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जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे और हमारे नौनिहालों की दशा

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे और हमारे नौनिहालों की दशा

by हिंदी विवेक
in पर्यावरण, विज्ञान, विशेष, स्वास्थ्य
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आज हम एक ऐसे दौर में पहुँच गए हैं। जहां जलवायु परिवर्तन एक गम्भीर समस्या बनती जा रही है और इसकी परिणीति हम सबके सामने है।जलवायु परिवर्तन के लिए बच्चे सबसे कम ज़िम्मेदार हैं लेकिन वे ही इसका सबसे अधिक कुप्रभाव झेल रहें हैं और आने वाले दिनों में भी झेलेंगे, लेकिन अफ़सोस की भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन को गम्भीरता से नहीं लिया जाता है। यही वजह है कि हमारे देश में अब तक जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कोई कानून तक नहीं बनाया गया है और इस बात से  सहज ही आंकलन किया जा सकता है कि इतने गम्भीर मुद्दे पर हमारे देश के नीति निर्माता किस तरह चैन की बंशी बजा रहे है।

वैसे यूं तो हमारे देश की राजनीति में कई उतार चढ़ाव आए लेकिन भारतीय राजनीति की बिडम्बना देखिए कि वह आज भी जाति धर्म के फेर में ही उलझी हुई है। राजनेताओं के लिए पर्यावरण संकट कभी मुद्दा ही नहीं रहा और शायद इसीलिए भी जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट विकराल हो चला है। जलवायु परिवर्तन ने न केवल हमारे वर्तमान बल्कि हमारे आने वाले भविष्य को भी संकट में डाल दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान तेजी से बढ़ रहा है। जिससे मां की कोख में पल रहा बच्चा तक सुरक्षित नहीं है। आज समूचे विश्व में बढ़ते तापमान के चलते समयपूर्व बच्चों के जन्म का ख़तरा कई गुना बढ़ गया है। हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि तापमान के बढ़ने से न केवल नवजात शिशुओं बल्कि भ्रूण में पल रहे बच्चे तक के प्राण संकट में है।

उल्लेखनीय हो कि प्रो ग्रेगरी वेलेनियस और प्रो अजेतियाँ वेंसीलिक का कहना है कि तेजी से बढ़ रही गर्मी तूफ़ान और जंगलों की आग से निकलते धुंए से न केवल समयपूर्व जन्म का ख़तरा बढ़ा है बल्कि बच्चों में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है। एक आंकड़े की बात करें तो 10 लाख अमेरिकी गर्भवती महिलाओं पर किए अध्ययन से यह पता चला है कि समय से पहले जन्म के 16 फ़ीसदी मामले उन  क्षेत्रों के है जहां गर्मी अधिक थी। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों में भी यह बात कही गई है कि हर साल करीब 1.5 करोड़ बच्चे समय से पहले ही जन्म ले लेते है। तो वहीं 2 करोड़ नवजात बच्चों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम रहता है। ऐसे में यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानव के बढ़ते लालच ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है और अब जिसका दुष्परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।

आज देश मे कुपोषण चरम पर है। ऐसे में बढ़ता जलवायु संकट कुपोषण की समस्या को और कई गुना बढ़ा देगा। जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर ही होगा। कहते है बच्चे देश का भविष्य होते है, जब वही गम्भीर बीमारियों का सामना करने को मजबूर होंगे तो फिर देश का विकास सम्भव नहीं हो सकेगा। ऐसे में कितने आश्चर्य की बात है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली जैसे शहरों में आक्सीजन बार खोले जा रहे है। जहां लोग पैसे देकर प्रदूषण रहित आक्सीजन ले रहे है। कोरोना के भयावह दौर में ऑक्सीजन की किल्लत से बेमौत मौतो को भूलना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। इतना ही नहीं बढ़ते प्रदूषण से अभी भी सबक नहीं लिया तो वह दिन दूर नही जब मानव साफ हवा के लिए तरस जाएगा। वायु प्रदूषण एक गम्भीर समस्या है।

जिससे भारत में प्रतिवर्ष 16 लाख से ज्यादा लोग मौत के आगोश में समा जाते है। फिर भी बिडम्बना देखिए कि अमीरों की गाड़ी से निकलने वाले धुंए से सबसे ज्यादा प्रभावित सड़क किनारे फुटपाथ पर रेहड़ी लगाने वाले गरीब मजदूरों को चुकानी पड़ती है। जबकि अमीरों के घरों में हवा साफ़ करने के लिए प्यूरीफायर जैसे उपकरण लगे होते है। वैसे एक बड़ी अच्छी कहावत है कि करें कोई और भरे कोई और…! वास्तव में आज के दौर में हो भी यही रहा है और बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण उपजा जलवायु संकट भी कहीं न कहीं अमीरों की ही देन है जिसकी सज़ा अब मासूम और शोषित वर्ग को चुकानी पड़ रही है।

वहीं अभी हाल ही में यूनिसेफ ने भी बढ़ते जलवायु संकट पर चिंता व्यक्त की है। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि दुनिया के करीब एक अरब से ज्यादा बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का ख़तरा मंडरा रहा है। जिसमें भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों पर जलवायु संकट का अधिक खतरा होने की बात कही गई है। यूनिसेफ द्वारा क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स भी जारी किया गया है। जिसमे बाढ़, लू , चक्रवात और वायु प्रदूषण को शामिल किया गया है। ऐसे में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रगतिशील दौर में बच्चें जहां गम्भीर बीमारियों का सामना कर रहें है तो वही दूसरी तरफ़ कोरोना का बढ़ता ख़तरा बच्चों से उनका बचपन छीन रहा है। आज बच्चे डर के माहौल में जीने को मजबूर है। जिसका सीधा असर न केवल उनके शरीर पर बल्कि मन पर भी पड़ रहा है।

यही वजह है कि वर्तमान दौर में बच्चे मानिसक अवसाद और मोटापे के शिकार हो रहे है। इसके अलावा रही सही कसर जलवायु परिवर्तन पूरा कर ही रहा है। कुल-मिलाकर देखें तो आज बचपन दो तरफा मुसीबतों से घिरा हुआ है और यही बचपन अगर आगामी भविष्य का आधार है। फिर उसी आधार को कमज़ोर करके क्या हम अपने देश को शिथिल और अवन्नति की ओर ले जाना चाहते हैं? इस पर हमें जल्द विचार करना होगा। वरना काफी देर हो चुकी होगी। वैसे मालूम हो कि यूनिसेफ ने भी इस बात को समझ लिया है कि वैश्विक स्तर पर बच्चें जलवायु परिवर्तन की भयंकर चपेट में हैं। तभी उसका कहना है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए तो जलवायु परिवर्तन से दुनिया के बच्चों द्वारा पहले से झेली जा रही असमानता और बढ़ जाएगी और आने वाली पीढियां भी इससे प्रभावित होंगीं।

– सोनम लववंशी

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Tags: carbon monoxideclimate change is realglobal warminghindi vivekindustrial wasteozone layertemperature growthwild fire

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