हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र

आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र

by प्रो. श्रीराम वर्मा
in अध्यात्म, उत्तराखंड दीपावली विशेषांक नवम्बर २०२१, विशेष
0

भारत विश्व का प्राचीनतम राष्ट्र है। वैदिक चिन्तन राष्ट्र को एक सजीव सत्ता स्वीकार करता है। सिर्फ मानचित्र पर उभरी रेखा में ही राष्ट्र नहीं होता बल्कि राष्ट्र एक भावना है, विचार है, एक प्राण शक्ति है जो मानव सोच और व्यवहार को प्रभावित करती है। राष्ट्र निर्माण एक दीर्घ प्रक्रिया है, जो सांस्कृतिक और वैचारिक सोपानों से गुजर कर एक भावनात्मक शक्ति का रूप ग्रहण करती है इसलिए हमने अपने राष्ट्र भारत को सिर्फ भौगोलिक इकाई न मानकर कभी देव शक्ति तो कभी मातृशक्ति के रूप में वन्दनीय माना है। एक अमीप्सा, एक प्यास सत्य को पा लेने की, उस सत्य को जो हमारे हृदय की धड़कन-धड़कन में बसा है। उस सत्य को जो हमारी चेतना की तहों में सोया है। वह जो हमारा होकर भी कहीं न कहीं हमसे भूल सा गया है। उसका पुनः स्मरण ही यह लेख का एक छोटा सा प्रयास मात्र है। उत्तर भारत का एक छोटा सा सुन्दर सा प्रदेश उत्तराखंड जिसे देव भूमि नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।

उत्तराखंड ऋषियों-मुनियों की तपस्थली व साधना का केन्द्र रहा है। मानवीय सत्ता की क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति और इच्छाशक्ति का यह उद्गम केन्द्र रहा है। हमारे ऋषियों, मुनियों, साधकों, सत्य के जिज्ञासुओं की साधना उनके अनुभवों की सार्थकता और बुद्धत्व का सत्य आज भी उतना ही ताजा उतना ही प्रासंगिक है, जितना पहले कभी रहा होगा। ज्ञान का सत्य का प्रकटीकरण कहीं भी हुआ हो वह हमारी मानवीय चेतना को प्रभावित करता है। ज्ञान को किसी भौगोलिक सीमा में नहीं बांधा जा सकता। सभ्यता और संस्कृति दोनों ही मानवीय चेतना की सृजनात्मक क्रिया का परिणाम है। जब सृजनात्मक क्रिया उपयोगी लक्ष्य की ओर गति करती है, तब सभ्यता का जन्म होता है और जब यह मानवीय सृजनात्मक शक्ति चेतना को प्रबृद्ध करने की ओर अग्रसर होती है, तब संस्कृति का उदय होता है। मानवीय चेतना के विभिन्न स्तरों से निकला, ज्ञान, विज्ञान हमारी संस्कृति सभ्यता का आधार है। भारतीय संस्कृति के मूल में अध्यात्म है और इसी आध्यात्मिक चेतना का उद्भव केन्द्र उत्तराखंड रहा है।

