तालिबान-अलकायदा का रिमोट कंट्रोल पाकिस्तान के हाथ में है और पाकिस्तान का रिमोट कंट्रोल चीन के हाथ में। चीन को दबाने से पाकिस्तान खुद ही दुबक जायेगा। इसलिए भारत का सामर्थ्यवान होना आवश्यक है, यह कहना है रक्षा विशेषज्ञ ले.जन. (से.नि.)डॉ.दत्तात्रेय शेकटकर का। उन्होंने हिंदी विवेक को दिए साक्षात्कार में भारत की बाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा को लेकर अपनी बेबाक राय रखी और साथ ही अलगाववादी, नक्सली, माओवादी, जिहादी, आतंकवादी इत्यादि राष्ट्रविरोधी तत्वों से निपटने के सटीक उपाय भी बताए। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के सम्पादित अंश –
पुरानी और वर्तमान सुरक्षा नीतियों में आपको क्या अंतर दिखाई देता है?
काफी अंतर दिखाई देता है। जब हमें स्वतंत्रता मिली थी, उस समय जो हमारे नेता थे, उन्हें लगता था कि हमने तो बिना युद्ध किए आजादी प्राप्त की है। हमें विद्यालय में एक गीत सिखाया जाता था-
दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
हमें यह बताया जाता था कि जो आजादी हमें मिली है वह केवल चरखा चलाने से मिली है, सूत कातने के बाद मिली है, केवल अनशन करने के बाद मिली है। हमें आजादी दिलाने में सेनाओं का, सैनिकों का या युद्ध सैनानियों का कितना बड़ा योगदान था वह हम भूल गए। यही कारण था कि उस समय के जो राजनितिक लोग थे, प्रधानमंत्री थे या जो कोई भी थे, उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय संरक्षण के बारे में चिंता नहीं की। उसी का नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान ने हम पर बार-बार आक्रमण किया, चीन ने आक्रमण किया, भारत में आतंकवाद बढ़ा, ईशान्य भारत का अलगाववाद बढ़ा। क्योंकि उन्हें मालूम था कि भारत एक शक्तिशाली देश नहीं है और सैन्यशक्ति का हमारे खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर सकता है। आज भारत एक सक्षम देश है। भारत से कोई पंगा नहीं लेता है। भारत पर कोई पहले की तरह हमला नहीं करता है। उन्हें डर है कि हमला होने पर भारत की ओर से भयंकर पलटवार हो सकता है। अब हमला करना आसान नहीं है, यह बात उन्हें समझ में आ गई है। पुलवामा का जो कांड हुआ, हमारे लोगों की हत्या कर दी गई, हमने तुरंत बलोकोट पर हवाई जहाज से हमला कर जवाबी कार्यवाई की। बिलकुल उसी तरह से जब उड़ी में हमला किया गया तब हमने सर्जिकल स्ट्राइक कर उसे सबक सिखाया। अब उनको समझ में आ गया है कि आज का भारत, वो भारत नहीं है जो आज से 20,25,30 साल पहले था। आज का भारत दूसरा भारत है, आज के भारत की रणनीति दूसरी है। भारत ने परमाणु बम बनाकर रखा है, भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। सैन्यशक्ति के आधार पर ही भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र बन रहा है। भारत की आर्थिक नीति बदल रही है। भारत की रणनीति, डिप्लोमेसी बदल रही है। फोरेन रिलेशन बढ़ रहे है। इन सभी पहलुओं को देखते हुए हम कह सकते है कि 2021 का भारत और 1947 के भारत में जमीन-आसमान का फर्क है। अब उनके दिन लद गए जो कहते थे ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल’, अब तो तलवार और ढाल के बिना काम नहीं बनता। मनुस्मृति में भी लिखा है कि ‘राष्ट्रभक्ति को राष्ट्रशक्ति का कवच होना आवश्यक है’। राष्ट्र शक्ति याने राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय संरक्षण आदि के साथ ही साथ ठीक उसी प्रकार से राष्ट्र शक्ति को भी राष्ट्रभक्ति का अन्तकरण आवश्यक है। जब अन्त:करण शक्ति में समन्वय होता है तो राष्ट्र एक महाशक्तिशाली राष्ट्र बनता है।
दुनिया में भारत की सकारात्मक छवि कैसे बन रही है?
