एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने कार्यकर्ता बैठक में कहा कि क्या केवल संघकार्य किसी के जीवन का ध्येय नहीं बन सकता ? यह सुनकर हरिकृष्ण जोशी ने उन 56 संस्थाओं से त्यागपत्र दे दिया, जिनसे वे सम्बद्ध थे। यही बाद में ‘अप्पा जी’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
30 मार्च, 1897 को महाराष्ट्र के वर्धा में जन्मे अप्पा जी ने क्रांतिकारियों तथा कांग्रेस के साथ रहकर काम किया। कांग्रेस के कोषाध्यक्ष जमनालाल बजाज के वे निकट सहयोगी थे; पर डा. हेडगेवार के सम्पर्क में आने पर उन्होंने बाकी सबको छोड़ दिया। डा. हेडगेवार, श्री गुरुजी और बालासाहब देवरस, इन तीनों सरसंघचालकों के दायित्वग्रहण के समय वे उपस्थित थे।
उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता। उनके पिता एक वकील के पास मुंशी थे। उनके 12 वर्ष की अवस्था में पहुँचते तक पिताजी, चाचाजी और तीन भाई दिवंगत हो गये। ऐसे में बड़ी कठिनाई से उन्होंने कक्षा दस तक पढ़ाई की। 1905 में बंग-भंग आन्दोलन से प्रभावित होकर वे स्वाधीनता समर में कूद गये। 1906 में लोकमान्य तिलक के दर्शन हेतु जब वे विद्यालय छोड़कर रेलवे स्टेशन गये, तो अगले दिन अध्यापक ने उन्हें बहुत मारा; पर इससे उनके अन्तःकरण में देशप्रेम की ज्वाला और धधक उठी।
14 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हो गया और वे भी एक वकील के पास मुंशी बन गये; पर सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी सक्रियता बनी रही। वे नियमित अखाड़े में जाते थे। वहीं उनका सम्पर्क संघ के स्वयंसेवक श्री अण्णा सोहनी और उनके माध्यम से डा. हेडगेवार से हुआ। डा. जी बिना किसी को बताये देश भर में क्रान्तिकारियों को विभिन्न प्रकार की सहायता सामग्री भेजते थे, उसमें अप्पा जी उनके विश्वस्त सहयोगी बन गये। कई बार तो उन्होंने स्त्री वेष धारणकर यह कार्य किया।
दिन-रात कांग्रेस के लिए काम करने से उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गयी। यह देखकर कांग्रेस के कोषाध्यक्ष जमनालाल बजाज ने इन्हें कांग्रेस के कोष से वेतन देना चाहा; पर इन्होंने मना कर दिया। 1947 के बाद जहाँ अन्य कांग्रेसियों ने ताम्रपत्र और पेंशन ली, वहीं अप्पा जी ने यह स्वीकार नहीं किया। आपातकाल में वे मीसा में बन्द रहे; पर उससे भी उन्होंने कुछ लाभ नहीं लिया। वे देशसेवा की कीमत वसूलने को पाप मानते थे।
एक बार कांग्रेस के काम से अप्पा जी नागपुर आये। तब डा. हेडगेवार के घर में ही बैठक के रूप में शाखा लगती थी। अप्पा जी ने उसे देखा और वापस आकर 18 फरवरी, 1926 को वर्धा में शाखा प्रारम्भ कर दी। यह नागपुर के बाहर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली शाखा थी। डा. हेडगेवार ने स्वयं उन्हें वर्धा जिला संघचालक का दायित्व दिया था।
नवम्बर, 1929 में नागपुर में प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक बैठक में सबसे परामर्श कर अप्पा जी ने निर्णय लिया कि डा. हेडगेवार संघ के सरसंघचालक होने चाहिए। 10 नवम्बर शाम को जब सब संघस्थान पर आये, तो अप्पा जी ने सबको दक्ष देकर ‘सरसंघचालक प्रणाम एक-दो-तीन’ की आज्ञा दी। सबके साथ डा. जी ने भी प्रणाम किया। इसके बाद अप्पा जी ने घोषित किया कि आज से डा. जी सरसंघचालक बन गये हैं।
1934 में गांधी जी को वर्धा के संघ शिविर में अप्पा जी ही लाये थे। 1946 में वे सरकार्यवाह बने। अन्त समय तक सक्रिय रहते हुए 21 दिसम्बर, 1979 को अप्पा जी जोशी का देहान्त हुआ।
I felt happy to know about the
Honoured Appaji Joshi ‘s short biography.
Thank you so much.