छोटे खेतिहर किसानों से सशक्त होता कृषि क्षेत्र

भारतीय कृषि हमारी संस्कृति की तरह विविधता से परिपूर्ण है। छोटी खेती और उसकी अंगभूत बहुजातीयता भारतीय आधुनिक खेती के लिए हितकारी है। छोटे स्तर पर मिश्र खेती हमारी शक्ति है। भारत में प्रति वर्ष एकक क्षेत्रफल में कुल कृषि उत्पादन विश्व में सर्वाधिक है। एफएओ के अनुसार विश्व की छोटी खेती मात्र 12% भाग पर होती है लेकिन 35% अन्न उत्पादन करती है।

नए युग में छोटे प्रयास से ही बड़े लक्ष्य प्राप्त होते हैं। भारत में अधिकांश खेती 2 हेक्टेयर से कम माप के छोटे और अल्पभूधारक प्रवर्ग में आते है। परिचालनात्मक धारणा का लगभग माप केवल 1.08 हेक्टेयर है। जो 1970 में 2.28 से नीचे आ गया है। बावजूद इसके भारत के खेती उत्पादन में हाल के समय में तेजी आई है। हम दुनिया में दूसरे सबसे बड़े उत्पादक बन गए है। भारत उद्योग और सेवा क्षेत्र में क्रमशः पांचवें और नवें स्थान पर है। इससे भारत के लाखों छोटे किसानों की अभिनव कल्पना एवं कठोर परिश्रम की पराकाष्ठा दिखाई देती है। आधुनिक पद्धति का अनुकरण और पारंपरिक कौशल का सामंजस्य होने से छोटी खेती लाभदायक सिद्ध हो रही है।

पश्चिम बंगाल सब्जी उत्पादन में सर्वाधिक अग्रणी राज्य है (2019-20 में 29.55 दस लाख टन)। पूरा अमेरिका जितनी सब्जी का उत्पादन करता है, उसका 60% अकेले पश्चिम बंगाल उत्पादन करता है। उत्तर प्रदेश न्यूजीलैंड से अधिक दुग्ध उत्पादन करता है। आन्ध्र प्रदेश में जापान से अधिक मत्स्य उत्पादन होता है। भारत में ऐसी छोटी खेती की सफलता के अनेक उदाहरण हैं।

हमारे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि छोटी खेती भारत का अभिमान है। एक समय भारत धान का आयात करता था, वही भारत आज चावल का सर्वाधिक निर्यातक देश है। भारतीय किसान बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। विगत 2 हजार वर्षों से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये है। वर्ष भर में विविध प्रकार की खेती की जाती है और इससे सम्बंधित उत्पादन उत्पन्न किये जाते हैं। वर्ष 2000 और 2019 के दौरान भारत के कृषि उत्पादन में 101 अरब डॉलर से 479 अरब डॉलर कुल 300% की बढ़ोत्तरी हुई है (विश्व बैंक)।

भारतीय कृषि हमारी संस्कृति की तरह विविधता से परिपूर्ण है। छोटी खेती और उसकी अंगभूत बहुजातीयता भारतीय आधुनिक खेती के लिए हितकारी है। छोटे स्तर पर मिश्र खेती हमारी शक्ति है। भारत में प्रति वर्ष एकक क्षेत्रफल में कुल कृषि उत्पादन विश्व में सर्वाधिक है। एफएओ के अनुसार विश्व की छोटी खेती मात्र 12% भाग पर होती है लेकिन 35% अन्न उत्पादन करती है। इससे स्पष्ट होता है कि छोटी खेतिहर भूमि, बडी खेती की जमीन को पछाड़ती जा रही है और वह भी मिश्र खेती के कारण। छोटी खेती में प्रति एकक क्षेत्रफल में सर्वाधिक पैदावार होने से लाभ ही लाभ होता है।

विश्व बैंक के अनुसार विश्व में 3522 अरब डॉलर का कृषि बाज़ार है। इसमें लगभग 2170 अरब डॉलर (62%) व्यापार एशिया में होता है। कृषि उत्पादन में विश्व में दो देश सबसे अग्रणी हैं चीन (1020 अरब डॉलर) और भारत (479 अरब डॉलर) । अमेरिका (197 अरब डॉलर) तीसरे स्थान पर है। चीन और भारत कृषि क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व कर रहे है। यह दोनों देश विश्व कृषि उत्पादन में 40% योगदान दे रहे हैं।

छोटी खेती से आर्थिक लाभ कैसे बढ़ाएं?

