संगीत का तराना ताना-रीरी

प्रायः हम बहुत से लोकश्रुत कथानकों से अनभिज्ञ होते हैं। इतिहास में छेड़छाड़ और विकृतिकरण से संगीत भी अछूता नहीं रहा है। इसके फलस्वरूप संगीत के ग्रंथों में परस्पर विरोधाभास  नें आज संगीत के छात्रों के सम्मुख बड़ा ही भ्रमात्मक स्थिति उत्पन्न कर दिया है.ग्रंथों में इतने मतभेद हैं की समझ में नहीं आता की सच किसे माना जाए.संगीत के छात्रों में शास्त्र के प्रति अरुचि होने की प्रमुख वजह एक ये भी है.जो भी थोड़ा बहुत रूचि लेतें हैं,वो इस मतभेद और विरोधाभास के आगे हाथ खड़ा कर अपना सारा ध्यान रियाज पर केन्द्रित कर देतें हैं.गुरुमुखी विद्या और प्रारम्भ में शास्त्रों के प्रति उदासीनता होने के कारण  उत्पन्न इस मतभेत से संगीत की विभिन्न विधाएं आज भी प्रभावित हैं.
एक छोटा उदहारण लें ,ख्याल गायन की सबसे मजबूत कड़ी ‘तराना’ है ,जो साधरणतया मध्य और द्रुत लय में गाया जाता है. जिसमें ‘नोम ,तोम ,ओडनी ,तादि,तनना, आदी शब्द प्रयोग किये जाते हैं।कुछ लोग इसकी उत्पत्ति कर्नाटक संगीत के तिल्लाना से मानतें हैं.तो कुछ का मानना है की तानसेन ने अपनी पुत्री के नाम पर इसकी रचना की.संगीत के सबसे मूर्धन्य विद्वानों में से एक ठाकुर जयदेव सिंह की मानें तो इसके अविष्कारक अमीर खुसरो हैं.अब स्वाभाविक समस्या है की.सच किसे मानें ?आज औपचारिक शोध के दौर में कुछ लोग बेहतर कार्य कर रहें हैं और नित नये खोज और जानकारियाँ एकत्र कर संगीत के भंडार को समृद्ध कर रहें हैं.
ताना और रीरी दो बहने (खयाल गायकी में जिन्हे श्रीगणेश के साथ ‘नोम तोम ताना रीरी’ के रूप में प्रथम स्मरण कर के सम्मान दिया जाता है।) जो (गुजराती के महाकवि सूरदास) नरसी मेहता की पुत्री कुंवरबाई की पुत्री शर्मिष्ठा की दो पुत्रियां थी। नागर ब्राह्मण कुल में जन्मी दो बहने उस मुगल युग के संक्रमण काल में संगीत के लिए शहीद हुईं। हिंदी पट्टी में प्रायः हम सुनते हैं कि तानसेन ने दीपक राग गाकर अकबर दरबार में दीपक जलाए थे, जिसे मल्हार राग गाकर उसकी बेटी ने ताप हरण किया था। लेकिन वास्तव में तानसेन के दीपक राग से उत्पन्न ताप को ‘ताना रीरी’ ने मल्हार गाकर ठीक किया था।
ताना रीरी पर बनी गुजराती फिल्म में ताना का किरदार कानन कौशल ने तथा रीरी का किरदार बिंदु ने निभाया है। तानसेन दीपक राग गा तो लिये लेकिन दाह से पीड़ित होकर भ्रमण पर निकले तब (नरेन्द्र मोदी जी के गांव) वड़नगर (जिला मेहसाणा) के शर्मिष्ठा तालाब पर ठहरे, ताना और रीरी उसी समय पानी के घड़े लेकर आई। रीरी ने घड़ा भर लिया मगर ताना बार बार घड़ा भरती और फिर उलींच देती, रीरी ने कहा कि चलो देर होगी। तब ताना ने कहा कि जब तक मेरे घड़े में जल भरने में राग मल्हार का स्वर न निकलने लगे मैं पानी नहीं ले जाऊंगी।
