राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई। गत नौ दशकों में संघ का कार्य भारत के साथ विश्व के सभी देशों तक अपना विस्तार कर चुका हैं। इनमे राष्ट्र कार्य से लेकर सेवा कार्यों तक के विभिन्न आयाम सक्रीय है। उत्तराखंड राज्य में 1940 से लेकर सात दशकों में संघ ने अपने विभिन्न आयामों के साथ राज्य के सर्व स्तरीय विकास में अपना योगदान दिया है।
*फरवरी 1940 में संघ प्रचारक दामले जी के द्वारा देहरादून में विधिवत प्रथम शाखा प्रारम्भ हुई।
*1940 के संघ शिक्षा वर्ग में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले योगध्यान जी को उत्तराँचल के प्रथम शिक्षार्थी स्वयंसेवक का गौरव प्राप्त है।
*1942 में श्री दामले जी द्वारा काशीपुर में संघ कार्य को बढ़ाने हेतु स्थानीय कार्यकर्ता राम रतन जी (तत्कालीन जज) के सहयोग से प्रथम शाखा गोपाल जी की बगिया मोहल्ला थानासाविक में आरम्भ की।
* 1942 में लाहौर से हरेराम जी प्रचारक रूड़की आये और शाखा प्रारम्भ हुई।
* उत्तराँचल के इतिहास में संघ द़ृष्टि से जगदीश माथुर जी प्रथम प्रचारक निकले।
* 1943 में देहरादून के कार्यकर्ता देवेन्द्र शास्त्री जी लाहौर से प्रचारक निकले।
*1944 में दामले जी ने हल्द्वानी के शिव शंकर जी, दानसिंह बिष्ट जी को कार्य का आधार बनाया।
* 1950 में नैनीताल लंदन हाउस में कार्यरत स्वयंसेवक द्वारा कुमायूँ की पहली शाखा का श्रीगणेश ।
*1950 में महाराज सिंह ने हिन्दू नेशनल इण्टर कॉलेज देहरादून से अध्यापक पद से त्याग पत्र देकर प्रचारक जीवन अंगीकृत किया।
* 1952 में ज्योति स्वरूप जी विस्तारक बनकर देहरादून आये। उन्होंने साइकिल चलाकर डोईवाला, प्रेमनगर, विकासनगर, ॠषिकेश तथा मसूरी में शाखा विस्तार का कार्य किया।
* 1952 में तिलकराज कपूर जी प्रचारक बनकर अल्मोड़ा गये। वहाँ विधिवत् शाखा प्रारम्भ की। बी.टी. करते हुए कई युवा उनके सम्पर्क में आये।
*तिलकराज कपूर जी पांचजन्य को नि:शुल्क वितरण करते थे। इसी समय उनकी भेंट सोबन सिंह जीना से हुई। जीना जी उनसे प्रभावित होकर एक अच्छे कार्यकर्ता बने।
* 1953 में मोती बाजार देहरादून में प्रथम सरस्वती शिशु मन्दिर प्रारम्भ हुआ। इसके माध्यम से भी संघ कार्य का विस्तार हुआ।
* 1954 में अल्मोड़ा का सरस्वती शिशु मन्दिर प्रारम्भ हुआ।
*1954 में अजमेर से शारदा चरण जोशी जी (मूल रूप से अल्मोड़ा निवासी) श्री गुरूजी के सम्पर्क में आकर प्रचारक बने।
* 1960 में देवप्रयाग में शाखा प्रारम्भ हुई। हजारी लाल जी, विश्वनाथ कोठियाल जी, गिरिधारी लाल जी प्रथम स्वयंसेवक। इससे पूर्व श्री गुरूजी के आगमन पर शाखा लगी।
*1962 में आजाद मैदान टिहरी में परम पूजनीय रज्जू भैया द्वारा दीप जलाकर महावीर प्रसाद जी की अध्यक्षता में प्रथम शाखा प्रारम्भ हुई। डॉ. ललिता प्रसाद गैरोला, दीपक जी प्रथम स्वयंसेवक।
* पौड़ी के प्रचारक सांवल दास जी के सहयोग से कोटद्वार में प्रथम शाखा प्रारम्भ हुई।
*कुमायूँ से मथुरा दत्त पाण्डे द्वितीय प्रचारक निकले।
*1964 में ज्योति जी अल्मोड़ा के प्रचारक बने। कुमायूँ की भाषा सीखी। भाषा दक्षता के आधार पर संघ कार्य का विस्तार किया।
* डॉ. नित्यानन्द जी को नरहरि नारायण जी ने प्रचारक निकाला। 1965 में भूगोल के प्रोफेसर बनकर देहरादून आये। उत्तराँचल विकास हेतु हिमालय अनुरागी बन अनेक पुस्तकों की उन्होंने रचना भी की।
*1991 के भूकंप त्रासदी में ध्वस्त गाँवों का पुनर्वसन तथा मनेरी प्रकल्प के माध्यम से सेवा कार्य आरम्भ किया।
* 1965 में उत्तरकाशी में प्रथम शाखा प्रारम्भ हुई।
*1966 में अशोक जी द्वारा चम्पावत में प्राथमिक शिक्षा वर्ग का आयोजन हुआ। जिसमें 18 शिक्षार्थियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। उस वर्ग से 8 विस्तारक निकले। घनश्याम जी खटीमा सम्पर्क में आये।
* 1966 में द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी लोहाघाट स्थित स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा स्थापित मायावती आश्रम में आये तथा विशेष प्रकार का स्पन्दन अनुभव किया।
*1973 में चमोली, गोपेश्वर में धर्मवीर जी प्रचारक बनकर गये एवं संघ कार्य प्रारम्भ किया।
* 1980 से 1995 में सरस्वती शिशु मन्दिरों की जगह-जगह से माँग तथा खण्ड स्तर तक विद्यालय आरम्भ हए। भारतीय जीवन आदर्शों पर आधरित शिक्षण पद्धति के अनुसार शिक्षा का प्रसार किया।
*1986 में जौनसार क्षेत्र में प्रकल्प खोलकर क्षेत्र को ईसाईकरण से बचाया।
*कार्यकर्ताओं ने उत्तरकाशी (लालघाटी) को भगवामय बनाया।
*वर्तमान समय में 1282 शाखाएँ उत्तराखंड में संचालित होती हैं। इनके माध्यम से समाज जागरण की अच्छी पहल एवं संघ कार्य का विस्तार होता है।
* कोरोना काल में भी 147 स्थानों पर शाखा का संचालन किया गया।