देवभूमि उत्तराखंड की विशेषता

भारत का भाल पावन भूमि उत्तराखंड है। गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले महाराज भगीरथ से लेकर भारत नाम के जनक महाराजा भरत की जन्म स्थली भी है। कन्डव ऋषि का आश्रम और शकुन्तला दुष्यन्त की प्रणय स्थली भी उत्तराखंड के कोटद्वार के निकट स्थित है। जिस संजीवनी से लक्ष्मण की मूर्छा तक दूर हो गई थी, वह जीवनदायिनी औषधि भी उसी देवभूमि उत्तराखंड की ही देन है। आदि कवि वाल्मीकि ने लिखा है ‘औषधिनां पराभूमि हिमवान शैल उत्तम।’ इसकी महिमा ऋग्वेद में भी उल्लेखनीय है। मध्यहिमवन्त का केदार मानसखण्ड (आधुनिक गढ़वाल और कुमाऊ) उत्तराखंड का मुख्य भू भाग है। यह पावन भूमि उत्तराखंड अध्यात्म, धर्म और अनेकानेक संस्कृतियों का पोषक ही नहीं जनक भी रहा है। आदिशंकराचार्य ने भारत संस्कृति, दर्शन व धर्म की ध्वजा फहराते हुए न सिर्फ देवभूमि उत्तराखंड को अपना केन्द्र बनाया बल्कि बद्रीनाथ, जगन्नाथ से लेकर ज्योर्तिमठ शंकराचार्य पीठ की यहां स्थापना की थी। गुरु गोरखनाथ की साधना स्थली (चम्पावत) भी देवभूमि उत्तराखंड रही है। सिक्खों के आदि गुरु नानक देव जी ने रीठा साहिब (चम्पावत) और अन्तिम गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिमकुन्ड साहिब में साधना की।

ब्रह्मगुफा (केदारनाथ), शंकरनाथ शंकर गुफा (देव प्रयाग), गणेश गुफा (बदरीनाथ) के अलावा व्यास गुफा, वशिष्ठ गुफा, गोरखनाथ गुफा, राम गुफा आदि अनुसूया आश्रम, अगस्त्य मुनि, अरण्यक, वाल्मीकि, वैशम्पायन, उद्दालक, दुर्वासा, परशुराम, भारद्वाज, विश्वामित्र, कागभुशुण्डि, ऋषिगौतम, शुक्राश्रम, मतंग ऋषियों के नाम से चर्चित गुफाएं वो स्थल हैं, जहां से भारतीय संस्कृति व मानवीय मूल्यों को प्राणुवायु मिलती रही। अलकनन्दा पतितपावनी गंगा इसी देवभूमि उत्तराखंड से निकलती है, जो अपने पावन जल से अनादिकाल से न सिर्फ जीवन देती आई है बल्कि हमारी संस्कृति और सभ्यता को पोषित करती आई है। गंगोत्रीधाम यमुनोत्रीधाम की छटा भी देखते ही बनती है।

मन को जीतना महत्वपूर्ण

भारतीय संस्कृति को शिखर पर पहुंचाने का श्रेय यहां के ऋषियों, मुनियों, आचार्यों, साधु-सन्यासियों, साहित्यकारों और कलाकारों को है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, महाभारत और गीता सदृश आद्यग्रन्थों ने भारतीय संस्कृति को विश्ववंद्य संस्कृति का स्वरूप प्रदान किया। विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है। हमने एकरूपता नहीं अपितु एकता की कामना की है। मन जीतना ही तो भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है। श्रीरामचन्द्र के राज्य में भी मन के जीतने को ही सर्वाधिक महत्व दिया गया है। तुलसीदास ने मन जीतने को ही सर्वाधिक महत्व दिया है। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में कहा है ‘जीतहु मनहि सुनिय अस राम चंद्र के राज।’

भारतीय संस्कृति हम सबके लिए एक पाथेय, धरोहर और संबल है। अतीत के अगणित प्रकाश-स्तंभ हमें आज भी रोशनी प्रदान करते हैं। बाल ऋषि अष्टावक्र को उनके पिता का उद्बोधन हमारे जीवन मूल्यों का पथ प्रदर्शक है। पिता ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा था तू मुझे सर्वाधिक प्रिय है पुत्र, काया की आकृति से क्या होता है। तू तो महाज्ञानी है। उत्कृष्ट सभ्यताओं का कोई भी चरण देह की आशा द्वारा अपने शिखर तक नहीं पहुंचा। मानसिक सौन्दर्य को ही आर्य ऋषियों ने सौन्दर्य कहा है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: devbhoomigadhvalgadhvaligarhwaljaagarkedarnathmeditationspiritualitytemplesuttarakhanddiariesuttarakhandiuttarakhandtravelleuttrakhand cuture traditionsyoga

प्रो. श्रीराम वर्मा

Next Post
संत परम्परा

संत परम्परा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0