पेड़ के नीचे ठहरे तानसेन की खोज पूरी हुई। ताना रीरी से आग्रह किया, उन्होने बगैर नागर कुल से अनुमति के बगैर गाने से मना किया। फिर तानसेन ने शपथ लेकर ताना रीरी का किसी को उल्लेख न करने की बात पर वह आयोजन सम्पन्न किया। तानसेन दाह से मुक्त हुए। मगर तानसेन को अकबर के सामने मृत्यु भय से राज खोलना पड़ा।
खैर कथा में बहुत सी अनुश्रुतियां है,  कहतें हैं अकबर इनसे बड़ा प्रभावित हुआ और तानसेन को आदेश दिया की इनको फतेहपुर सीकरी के दरबार में लाया जाय.तानसेन को ज्ञात हुआ की ये तो राजा मानसिंह तोमर संगीतशाला के वरिष्ठ आचार्य बैजू की पुत्रियाँ हैं जिनका नाम बैजू ने बड़े प्रेम से ‘ताना’ और ‘रीरी’ रखा था .तानसेन न चाहते हुए भी शाही फरमान को मानने के लिए विवश थे.उन्होंने दोनों के सम्मुख बादशाह के प्रस्ताव को रखा .इस प्रस्ताव को भारी विपत्ति समझ बैजू की दोनों पुत्रियों ने  तानसेन से अकबर को ये  खबर भिजवाया की ,वो दो दिन बाद आ जायेंगी। ठीक दो दिन बाद बादशाह द्वारा सुसज्जीत पालकियां भेजी गयी…फतेह पुर सीकरी आकर पर्दा उठाया गया तो ताना रीरी के शव प्राप्त हुए.उन दोनों बहनों को अल्पायु में आत्मोत्सर्ग करना पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें मुगल दरबार में ले जाया जा रहा था, कोई कहता है उन्होने कुए में कूद कर आत्म हत्या की, कोई कहता है उन्होने राग से अग्नि प्रज्वलित कर अग्निस्नान किया।
एक अन्य कहानी इस प्रकार बताई जाती है –
सोलहवीं सदी में भारत पर मुगल बादशाह अकबर की हकूमत थी। उसका मुख्य संगीतकार तानसेन विभिन्न रागों का उस्ताद गवैया था। जब अकबर ने सुना कि तानसेन दिपक राग इतनी अच्छी तरह गा सकता है कि उस की शक्ति से दिये जल उठते हैं, तब उसने तानसेन की कसौटी करने की ठान ली। एक दिन राज-दरबार में अकबर ने तानसेन को दिपक राग गाने के लिये कहा। तानसेन ने बादशाह से बहुत आजीजी की कि उसे दिपक राग गाने के लिये आग्रह न किया जाय, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि उसका क्या दुष्परिणाम आ सकता है। लेकिन बादशाह जिसे कहते हैं, अकबर ने उस संगीतकार की एक न मानी और दिपक गाने का फरमान कर दिया। तानसेन बेचारा दिपक राग गाने पर मजबूर हो गया।
तानसेन ने दिपक राग गाना शुरु किया और जैसे वह उसकी चरम सीमा पर पहुंचा, तो सचमुच सारे महल में रखे गये दिये अपने आप जल उठे। बादशाह अकबर सहित सारे दरबारी चकित हो कर तानसेन पर आफरिन हो गये। लेकिन, उधर राग दिपक की असर से तानसेन का पूरा बदन जैसे आग से भीतर ही भीतर जलने लगा। तानसेन को मालुम था कि दिपक गाने से उसके बदन पर ऐसी बितेगी, ईसी लिये वह गाना नही चाहता था। लेकिन बादशाह के खौफ से डर कर जब उसने दिपक गा ही लिया, तो अब यह हालत हो गई। अपने बदन में जलती हुई आग बुझाने का सिर्फ एक ही रास्ता था; और वह था मल्हार राग गाना। शुध्ध मल्हार राग बरसात बरसाने की क्षमता रखता है और उससे दिपक गानेवाले के बदन को शाता भी मिलती है। लेकिन तानसेन खूद तो शुध्ध मल्हार जानता नही था। और न तो अकबर के दरबार में और कोई गवैया वह जानता था। तब जलते हुए बदन से परेशान तानसेन ऐसे कोई संगीतकार की तलाश में दिल्ही छोड कर निकल पडा। वह सारे मुल्क में घूमता रहा, लेकिन उसे मल्हार का कोई सच्चा गवैया नही मिला। तब जा कर कहीं से उसे मालुम हुआ कि वडनगर में कला और संगीत का बहुत जतन होता है और वहां उसे मल्हार का कोई सच्चा कलाकार मिल सकता है।
