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ध्रुवीकरण से होगा हिसाब

ध्रुवीकरण से होगा हिसाब

by रामेन्द्र सिन्हा
in आर्थिक, ट्रेंडींग, मार्च -२०२२, विशेष, सामाजिक
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कुछ सीटों को छोड़ दें तो भाजपा लगभग सभी सीटों पर मजबूत दिखाई पड़ती है। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसके लाभार्थी बताए जा रहे हैं। मुफ्त राशन योजना ने हर वर्ग में भाजपा के लिए गुप्त मतदाता तैयार कर दिए हैं। सुरक्षा व्यवस्था के सवाल पर भाजपा अन्य सभी दलों पर हावी दिखाई पड़ती है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत 45 लाख से अधिक मकानों ने भाजपा की पहुंच एससी और एसटी समुदाय के बीच में बढ़ा दी है। योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल की तरह ही पश्चिम में भी लोकप्रिय हैं।

उत्तर प्रदेश में इस बार सत्ता का हिसाब हिजाब और ध्रुवीकरण से होगा, जिसमें तड़का पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बयान और उस पर कांग्रेस की उप्र प्रभारी प्रियंका गांधी की हंसी ने लगाया। मतदान के अंतिम चरण तक और भी तड़के लगें तो कोई आश्चर्य नहीं। 10 मार्च को तय हो जाएगा कि राज्य में कमल दोबारा खिलेगा या साइकिल दौड़ेगी। देखना यह भी है कि पांच-पांच इतिहास रचने की दहलीज पर खड़े उप्र के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव रोक पाते हैं कि नहीं।

चुनाव की शुरुआत में उडुपी से उठे हिजाब के विवाद ने पहले चरण के मतदान से ही अपना प्रभाव दिखा दिया। किसान आंदोलन, मुस्लिम-जाट, मुस्लिम दलित समीकरण पर यकीनन प्रभाव पड़ा। ध्रुवीकरण की दशा-दिशा भी बदली, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। उधर, तीसरा चरण आते-आते पंजाब में प्रियंका गांधी की रैली में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने विवादित बयान देकर उत्तर प्रदेश-बिहार वालों को भड़का दिया। चन्नी ने कहा कि प्रियंका पजाबियों की बहू है। यूपी दे, बिहार दे, दिल्ली दे भईए आके इते राज नई कर दे। यूपी के भइयों को पंजाब में फटकने नहीं देना है। सबसे बड़ी बात यह है कि रैली के मंच से जब मुख्यमंत्री चन्नी की जुबान फिसल रही थी, तब प्रियंका खिलखिलाती रहीं और भीड़ के साथ खुद भी नारे लगाने लगीं। इस बयान के बाद भाजपा, आम आदमी पार्टी और तमाम सियासी पार्टियों ने कांग्रेस और मुख्यमंत्री चन्नी के खिलाफ चौतरफा मोर्चा खोल दिया। इसका असर मतदान के शेष चरणों पर पड़ना स्वाभाविक है।

उत्तर प्रदेश में हिजाब विवाद को जमकर सर्च किया गया। गूगल पर इस विवाद को सर्च करने के मामले में तेलंगाना और तमिलनाडु के बाद उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर रहा। भाजपा को चुनाव में चुनौती दे रही समाजवादी पार्टी मुस्लिम-जाट समीकरण साधने के चलते इस मुद्दे पर खामोश रही। न अखिलेश यादव कुछ बोले, न राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया जयंत चौधरी का कोई बयान आया। अलबत्ता, अखिलेश के चाचा और सपा गठबंधन में शामिल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी प्रमुख शिवपाल यादव ने हिजाब पहनने के मामले में कहा कि लोकतंत्र में सभी को अधिकार है, कौन क्या पहनता है इस पर रोक नहीं लगनी चाहिए। जब कोर्ट में मामला चला गया है इस पर भाजपा को राजनीति नहीं करना चाहिए। मायावती ने भी इस पर बोलना उचित नहीं समझा। बसपा को दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे उम्मीद है। ऐसे में जहां असदुद्दीन ओवैसी हिजाब विवाद को तूल देकर मुसलमानों के वोट अपनी पार्टी की झोली में डालना चाहते हैं, वहीं भाजपा प्रतिक्रिया में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की आशा कर रही है। हिजाब विवाद के कारण यदि ओवैसी की तरफ कुछ फीसदी मुस्लिम वोट खिसकते हैं तो सपा की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है और कहीं मोदी-योगी विरोध में मुस्लिम वोट एक पार्टी के पक्ष में जाते हैं तो कई सीटों पर उलटफेर देखने को मिल सकता है।