पूरे विश्व में भारत की छवि सकारात्मक बन रही है। हम किसी पर आक्रमण नहीं करते है। भारत की सेना आज भी तक़रीबन 11 राष्ट्रों में शांतिसेना के रूप में अपनी सुरक्षा सेवाएं प्रदान कर रही है। हम शांति सैनिक माने जाते है। लेकिन शांति सैनिक आप तभी समझे जायेंगे जब आपका सैनिकीकरण हो। जब आप में अपार शक्ति हो। हमारे यहां रामायण में कहा गया है कि ‘भय बिन होई न प्रीत’ क्योंकि जब तक आपका भय नहीं होगा, तब तक आपको अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिलेगा। भय कब होता है लोगों को? जब उन्हें मालूम हो कि यदि आपने अपनी सैन्यशक्ति का उपयोग किया किसी भी राष्ट्र के खिलाफ, तो उस राष्ट्र का बेड़ा गर्क हो जायेगा। उस भय के कारण लोग कहते हैं कि उस देश से पंगा मत लेना। यह नीति अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी चलती है।
भारत की मूल शक्ति क्या है?
हमने जो भी युद्ध किया है वह अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए किया है। हम जमीन को अपनी माता बोलते है भारतमाता और माता का सम्मान भारत में सर्वाधिक होता है। इसलिए हम बोलते है कि माता की सुरक्षा एवं उसके सम्मान के लिए अपने प्राण दे देंगे। कोई अमेरिकन सोल्जर ऐसा बोलता है क्या? क्या वो कहते है कि अमेरिका के राष्ट्रीय हितों के लिए प्राण दे देंगे, कोई नहीं बोलता वहां। विश्व में भारत जैसा कोई भी ऐसा राष्ट्र नहीं है जो धरती को अपनी माता मानता हो तो ये भी हमारे लिए शक्तिवर्धक है।
भारत के पास परमाणु शक्ति की कौन-कौन सी और कितनी मारक क्षमता मौजूद है?
परमाणु शक्ति में क्या-क्या शामिल होता है। उसमें हमारी नीति शामिल होती है, हमने परमाणु बम बनाया, हमारे पास परमाणु शक्ति है, हमारे पास मिसाइल है, अभी हमारे पास ऐसी-ऐसी मिसाइल है जो 5 हजार से 8 हजार किलोमीटर तक मार कर सकती है और उन मिसाइलों के माध्यम से हम परमाणु बम भी डाल सकते है। हमारे पास राफेल जैसे भी विमान है जिनके द्वारा भी हम परमाणु बम डाल सकते है।
भारत की परमाणु शस्त्रों के ‘नो फर्स्ट यूज’ की नीति पाकिस्तान पर लागू होती है या नहीं?
परन्तु हमारी यह नीति है कि हमारे पडोसी देशों जिनके पास परमाणु बम नहीं है उनके खिलाफ हम पहले परमाणु बम का इस्तेमाल नहीं करेंगे। ये बात पाकिस्तान के बारे में लागु नहीं होती है क्योंकि उसके पास परमाणु बम है। उन्होंने तो शासकीय रूप से कहा है कि पाकिस्तान का परमाणु बम पुरे विश्व में अगर कहीं इस्तेमाल किया जायेगा तो केवल भारत के खिलाफ किया जायेगा। क्योंकि भारत के अलावा दुनिया में पकिस्तान का कोई भी शत्रु नहीं है। ये अधिकृत रूप से पाकिस्तान की संसद में कही गई बात है। जब ऐसी बात होती है, तो वो सिद्धांत जो मैत्री के लिए हम हमारे पडोसियों पर लागु करते है, वे सिद्धांत पाकिस्तान पर लागु नहीं कर सकते हम। इसलिए हमने कहा है हम परमाणु बम चलाने के लिए पहल नहीं करेंगे जिसे हम कहते है कि ‘नो फर्स्ट यूज’ परन्तु यदि किसी देश ने हम पर एक भी बम डालने की कोशिश की तो उसके बाद हम उस देश पर इतने परमाणु बम डालेंगे कि उस मुल्क का नामोनिशान मिट जायेगा।
बाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से हमारी क्या रणनीति हो?
