपनी फार्मेसी भी है। कृषि फार्म  के साथ-साथ बड़ी डेयरी भी है।

उक्त के अलावा सभी सडकों के किनोरे फलदार एवं उपयोगी वृक्ष भी लगे है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सड़क के किनारे आम की एक लाइन में आम ही आम मिलेंगे तथा दूसरी और जामुन ही जामुन मिलेंगे। इसी प्रकार बेल, पीपल, बरगद, नीम, सागौन की कतारें हमें विश्वविद्यालय में मिलेंगी। महामना मालवीय के समय में विश्वविद्यालय के चौराहों पर बरगद एवं पीपल के वृक्ष लगाये गये थे। आज भी चौराहों पर हमें पीपल एवं बरगद के वृक्ष मिलते हैं। इन्हीं वृक्षों के कारण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शुद्ध हवा हमें प्राप्त होती है तथा प्रदूषण भी कम है। विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार पर सड़कों के किनारे लगे अशोक के वृक्ष इसकी भव्यता और भी बढ़ा देते हैं। जिसके कारण यह हरा भरा क्षेत्र एक उपवन जैसा नजर आता है।  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की समस्त विशेषताओं का वर्णन इसके कुल गीत में इस प्रकार है-

“मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्व विद्या की राजधानी”

उक्त कुलगीत के अनुसार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मनोहर एवं अति सुन्दरता के साथ-साथ निश्चित ही सर्व विद्या की राजधानी है। इस विश्वविद्यालय का निर्माण भी दान से प्राप्त धन से हुआ है।

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