इस बार, चुनाव के दो चरणों में जाटलैंड, मुस्लिम बेल्ट और रुहेलखंड की लड़ाई देखने को मिली। पहले चरण में 58 सीटों पर चुनाव हुआ, दूसरे चरण में 55 सीटों पर। तीसरे चरण में सेंट्रल यूपी के यादव बेल्ट और बुंदेलखंड के 16 जिलों की 59 सीटों पर जोर आजमाइश हुई। इनमें से 7 जिले यादव बेल्ट के और 5 जिले बुंदेलखंड के हैं। 2017 में सत्ता में रहने के बावजूद भी इस क्षेत्र में सपा का प्रदर्शन खराब रहा था। सपा को महज आठ सीटें मिली थीं। सपा की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को केवल एक सीट पर जीत मिली थी। भाजपा ने 49 सीटें जीती थीं। 2022 में खुद अखिलेश यादव भी आजमगढ़ छोड़ कर जहां से वह सांसद हैं, मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं। अखिलेश का यह कदम सपा के गढ़ में समीकरण साधने की कोशिश और स्वयं को प्रचार के लिए फ्री करने के लिए माना जाता है।

पहले चरण में 60.17 प्रतिशत तो दूसरे चरण में 62.82 प्रतिशत मतदान हुआ। उत्तर प्रदेश में वोटिंग के इतिहास को देखते हुए यह आंकड़ा काफी अच्छा है। हालांकि, 2017 की तुलना में यह आंकड़ा थोड़ा कम है। माना जाता है कि अधिक वोटिंग आमतौर पर बदलाव को लेकर होती है, जबकि मौजूदा सरकार के पक्ष में माहौल की स्थिति में मतदान का प्रतिशत कम रह जाता है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव के आंकड़ें देखें तो वोटिंग प्रतिशत बढ़ा था और इसका परिणाम सत्ता परिवर्तन के रूप में सामने आया। इसलिए ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि चुनाव किसी बड़े परिवर्तन की तरफ संकेत नहीं कर रहा है। जाट नाराजगी के बीच हिजाब के विवाद और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों ने भाजपा के लिए राहत का काम भी किया है। वहीं मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मतदान पिछली बार की तुलना में अधिक हुआ है जो कि सपा के लिए सकारात्मक है, बशर्ते कि बसपा, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मुस्लिम वोटों में सेंधमारी न की हो। दूसरी ओर, तीन तलाक कानून और कानून-व्यवस्था से खुश प्रगतिशील महिलाओं के वोट इस बार भी भाजपा उम्मीद कर सकती है।

सपा गठबंधन की वजह से पश्चिमी उप्र में जयंत चौधरी भले ही कुछ सीटें जीत जाएंगे, लेकिन संदेह बरकरार है कि क्या जयंत जाट मतदाताओं को सपा प्रत्याशियों के पक्ष में स्थानांतरित करा पाने में सफल हुए हैं? क्या मुस्लिम प्रत्याशियों को जाट समुदाय ने वोट किया है? भाजपा को पहले चरण से ज्यादा दूसरे चरण और तीसरे चरण में नुकसान हो सकता है। दूसरे चरण की 55 में से 40 सीटों पर 30 से 55% मुस्लिम मतदाता हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां से 15 सीटें जीती थी जिसमें 10 मुस्लिम उम्मीदवार शामिल थे। लोकसभा चुनाव 2019 में इन 9 जिलों की 11 लोकसभा सीटों में से विपक्ष ने 7 जीती थी। मुस्लिम वोटों का बंटवारा होने पर ही भाजपा को यहां राहत मिल सकती है। तीसरे चरण में शिवपाल यादव के साथ होने का लाभ सपा को यादवलैंड में मिल सकता है।

कुछ सीटों को छोड़ दें तो भाजपा लगभग सभी सीटों पर मजबूत दिखाई पड़ती है। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसके लाभार्थी बताए जा रहे हैं। मुफ्त राशन योजना ने हर वर्ग में भाजपा के लिए गुप्त मतदाता तैयार कर दिए हैं। सुरक्षा व्यवस्था के सवाल पर भाजपा अन्य सभी दलों पर हावी दिखाई पड़ती है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत 45 लाख से अधिक मकानों ने भाजपा की पहुंच एससी और एसटी समुदाय के बीच में बढ़ा दी है। योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल की तरह ही पश्चिम में भी लोकप्रिय हैं। योगी की आक्रामक कार्यशैली पश्चिम में काफी पसंद की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद योगी आदित्यनाथ की सभाओं में सबसे अधिक भीड़ दिखाई पड़ती है। और तो और, योगी की बुलडोजर कार्यशैली ने जहां उन्हें युवाओं और महिलाओं में लोकप्रिय बनाया है वहीं, केंद्र सरकार की उज्जवला, शौचालय योजना और तीन तलाक कानून ने खासकर महिलाओं को काफी प्रभावित किया है।

उप्र में वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में जहां महज 41.92 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मत का इस्तेमाल किया, वहीं साल 2012 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 60.28 प्रतिशत तक पहुंच गया। चुनाव आयोग द्वारा जारी ताजा आंकड़ो के अनुसार प्रदेश में अभी कुल 7.68 करोड़ पुरुष और 6.44 करोड़ महिला वोटर हैं। आंकड़ों से साफ है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में महिला वोटर किसी भी दल की दशा और दिशा बदलने में सक्षम हैं। खूबी यह है कि ये बड़ा साइलेंट वोटर है। अब देखना है कि चुनावी तड़कों के बीच अखिलेश यादव या मायावती की सोशल इंजीनियरिंग चली है या मोदी-योगी का डबल इंजन मतदाताओं को भाया है।

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