मनुस्मृति के कुछ सिद्धांत हैं पहला, ‘बाह्योत्विपत्ति बाह्य प्रतिव्यापा’ यानी बाहर से आने वाली विपत्तियां, युद्ध या आक्रमण जिसकी शुरुआत बाहर से होती है। दूसरा, ‘बाह्योत्विपत्ति अभ्यांतर प्रतिव्यापा’ हमारे राष्ट्र की यदि आंतरिक सुरक्षा निश्चित नहीं होती है तो बाहरी शत्रु उसका फायदा उठाते हैं। तीसरा, ‘अभ्यांतर विपत्ति- अभ्यांतर प्रतिव्यापा’ यदि आपकी आंतरिक स्थिति ठीक नहीं होती है तो उसके उत्तरदायी आन्तरिक लोग ही होते है। ईशान्य भारत का जो अलगाववाद है, वह गुरिल्ला पद्धति से युद्ध है, वह तो 1964 से ही था। तब मैं वहां कैप्टन था। और आज भी हम वहां बैठे हुए है। हमने भारत की एक इंच जमीन को भी जाने नहीं दिया। उस समय की तत्कालीन सरकार के दौरान ही इन सारे विवादों एवं समस्याओं की शुरुआत हुई थी इसलिए इन सभी के लिए वही जिम्मेदार है। कश्मीर का जो आतंकवाद है, वह 1962 में नहीं हुआ, 1971 में नहीं हुआ, आतंकवाद जो भड़का है वह 1987 में हुआ, उस समय सरकार में कौन था? अभी की सरकार तो नहीं थी न। तत्कालीन सरकारी कुव्यवस्था के कारण पंजाब का आतंकवाद, तब भी भाजपा नहीं थी, नक्सली और माओवादी गतिविधियां जब बढ़ी तब तो बीजेपी सत्ता में नहीं थी। न किसी राज्य में थी और न ही केंद्र में थी। तो ये जो बात करते है आंतरिक सुरक्षा के विषय में येनकेन प्रकारेण वह वर्तमान सरकार को कमजोर दिखाना चाहते है। इसलिए आंतरिक सुरक्षा को नेस्तनाबूत करने पर तुले हुए है।
देश के गद्दारों से हमारी आंतरिक सुरक्षा को कितना बड़ा खतरा है?
जो राष्ट्र प्रत्यक्ष युद्ध में हमसे जीत नहीं सकते है, वह हमारे भारत के अंदर रहनेवाले लोगों का इस्तेमाल करके भारत के विरुद्ध काम करवा रहे है। इसी को हम कहते हैं ‘घर को लगा दी आग, घर के चिराग ने’। इसलिए अभ्यांतर, आंतरिक सुरक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। क्योंकि जब हम आंतरिक रूप से सुरक्षित नहीं है तो बहरी शत्रु आसानी से उसका फायदा उठाता है। भारत के इतिहास को देख लीजिये जितने भी यहां पर मंगोल, चंगेज, इस्लाम, अंग्रेज आक्रमणकारी आये हैं, इन सभी का साथ देनेवाले लोग भारतीय ही थे। बाबर जब आया उनकी मदद करनेवाले सभी भारतीय ही तो थे।
भारतीय समाज में स्लीपर सेल को कैसे पहचाना जाए?
इनकी पहचान करने का एक ही तरीका है, इनकी गतिविधियों पर नजर रखें, जैसे विदेशी सुरक्षा एवं ख़ुफ़िया एजेंसियां रखती हैं। इनकी मानसिकता पर नजर रखनी चाहिए। इनकी कार्यप्रणाली पर नजर रखनी चाहिए। इनका संबंध भारतीय हितों की रक्षा के विरूद्ध किन-किन राष्ट्रों से है। उनके बच्चे कहां पढ़ते हैं, इनके पास पैसा कहां से आता है, इनकी मानसिकता कहां से तैयार होती है? कोई मजहब के नाम पर जिहाद कर रहा है। कोई पंथ के नाम पर आतंकवाद बढ़ा रहा है। ये आतंकवाद आता कहां से है? इसकी कामना शुरू कहां से होती है? यह जिहाद नाम के शब्द से होती है। मैं कुरान का अध्ययन करता हूं। कुरान में जिहाद शब्द आता है। जिहाद का अर्थ है बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय। बुराई याने भारतीय शासन, भारतीय लोग, हिन्दू लोग, ये सब बुरे हैं। केवल इस्लाम धर्म के लोग अच्छे है। इसी मूल भावना के कारण से आतंकवाद बढ़ रहा है। अलगाववाद बढ़ रहा है।
भारत में नक्सलवाद और माओवाद का जन्मदाता कौन है?
