बर्मिंघम त्यागराज फेस्टिवल का औचित्य

बर्मिंघम त्यागराज फेस्टिवल एक प्रसिद्ध उत्सव है, ऐसे ही क्लीवलैंड त्यागराज फेस्टिवल भी प्रसिद्ध है। इनके नाम में जो “त्यागराज” नजर आता है, उससे ये तो पता चलता है कि ये किसी भारतीय के नाम पर मनाये जाने वाले कोई आयोजन हैं। लेकिन आखिर ये हैं क्या? उत्तर भारत में त्यागराज बहुत जाना-पहचाना नाम नहीं, लेकिन कर्णाटक संगीत के लिए जिन्हें त्रिमूर्ति कहा जाता है, त्यागराज उनमें से एक थे। उनकी अधिकांश रचनाएँ तेलगु और संस्कृत में हैं। उनके साथ एक और ख़ास चीज़ जुड़ी है कि उन्होंने चार मराठा राजाओं का शासन काल देखा था। ध्यान रहे “देखा था”, वो तुलजा द्वित्तीय (1763–1787), अमरसिंह (1787–1798), सेर्फोजी द्वित्तीय (1798–1832) और शिवाजी द्वित्तीय (1832–1855) में से किसी के पास काम नहीं करते थे।
चूँकि सेक्युलर दौर में भारत नवरत्नों के बारे में जनरल नॉलेज जैसी किताबों में पढ़ चुका है इसलिए अगर “पंचरत्न” कहा जाए तो इसके अर्थ का अंदाजा लगाने में कोई मुश्किल नहीं होगी। जाहिर सी बात है कि किन्हीं पांच ख़ास चीज़ों की बात हो रही है। अब बस ये बताना रह जाता है कि पंचरत्न कर्णाटक संगीत की पांच विशेष कृतियाँ हैं। ये सभी कृतियाँ आदि तालम पर हैं हालाँकि इन सभी के राग अलग अलग हैं। उत्तर भारत में प्रचलित रागों से कर्णाटक संगीत के राग थोड़े से अलग होते हैं। यहाँ वजन में भारी वाले अर्थ में इस्तेमाल होने वाले घन राग होते हैं – नट, गौला, अरभी, वराली और श्री। इनसे आगे और भी कई राग निकलते हैं। त्यागराज को श्री राम पर लिखे गीतों के लिए जाना जाता है और उनकी प्रसिद्धि “पंचरत्न” के लिए ही है।
त्यागराज की रचनाएँ करीब करीब उसी काल की हैं, जिसे भारत में भक्ति काल कहा जाता रहा है। इसके बाद भी त्यागराज की रचनाएँ भक्ति रस के कवियों की रचनाओं से बिलकुल अलग हैं। उनकी पंचरत्नों में से पहली कृति है “जगदानन्दकारक” जो श्री राम पर आधारित है। इसका पहला शब्द जगदानन्दकारक ही इसे भक्ति काव्य से अलग कर देता है। ये दीन भाव का भक्त किसी मदद के लिए प्रभु को पुकार नहीं रहा। ये स्पष्ट रूप से श्री राम को जग के आनंद का स्रोत बताता शंखनाद है। घना का सघन या बहुत भरा सा अर्थ भी होता है इसलिए “जगदानन्दकारक” को पूरा गाने का मतलब है कि श्री राम के 108 नाम लिए जा चुके होंगे। धार्मिक जुड़ाव के कारण भी इस कृति की मान्यता रही है।
ऐसा माना जाता है कि शुरुआत में इस कृति में छह चरण ही थे। इसमें श्री राम के नब्बे नाम आते थे। बाद में शिष्यों के अनुरोध पर त्यागराज ने इसमें दो चरण और जोड़े, इन दो चरणों में अट्ठारह नाम और हैं। त्यागराज संत थे या संगीतकार ये कह पाना मुश्किल है, क्योंकि उनकी रचनाओं जैसा संगीत साधारण व्यक्ति से तो बनता हैं। उन्होंने थंजावुर का राज-निमंत्रण जिस आसानी से ठुकराया था, उसके बाद उनके संत-सन्यासी न होने की वजह भी नहीं दिखती। उनकी रचनाओं पर कुछ ही श्रृंखलाएं लिखी गयी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वो स्वयं लिखते नहीं थे, उनके गाये हुए को उनके शिष्य ताम्रपत्र पर उतार लिया करते थे। बाद में ये ताम्रपत्र पारिवारिक संपत्ति रहे और उनमें से सभी को इकठ्ठा नहीं किया जा सका।
उनपर एक अच्छी किताब जिसमें उनकी कई कृतियाँ और अनुवाद हैं, रामकृष्ण मिशन आश्रम के प्रेस से आती है। भारत में संगीत की परंपरा, या फिर श्री राम पर हुई रचनाओं में रूचि, दोनों वजहों से इसे पढ़ा जा सकता है।
– आनन्द कुमार

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