तानसेन जब वडनगर पहुंचा तो रात ढल चूकी थी। उसने शर्मिष्ठा के किनारे ही रात बिताने चाही। प्रातःकाल में नगर की स्त्रीयां सरोवर से पानी भरने हेतु आना शुरु हुई। तानसेन उनको गौर से देखने लगा। उनमें ताना और रीरी नाम की दो बहेनें भी शामिल थीं। उन्हों ने अपने घडे पानी से भरे, लेकिन ताना ने तुरंत ही अपना घडा खाली कर दिया। उसने ऐसा कई बार किया। तानसेन यह देख रहा था। रीरी ने ताना से पूछा, “बहन, ऐसा कितनी बार करोगी?” तो ताना ने जवाब दिया, “जब तक हमें घडे से मल्हार राग सुनाई न दे।” आखिरकर, जब वह घडा ईस तरह भरने में कामियाब हुई कि उसके अंदर जाते हुए पानी की आवाज से मल्हार राग निकला, तब संतुष्ट हो कर बोली, “अब चलें।”
तानसेन, जो उनकी बातचित सुन रहा था; वह बहुत ताज्जुब हुआ। उसको पक्का विश्वास हो गया कि मल्हार की सच्ची जानकारी रखनेवाले की उसकी खोज आखिरकर मुकाम पर पहुंच ही गई। अपने दोनों हाथ जोडे वह दोनों बहनों के सामने जा कर बोला, “मैं एक ब्राह्मण हूं। मैं दिपक राग जानता हूं और बादशाह के हुकूम पर मैंने दिपक गाया। तो अब मेरा पूरा बदन उसकी आग से जल रहा है। मैं मल्हार तो जानता नही हूं। अब आप ही मुझे बचा सकती हो। वरना, मैं मेरे बदन के भीतर लगी आग से मर ही जाउंगा। कृपया, मल्हार गाईए कि जिससे मेरे भीतर की आग बुझ जाये और मुझे शाता मिले। कृपया, मुझ पर रहम कीजिये।” अचानक एक अजनबी से ऐसी विनति सुन कर ताना और रीरी अवाक रह गयीं, लेकिन उस आदमी की पीडन देख कर उन्हें उस पर दया आयी। उन्हों ने उसे तब तक राह देखने के लिये कहा, जब तक वे बडों की सलाह न ले ले। जब नगर के वरिष्ठ नागरिकों ने ताना और रीरी की बात सुनी, तब यह तय किया गया कि उस ब्राह्मण को शाता पहुंचाने हेतु दोनो बहनों को मल्हार गाना चाहिये।
ताना और रीरी ने मल्हार गाना शुरु किया। थोडी देर में तो आकाश काले काले बादलों से घिर गया और जल्द ही बरसात बरसने लगी। जब तक उन्हों ने गाना बंद न किया, तब तक जोरों से बरसात होती रही। बरसात के ठंडे पानी में तानसेन पूरा भिग गया और उसके बदन के भीतर लगी आग भी अजायब सी शांत हो गई।
उस बिच ताना, जो कि दोनों बहनें में बडी थी, उस अनजान आदमी को पहचान गयी थी। ब्राह्मण का ढोंग रचाये आया वह आदमी सचमुच में तानसेन के सिवा और कोई नही हो सकता था। क्योंकि ताना को मालुम था कि ईस दुनिया में सच्चा दिपक गानेवाला सिर्फ एक तानसेन ही है। उसी तरह सच्चा मल्हार ताना-रीरी के सिवा और कोई नही गा सकता था। तो कुछ, तानसेन जैसे महान संगीतकार को अपनी कला का परचा दिखा देने के बाद गर्विष्ठ हो कर ताना बोल पडी, “क्यों मियां तानसेन, अब तो शाता हुई न?”