हमारे यहां पहले नक्सलवादी ही थे, लेकिन कुछ वर्ष पहले दिल्ली के रामलीला मैदान पर सुबह 11 बजे एक आम सभा में ये नक्सलवादी अचानक माओवादी बन गए। नक्सलवादी से माओवादी मात्र 2 घंटे में बनाया किसने? ये उन लोगों ने बनाया जो तत्कालीन कांग्रेस का समर्थन करते थे और सत्ता में शामिल थे जैसे कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया, मार्किस्ट कम्युनिस्ट इण्डिया। इन्होंने माओवादी तैयार किये और वो माओवाद आज भी चल रहा है। आज ये माओवाद केवल जंगलों तक सीमित नहीं है। अब वह शहरों में, विश्वविद्यालयों में आ गया है। इनके बड़े-बड़े जो नेता अपने आप को बोलते है माओवादी, कोई वकील है, कोई लेखक है, ऐसे जो लोग है। ये जो माओवाद है भारत की अर्थव्यवस्था, शासन व्यवस्था, रक्षा व्यवस्था पर आघात करने का साधन बन गया है।
राष्ट्र विरोधी अलगाववादी लोगों से कैसे निपटना चाहिए?
जो लोग यह कहते है कि हमें आजादी चाहिए, हम बाहर जायेंगे। वे जायेंगे कहां? क्या वे हिन्द महासागर में जाकर डूब जाएंगे? क्या इनमें से एक भी व्यक्ति को कोई दूसरा राष्ट्र स्वीकार करेगा। वो बोलेंगे जब आपने अपने ही राष्ट्र के खिलाफ गद्दारी की है तो आप हमारे राष्ट्र में शरण लेने के लायक नहीं हैं। मुझे लगता है कि इनका इलाज इनकी ही भाषा में करना चाहिए, उसी पद्धति से करना चाहिए, जो भाषा इन्हें समझ में आती है और इसके योग्य ये लोग है।
चीन-पाक में से भारत को किससे सबसे अधिक खतरा है?
मैंने भारत-चीन युद्ध में भाग लिया था तब से ही मेरी यह मान्यता है कि भारत का सबसे बड़ा शत्रु चीन ही है। पाकिस्तान को हम दबा लेंगे लेकिन पाकिस्तान हमारा शत्रु होने के कारण वह चीन की शरण में चला गया है। उसे शरणागती चीन ने दी है। चीन और पाकिस्तान दोनों मिलकर भारत के खिलाफ युद्ध कर सकते है। यदि हमने केवल पकिस्तान को दबाया तो चीन का कुछ नहीं होगा, लेकिन चीन को यदि हमने दबा दिया तो फिर पाकिस्तान का रहना दूभर हो जायेगा।
हमारे पूर्व रक्षा मंत्री जॉन फर्नांडिस का संसद में व्याख्यान है कि आनेवाले समय में चीन भारत का सबसे बड़ा शत्रु रहेगा। उस समय उनकी निंदा की गई थी, अटल बिहारी वाजपेयी की आलोचना की गई थी, और अब अभी कुछ दिनों पहले ही चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ ने कहा है कि हमारी सबसे बड़ी चुनौती चीन है।
चीन की चुनौती से निपटने के लिए भारत को क्या करना चाहिए और चीन की सबसे बड़ी कमजोरी कौन सी है?
