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फास्ट ट्रैक कोर्ट कितना फास्ट?

फास्ट ट्रैक कोर्ट कितना फास्ट?

by डॉ अंशु जोशी
in जनवरी- २०२२, विशेष, सामाजिक
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उस समय देश की सभी अदालतों में लगभग 3 करोड़ मामले लंबित थे और उन्हें सुलझाने में मदद करने के लिए तत्कालीन भारत सरकार ने 5  साल की अवधि के लिए देश भर में लगभग 1700 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की मंजूरी दी। इन फास्ट ट्रैक अदालतों ने कुशलता से काम करते हुए लाखों मामलों को द्रुत गति से हल किया।

आज भारत आत्मनिर्भर बनने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य लेकर वैश्विक मंच पर आगे बढ़ रहा है। यहां स्त्री सशक्तिकरण का मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि भारत को प्रगति की नई राह पर आगे बढ़ाने के लिए समाज के हर तबके का योगदान आवश्यक है और स्त्रियां तो भारतीय जीवन की, भारतीय दर्शन की तथा भारतीय समाज की धुरी हैं तो निश्चित ही यहां स्त्रियों की भूमिका निर्णयात्मक हो जाती है। चाहे परिवार हो या समाज या राष्ट्र, भारतीय महिलाएं हर कहीं केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करती है इसमें कोई संशय नहीं। इसलिए उन्हें आगे बढ़ाने और सशक्त करने का दायित्व पूरे राष्ट्र पर आ जाता है।

भारत सरकार द्वारा इस दिशा में कई सराहनीय कदम उठाये गए हैं। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, लाड़ली लक्ष्मी, महिला ई हाट जैसी कई योजनाएं और कार्यक्रम भारत सरकार अपने अलग-अलग मंत्रालयों द्वारा चला रही है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के माध्यम से ग्रामीण और शहरी छात्राओं, कामकाजी स्त्रियों और गृहिणियों के लिए कई प्रकार के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिसका मुख्य उद्देश्य उनके स्वास्थ, शिक्षा, कला कौशल, रोज़गार और आर्थिक स्वतंत्रता पर ध्यान देना है। भारतीय स्त्री चाहे ग्रामीण हो या शहरी, गृहिणी हो या कामकाजी, पढ़ रही हो या कोई उपक्रम चलाती हो, स्वस्थ रह सके, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके, आगे बढ़ सके, इसके लिए कई प्रयोजन भारत सरकार के द्वारा किए जा रहे हैं किन्तु यह भी एक सच्चाई है कि एक ओर भारतीय स्त्री युद्ध के मैदान से लेकर राजनीति और खेल के जगत में भारत का नाम रोशन करती दिखाई देती है तो वहीं दूसरी ओर ऐसे कई परिवार और समाज हैं जहां अभी भी कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, पर्दा और दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियां प्रचलित हैं। हम ये भी नहीं कह सकते कि ऐसा सिर्फ गांवों में होता है। बड़े-बड़े शहरों में स्त्रियों के साथ अपराध और शोषण के अलावा उन्हें शिक्षा से दूर रखने और उनके संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के हनन के कई मामले हर दिन सामने आते ही हैं। इसलिए महिला सशक्तिकरण का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु महिला सुरक्षा से जुड़ा है। स्त्रियों के साथ होने वाली हिंसा, यौन अपराध तथा छेड़-छाड़ जैसे बेहद गंभीर मामलों को रोकने के प्रयासों के साथ ही उन्हें समुचित और शीघ्र न्याय दिलाना अत्यंत आवश्यक है। समुचित और शीघ्र न्याय ऐसे अपराधों को रोकने में भी सहायक सिद्ध होता है किन्तु भारत की सघन जनसंख्या और इसके अनुपात में न्यायालयों, पुलिस तथा न्यायाधीशों की संख्या शीघ्र न्याय के रास्ते में रोड़ा साबित होती है। इसीलिये भारत सरकार फास्ट ट्रैक अदालतों को बढ़ावा दे रही है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट विशेष प्रकार की अदालतें हैं, जिनका कानून की एक विशेष श्रेणी जैसे यौन उत्पीड़न और बच्चों पर होने वाले अपराधों पर विशेष अधिकार क्षेत्र है। उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों से मामलों के बोझ को कम करने और त्वरित न्याय प्रदान करने के लिए वर्ष 2000 में भारत में फास्ट ट्रैक अदालतों की शुरुआत की गई थी। उस समय देश की सभी अदालतों में लगभग 3 करोड़ मामले लंबित थे और उन्हें सुलझाने में मदद करने के लिए तत्कालीन भारत सरकार ने 5  साल की अवधि के लिए देश भर में लगभग 1700 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की मंजूरी दी। इन फास्ट ट्रैक अदालतों ने कुशलता से काम करते हुए लाखों मामलों को द्रुत गति से हल किया। जब निर्भया काण्ड के मामले ने देश को हिलाकर रख दिया तब सरकार ने छह नए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का आदेश दिया, जो केवल यौन उत्पीड़न के मामलों पर काम कर सकें। ये फास्ट ट्रैक अदालतें यौन उत्पीड़न और बच्चों के अपराधों पर त्वरित न्याय के लिए काफी कारगर सिद्ध हुई हैं।

इनकी वजह से न सिर्फ सरकार को लंबित मामलों को कम करने में मदद मिली, यौन उत्पीड़न के मामलों पर विशेष और त्वरित ध्यान देने में भी सहायता प्राप्त हुई। इनकी वजह से जेलों में सालों से अपने मामले पर सुनवाई का इंतज़ार करते कैदियों को भी कहीं न कहीं राहत मिली तो वहीं जेलों पर पड़ने वाले दबाव पर भी असर पड़ा। सबसे बड़ी बात, आम लोगों का भरोसा भारतीय न्याय व्यवस्था में बढ़ा।  किन्तु इन अदालतों के काम-काज को नियंत्रित करने के लिए किसी विशिष्ट व्यवस्था और मापदंडों के न होने से इन अदालतों को कई बार चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ता है, कई बार पीड़ितों को। फिर, आज के तकनीकी दक्षता के युग में इन अदालतों को आधुनिक तकनीकों से लैस किए जाने की भी दरकार है ताकि पीड़ितों को सच्चा न्याय मिले और समय पर मिले। साथ ही इनके लिए नियमित कर्मचारियों की नियुक्ति भी आवश्यक है जो इन अदालतों के उद्देश्य की पूर्ति में सहायक हों।

फास्ट ट्रैक अदालतों के लिए एक और बड़ी चुनौती होती है कि कहीं पीड़ित मुकर न जाए, इसके लिए भी सरकार के ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। कई बार पीड़ितों पर दबाव पड़ने पर और उनके लिए समुचित सुरक्षा उपाय नहीं किए जाने पर वे पीछे हट जाते हैं। फिर, फ़ास्ट ट्रैक के दिए फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालयों और

सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, जहां उनके पलट दिए जाने की सम्भावना होती है। इस पर भी काम किए जाने की आवश्यकता हैं।  देश में महिला सुरक्षा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए त्वरित न्याय की आवश्यकता तो है ही, पर इसके लिए एक समग्र व्यवस्था का विकास आवश्यक है जो फ़ास्ट ट्रैक अदालतों को गति और बल प्रदान कर सके।

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Tags: fast track courthindi vivekhindi vivek magazineindian judiciaryjusticejustice delayed justice denied

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