इस सवाल सुनते ही तानसेन की सच्ची पहचान सबके सामने आ गई, तो तानसेन के होश उड गये क्योंकि उसको लगा कि अब नगर के लोग उसे मार देंगे। उसने दोनों हाथ जोड कर सबसे माफी मांगी और अपनी जान बचाने के लिये आजीजी की। वडनगर के लोग संगीत के प्रेमी थे और उदार दिलवाले भी थे। उन्होंने तानसेन की विषम स्थिति को समझा, लेकिन वे उसे एक शर्त पर जिंदा छोडने पर राजी हुए। वह शर्त थी कि, तानसेन यह वचन दे कि ताना-रीरी के बारे में वह कभी किसी से कोई बात नही बतायेगा। तानसेन ने शर्त मंजूर कर ली और वचन दे दिया, तो नगर के लोगों ने उसे जिंदा जाने दिया।
तानसेन दिल्ही वापस आया। उसे दिपक की जलन से मुक्त देखकर अकबर बडा ताज्जुब हुआ। उसने पूछा, “तानसेन, तुम तो कहते थे कि तुम्हारी जलन का कोई उपाय नही है। लेकिन अब तो तुम अच्छे हो गये हो। यह कैसे हुआ? किसने तुम्हारी जलन शांत की?” तानसेन पूरा जवाब नही देना चाहता था तो , बोला, ” हिन्दुस्तान में घूमता हुआ मैं एक ऐसी जगह पहुंचा कि जहां मुझे सच्चा मल्हार राग सुनने मिला और मेरी जलन शांत हो गई।” अकबर उसके जवाब से संतुष्ट नही हुआ; वह जानना चाहता था कि कौन ऐसा संगीतकार है जो कि सच्चा मल्हार गा सकता है। तब बादशाह ने सख्ताई से तानसेन को पूछा, “बताओ किसने सच्चा मल्हार गाया? और कहां पर?”
अब बादशाह का रुख देख कर तानसेन घबराया। अगर वह पूरी बात बता देता है तो उसने वडनगर में जो वचन दिया था, उसका भंग होता था। लेकिन वह अच्छी तरह जानता था कि वह सच्ची बात नही बतायेगा तो उसके उपर बादशाह का खौफ उतर आयेगा। बादशाह ने और सख्ती से पूछा, “बोलो, कौन और कहां?” तानसेन डर गया; उसे लगा कि उसकी जान जोखिम में है। भयभित तानसेन ने जो भी वडनगर में हुआ था वह सब कुछ सच-सच बादशाह को बता दिया। तानसेन ने ताना-रीरी के संगीत कौशल्य की बात करते हुए उनके सौंदर्य और भलाई की भी बहुत सराहना की।
कमनसीबी से अकबर और तानसेन की यह बातचीत बादशाह की कई बेगमों के शाहजादों में से दो शाहजादे छिपकर सुन रहे थे। ताना-रीरी की बात सुनकर वे दिवाने से हो गये। उन्हों ने अपने लिये ताना और रीरी का अपहरण करने की साजिस की। जल्दी ही दोनों शाहजादे चोरी-छुपी अपने घोडे पर सवार हो कर अकेले ही वडनगर की ओर निकल पडे। कुछ दिनों के बाद जब दोनों वडनगर पहुंचे तो रात हो गई थी। नगर के किले के दरवाजे बंद हो चूके थे, तो उन्हों ने किले के बाहर ही रात बिताना मुनासिब माना। उन्हों ने शर्मिष्ठा सरोवर के किनारे पर लगे हुए एक बडे बनियन के पेड तले जगह पसंद की। उन्हों ने सोचा कि जैसा कि तानसेन ने अपनी बात में बताया था सुबह में जब ताना और रीरी पानी भरने झील के किनारे आयेंगी वे उन्हें देख सकेंगे।