सफलता प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास व परिश्रम करना पड़ता है। दुर्भाग्य से छोटे खेतिहर किसानों को कम आंका जाता है। इस तरह की मानसिकता बदलनी चाहिए. ध्यान रखे छोटी खेती, बड़ी खेती की तुलना में अभिनवता या प्रगतिशीलता में कहीं भी पीछे नहीं है। वह तत्काल नित नए आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए आवश्यकतानुसार अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन करते रहते हैं। युवा किसान दूरदराज के बाजारों से संपर्क स्थापित करने के लिए डिजिटल मंचों का उपयोग कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि विश्व आहार पद्धति जैसे-जैसे अधिकाधिक विविधता पूर्ण होगी वैसे-वैसे छोटे खेती पर निर्भरता बढ़ती जाएगी।

छोटे किसान आसानी से अपने पारिवारिक सदस्यों के सहयोग से खेती कर लेते हैं और बिजली, जीवाश्म ईंधन, खाद, कीटनाशक आदि बाहरी संसाधनों का इस्तेमाल बहुत कम करते हैं। इसलिए छोटी खेती पर्यावरण की दृष्टि से बड़ी खेती की तुलना में कम प्रभाव डालती है। उदाहरणार्थ कृषि उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर विराजमान भारत कीटनाशक के प्रयोग में विश्व में 10वें क्रमांक पर आता है। यूरोपीय यूनियन भारत की तुलना में 6 गुना अधिक कीटनाशक (3676779 टन) का इस्तेमाल करती है। बावजूद इसके यूरोपीय यूनियन का अन्न उत्पादन भारत से बहुत कम है।

छोटे खेती के लाभ

 विविध प्रकार की फसलों का उत्पादन होने से यह लाभदायक सिद्ध होता है इसलिए बड़े खेती की तुलना में यह आर्थिक दृष्टी से लाभप्रद है।

 छोटे खेतों में किसान अपने उपलब्ध संसाधनों के साथ अभिनव प्रयोग करते है। भारत में धान, कपास, सब्जी, दुग्ध उत्पादन, कुक्कुट पालन, मत्स्य उत्पादन करते हुए किसान आसानी से देखे जाते है और यह बहुत ही साधारण बात है। छोटे किसान सब कुछ करते है, उन्हें अनेक प्रकार की कौशल कला का वरदान प्राप्त है।

 छोटे किसान कर्ज पर निर्भर नहीं होते और न ही साधन पर अवलंबित होते हैं। अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलकर वह आसानी से खेती कर लेते हैं।

 भारत के कृषि उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से सर्वाधिक लाभ मिलता है। बीते 5 वर्षों में हमारे व्यापार में 8 अरब डॉलर (52993 करोड़ रू) से 19 अरब डॉलर (140148 करोड़ रू) तक की वृद्धि हुई है।

 कृषि निर्यात में लगभग 100 अरब डॉलर तक की वृद्धि और आयात में हुई कमी के चलते आगामी कुछ वर्षों में आसानी से 50 अरब डॉलर तक की व्यापार बढ़ोत्तरी हो सकती है। उल्लेखनीय है कि विश्व कृषि निर्यात 1700 अरब डॉलर से अधिक है।

 हमारा कृषि निर्यात बढ़ने की बहुत संभावनाएं हैं। कृषि उत्पादनों के निर्यात से समावेशक वृद्धि प्राप्त किया जा सकता है। जिससे ग्रामीण भारत की गरीबी एवं विषमता को खत्म करने में मदद मिलेगी।

छोटी खेती पर्यावरण और आर्थिक दृष्टि से विकास के लिए प्रयत्नशील  है। छोटे किसान प्रदेश के अनुकूल विशिष्ट फसल देते है और आहार विविधता को समृद्ध करते है। उदाहरण के तौर पर केरल में टैपिओका, कर्नाटक में रागी एवं बिहार में मखाणा आदि।

छोटे खेती के माध्यम से नारी सशक्तिकरण को बल मिलता है। खेती के अलावा पुरुष अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों में भी जाते है इसलिए अनेक छोटी खेती का सारा कामकाज घर की महिलाएं ही संभालती है। विश्व बैंक के अनुसार भारत की कृषि में महिलाओं का सहभाग 55% (2019) है, जो 25 % विश्व औसत से लगभग दोगुना से भी अधिक है।

विश्व बैंक ने कहा है कि लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) भारत की प्रगति और विकास का प्रवर्तक है। उसी तरह छोटी खेती कृषि क्षेत्र की बढ़ोत्तरी में अपना अहम योगदान दे रही है।

हमें छोटी खेती के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए और उस पर टीका टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। वर्त्तमान समय में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा खुदरा फुटकर बाज़ार है। छोटे किसानों के उत्पाद को खरीदना और उसका उपयोग करना हमारे लिए गर्व का विषय होना चाहिए।

हमारे खेती के माल कीमत के मामले में प्रतियोगी एवं किफायती होते हैं। भारत के छोटे किसानों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से जीडीपी में अपना अधिक से अधिक योगदान देने के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए। यही भावना भारतीय कृषि में स्थानीय गुणक प्रभाव (मल्टीप्लायर इफेक्ट) ला सकती है और किसानों के उत्पाद व आय में बढ़ोत्तरी करने में सहायक हो सकती है।

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