पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी कराची के नारायणपुरा क्षेत्र स्थित जोग माया मंदिर में हुई हिंसा विश्व समुदाय के लिए चिंता का कारण होना चाहिए। एक शख्स हथौड़ा लेकर आया और मां जोग माया की मूर्ति को तोड़ना शुरू कर दिया। एक महिला के शोर मचाने पर लोग एकत्रित हुए, लेकिन उसके अंदर इतनी नफरत थी की उसने तोड़ना बंद नहीं किया। गिरफ्तार होने के पहले उसने मूर्तियों को पूरी तरह खंडित कर दिया। ऐसी घटनायें लगातार होने,भारत द्वारा इसे विश्व पटल पर उठाने तथा संपूर्ण विश्व के हिंदुओं द्वारा पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध अत्याचार एवं धर्म स्थलों पर हो रही हिंसा को बड़ा मुद्दा बनाए जाने के बाद से वहां के हिंदुओं एवं सिखों का साहस थोड़ा बढा है। मुकेश कुमार नामक व्यक्ति की पत्नी पूजा कर रही थी। उसने शोर मचाया। मुकेश ने जाकर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। हिंदुओं ने एकत्रित होकर इसे ईशनिंदा का मामला बनवाया है।पिछले वर्ष नवंबर में कराची के ली बाजार के पास शीतलदास कंपाउंड में बने मंदिर पर हमले के बाद ईशनिंदा का केस दर्ज हुआ था। यह बदलते समय की धारा का प्रतीक है। मंदिर से जुड़े लोगों ने उस शख्स की थोड़ी पिटाई भी की। पाकिस्तान के अंदर अल्पसंख्यकों द्वारा किसी मुस्लिम मजहबी अपराधी की पिटाई सामान्य घटना नहीं है। इसके पहले अल्पसंख्यकों यानी हिंदुओं, सिखों, ईसाईयों आदि के विरुद्ध मजहबी ,निजी या सामूहिक हिंसा या बर्बरता के जितने भी मामले आए उनमें इस तरह का साहसपूर्ण व्यवहार शायद ही हुआ हो। तो यह अल्पसंख्यकों के अंदर आ रहे बदलाव का द्योतक है।
पिछले दिनों श्रीलंका की एक कंपनी के प्रबंधक द्वारा फैक्ट्री की दीवाल पर साटा गया पोस्टर हटाए जाने को मजदूरों ने ईशनिंदा का मामला बनाया तथा बेरहमी से पीट-पीटकर सरेआम उसकी हत्या की और लाश को आग के हवाले किया। वह घटना इस बात का प्रमाण था कि ईशनिंदा पर समाज में किस तरह का मनोविज्ञान कायम हो गया है। श्रीलंका का तमिल जानने वाला शख्स अरबी में लिखे कुरान की आयतों को नहीं समझ सकता था। उसने दीवार पर चिपका पोस्टर जानकर फाड़ दिया। वैसी घटना अगर ईशनिंदा बन सकती है तो खुलेआम मंदिरों और मूर्तियों को अपवित्र करना , तोड़ना, उन पर थूकना, लातों जूतों से प्रहार आदि स्वाभाविक ही ईशनिंदा कानून की परिधि में आएगा ।
पाकिस्तान के एक पत्रकार ने गणना कर बताया है कि पिछले 22 माह में हिंदू मंदिरों पर यह नौवां बड़ा हमला था। इमरान खान सरकार दावा कर रही है कि वे मंदिरों की रक्षा के प्रति संकल्पित हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि इमरान खान का दावा खोखला है ,क्योंकि कट्टरपंथ वहां समाज, सत्ता और राजनीति का स्वाभाविक अंग बन चुका है। इस वर्ष अगस्त में पंजाब प्रांत में एक गणेश मंदिर में तोड़फोड़ और आग लगाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। रहीम यार खान जिले के भोंग शहर में मुसलमनों ने मंदिर पर लाठियों, पत्थरों और ईंटों से हमला किया था। मंदिर के एक हिस्से को तोड़ा गया तथा मूर्तियों को अपवित्र एवं अपमानित करने के हर कर्म किए गए। पिछले वर्ष अक्टूबर में रहीमयार खान शहर में खैबर-पख्तूनख्वाह के करक गांव में भीड़ ने मंदिर में तोड़फोड़ कर आग लगा दी थी। इस्लामाबाद में बन रहे भगवान कृष्ण का एक मंदिर ,जो वहां का पहला हिंदू मंदिर होने वाला है, पर जुलाई में ही स्थानीय मुसलमानों ने हमला कर दिया ।