चीन की चुनौतियों से निपटने के लिए उसकी कमजोरियों का अभ्यास करना पड़ेगा। कोई भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र ऐसा नहीं है जिनमें कमजोरियां न होती हो, चीन की भी कई कमजोरियां है। हमें उसकी कमजोरियों का पता लगा कर उसके खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ेगी। चीन की सबसे बड़ी कमजोरी है तिब्बत। यदि तिब्बत चीन के हाथ से निकल जाता है तो चीन का बहुत बड़ा भूभाग निकल जायेगा। वहां के लोग बुद्धिस्ट है। हमें वहां बंदूक लेकर जाने की जरुरत नहीं है लेकिन हम उन्हें मदद तो कर सकते हैं। चीन की दूसरी कमजोरी है सिंजियंग प्रांत, वह मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है, इसको बोलते है तुर्केमेनिस्तान। वहां का जो भौगोलिक इलाका है वो चीन का लगभग एक चौथाई भाग है। जितना बड़ा उत्तर प्रदेश है, उससे बड़ा है वो क्षेत्र और वहां पर बड़ी मात्रा में खनिज भंडार मौजूद है। यदि वह हिस्सा निकल जाता है, स्वतंत्र हो जाता है तो इससे चीन का बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा। चीन की अर्थ व्यवस्था तबाह हो जाएगी और इसी कारण चीन अफगानिस्तान-पाकिस्तान दोनों की मदद मांग रहा है। दोनों से सहायता ले रहा है क्योंकि उसे डर है कि तालिबान अलकायदा ये दोनों मिलकर तुर्केमिनिस्तान में जातीय युद्ध की शुरुआत न कर दे। वह उसकी सबसे बाड़ी कमजोरी है। तीसरी कमजोरी है मंगोलिया। चीन ने बलपूर्वक उस पर कब्ज़ा किया है। मंचूरिया, मकाओ, हांगकांग यह सब कमजोरियां हैं चीन की। इन कमजोरियों का फायदा उठाकर भारत को उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
चीन के युवा अपनी सेना में शामिल क्यों नहीं होना चाहते?
चीन में जो युवा पीढ़ी है वो सेना में काम नहीं करना चाहती है। जब युवा पीढ़ी सेना में नहीं होगी तो वह युद्ध की क्षमता नहीं रख पाएंगे। चीन का जो युद्ध क्षेत्र है, वो है हिमालय की ऊंचाइयों पर। जिसके लिए चीन के युवा मानसिक व शारारिक स्वास्थ्य की दृष्टि से फिट नहीं हैं। आप केवल विचार कीजिये मुंबई और आस-पास का रहनेवाला कोई लडका लद्दाख में जाकर वह क्या करेगा? वह यहीं ठीक है। ठीक यही बात चीन पर भी लागु होती है।
कोरोना से पूरी दुनिया थम गई, लाखों लोगों की मौत हुई। बावजूद इसके क्यों दुनिया का कोई भी देश चीन के खिलाफ खड़ा नहीं हो पाया?
बायोलोजिकल वोरफेयर, जीवाणु युद्ध के चलते पूरा विश्व चीन के खिलाफ हो गया है। हालांकि कोई उसके खिलाफ तन कर खड़ा नहीं हुआ है और इसमें संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी कमजोरी है। दुनिया के सबसे बड़े वैश्विक संगठन में एक भी देश चीन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात करने का साहस नहीं कर रहा है। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के लोग भी चुप्पी साधे हुए हैं क्योंकि उन्हें चीन ही सर्वाधिक फंडिंग करता है। कोरोना के कारण पूरे विश्व में 50 लाख लोग मारे गए हैं। परमाणु हमला नहीं हुआ, बंदूक की एक गोली नहीं चली है, केवल एक विषाणु जीवाणु के कारण दुनिया थम गई।
संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका क्या अप्रासंगिक होती जा रही है?
जी हां, जिस उदेश्य को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी उसकी पूर्ति करने में वह असमर्थ जान पड़ता है। वह अपनी विश्वसनीयता पर खरा नहीं उतर रहा है। यूएन में जो 5 राष्ट्र हैं, जिन्हें वीटो पावर प्राप्त है क्या उन्होंने यह कहा है कि चीन का वीटो पावर निकल देना चाहिए। चीन को संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य बनाये नहीं रखना चाहिए। उसकी जगह किसी योग्य राष्ट्र को बिठाइए। यह तो संयुक्त राष्ट्र संघ की बहुत बड़ी कमजोरी है। समयानुकूल परिवर्तन एवं सुधार नहीं करने से वह अब अप्रासंगिक होने लगी है।
हमारी किस तरह की नीति होनी चाहिए जिससे हमारे शत्रु की भारत के खिलाफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत न हो?