जब शर्मिष्ठा सरोवर पर उषःकाल हुआ तो दोनों शाहजादे जाग उठे और राह देखने लगे। जल्दी ही सुबह के सूरज की किरनें उसके के पूर्व किनारे पर निकल आयी। झील-मिलाते सुनहरे पानी से झील अत्यंत सुंदर दिखती थी। अब, हररोज की तरह नगर की स्त्रीयां किनारे पर पानी भरने आनी शुरु हो गई। थोडी ही देर में, ताना और रीरी भी एक दूसरे के साथ हंसी-मजाक करती उधर आयीं। शाहजादों को यह जानने में कोई दिक्कत नही हुई कि वे कौन थीं, दूरी से भी वे अन्य स्त्रीयों से एकदम अलग जो लगती थी। दोनों बहनें कपडे के छन्ने अपने घडों के मुंह पर रख कर पानी भरने लगी।
जब घडे पानी से भर गये, तो दोनों बहनें वह कपडे के टूकडे हवा में झटक कर सूखाने लगी। अपनी दिवानगी में शाहजादे समझे कि वे कपडे हिलाकर उन्हें बुला रही हैं। और जल्द ही वे पेड तले से निकल आये और जोरों से बोल पडे, “माशा अल्लाह, कितनी सुंदर हैं दोनों।” सरोवर के किनारे पर ईकठ्ठी हुई सभी स्त्रीयां दो अनजाने आदमीयों को देख कर चौंक पडी और जोर जोर से मदद के लिये चिल्लाने लगीं। जल्द ही नगर के कई लोग उधर पहुंच गये और शाहजादों को पकड लिया। अपने जूनुन में बिना कुछ सोचे समझे उन लोगों ने शाहजादों को मार डाला। उनके घोडों को भी मार दिया। और सभी को सरोवर के किनारे जमीन में गाड दिया।
उधर, जब अकबर को मालुम हुआ कि उसके दो शाहजादे लापता है, तो उसने अपने सैनिकों को उन्हें ढूंढ निकालने का हुकूम दे दिया। कुछ समय के बाद पता चला कि दोनों शाहजादे ताना-रीरी को पाने की फिराक में अकेले ही वडनगर चले गये थे और उधर नगरवासीओं ने उन्हें कत्ल कर दिया है। अब बादशाह धुआं-पुआं हो गया। उसने फौज को वडनगर जा कर नगरवासीओं को सजा करने और ताना-रीरी को कैद कर दिल्ही ले आने का हुकूम किया। कुछ ही दिनों में बादशाह की फौज वडनगर आ पहुंची। उसने नगर के लोगों की कत्लेआम की, नगर को जला दिया, और ताना-रीरी को पकड लिया। सैनिकों ने दोनों बहनों को एक पालखी में बिठा कर दिल्ही की और कूच करने की तैयारी की। लेकिन दोनों बहनें यह तय कर चूकी थीं कि दिल्ही जाने से बहेतर ये होगा कि वे मर ही जाये। जब उनकी पालखी नगर के दरवाजे के बाहर आये हुए महाकालेश्वर मंदिर के पास पहुंची, तो उन्हों ने अपनी अंगूठीओं पर लगे हिरों को चूस लिया और उसके जहर से मर गयीं। उनकी चिताएं उधर ही जलाई गयी। कुछ समय बाद वहां पर उन की याद में वहां दो मंदिर बनाये गये।
जो भी हो मगर ताना रीरी का वह आत्म बलिदान गुर्जर माटी के कण कण में व्याप्त है। ताना रीरी के बलिदान की वर्षगांठ दिनांक १८ नवम्बर को है। गुजरात राज्य अपनी इन लाड़ली बेटियों को खूब सम्मान देता है। लता जी और उषा जी मंगेशकर, गिरिजा देवी, किशोरी अमोनकर जी, बेगम परवीन सुल्ताना, डॉ प्रभा अत्रे, मंजु बेन मेहता आदि इस पुरस्कार को प्राप्त कर चुकीं है। ताना-रीरी के सम्मान में वडनगर में स्मारक बनाया गया है। ताना-रीरी संगीत समारोह हर साल गुजरात सरकार द्वारा उनके समर्पण में आयोजित किया जाता है ।

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