ऐसा लगता है कि स्थानीय प्रशासन भी यही चाहता था तभी तो मंदिर की चारदीवारी गिराए जाने के बाद राजधानी विकास प्राधिकरण ने निर्माण को रोकने का आदेश दे दिया। काफी प्रयास के बाद मंदिर निर्माण की शहर के अधिकारियों द्वारा अनुमति दी गई थी और धन आवंटित हुआ था । इमरान सरकार की इसके लिए आलोचना हुई कि राजधानी में हिंदुओं को उपासना के लिए एक मंदिर नहीं है। स्वयं को सही साबित करने के लिए सरकार ने मंदिर निर्माण की अनुमति दी । लेकिन सत्ता के अंदर ही विरोध के स्वर उठने लगे । सरकार का ही एक निकाय, जो धार्मिक मामलों पर सलाह देता है, ने कहा कि सरकारी धन से निर्माण के मामले को इस्लामिक विचारधारा परिषद को भेजा जाना चाहिए। इसके बाद अनुमोदित धनराशि पर रोक लग गई। हालांकि इससे इतना जागरण हुआ कि हिंदू पंचायत को चंदे में बाहर से भी धन आए और वह मंदिर का निर्माण करा रही है।
वहां धर्मस्थल या मूर्तियों के विरुद्ध हिंसा की लंबी गाथा है । पिछले साल अगस्त में, एक बिल्डर ने पाकिस्तान के ल्यारी में प्राचीन हनुमान मंदिर ध्वस्त कर दिया था।पिछले ही साल अक्तूबर में, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में नगरपारकर में श्री राम मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी। लोगों ने हिंगलाज माता की मूर्ति के सिर को क्षतिग्रस्त करने के साथ मंदिर को अपवित्र करने के इरादे से हर तरह की हरकतें की। पिछले साल दिसंबर में वायरल वीडियो में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सैकड़ों मुसलमानों को हिंदू मंदिर को जलाते और तोड़ते देखा गया था। पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में नवीनीकरण के दौर से गुजर रहे 100 साल पुरानेहिंदू मंदिर में घुसकर मुख्य द्वार, ऊपरी मंजिल के एक अन्य दरवाजे और सीढ़ियों को क्षतिग्रस्त किया गया। पिछले साल जनवरी में भीड़ ने सिंध पाकिस्तान के चाचरो, थारपारकर में माता रानी भटियानी देवी मंदिर में तोड़फोड़ की, धर्म पुस्तकों में आग लगा एवं देवी की प्रतिमा को भी हर तरह से अपवित्र करते हुए मूर्ति पर कालिख पोता।
अगर इमरान सरकार हिंदू मंदिरों तथा हिंदुओं की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध होती तो इस तरह की घटनाएं लगातार नहीं होती। भारत में किसी मजहब के धर्म स्थलों पर हल्की हिंसा भी हो जाए तो क्या स्थिति होगी ? बहुसंख्यक समुदाय कानून का भय न हो तो भी भारत में समाज उन्मादग्रस्त नहीं हुआ है कि दूसरे मजहब के धर्मस्थल, उनकी पूजा पद्धति या एवं उनका स्वयं अपने धार्मिक रूप में रहना सहा न जा सके। पाकिस्तान की मीडिया ने ही बताया है कि वहां के 365 हिंदू मंदिरों में से केवल 13 का प्रबंधन इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड द्वारा किया जा रहा है। इसमें से भी 65 की जिम्मेदारी गरीब और डरे सहमे हिंदू समुदाय पर छोड़ दिया गया जो मुस्लिम समुदाय द्वारा बार-बार सताए और प्रताड़ित किए जाते हैं। शेष धर्मस्थल मजहबी कट्टरपंथियों या भू माफियाओं के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है।
