और कितने मोड़

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अस्वस्थता का ध्यान आते ही शरीर में एक लहर-सी दौड़ गई। वह तेज बुखार में तप रहा था। जी चाह रहा था हिले भी न, फिर भी छुट्टी न मिल पाने के कारण फैक्टरी जाना पड़ रहा था। जैसे ही आधे रास्ते पहुंचा कि तेज वर्षा प्रारम्भ हो गई। भींगने के कारण कंपकंपी छूटने लगी। अत: टेस्ट रूम में पहुंचकर उसने हीटर जलाया।

कोरोना के दंश व सबक

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इस आपदा ने कि हमें परिवार के प्यार व साथ का महत्व बताया है और सिखाया है कि कम सुविधा साधनों में भी हम सुख व शांति से जीवन व्यतीत कर सकते हैं। रिश्तों को प्यार व अपनेपन से कैसे सहेजा जाता है, यह सबक भी इस संकट से हम काफी हद तक सीख चुके हैं।

कोरोना से देश में बढ़ी बेरोजगारी

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सामान्य तौर पर बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है, जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नहीं मिल पा रहा है। बेरोजगारी की समस्या विकसित और विकासशील दोनों  देशों में पाई जाती है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कींस के अनुसार किसी भी देश में  बेरोजगारी अन्य किसी भी समस्या से बड़ी समस्या है।

आर्थिकी के 75 साल

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आज सभी देशों की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के कारण तहस-नहस हो गई है, जिसमें भारत भी शामिल है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही और आगामी तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज होने के बावजूद भारत की विकास दर वर्ष 2021 में 11% रहने का अनुमान है।

फिल्मों के लिए लोकप्रिय लोकेशन

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हाल ही में उत्तराखंड को नेशनल फिल्म अवार्ड में मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट का अवार्ड भी मिला है। कुछ समय पहले फिल्म ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एफटीआई), पुणे और उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यशाला भी आयोजित की गई थी जिसमें बताया गया था कि प्रदेश में एक्टिंग, डिजिटल छायांकन, डिजिटल फिल्म प्रोडक्शन, स्टिल फोटोग्राफी और फिल्म मेकिंग कोर्स आरंभ किए जाएंगे जिससे, शूटिंग के लिए आने वाले निर्माताओं को दक्ष मैन-पावर भी उपलब्ध हो सकेगा।

राम की अयोध्या वापसी

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कौशल्या ने सादगी का जो चोला पति के जाने के बाद ओढा, वह नहीं बदला। अब वह दुकान शहर में ‘कौशल्या रेस्टोरेन्ट’ के नाम से जानी जाने लगी। अपनी आमदनी से वह कुछ दान-पुण्य करती, बचत से भावी बहू के लिए जेवर बनवाती, मन में बेटे की गृहस्थी बसाने का सपना जो आकार लेने लगा था।

संवेदनाएं अपनी-अपनी

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अचानक स्टेशन का शोर सुनाई देने लगा था। न्यू दिल्ली स्टेशन आ चुका था। सभी यात्री अपना सामान लेकर दरवाजे की ओर बढ़ने लगे। नितिन और भव्या भी मालती को लेकर सामान के साथ नीचे उतर आए। सबको मालती के बेटे अरुण का इंतजार था। भव्या और नितिन की निगाहें मालती की ओर थीं, कि कब वह संकेत देगी कि मेरा बेटा अरुण आ गया।

प्राचीन मंदिरों में विज्ञान

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वैज्ञानिकों ने तकनीकी जांच में पाया कि इन पत्थरों को बनाने के लिए एक आयताकार खाई तैयार की गई, जिसमें ग्रेनाइट पत्थर का चूर्ण, गन्ने से निर्मित चीनी (केन शुगर), नदी की रेत और कुछ अन्य यौगिक डालकर एक मिश्रण तैयार किया। इस मिश्रण से नींव भरी गई और  विभिन्न आकार के छिद्रयुक्त पत्थर तैयार किए गए।

तिबारी बाखली का महत्व

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काश...मैं भी धन्नासेठ बनता व अपनी मध्यकालीन भारतीय शैली में अपने गांव में विशाल तिबारी का निर्माण करवाकर अपने अतिथियों को आमंत्रित कर उनकी आंखें चुन्धियाता..। काश...कि हमारी सरकार विलेज टूरिज्म के बढावे में तिबारी/बाखली प्रमोट करती तो हमारी मध्यकालीन भारतीय सभ्यता ज़िंदा रहती व भौगोलिक व पर्यावरणीय दृष्टि से हम सुकून महसूस करते।

गढ़वाल भ्रातृ मंडल, मुंबई 92 सालों का गौरवशाली सफर

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बांद्रा टर्मिनस, मुंबई से रामनगर उत्तराखंड जानेवाली ट्रेन के समय में मंडल के रेल्वे प्रकोष्ठ के संयोजक बाल कृष्ण शर्मा के प्रयत्नों से रूट में कटौती करके 10 घंटे की कमी की गई। यह मंडल के इतिहास में एक विशिष्ट उपलब्धि रही। साहित्य, कला, संगीत, खेल एवं समाजसेवा आदि क्षेत्र में विशिष्ट योगदान करनेवाले उत्तराखंड के मनीषियों को ‘गढ़रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित करना ‘मंडल’ की परंपरा का हिस्सा रहा है।

उत्तरांचल मित्र मंडल-वसई रोड

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उत्तरांचल मित्र मंडल वसई रोड वसई, मुंबई में निवासी उत्तराखंडियों की एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, जो मानवता की भलाई के लिए मुंबई महाराष्ट्र में विगत 32 सालों से कार्यरत है।

बीज बना वटवृक्ष उत्तरांचल मित्र मंडल, भायंदर

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उत्तरांचल मित्र मंडल एक सामाजिक संस्था है। सन 2003 में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की सोच से इस संस्था का जन्म हुआ और 19 नवंबर 2005 को कुछ बुद्धिजीवियों के प्रयास से संस्था का पंजीकरण किया गया।

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