मैं दोबारा कहता हूं कि ‘समरथ को नहीं दोष गोसाई’ यदि आप सामर्थ्यवान है तो कोई आपका दोष नहीं देखता है। और इसीलिए चीन के विरोध में कोई आंख उठा कर नहीं देखता है। यही बात हमें सोचनी पड़ेगी कि पाकिस्तान, अलकायदा, तालिबान, माओवादी, ये वादी, वो वादी, पाकिस्तान और चीन सबकी मिलकर भी हिम्मत नहीं होना चाहिए भारत के खिलाफ देखने की। भारत को सामर्थ्यवान बनने के अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं है। साथ ही इजराइल की तरह आक्रामक नीति अपनानी भी जरुरी है तभी हम अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
चीन का मुकाबला करने के लिए भारत अपनी सीमाओं पर इन्फ्रास्ट्रक्चर न बना सके इसलिए भारत में राष्ट्र विरोधी ताकते पर्यावरण की आड़ लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करती है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह कितना घातक है?
जिस तरह सीमा के आसपास के क्षेत्रों में युद्ध की तैयारियों को लेकर चीन इन्फ्रास्ट्रक्चर बना रहा है उसी को ध्यान में रखते हुए भारत ने भी अपनी तैयारी तेज गति से शुरू कर दी है। लेकिन भारत की दिक्कत ये है, सैन्य तैयारियों में रोड़ा डालने के लिए कई पर्यावरणवादी एवं मनावाधिकार संगठन सुप्रीम कोर्ट में चले गए। उनका कहना है कि भारतीय सीमाओं पर सड़क निर्माण करने मत दीजिये। क्योंकि इससे वहां पर जंगलों को नुकसान होगा। लेकिन ये लोग यह नहीं सोचते है कि सड़कें नहीं बनेंगी तो वहां के लोगों का आवागमन आसान कैसे होगा। वहां पर उद्योग व्यवसाय कैसे स्थापित होंगे। सड़क निर्माण नहीं हुआ तो वहां पर आएगा कौन? सच्चाई यह है कि पर्यावरण एवं मानवता का चोला ओढे इन संगठनों को चीन की ओर से पैसा मिलता है इसलिए चीन के इशारे पर यह लोग कठपुतली की भूमिका निभाते नजर आते है। और कुछ अन्य भारत विरोधी राष्ट्रों के माध्यम से भी फंडिंग इसलिए की जाती है ताकि भारत उन्नति के मार्ग पर आगे न बढ़ पाए।
अफगानिस्तान पर जो तालिबान का कब्जा हो गया है, उसके भारत पर क्या परिणाम होंगे?
भारत को बहुत ही सावधान रहना होगा क्योंकि आख़िरकार अलकायदा और तालिबान को सक्षम बनाने में हाथ किसका था? पाकिस्तान का। अमेरिका ने पाकिस्तान को पैसा दिया और पाकिस्तान ने उसी पैसे से कश्मीर में आतंकवाद बढाया, अलकायदा को थोड़ा पैसा दिया, शस्त्र जो अमेरिका ने दिए उसे वह कश्मीर में आतंकवादियों को दिये, जिहादी मानसिकता तैयार करने के लिए खर्च किये। अलकायदा और तालिबान का रिमोट कंट्रोल पाकिस्तान के हाथ में है। इसलिए वह पाकिस्तान के कहने के मुताबिक ही काम करेंगे। पाकिस्तान -चीन, तुर्की के अलावा कोई भी राष्ट्र तालिबानी सरकार का समर्थन नहीं कर रहा है और न ही कोई बोलेगा। इतना तय है कि समय आने पर पाकिस्तान भारत के खिलाफ इनका इस्तेमाल जरुर करेगा इसलिए हमें सक्षम, समर्थ, और सजग रहने की आवश्यकता है।