पूरी स्थिति डरावनी है। अगर प्रधानमंत्री ही रियासत ए रसूल यानी मजहबी या पैगंबर के शासन की वकालत करेंगे तो समाज कैसा बनेगा ? इमरान बाहरी दुनिया के लिए तो स्वयं को मजहब की दृष्टि से उदारवादी बताते हैं पर उनके ऐसे भाषण वीडियो उपलब्ध हैं जिनमें वे बताते हैं कि आने वाले समय में केवल इस्लाम रहेगा उसकी ही विजय होगी। यह पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि इमरान जैसे पूर्व क्रिकेटर, जो देश को उदार बनाने की बात करते हुए सत्ता में आए वो अंदर से घोर इस्लामवादी निकले। उन्होंने जिया उल हक के बाद सबसे ज्यादा समाज को कट्टरपंथ में परिणत करने की भूमिका निभा दी । जब इस्लाम के अलावा मुसलमान किसी का अस्तित्व मजहबी रूप में नहीं स्वीकारते तो दूसरे धर्म के स्थलों ,मूर्तियों या पूजा पद्धतियों को खत्म करना ही एकमात्र लक्ष्य हो सकता है। वही हुआ और हो रहा है। विडंबना देखिए कि हाल ही में इटली के पुरातत्वविदों ने खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात जिले में एक मंदिर का खंडहर निकाला है । यहां बौद्ध धर्म से जुड़ी ढाई हजार कलाकृतियां भी मिलीं हैं। पाकिस्तान के लोगों को यह एहसास नहीं कराया जाता कि वो पुरानी और महान संस्कृति तथा सभ्यता के ङवारिस हैं ।
पाकिस्तान पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय प्रमुख अब्दुल समद खान ने इस खोज को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि पिछले साल इसी क्षेत्र में एक प्राचीन हिंदू मंदिर के खंडहर भी खोजे गए थे। उनका बयान है कि हिंदू मंदिर और बौद्ध मंदिर के अवशेष संकेत करते हैं कि इस क्षेत्र में उच्च स्तर की धार्मिक सद्भाव और सहिष्णुता थी। हजारों साल पहले स्वात एक महान और सांस्कृतिक दृष्टि से समुन्नत शहर था । संपूर्ण अफगानिस्तान और पाकिस्तान हिंदू धर्म, अध्यात्म, सभ्यता, संस्कृति तथा कालांतर में इससे निकले बौद्ध सभ्यता का केंद्र था। इस्लाम के क्रूर प्रचंड मजहबी लोगों ने सबको नष्ट भ्रष्ट किया तथा धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बने समुदाय के अंदर ऐसी भावना भरी कि वे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं। सहिष्णुता या दूसरे मजहब का अस्तित्व उनके अपने मजहब के विपरीत लगता है। मजहबी शिक्षा के कारण ही उनके अंदर अपनी ही धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के विरुद्ध इतनी नफरत पैदा है कि दूसरे धर्म के स्थलों, उनकी उपासना पद्धतियों को ही नहीं, उनके अस्तित्व के पूरी तरह नष्ट कर दिए जाने का उन्माद हर तरफ दिखता है। लेकिन धीरे धीरे हिंदुओं के अंदर साहस पैदा हो रहा है और विश्व भर के हिंदू समुदाय का साथ भी बढ रहा है।